साथियो यथायोग्य अभिवादन🙏🙏
आज अपने अनुभव के आधार पर एक संवेदनशील विषय पर कुछ लिखने का मन हुआ सो लिख रहा हूँ। निश्चित तौर पर बहुत
से साथी मुझसे सहमत नहीं होंगे।मैं उनकी असहमति का सम्मान
करता हूँ क्योंकि किसी विषय में कुछ लोगों की असहमति ही
एक नए विचार को जन्म देकर विमर्श का मार्ग प्रशस्त करती है।
-- जैसे-जैसे आदमी ज़िंदगी में तमाम मुश्किलों से दो-चार होकर आगे बढ़ता है उसके अनुभव और आत्मविश्वास का भंडार बढ़ता जाता है। अनुभव मुश्किलों से टकराने और बिना रुके आगे बढ़ने में आदमी का मददगार साबित होता है।निःसंदेह वरिष्ठ व्यक्तियों के पास नए लोगों के मुक़ाबले अधिक अनुभव होता है। कनिष्ठ पीढ़ी का यह दायित्व बनता है कि वे वरिष्ठ लोगों का सम्मान करें और उनके अनुभव का लाभ उठाएँ।
यही अपेक्षा वरिष्ठ लोगों से भी की जाती है कि यदि किसी कनिष्ठ
के पास कोई नई जानकारी या ज्ञान है तो वे भी बिना उम्र को बीच मे लाए उसे सीखकर लाभ उठाएँ।
जहाँ तक ज्ञान का प्रश्न है यह अपेक्षाकृत भिन्न क्षेत्र है।निःसंदेह वरिष्ठ साथियो के पास जीवन के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को लेकर नई पीढ़ी की अपेक्षा कई गुना अधिक अनुभव होता है।
परंतु किसी क्षेत्र में ज्ञान का जहाँ तक प्रश्न है वह एक कनिष्ठ व्यक्ति के पास भी वरिष्ठ जनों से अधिक हो सकता है।इस सत्य को स्वीकारने में कोई अहम आड़े नहीं आना चाहिए।
कई अवसरों पर यह देखने में आता है कि जब कोई कनिष्ठ किसी विशेष में अपने विशेष ज्ञान के आधार पर किसी वरिष्ठ जन की तथ्यात्मक त्रुटि की ओर विनम्रता से इंगित करता है तो वे इसे अन्यथा लेते हैं जो शायद ठीक नहीं है।
कई वरिष्ठ जनों को ऐसे भी कहते सुना गया है की यह चार दिन का बच्चा हमारी ग़लती निकालने चला है या हमें सिखाने चला है। नए लोगों को तो बड़ों से बात करने की जैसे तमीज़ ही नहीं रह गई है---वगैरहा वगैरहा---।
वरिष्ठ जनों के मुँह से ऐसी बातें तब तो ठीक हैं जब किसी कनिष्ठ द्वारा कोई अशोभनीय या गरिमा के प्रतिकूल टिप्पणी की गई हो या फिर उसने अपने विशिष्ट ज्ञानार्जन के आधार पर जो टिप्पणी की है वह तथ्यों के आधार पर ठीक न हो।यदि कनिष्ठ द्वारा कोई तथ्यपरक बात विनम्रता से कही गई हो तो वरिष्ठ जनों का भी यह दायित्व बनता है कि उसे अपने अहम से न जोड़ते हुए सह्रदयता से लें।
सीखना और सिखाना एक वृहद प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती है।ज़रूरत इस बात की है हम सब एक-दूसरे का मान रखते हुए कुछ न कुछ एक-दूसरे से सीखते रहें।
वरिष्ठता,ज्ञान और अनुभव निःसंदेह एक दूसरे से जुड़े हैं।यह आपस में पूरक तो हो सकते हैं परंतु जहाँ तक ज्ञान और अनुभव का प्रश्न है ये एक दूसरे के समानार्थी कदापि नहीं हैं ,इस बात का ध्यान वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों को ही रखना होगा।
---ओंकार सिंह विवेक
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