दोहे सर्दी के
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--ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चल उठ देनी है हमें, अब सर्दी को मात,
बहिन रज़ाई कह रही ,कंबल से यह बात।
थोड़ा-सा साहस जुटा , किए एक-दो वार,
कुहरा लेकिन अंत में , गया सूर्य से हार।
सर्द हवा ने दे दिया , जाड़े का पैग़ाम,
मिल जाएगा कुछ दिनों ,कूलर को आराम।
हाड़ कँपाती ठंड में , खींचेंगे सब कान,
गीजर अपने स्वास्थ्य का,रखना थोड़ा ध्यान।
मूँगफली कहने लगी , सुन ले ए बादाम,
मैं तुझ से कम दाम में,करती तुझ-सा काम।
गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
नौकर ने बस शर्ट में,जाड़े दिए निकाल।
मचा दिया कैसा यहाँ , कुहरे ने कुहराम,
दिन निकले ही लग रहा,घिर आई हो शाम।
--ओंकार सिंह विवेक(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र--गूगल से साभार
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभार आदरणीया
Deleteसर्दी के गर्म और सुंदर दोहे...
ReplyDeleteब्रजेंद्रनाथ
आभार आदरणीय
Deleteऋतु अनुरूप बहुत सुंदर दोहे।
ReplyDeleteसादर।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबेहतरीन दोहे।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत ही उत्तम दोहे !!
ReplyDeleteहार्दिक आभार महाजन साहब
Deleteसुंदर सम सामयिक दोहे।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteवाह !
ReplyDeleteसुबह की धूप में कवि को चाय और मूंगफली की दावत पर बुलाने का मन कर रहा है !
हार्दिक आभार आपका🙏
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