October 25, 2021

पुस्तक विमोचन समारोह

रविवार दिनाँक 24 अक्टूबर,2021 को खटीमा,उत्तराखंड में विनम्र स्वभाव के धनी कवि एवं अध्यापक  भाई श्री रामरतन यादव रतन जी के स्नेहिल आमंत्रण पर उनकी प्रथम काव्यकृति "काव्य-ज्योति" के विमोचन कार्यक्रम का सहभागी बनने का अवसर प्राप्त हुआ।कार्यक्रम बहुत ही अनुशासित व गरिमापूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ।कार्यक्रम में मुझे भी काव्य पाठ तथा उनकी पुस्तक की समीक्षा करने का अवसर मिला।इस अवसर पर श्री रामरतन यादव जी तथा साहित्यिक संस्था काव्यधारा द्वारा मुझ अकिंचन को सम्मान प्रदान करने हेतु मैं  ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ।
कार्यक्रम में मेरे द्वारा पढ़ी गई एक ग़ज़ल--
ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
मुफ़ाईलुन   मुफ़ाईलुन    फ़ऊलुन
©️
खिले - से   चौक - चौबारे   नहीं   है,
नगर  में  अब   वो   नज़्ज़ारे  नहीं  हैं।

बचाते  हैं  जो   इन  अपराधियों  को,
वो  क्या  सत्ता  के  गलियारे  नहीं हैं।

गुमां   तोडेंगे   जल्दी    आसमां   का,
परिंदे     हौसला     हारे     नहीं    हैं ।

तलब  है   कामयाबी  की   सभी  को ,
हमीं   इस   दौड़   में   न्यारे   नहीं   हैं।
©️
बना  बैठा   है  जो  अब  शाह , उसने-
भला किस-किस के हक़ मारे नहीं हैं।

हैं  जितनी  ख़्वाहिशें मन  में बशर के,
गगन   में   इतने   तो   तारे   नहीं   हैं।

नज़र  से  एक   ही,  देखो  न  सबको,
बुरे   कुछ   लोग   हैं   सारे   नहीं   है।

उन्हें   भाती   है   आवारा   मिज़ाजी,
कहें    कैसे    वो    बंजारे    नहीं   हैं।
-----©️ओंकार सिंह विवेक    
कार्यक्रम में श्री रामरतन यादव जी और उनके परिजनों की आत्मीयता और आतिथ्य ने बहुत प्रभावित किया।भाई श्री रामरतन जी को शुभकामनाएँ सम्प्रेषित करते हुए अवसर के कुछ छाया चित्र साझा कर रहा हूँ।
                                           



          

4 comments:

  1. सुन्दर गजल एवं भव्य आयोजन के लिए बधाई ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. सीताराम
    बहुत सुंदर।हार्दिक बधाई

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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