December 9, 2021

दोहे सर्दी के

     दोहे सर्दी के
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         --ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चल  उठ  देनी  है  हमें, अब सर्दी  को  मात,
बहिन  रज़ाई  कह रही ,कंबल से यह  बात।

थोड़ा-सा   साहस  जुटा , किए  एक-दो  वार,
कुहरा  लेकिन  अंत  में , गया  सूर्य  से  हार।

सर्द   हवा   ने   दे  दिया , जाड़े   का  पैग़ाम,
मिल जाएगा कुछ  दिनों ,कूलर को  आराम।

हाड़  कँपाती   ठंड   में , खींचेंगे   सब  कान,
गीजर अपने स्वास्थ्य का,रखना थोड़ा ध्यान।

मूँगफली   कहने  लगी , सुन  ले  ए  बादाम,
मैं तुझ से कम दाम में,करती तुझ-सा काम।

गर्म  सूट में  सेठ का , जीना  हुआ   मुहाल,
नौकर  ने बस  शर्ट  में,जाड़े  दिए  निकाल।

मचा  दिया  कैसा  यहाँ , कुहरे  ने  कुहराम,
दिन निकले ही लग रहा,घिर आई  हो शाम।
 --ओंकार सिंह विवेक(सर्वाधिकार सुरक्षित)

चित्र--गूगल से साभार
 चित्र--गूगल से साभार

14 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
    'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. सर्दी के गर्म और सुंदर दोहे...
    ब्रजेंद्रनाथ

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  3. ऋतु अनुरूप बहुत सुंदर दोहे।
    सादर।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  5. बहुत ही उत्तम दोहे !!

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    Replies
    1. हार्दिक आभार महाजन साहब

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  6. सुंदर सम सामयिक दोहे।

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  7. वाह !
    सुबह की धूप में कवि को चाय और मूंगफली की दावत पर बुलाने का मन कर रहा है !

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  8. हार्दिक आभार आपका🙏

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