January 31, 2022
संविधान का मान
January 28, 2022
जिसकी बनती हो बने----
January 26, 2022
लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर
January 23, 2022
फ़िक्र फूली-फली नहीं होती----तो
January 22, 2022
झूठ पर झूठ वो बोलता रह गया
ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक
©️
झूठ पर झूठ वो बोलता रह गया,
देखकर मैं ये हैरान-सा रह गया।
अर्ज़ हाकिम ने लेकिन सुनी ही नहीं,
एक मज़लूम हक़ माँगता रह गया।
जीते जी उसके, बेटों ने बाँटा मकां,
बाप अफ़सोस करता हुआ रह गया।
©️
जाने वाले ने मुड़कर न देखा ज़रा,
दुख हमें बस इसी बात का रह गया।
नाम से उनके चिट्ठी तो इरसाल की,
पर लिफ़ाफ़े पे लिखना पता रह गया।
हाल यूँ तो कहा उनसे दिल का बहुत,
क्या करें फिर भी कुछ अनकहा रह गया।
©️
वो हिक़ारत दिखाता रहा, और मैं,
"शब्द ही प्यार के बोलता रह गया"
देखकर हाथ में उनके आरी 'विवेक',
डर के मारे शजर काँपता रह गया।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
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January 21, 2022
चुनावी मौसम : एक नवगीत
January 16, 2022
चुनावी मौसम पर कुंडलिया
January 13, 2022
लोहड़ी व मकर संक्रांति
January 12, 2022
वृक्षों के संरक्षण को लेकर
January 8, 2022
बड़ी दिलकश तुम्हारी शायरी है
January 6, 2022
कुंडलिया : सर्दी के नाम
January 1, 2022
मिला है ख़ुश्क दरिया देखने को
December 31, 2021
नए साल की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी
नया साल : एक कामना
December 30, 2021
सर्दी के नाम
December 27, 2021
December 25, 2021
अटल जी की स्मृति में
December 23, 2021
December 21, 2021
अब एक भी दरख़्त पे पत्ता नहीं रहा
December 19, 2021
एक नवगीत सामाजिक विसंगतियों और विरोधाभासों के नाम
December 13, 2021
घर से निकल पड़े हैं तीर-ओ-कमान लेकर
December 11, 2021
सर्दी का नवगीत : अलसाई-सी धूप
December 9, 2021
दोहे सर्दी के
December 7, 2021
वरिष्ठता-ज्ञान तथा अनुभव
December 4, 2021
माँ का आशीष फल गया होगा
December 1, 2021
आज कुछ दोहे यों भी
November 27, 2021
धुर विरोधी दलों में भी यारी हुई
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
सूचना क्या इलक्शन की जारी हुई,
धुर विरोधी दलों में भी यारी हुई।
दीन दुनिया से बिल्कुल ही अनजान थे,
घर से निकले तो कुछ जानकारी हुई।
आज निर्धन हुआ और निर्धन यहाँ,
जेब धनवान की और भारी हुई।
मुझपे होगा भी कैसे बला का असर,
माँ ने मेरी नज़र है उतारी हुई।
खेद इसका है गतिरोध टूटा नहीं,
बात उनसे निरंतर हमारी हुई।
--- ओंकार सिंह विवेक
(Copy right)
November 25, 2021
एक अनूठा प्रयोग : टैगोर काव्य गोष्ठी
November 22, 2021
माँ का आशीष फल गया होगा
दोस्तो हाज़िर है एक नई ग़ज़ल फिर से आपकी अदालत में
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फ़ाइलातुन मुफाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
©️
माँ का आशीष फल गया होगा,
गिर के बेटा सँभल गया होगा।
ख़्वाब में भी न था गुमां मुझको,
दोस्त इतना बदल गया होगा।
छत से दीदार कर लिया जाए,
चाँद कब का निकल गया होगा।
©️
सच बताऊँ तो जीत से मेरी,
कुछ का तो दिल ही जल गया होगा।
आईना जो दिखा दिया मैंने,
बस यही उसको खल गया होगा।
जीतकर सबका एतबार 'विवेक',
चाल कोई वो चल गया होगा।
-- ©️ओंकार सिंह विवेक
November 17, 2021
आँसुओं की ख़ुद्दारी
ग़ज़ल-- ©️ ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
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रंज - ख़ुशी के दावतनामे जाते हैं,
यूँ ही कब पलकों तक आँसू आते हैं।
कैसे कह दें उनको रागों का ज्ञाता,
रात ढले तक राग यमन जो गाते हैं।
वक़्त की गर्दिश करती है जो ज़ख़्म अता,
वक़्त की रहमत से वो भर भी जाते हैं।
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शुक्र अदा करना तो बनता है इनका,
हम जंगल - नदियों से जितना पाते हैं।
उनका क्या लेना - देना सच्चाई से,
वो तो केवल अफ़वाहें फैलाते हैं।
फैट-शुगर बढ़ने का ख़तरा क्या होगा,
हम निर्धन तो रूखी-सूखी खाते हैं।
--- ©️ ओंकार सिंह विवेक
November 11, 2021
"दर्द का अहसास"--एक समीक्षा
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