शुभ संध्या🙏🙏
सभी ग़ज़ल प्रेमी साहित्य मनीषियों का हार्दिक स्वागत और अभिनंदन ।
प्रस्तुत है मेरी बहुत आसान बह्र में कही गई एक ग़ज़ल
जिसमें अधिक से अधिक हिंदी शब्दों के प्रयोग का प्रयास
किया है।
अरकान-- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़्न -- 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
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हो सके जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
बाँट कर दुख-दर्द बंदे हर किसी से प्यार कर।
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छल-कपट के भाव करते हैं सदा मन का अहित,
हो तनिक यदि इनकी आहट बंद मन के द्वार कर।
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जिसको सुनते ही ख़ुशी से सबके तन-मन खिल उठें,
ऐसी वाणी से सदा व्यक्तित्व का शृंगार कर।
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विश्व के कल्याण की जिनसे प्रबल हो भावना,
उन विचारों का सदा मस्तिष्क में संचार कर।
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पर्वतों को चीरकर जो बह रही है शान से,
प्रेरणा ले उस नदी से संकटों को पार कर।
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नफ़रतों की चोट से इंसानियत घायल हुई,
ज़िंदगी इसकी बचे ऐसा कोई उपचार कर।
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---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वधिकार सुरक्षित)
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