September 26, 2023

झुमका गिरा रे! बरेली के बाज़ार में ------

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏


झुमका गिरा रे! बरेली के बाज़ार में, झुमका गिरा रे!
फ़िल्म "मेरा साया" का यह सुपर हिट गीत किसकी ज़बान पर चढ़कर नहीं बोलता।हम सभी जानते हैं कि यह गाना अपने ज़माने की मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री साधना पर फिल्माया गया था।
 गाने के ये  बोल और इन पर साधना जी की दिलकश अदाकारी आज भी लोगों को दीवाना बनाए हुए है।इस गाने को सुनते ही बरेली शहर की याद आना स्वाभाविक है।
हाल ही में मैंने बरेली प्रवास के दौरान बरेली के झुमका तिराहे का भ्रमण किया तो सोचा इस तिराहे के बारे में आपके साथ भी कुछ विचार साझा किए जाएं।
इस फिल्मी गाने की मार्फत बरेली की पहचान बन चुके झुमके के नाम पर बरेली नगर के प्रवेश द्वार पर ही बरेली विकास प्राधिकरण द्वारा झुमका तिराहे का निर्माण कराया गया है।यह तिराहा बहुत ही सुंदर और भव्य बनाया गया है। यह चौराहा २०० मीटर दूर से ही दिखाई देने लगता है। 
जैसे- जैसे हम इसके पास आते हैं इसे निहारने और इसके साथ फोटो खिंचवाने की उत्सुकता बढ़ती जाती है।हाल ही में बॉलीवुड इंडस्ट्री के दिग्गज रणवीर सिंह और आलिया भट्ट भी अपनी नई फिल्म "रॉकी और रानी" के प्रमोशन के सिलसिले में इस तिराहे पर आए थे और झुमके के साथ अपनी फोटो खिंचवाकर तथा यहां प्रशंसकों से मिलकर इस झुमका शहर बरेली के लोगों को अपनी शुभकामनाएं दी थीं।
प्राप्त सूचनाओं के आधार पर यहां स्थापित किए गए विशाल झुमके को पीतल और तांबे से बनाया गया है।झुमके की ऊंचाई लगभग १८ फीट है तथा भार लगभग २०० किलो अर्थात २ क्विंटल है।इस तिराहे को बनाने में लगभग १८ लाख रुपए की लागत आई है।
नेशनल हाईवे २४ पर स्थित इस तिराहे से एक रोड लखनऊ की और जाती है तो दूसरी  दिल्ली की तरफ़ जाती है।तीसरा रास्ता सीधे बरेली नगर की तरफ़ जाता है।चूंकि यह तिराहा नेशनल हाइवे पर बना हुआ है सो इस रास्ते से गुज़रते हर यात्री की नज़र इस पर पड़ती है इसलिए हर कोई यहां रुककर झुमके को पास से देखना चाहता है। अत: यहां हमेशा खूब चहल-पहल रहती है।
आपका जब कभी दिल्ली लखनऊ हाईवे पर इधर से गुज़रना हो तो झुमका तिराहे पर रुककर बरेली की पहचान इस सुंदर और विशाल झुमके को निहारना न भूलें।
   --- ओंकार सिंह विवेक 

September 13, 2023

हिंदी दिवस विशेष : सितारे हिंदी के

नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏
हिंदी भाषा के सर्वत्र प्रभाव और इसके अधिकांश भारतीय प्रांतों में बोले जाने के कारण १४ सितंबर,१९४९ को स्वतंत्र भारत की संविधान सभा ने हिंदी को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा अर्थात राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था।हिंदी को राजभाषा /आधिकारिक भाषा बनवाने में हिंदी के मूर्धन्य  विद्वान व्यौहार राजेंद्र सिंह जी के नेतृत्व में काका कालेलकर,आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा सेठ गोविंददास जी जैसे साहित्यकारों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इन्हीं के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप १४ सितंबर,१९४९ को हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। व्यौहार श्री राजेंद्र सिंह जी के ५०वें जन्मदिवस अर्थात १४ सितंबर,१९५३ से भारतवर्ष में प्रत्येक १४ सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का निश्चय किया गया।हिंदी देश की राजभाषा तो बन गई परंतु अभी इसे राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया जाना शेष है।देश के कई प्रांतों में अभी सरकारी कामकाज वहां की क्षेत्रीय भाषा तथा अंग्रेज़ी भाषा में ही होता है। इसलिए हिंदी भाषा को अभी राष्ट्र भाषा घोषित नहीं किया जा सका है।
हिंदी को विश्व स्तरीय पहचान दिलाने के लिए निरंतर प्रयास जारी हैं।इस दिशा में बहुत गंभीर और सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं जिन्हें निम्न बातों से समझा जा सकता है:
* भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर विश्व पटल पर अपना लोहा मनवाया था।
*हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अक्सर ही हिंदी में संबोधन करते हुए देखे जा सकते हैं।
*हिंदी गद्य तथा पद्य के साहित्यकार हिंदी भाषा की समृद्धि और प्रचार प्रसार में अपना निरंतर योगदान दे रहे हैं।
* देश की प्रतिष्ठित आई ए एस (Earlier ICS)परीक्षा जो पहले केवल अंग्रेज़ी माध्यम से ही आयोजित की जाती थी अब अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में आयोजित की जाती है। इस परीक्षा में हिंदी माध्यम से बैठने वाले अभ्यर्थियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
*हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिताओं/संगोष्ठियों और हिंदी विचार गोष्ठियों आदि के आयोजन से हिंदी का सतत् प्रचार प्रसार किया जा रहा है।
*हिंदी भाषा में हजारों/लाखों की संख्या में आज यू ट्यूब चैनल्स हैं जिनके मिलियंस सब्सक्राइबर्स हैं।यह हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है।
*आज हिंदी में तमाम वेबसाइट्स और ऐप्स मौजूद हैं,पॉडकास्ट ट्यूटोरियल्स उपलब्ध हैं।हिंदी ब्लॉगिंग की लोकप्रियता भी निरंतर बढ़ रही है।
*आज मंदारिन और अंग्रेज़ी के बाद हिंदी दुनिया में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। 
*Google adsense भी इस बात को स्वीकार करता है कि आजकल लोग गूगल पर हिंदी में विज्ञापन और अन्य कंटेंट पढ़ना अधिक पसंद करते हैं।
*दैनिक जागरण १३सितंबर,२०२३ की रिपोर्ट के अनुसार आज दुनिया के सौ से अधिक देशों में हिंदी भाषा का प्रयोग हो रहा है।
वर्ष २०१७ से २०२२ के बीच हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के कंटेंट का बाज़ार ६०प्रतिशत की दर से बढ़ा है। 
ये सब आंकड़े हिंदी भाषा के भविष्य को लेकर बहुत शुभ संकेत देते हैं।
आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि हम सबके सद्प्रयासों के चलते हमारे राष्ट्र की गौरव हिंदी भाषा शीघ्र ही राष्ट्र भाषा का दर्जा पाकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी धाक जमाने में सफल होगी।
         @
        दुनिया  में भारत के  गौरव, मान और सम्मान की,
        आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।
                                    @ओंकार सिंह विवेक 
जय हिंदी 🙏🙏🌹🌹जय भारत🇮🇳🇮🇳



September 7, 2023

श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष

 मित्रो श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व की आप सभी को हार्दिक बधाई 🌹🌹🙏🙏

आज ही के दिन योगेश्वर श्री कृष्ण जी ने अधर्म के समूल नाश हेतु धरा पर अवतार लिया था। योगीराज की लीलाएं जीवन जीने की कला सिखाती हैं। श्री कृष्ण के गीता में दिए गए उपदेश हमें सुख-दुःख में समभाव रखते हुए कर्म किए जाने की प्रेरणा देते हैं। आइए श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्तव्य पथ पर अग्रसर होने हेतु दिए गए उपदेशों को आत्मसात करते हुए हर्षोल्लास के साथ श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाएं।

जय श्री कृष्ण 🌹🌹🙏🙏

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कहे गए मेरे कुछ दोहों का आनंद लीजिए :
दोहे : श्री कृष्ण जन्माष्टमी 
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         -- @ओंकार सिंह विवेक 
लिया   द्वारकाधीश  ने,जब   पावन   अवतार।
स्वत: खुल  गया  कंस  के,बंदीग्रह  का  द्वार।।

काम न आई  कंस  की, कुटिल एक भी  चाल।
हुए कृष्ण जी अवतरित,बनकर उसका काल।।

बाल  रूप  में   आ   गए, उनके   घर  भगवान।
नंद-यशोदा   गा   रहे,मिलकर   मंगल    गान।।

जिसको  सुनकर  मुग्ध थे,गाय-गोपियाँ-ग्वाल।
छेड़ो वह  धुन आज  फिर ,हे गिरिधर गोपाल।।
  
दुष्टों   का   कलिकाल  के, करने    को   संहार।
चक्र सुदर्शन  कृष्ण   जी, पुन: लीजिए   धार।।

कर्मयोग   से    ही   बने, मानव   सदा   महान।
यही   बताता   है   हमें, गीता   का   सद्ज्ञान।।

लेते   रहिए   नित्य प्रति, वंशीधर   का    नाम।
बन   जाएंगे    आपके, सारे    बिगड़े    काम।।
                              @ओंकार सिंह विवेक

(चित्र : गूगल से साभार)

   

September 3, 2023

🇮🇳🇮🇳एक देशभक्ति गीत 🇮🇳🇮🇳

नमस्कार मित्रो🌹🌹🙏🙏


आज दो अंतरों के एक देशभक्ति दोहा गीत का आनंद लीजिए :
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हम भारत के वीर हैं, अलग हमारी शान।
कम होने  देंगे नहीं,कभी  देश का मान।।

    आँख उठाएगा अगर, दुश्मन इसकी ओर।
    नहीं  मिलेगा  देखने,उसको अगला भोर।।

मिट जाएगी विश्व के, नक्शे से पहचान।
कम होने देंगे नहीं --------

     बड़ी- बड़ी उपलब्धियां, बड़े- बड़े हैं काम।
     शांति और सदभाव  का, देता  है पैग़ाम।।

जग में फिर क्यों हो नहीं, भारत का गुणगान।।
कम होने देंगे नहीं -------
        @ओंकार सिंह विवेक 


August 31, 2023

लाल को खाना-कमाना आ गया

कई दिन बाद एक मुकम्मल ग़ज़ल दोस्तों की नज़्र
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झुग्गियों  का  हक़ दबाना आ  गया,
कोठियों को  ज़ुल्म ढाना  आ गया।

लग  रहा  है  खेत  की  मुस्कान  से, 
धान  की  बाली में  दाना  आ गया।

दूधिया ख़ुश  है कि बेटे को भी अब, 
दूध  में   पानी  मिलाना  आ   गया।

साफ़गोई   की   इलाही   ख़ैर    हो, 
चापलूसों  का   ज़माना  आ   गया।

चाहिए अब और  क्या  माँ-बाप को,    
लाल को  खाना-कमाना  आ  गया।

वो   सभी  रौनक   हुए  दरबार   की,   
हाँ में  जिनको सर हिलाना आ गया।

रोज़   रोगी   सांस   के    बढ़ने  लगे,               
गाँव  में   क्या  कारखाना आ  गया।

करते-करते मश्क़,मिसरे पर 'विवेक',
हमको भी मिसरा  लगाना  आ गया।
          @ओंकार सिंह विवेक 

August 23, 2023

चंद्रयान-3 की आज होगी चाँद पर सॉफ्ट लैंडिंग

140 करोड़ भारत वासियों के सीने उस समय गर्व से चौड़े हो जाएंगे जब आज शाम छः बजकर चार मिनट पर भारत के चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान चांद की सतह पर उतरेंगे।इतना ही नहीं भारत विश्व का ऐसा पहला देश बन जाएगा जिसका यान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचेगा।आज तक केवल अमेरिका,सोवियत संघ (रूस) और चीन के ही लैंडर चंद्रमा पर उतरे हैं।इस श्रेणी में अब भारत चौथा देश बन जाएगा।
आइए आज शाम हम सब देश वासी इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनें, इसी मंगल कामना के साथ :
140 करोड़ भारत वासियों की ओर से 👇👇

आज चंदा पे हम,
रख ही देंगे क़दम।
@ओंकार सिंह विवेक 
  चित्र : (गूगल से साभार) 

August 4, 2023

मंडोली रेस्टोरेंट दुर्ग (छत्तीसगढ़)


         मंडोली रेस्टोरेंट दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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हाल ही में कुछ पारिवारिक कारणों से छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर और इसके नज़दीक के नगरों दुर्ग तथा भिलाई आदि जाना हुआ।
यह हमारी पहली छत्तीसगढ़ यात्रा थी।लगभग चार दिन के प्रवास के दौरान हम दुर्ग में होटल "द एवलॉन" में रुके।यह होटल रेलवे स्टेशन से लगभग ५०० मीटर की दूरी पर मालवीय नगर चौक के पास एक प्राइम लोकेशन पर स्थित है।होटल सुविधाओं और सजावट की दृष्टि काफ़ी अच्छा है।
पहले दिन देर रात को पहुंचने के कारण हम लोग काफ़ी थके हुए थे अत: खाना होटल में ही ऑर्डर किया।खाना ठीक था परंतु जैसा कि होटलों में होता है,यह अपेक्षाकृत मंहगा था।

 चूंकि हमें कई दिन वहां रुकना था अत: अगले दिन  आसपास थोड़े सस्ते और ठीक-ठाक घर जैसा खाना परोसने वाले होटल की तलाश शुरू की।इस काम में हम जल्दी ही कामयाब भी हो गए जब हमें मालवीय नगर चौक पर ही मंडोली के नाम से एक छोटा किंतु बहुत व्यवस्थित और 
साफ़-सुथरा होटल मिल गया।दो दिन हमने वहीं भोजन किया।यह होटल एक परिवार द्वारा चलाया जा रहा है।होटल स्वामी ,उनकी पत्नी तथा पुत्र बड़े प्रेम से इस रेस्टोरेंट को चला रहे हैं।
    (मंडोली रेस्टोरेंट के स्वामी की धर्म पत्नी जी और होटल कर्मचारियों के साथ हम पति-पत्नी)

मंडोली की किचिन में घर के लोगों के साथ अधिकांश व्यवहार कुशल महिला कर्मचारी ही काम करते हैं। हम जब भी इस होटल में खाना खाने गए अक्सर वहां काफ़ी लोगों को खाना खाते हुए देखा।किसी पूरे परिवार का स्वयं प्यार से खाना बनाकर ग्राहकों को आत्मीयता के साथ सर्व करना हमें  बहुत प्रभावित कर गया।नॉर्थ इंडियन सात्विक थाली के साथ-साथ ये लोग साउथ इंडियन और चाय,पोहा और नाश्ते में पराठा आदि सब कुछ सर्व करते हैं।इनकी घरेलू नॉर्मल थाली और स्पेशल थाली अन्य होटलों की थाली से अपेक्षाकृत कम रेट पर उपलब्ध है। संदर्भ हेतु होटल का मेन्यू नीचे दिया है :
मंडोली भोजनालय की नॉर्मल /साधारण थाली में एक दाल,दो सब्ज़ी,चटनी,सलाद,चुपड़ी हुई चार तवा रोटी तथा चावल सम्मिलित होते हैं।चावल न लेने पर ये लोग दो रोटी अतिरिक्त देते हैं जो हमारे लिए बहुत ज़रूरी भी था क्योंकि हम लोग चावल कम पसंद करते हैं।होटल में यहां के अधिकांश लोगों को हमने चावल ही खाते देखा।इसके पीछे एक कारण यह भी है कि छत्तीसगढ़ को भारत का Rice Bowl भी कहा जाता है क्योंकि यहां चावल/धान बहुत अधिक मात्रा में पैदा होता है।
खाना तो पैसे देकर किसी भी होटल में खाया जा सकता था परंतु खाने के साथ इस रेस्टोरेंट को चलाने वाले परिवार से जो आत्मीयता हमें प्राप्त हुई वह दिल को छू गई।प्रसंगवश मुझे किसी शायर का यह शेर याद आ गया :
     कितने हसीन लोग थे जो मिलके एक बार,
     आँखों में  जज़्ब हो गए दिल में समा गए।
खाना खाने के बाद रेस्टोरेंट स्वामी और उनकी पत्नी से काफ़ी बातें हुईं।देश-प्रदेश और राजनीति को लेकर भी वार्तालाप हुआ। यह परिवार हमें देश-प्रदेश और समाज की चिंता करने वाला काफ़ी जागरूक परिवार लगा।बातों ही बातों में हमने उनसे कहा कि कल हमें वापस जाना है।हम चाहते हैं कि रास्ते के लिए खाना आपके होटल से ही पैक कराकर ले जाएँ।उन्होंने कहा कि होटल में पूरा खाना तो ११ बजे के बाद ही ठीक से तैयार हो पाता है परंतु फिर भी यदि आप कहें तो हम लोग कोशिश करके आपके स्टेशन जाने से पहले ही पराठे तैयार करके दही ,चटनी आदि के साथ पैक कर देंगे। हमने सहर्ष स्वीकृति दे दी। हमारी ट्रेन अगले दिन ११ बजे की थी।
अगले दिन सुबह जब हम साढ़े नौ बजे पहुंचे तो होटल स्वामी जी की पत्नी जल्दी-जल्दी हमारे लिए देशी घी के परांठे,आलू की सब्ज़ी तथा दही और चटनी आदि तैयार कराकर पैक करने में लग गईं।ठीक सवा दस बजे उन्होंने हमें खाना पैक करके दे दिया और बड़े स्नेह के साथ हमें विदा भी किया साथ ही आग्रह किया कि अगली बार इधर आना हो तो हमारे रेस्टोरेंट में अवश्य आएँ।सहमति के साथ उनको प्रणाम करते हुए शीघ्र ही हम उनसे विदा ली क्योंकि ग्यारह बजे तक हमें रेलवे स्टेशन भी पहुंचना था। इस परिवार के साथ जो यादगार मुलाक़ात रही सोचा उसे इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आपके साथ साझा किया जाए।
मेरा आप सभी स्नेही जनों से अनुरोध है कि जब कभी आपका दुर्ग (छत्तीसगढ़) जाना हो तो मालवीय नगर चौक पर इस छोटे किंतु साफ़-सुथरे और स्तरीय होटल पर घर जैसे खाने का स्वाद अवश्य लें।
प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक
साहित्यकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर

July 31, 2023

पल्लव काव्य मंच की काव्य गोष्ठी दिनांक 30 जुलाई,2023)

प्रतिष्ठित साहित्यिक ग्रुप "पल्लव काव्य मंच" द्वारा दिनांक ३०/०७/२०२३ रविवार को गणेश धर्मशाला रामपुर में एक शानदार काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।उल्लेखनीय है कि पल्लव काव्य मंच काव्य साहित्य के माध्यम से निरंतर समाज सेवा करता आ रहा है।व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक के माध्यम से भी मंच की साहित्यिक गतिविधियां जारी रहती हैं।वर्ष भर गोष्ठियों के अतिरिक्त मंच द्वारा वर्ष में एक बार एक भव्य कवि सम्मेलन एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन किया जाता है जिसमें स्थानीय तथा बाहर से आए साहित्यकारों को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित भी किया जाता है।
कवि गोष्ठी का शुभारंभ मां शारदे को पुष्प अर्पित करके अनमोल रागिनी गर्ग चुनमुन की सरस्वती वंदना से हुआ।
कवि राजवीर सिंह राज़ ने काव्य पाठ करते हुए अपनी अभिव्यक्ति दी :

जो ये खुशियों के मौसम हैं हसीं दिलकश नज़ारे हैं,
है सच ये हम   ने आँखों में   समंदर भी   उतारे हैं।

कभी तो हम भी देखेंगे झलक झिलमिल सितारों की,
ये  माना आज  कल  तेरी   नज़र  में  चाँद - तारे हैं।

प्रदीप राजपूत माहिर ने कहा :

होने को अब है उनसे जो उलफ़त नयी-नयी
आने को मेरे दिल! है इक आफ़त नयी-नयी 

वो  जो  सियह-निगाह  ज़रा  मुस्कुरा  दिया
लिखने लगा  है दिल  ये  इबारत  नयी-नयी 

ओंकार सिंह विवेक ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ यों दी :

ख़ुद  में  जब  विश्वास  ज़रा  पैदा हो जाता है,
पर्वत  जैसा  ग़म  भी  राई-सा  हो  जाता  है।

कम कैसे समझें  हम उसको  एक  फ़रिश्ते से,
मुश्किल में जो आकर साथ खड़ा हो जाता है।

वरिष्ठ कवि शिवकुमार चंदन :

कच्चे घर थे गाँव में ,ठंडी  पेड़ों  की  छाँव  ,
हरियाली चहुँओर थी , मन को  भाते गाँव ।
मन को  भाते  गाँव ,सभी  आनंद  मनाते ,
रामायण   संगीत ,  कीर्तन   मन  हरषाते  ।
भरा प्रेम सदभाव , मीत मन के थे  सच्चे  ,
खेत - बगीचा बाग , गाँव  में घर  थे कच्चे ।

सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने कुछ यों अपनी बात कही :
वो जो अम्नो अमां की बात करें
चल उसी रहनुमां की बात करें
जाम लेकर सियासियों ने कहा
आओ अपनी दुकां की बात करें

उपरोक्त कवियों के अलावा डॉक्टर प्रीति अग्रवाल, महाराज किशोर सक्सैना,आशीष पांडे,जितेंद्र नंदा तथा रामसागर शर्मा आदि ने भी अपनी धारदार समसामयिक रचनाओं से अंत तक श्रोताओं को बांधे रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष शिवकुमार चंदन तथा संचालन महासचिव प्रदीप राजपूत माहिर द्वारा किया गया।

प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक 


July 30, 2023

नई ग़ज़ल (ब्लॉग पर 500 वीं पोस्ट)

मित्रो प्रतिक्रिया हेतु एक और ग़ज़ल आपकी अदालत में हाज़िर है 
🌹🌹🙏🙏
नई ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
©️
ख़ुद  में  जब  विश्वास  ज़रा  पैदा हो जाता है,
पर्वत  जैसा  ग़म  भी  राई-सा  हो  जाता  है।

कम कैसे समझें  हम उसको  एक  फ़रिश्ते से,
मुश्किल में जो आकर साथ खड़ा हो जाता है।

कहता है  काग़ज़   की कश्ती जल  में  तैराऊँ,
मन  मेरा  अक्सर  जैसे  बच्चा  हो  जाता  है।
©️
लोग भी कहते हैं और हमने भी महसूस किया,
चुप  रहने  पर  ग़ुस्सा  कुछ  ठंडा हो जाता है।

रहते हैं जब दूर नज़र से  कुछ दिन अपनों की,
ख़ूँ का  रिश्ता और अधिक  गहरा हो जाता है।

बात  नहीं  है  अपनेपन  की  कोई  पहले-सी,
अब तो बस रस्मन उनसे मिलना हो जाता है।

जब कोई अपना आ जाता है  ख़ैर-ख़बर लेने,
बोझ  ग़मों  का  सच मानो आधा हो जाता है।
       ----©️  ओंकार सिंह विवेक 


July 18, 2023

"कोई पत्थर नहीं हैं हम" : ग़ज़ल-संग्रह (ग़ज़लकार अशोक रावत)

नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏

आज हाज़िर है आगरा के वरिष्ठ ग़ज़लकार श्री अशोक रावत की के ग़ज़ल-संग्रह "कोई पत्थर नहीं हैं हम" की समीक्षा 

         पुस्तक : कोई पत्थर नहीं हैं हम (ग़ज़ल -संग्रह)  
     ग़ज़लकार : श्री अशोक रावत जी
       समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 
       प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन,अंसारी रोड, दरियागंज
                    नई दिल्ली - 110002
प्रथम संस्करण : वर्ष 2018
               पृष्ठ : 118   मूल्य : रुo 180.00
आदरणीय अशोक रावत जी से मेरा परिचय 2015 में फेसबुक पर चल रहे उनके ग्रुप "ग़ज़लों की दुनिया" के माध्यम से हुआ। ग़ज़लों की दुनिया स्तरीय ग़ज़लों में रुचि रखने वाले ग़ज़लकारों तथा पाठकों का फेसबुक पर एक बड़ा प्लेटफॉर्म है।वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या लगभग 58000 से अधिक है।इससे ही इस ग्रुप की लोकप्रियता का पता चलता है।श्री रावत जी व्यक्तिगत और साहित्यिक जीवन में अनुशासन को महत्व देने वाले व्यक्ति हैं।वह अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते।इसी सख़्त अनुशासन और सिद्धांतवादिता के साथ वह अपने इस ग्रुप को इतने समय से सफलता पूर्वक चला रहे हैं।मेरी ग़ज़लें भी अक्सर इस समूह में स्वीकृत होती रहती हैं।श्री रावत जी  ग़ज़ल के मानकों पर पूरी तरह खरी ग़ज़लों को ही ग्रुप में स्वीकृति प्रदान करते हैं इसलिए इस समूह का स्तर श्रेष्ठ बना हुआ है।
ग़ज़ल के क्षेत्र में अशोक रावत जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं।अब तक उनके "थोड़ा सा ईमान","कोई पत्थर नहीं हैं हम", "मैं परिंदों की हिम्मत पे हैरान हूं","रौशनी के ठिकाने" और "क्या हुआ सवेरों को" आदि कई महत्वपूर्ण ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिन्हें प्रबुद्ध पाठकों और साहित्यकारों का भरपूर प्यार मिला है।
अशोक रावत जी की ग़ज़लों पर कोई समीक्षात्मक टिप्पणी करना सूरज को दिया दिखाने जैसा ही है।  ग़ज़ल में शिल्पगत सौंदर्य और कहन के साथ रावत जी कभी समझौता नहीं करते।यही कारण है कि रावत जी अपनी पुरानी ग़ज़लों में निरंतर संशोधन करते रहते हैं।इस बात में नए सीखने वालों के लिए एक बड़ा संदेश छुपा हुआ है।
संग्रह की पहली ग़ज़ल के दो अशआर ही रावत जी की शख्सियत का परिचय कराने के लिए काफ़ी है :

      अंधेरे तो हमें सच बात भी कहने नहीं देते,
      उजालों के तसव्वुर हैं कि चुप रहने नहीं देते।

        कोई पत्थर नहीं हैं हम कि रोना ही न आता हो,
       मगर हम आंसुओं को आंख से बहने नहीं देते।

पहले शेर में नकारात्मक प्रभाव के दबाव के बावजूद व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा किस प्रकार ज़ोर भरती है इसकी जीवंत बानगी देखी जा सकती है।इसी प्रकार दूसरे शेर में संवेदनशीलता और संयम तथा सहनशीलता की पराकाष्ठा देखी जा सकती है। यही सृजनात्मक कविता/शायरी कही जाती है।
रावत जी के दिल को छू लेने वाले कुछ और शेर देखें :

      चुनौती दे रहे हैं आजकल लालच उसूलों को,
      हमारे हौसले पर बोझ ये भारी न हो जाए।

       किसी को मश्वरा क्या दूं कि ऐसे जी कि वैसे जी,
      मेरी ख़ुद की समझ में जब ये जीवन भर नहीं आया।

पहले शेर में वर्तमान परिदृश्य में अनैतिक आचरण और लालच की प्रवृत्तियां लोगों को कैसे अपने सिद्धांतों से समझौता करने को मजबूर कर रही हैं,आदमी की इस विवशता और आशंका को किस खूबसूरती से उकेरा गया है।
इसी प्रकार दूसरे शेर में उलझनों भरी ज़िन्दगी में कोई भी  निर्णय लेना कितना कठिन होता है इसकी अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।
सरल भाषा र्में की गई शायरी या कविता वो ही अच्छी कही जाती है जो पाठक/श्रोता को आग या वाह करने के लिए मजबूर कर दे। रावत जी की सभी ग़ज़लें इसका बेजोड़ नमूना पेश करती हैं।
आज आपसी संबंधों में आई खटास को रावत जी के ये अशआर बख़ूबी समझाते हैं :
   बड़े भाई के घर से आ रहा हूं,
  गया ही क्यों मैं अब पछता रहा हूं।

कोई दुश्मन नहीं है भाई है वो,
मैं अपने आप को समझा रहा हूं।

अगर दुश्मन रहे होते तो यूं हैरत नहीं होती,
कभी सोचा नहीं था दोस्त भी पत्थर उठा लेंगे।

लुंजपुंज व्यवस्था के प्रति आक्रोश और नैतिक मूल्यों के क्षरण पर रावत जी की चिंता देखिए :
और था वो वक्त, लफ़्ज़ों के मआनी और थे,
आजकल क़ानून कुछ है, कायदा कुछ और है।

न जाने क्यों सियासत को अंधेरे रास आते हैं,
कोई भी फ़ैसला दिन के उजालों में नहीं होता।

    बरसते हैं  ज़ुबां से फूल दिल में ख़ार होते हैं,
    भले इंसान के भी अब कई किरदार होते हैं।

संकल्प और इरादों की मज़बूती की वकालत करते इस शेर की गहराई को आसानी से समझा जा सकता है :

      अगर संकल्प मन में हो तो जंगल क्या है दलदल क्या,
       बिना संकल्प के कोई नया रस्ता नहीं बनता।

रावत जी की ग़ज़लों का स्तर बताता है कि उन्होंने कहन और शिल्प पर कितनी मेहनत की है।हिंदी में  ग़ज़ल कहते समय एक बात जो मैंने रावत जी मे अन्य हिंदी ग़ज़लकारों से अलग महसूस की वो ये कि उन्होंने कहीं भी इज़ाफ़ी शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। रावत जी हिंदी की मानक वर्तनी और इसके स्वरूप को लेकर कहीं भी हल्के नहीं पड़े हैं।
यदि मैं ये कहूं की स्वर्गीय दुष्यंत की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रावत जी ग़ज़ल को जी रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। रावत जी की ग़ज़लों में यों तो कहीं-कहीं रिवायती रंग भी है परंतु उनकी अधिकांश ग़ज़लें जदीदियत का ही आईनादार हैं। जदीदियत का कोई रंग ऐसा नहीं है जो रावत जी की ग़ज़लों में दिखाई न देता हो। रावत जी सामाजिक विसंगतियों/विद्रूपताओं और विरोधाभासों पर अपनी 
ग़ज़लों में केवल तंज़ ही नहीं करते हैं अपितु समस्याओं के समाधान भी प्रस्तुत करते हैं जो सच्ची और अच्छी कविता/शायरी की पहचान है।
मैं आदरणीय अशोक रावत जी के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करता हूं ताकि भविष्य में उनकी और भी अच्छी कृतियां हमें देखने मिलें।
  ----- ओंकार सिंह विवेक
                ग़ज़लकार 


         




July 17, 2023

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एवं म्यूज़ियम

मित्रो प्रणाम🌹🌹🙏🙏

आइए आज जानते हैं रामपुर(उत्तर प्रदेश) की विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक रज़ा लाइब्रेरी के बारे में।

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी की स्थापना वर्ष 1774  ईसवी में रामपुर के पहले नवाब  फ़ैज़ुल्लाह  ख़ां द्वारा की गई थी।हाल ही में सरकार द्वारा लाइब्रेरी में उपलब्ध दुर्लभ कलाकृतियों और पेंटिंग्स आदि को देखते हुए इसका नाम बदलकर रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एवं म्यूज़ियम कर दिया गया है

नवाबी दौर में लाइब्रेरी रियासत के अधीन ही रही।अधिकांश नवाब किताबों ,शायरी और पेंटिंग्स आदि में रुचि लेने वाले रहे जिसकी छाप आप लाइब्रेरी का भ्रमण करते समय महसूस कर सकते हैं। आज़ादी के बाद रज़ा लाइब्रेरी का नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथ में आ गया।आजकल पुस्तकालय का संचालन भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय करता है।लाइब्रेरी नवाबों द्वारा शहर के बीच में बनवाए गए विशाल दुर्ग की भव्य इमारत में स्थित है।दुर्ग में प्रवेश करते ही हामिद मंज़िल में लाइब्रेरी की भव्य इमारत को देखकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे।

सरकार द्वारा लाइब्रेरी के कुशल प्रबंधन हेतु 12 सदस्यीय लाइब्रेरी बोर्ड का गठन किया गया है।उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बोर्ड के अध्यक्ष होते हैं।वर्तमान में प्रदेश की राज्यपाल आदरणीया आनंदी बेन पटेल जी लाइब्रेरी बोर्ड की अध्यक्ष हैं।पुस्तकालय के रखरखाव,संरक्षण-संवर्धन और विकास को लेकर समय-समय पर लाइब्रेरी बोर्ड की बैठकें आयोजित की जाती हैं।

पुस्तकालय में लगभग 60000 किताबें तथा 17000 दुर्लभ पांडुलिपियां हैं जो एक रिकॉर्ड है।लाइब्रेरी में किताबी  ख़ज़ाने के अलावा लगभग 5000 बहुमूल्य पेंटिंग्स भी हैं।लाइब्रेरी में बादशाह अकबर की पर्सनल अलबम भी देखी जा सकती है।लाइब्रेरी हॉल के म्यूज़ियम के फ़ानूसों में लगे हुए बल्ब नवाबी दौर के हैं जो अभी तक भी फ्यूज़ नहीं हुए हैं।लाइब्रेरी में साधारण और वी आई पी भ्रमणकारियों के अतिरिक्त देश और विदेश से वर्ष भर शोधार्थियों का आना-जाना लगा रहता है।
इस लाइब्रेरी में अन्य दुर्लभ पुस्तकों और पेंटिंग्स के अतिरिक्त दो ख़ास चीज़ें भ्रमणकारियोंं के आकर्षण का केंद्र रहती हैं।पहली चीज़ हज़रत अली के हाथ से हिरण की खाल पर लिखा हुआ चौदह सौ साल पुराना क़ुरआन तथा दूसरी चीज़ सुमेर चंद जैन साहब के हाथ से सोने के पानी से फ़ारसी में लिखी हुई लगभग तीन सौ साल पुरानी रामायण की प्रति।

साहित्यिक गतिविधियों को जीवंत रखने के लिए लाइब्रेरी द्वारा कभी - कभी कवि सम्मेलनों और मुशायरों आदि का भी आयोजन कराया जाता है। मुझे इस बात पर गर्व महसूस होता है कि मैं भी कई बार लाइब्रेरी द्वारा आयोजित कराए गए राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों/मुशायरों में सहभागिता कर चुका हूं।भारतीय भाषाओं तथा सभ्यता और संस्कृति को लेकर व्याख्यानों का आयोजन भी यहां अक्सर होता रहता है।यहां मुग़ल बादशाह जहाँगीर की बेगम नूरजहां की शिकार के बाद बंदूक़ की नाल साफ़ करते हुए पेंटिंग भी है।
किताबों और दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर लाइब्रेरी की प्रयोगशाला में निरंतर काम चलता रहता है। पुस्तकालय में विदेशी शोधार्थियों को आकर्षित करने के लिए अरबी और फ़ारसी साहित्य की दुर्लभतम किताबें मौजूद हैं।
लाइब्रेरी में दरबार हॉल और दस बड़े कक्ष हैं।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी रामपुर आए थे ।उन्हें क़िले के गेस्ट हाउस में ठहराया गया था।लाइब्रेरी में गांधी जी से जुड़ी अनेक किताबें और फ़ोटो हैं।
अक्टूबर,2023 में इस लाइब्रेरी की स्थापना के 250 साल पूरे होने जा रहे हैं।इस अवसर को देखते हुए यहां वर्ष भर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

(सभी चित्र गूगल से साभार)
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर


July 10, 2023

हाला प्याला मधुशाला : एक पठनीय पुस्तक






शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज जानिए रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की हाल ही में लोकार्पित हुई कृति "मधुशाला हाला प्याला" के बारे में।

                  शुभकामना संदेश
                    ************

रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की कृति 'मधुशाला हाला प्याला' की पांडुलिपि मेरे हाथ में है।
इस काव्य कृति में हिंदी के ताटक, शोकहर आदि कई छंदों में लिखी गई अध्यात्म,दर्शन और भक्ति से ओतप्रोत सभी रचनाएँ ह्रदय को छूती हैं।
श्री आनंद जी काव्य सर्जना में छंदबद्ध रचनाओं के प्रबल पक्षधर हैं।उनकी  पूर्व प्रकाशित काव्य कृतियां 'जय बाला जी', 
'हनुमत उपासना' तथा 'राजयोग महागीता (पदम पुनीता)' आदि भी मैंने पढ़ी हैं और उन पर चिंतन-मनन भी किया है।आनंद जी के रचनाकर्म में अध्यात्म,धर्म,भक्ति और दार्शनिक चिंतन का जो रंग देखने को मिलता है वह उन्हें अन्य काव्यकारों से अलग एक विशिष्ट श्रेणी में लाकर खड़ा करता है।

चूंकि गुरु ही शिष्य को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है अत: श्री आनंद जी ने 'मधुशाला हाला प्याला' का शुभारंभ भी 
'गुरुप्रणाम' से ही किया है:
      अखंड मंडल में जो व्याप्त हैं साकार हुए,
      प्रेम की जो मूर्ति हैं दिव्य जिनके नाम हैं।
      अज्ञान के तिमिरांध में हैं ज्ञान की श्लाका-से,
      दिव्य नेत्र के प्रदाता छवि के जो धाम हैं।
      सद विप्ररूपदाता ब्रह्म के समान हैं जो,
      पालक विष्णु समान शिव से निष्काम हैं।
      सच्चिदानंद स्वरुप उन पदम-चरणों में,
      ऐसे मेरे अपने सद्गुरु को प्रणाम है।
सदगुरु से कमल जी र्का आशय साधारण शिक्षा देने वाले गुरु से नहीं है।श्री आनंद जी के सद्गुरु वह हैं जो गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार बनाए गए शिष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं जिससे उसे आत्म-ज्ञान के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति होती है।
कवि ने मधुशाला, हाला और प्याला प्रतीकों के माध्यम से अपनी 
छंदबद्ध रचनाओं द्वारा अध्यात्म,धर्म,श्रद्धा और भक्ति का जो अनुपम संदेश दिया है वह ह्रदय में उतरता चला जाता है।आनंद जी गुरुवर द्वारा प्रदान की गई ज्ञान रूपी हाला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं :

         ज्ञान-क्षुधा लगने पर पी लें,
         गुरुवर ने जो दी हाला।
         क्षुधा मिटेगी उसको पीकर,
         मंत्रों की जप ले माला।
         आत्म-तत्व को स्वीकार भी,
         तुमको करना ही होगा।
         श्रेष्ठ मनुजता जागृत होगी,
         पीकर यह मधुमय प्याला।
रचनाकर द्वारा सृजित उपर्युक्त पंक्तियों से पता चलता है कि 
आत्म-ज्ञान द्वारा स्वयं के कल्याण के लिए सद्गुरु की शरण में जाना कितना आवश्यक है।जब व्यक्ति को आत्म-ज्ञान प्राप्त हो जाता है तो वह भले-बुरे, हार-जीत के विचार से बहुत ऊपर उठ जाता है।यही 
स्वकल्याण  के लिए आदर्श स्थिति होती है।

भक्ति-सुधा से भरा प्याला व्यक्ति को पीने कैसे मिल सकता है यह समझने के लिए रचनाकर की इन पंक्तियों में छुपे मर्म तक पहुँचिए:

           कैसे प्रभु को पास बुलाऊँ,
           लोग सोचते रह जाते।
           कैसे रूठे ब्रह्म मनाऊँ,
           प्रभुवर के वे गुण गाते।
           करुणाकर कृपालु जब होते,
           मिल जाती मधुमय हाला।
           भक्ति-सुधा से भरा लबालब,
           मिल जाता मधुकर प्याला।
           
आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की धर्म,अध्यात्म और 
भक्ति-भाव से ओतप्रोत रचनाओं को पढ़कर मन एक अलग लोक में विचरण करने लगता है।सच्ची भक्ति क्या है और उसकी परख कैसे की जाती है इसे जानने के लिए रचनाकर की इन पंक्तियों का अवलोकन कीजिए :
         भक्ति दृगों से नहीं ह्रदय से,
         देखी समझी जाती है।
         भक्ति विकल के पोंछे आँसू,
         भक्ति वही कहलाती है।
         भक्ति गीत है,भक्ति मीत है,
         प्रेम-पंथ है उजियाला।
         नीराजन है, आराधन है,
         भक्ति 'कमल' दीपक बाला।

कवि ने कितनी गहरी बात कही है कि भक्त की भक्ति आँखों से नहीं अपितु ह्रदय से देखी और समझी जाती है।

मुझे आशा है कि आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की इस कृति के अध्ययन और मनन से सुह्रदयी पाठक अत्यंत आनंदित तथा लाभांवित होंगे। मैं आदरणीय आनंद जी के निरंतर स्वस्थ्य रहने और दीर्घायु होने की कामना करता है ताकि वह भविष्य में और अधिक श्रेष्ठ काव्य कृतियों के सृजन से हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहें।

-- ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
रामपुर-उत्तर प्रदेश 



 

July 8, 2023

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की रामपुर इकाई का गठन तथा कवि गोष्ठी

शुभ संध्या मित्रो 🌹🌹🙏🙏

समाज सेवा के जो माध्यम हैं उनमें साहित्य सृजन भी एक प्रमुख माध्यम है।सृजनात्मक साहित्य के माध्यम से समाज को नई दिशा देने का कार्य साहित्यकार बंधु युगों से करते आ रहे हैं।देश में बोली,पढ़ी और समझी जाने वाली लगभग सभी भाषाओं में उच्च कोटि का साहित्य सृजन हो रहा है।कुछ साहित्यकार यदि व्यक्तिगत रूप से सक्रिय रहकर जनहितकारी साहित्य का सृजन कर रहे हैं तो बहुत से साहित्यकार साहित्यिक समूहों तथा संस्थाओं के द्वारा साहित्य साधना में निमग्न हैं। बहरहाल,माध्यम कोई भी हो हमें एक पावन संकल्प लेकर समाज सेवा के कार्य में लगे रहना चाहिए।
साहित्य सेवा के पावन कार्य में योगदान देने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के कुछ मूर्धन्य साहित्यकारों, जिनमें सर्वेश अस्थाना, डॉo विष्णु सक्सैना,बलराम श्रीवास्तव,गिरधर खरे और डॉo सोनरूपा विशाल आदि जैसे ख्यातिप्राप्त नाम सम्मिलित हैं,ने प्रादेशिक स्तर पर "उत्तर प्रदेश साहित्य सभा" का गठन किया है।सभा के क्रियाकलापों को मूर्त रुप देने के लिए ज़िला स्तर पर भी सभा की इकाईयों के गठन का कार्य चल रहा है।इस क्रम में शनिवार दिनांक ८जुलाई,२०२३ को सभा के ज़िला रामपुर के संयोजक/प्रधान वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेंद्र अश्क रामपुरी के संयोजकत्व में उत्तर प्रदेश साहित्य सभा की स्थानीय इकाई का निम्नानुसार विधिवत गठन किया गया :
संरक्षक                       ताहिर फ़राज़ साहब
संयोजक /प्रधान           सुरेन्द्र अश्क रामपुरी जी
अध्यक्ष                        ओंकार सिंह विवेक जी
वरिष्ठ उपाध्यक्ष              फैसल मुमताज़ जी
उपाध्यक्ष                       प्रदीप राजपूत माहिर जी 
मंत्री/सचिव                    राजवीर सिंह राज़ जी
कोषाध्यक्ष                    अनमोल रागिनी चुनमुन जी
सह सचिव                     सुमित मीत जी
प्रचार सचिव                   नवीन पांडे जी
संगठन सचिव                 बलवीर सिंह जी
कार्यकारिणी सदस्य         रश्मि चौधरी जी तथा गौरव नायक जी


इस अवसर पर संरक्षक ताहिर फ़राज़ साहब की अध्यक्षता में आहूत की गई बैठक में सभा के पदाधिकारियों ने परिचय के उपरांत एक दूसरे का माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया। सभा के पदाधिकारियों ने संस्था के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए अपने-अपने सुझाव भी प्रस्तुत किए। सभी इस बात पर एकमत थे कि किसी भी साहित्यिक अखाड़ेबाज़ी से दूर रहते हुए निस्वार्थ भाव से हमें संस्था की प्रगति और विस्तार के लिए कार्य करना चाहिए। संरक्षक ताहिर फ़राज़ साहब ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि संस्था की नियमावली से स्पष्ट है कि एक नेक काज के लिए इसका गठन किया गया है अत: साहित्यकार बंधुओं को अधिक से अधिक संख्या में इससे जुड़कर साहित्य/समाज सेवा में अपना योगदान सुनिश्चित करना चाहिए।
इस अवसर पर एक काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया।
गोष्ठी में अपनी रचना पढ़ते हुए संस्था के स्थानीय संरक्षक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शायर ताहिर फ़राज़ साहब ने कहा :

आँखों में आँसुओं की जगह अब रहेगा कौन,
इस घर में तेरे बाद बता दे बसेगा कौन।
अब रात भीगती है चलो घर की राह लें,
लेकिन वहाँ भी अपने अलावा मिलेगा कौन।

सभा के सचिव/मंत्री राजवीर सिंह राज़ ने अपनी गज़ल कुछ यूं पेश की :
हमने दिल में रखा है तुझे,
फिर भी शिकवा रहा है तुझे।

 संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने सुनाया :
 
  हम अदब की पौध नन्ही कुछ हमें भी सींचिये,
  हम सुकूँ की छांव देंगे जब शजर हो जाएंगे। 
  
इसके बाद सभा के अध्यक्ष ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने कुछ माहौल को बदला :

 मुँह पर तो कितना रस घोला जाता है,
  पीछे जाने क्या क्या बोला जाता है। 

सभा के उपाध्यक्ष ग़ज़लकार प्रदीप राजपूत माहिर ने कहा 

फ़िरकों की फ़िक्र है न क़बीलों का कुछ ख़याल,
दानिश्वरों से यार ये बच्चा ही ठीक है। 

कोषाध्यक्ष कवियत्री अनमोल रागिनी चुनमुन ने कहा : 
 नेह मिला आकाश से, बरसी प्रेम फुहार।
 धरा हरित हो झूमती, पा साजन का प्यार।।
 
कार्यकारिणी सदस्य रश्मि चौधरी दीक्षा ने कहा :
एक कहानी का सार लिखा है,
 तुमको अपना प्यार लिखा है।

अंत में संयोजक सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए शीघ्र ही अगले आयोजन की आशा के साथ कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।
स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा आयोजन की अच्छी कवरेज की गई।
प्रस्तुति :
ओंकार सिंह विवेक
(ग़ज़लकार/समीक्षक/कॉन्टेंट राइटर/ब्लॉगर)
अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर(उoप्रo)























July 5, 2023

किसी मज़दूर की क़िस्मत में कब इतवार होता है

नई ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
@
अगर अच्छा बशर  का  आचरण-व्यवहार होता है,
उसे हासिल  जहाँ में  हर किसी का  प्यार होता है।

मसर्रत  के  गुलों  से  घर  मेरा   गुलज़ार  होता  है,
इकट्ठा जब  किसी  त्योहार  पर  परिवार  होता  है।

पड़ेगा  हाथ   बाँधे   ही  खड़े   होना   वहाँ   तुमको,
मेरे   भाई   सुनो!  दरबार   तो   दरबार   होता   है।

मेरी मानो  किसी को आप अपना हमसफ़र कर लो,
अकेले   ज़िंदगानी   का    सफ़र   दुश्वार   होता  है। 
@
कसौटी पर खरा ख़बरों की जिनको कह नहीं सकते,
भरा  ऐसी   ही  ख़बरों  से  सदा  अख़बार  होता  है।
                                 
मुकर्रर  की   सदायें   गूँजने  लगती  हैं  महफ़िल  में,                   
सुख़नवर  का कोई भी  शेर  जब  दमदार  होता  है।

उसे  करना ही पड़ता है हर इक दिन  काम  हफ़्ते में,
किसी मज़दूर की क़िस्मत  में कब  इतवार  होता है।

अता सौग़ात कर देता है नाज़ुक दिल को ज़ख़्मों की,
मियाँ!लहजा  किसी  का  एकदम  तलवार  होता है।

हिमायत  वो  ही  करता  है  त'अस्सुब के अँधेरों की,
मुसलसल  ज़ेहन  से  जो  आदमी  बीमार  होता  है।
             @ओंकार सिंह विवेक 


(चित्र : गूगल से साभार) 

June 20, 2023

नारियल पानी

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पिछले दिनों कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू जाना हुआ।उस यात्रा के रोमांचक अनुभव मैंने अपनी पिछली पोस्ट में आपके साथ साझा भी किए थे।यात्रा के कई वीडियोज मैंने अपने यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड किए हैं जिनका लिंक इस पोस्ट के अंत में दिया गया है।आप उन्हें भी देख सकते हैं। उस यात्रा के दौरान हुआ एक और अनुभव आपके साथ साझा कर रहा हूं।

आजकल उत्तर भारत में गर्मी अपने चरम पर है।इस गर्मी में नारियल पानी का सेवन जो ठंडक और तरावट देता है उसे कौन नहीं महसूस करता होगा।आप भी आजकल अपने नगर में सड़कों के किनारे हरे नारियल बेचने वालों को ज़रूर देखते होंगे।पसीना पोंछते हुए रुककर नारियल पानी पीते भी होंगे।
हम बैंगलुरु में लालबाग बोटेनिकल गार्डन देखने गए तो  दोपहर का समय होने के कारण काफ़ी गर्मी थी।गार्डन में घूमते हुए जब हम थक गए तो  विशाल गार्डन के गेट पर आकर  नारियल  पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने लगे।
बैंगलुरु में आप कहीं भी ये हरे नारियल ले लीजिए आपको चालीस रुपए के फिक्स रेट पर ही मिलेगा जो अच्छी बात है वरना हमारे यहां तो अलग-अलग जगहों पर खड़े नारियल वाले अलग-अलग रेट बताते हैं। नारियल खरीदते समय बहुत मोल-भाव करना पड़ता है।वहां चालीस रुपए में वे लोग बिलकुल ताज़ा/हरा और बड़ा नारियल आपको देते हैं जिसमें भरपूर पानी होता है।हमें नारियल पानी पीकर बहुत तरावट का अनुभव हुआ।
मैंने अपने यहां रामपुर-उत्तर प्रदेश में ऐसे नारियल बेचने वालों से पूछा तो उन्होंने यही बताया कि वे लोग भी बैंगलुरू से ही नारियल मंगवाते हैं।आने में तीन से चार दिन का समय लगता है।वे लोग यहां आजकल गर्मी का सीजन पीक पर होने के कारण मांग बढ़ने पर नारियल साठ रुपए का बेच रहे हैं बाकी दिनों में पचास रुपए का बेचते हैं।चूंकि यहां तक गाड़ी में नारियल आने में कई दिन लगते हैं इसलिए उनकी ताज़गी और क्वालिटी तो थोड़ी-बहुत प्रभावित हो ही जाती है परंतु फिर भी नारियल पानी का स्वाद अच्छा बना रहता है।
हमें नारियल पानी का सेवन अवश्य करना चाहिए।
रोज़ाना नारियल पानी का सेवन करने से शरीर में रक्त संचार बढ़ता है। इसे पीने से UTI और प्रोस्टेट की समस्याओं का खतरा भी कम होता है।नारियल पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम सहित कई पोषक तत्व होते है जो मसल्स क्षय को रोकने में मदद करते हैं।
          ---- ओंकार सिंह विवेक 


June 16, 2023

ज़रूरत सब कुछ करा लेती है

नमस्कार मित्रो 🙏🙏🌹🌹

     (बोटेनिकल गार्डन के द्वार पर मूंगफली बेचती हुई वृद्धा)

पिछले दिनों व्यक्तिगत कारणों से सपत्नीक बैंगलुरू जाना हुआ।व्यस्तता के कारण बहुत अधिक तो रुकना नहीं हुआ वहां पर वर्ना मैसूर और आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थलों का भ्रमण अवश्य करते।पारिवारिक कामों को पूरा करने के बाद हमारे पास सिर्फ़ एक दिन बैंगलुरू में घूमने के लिए बचा था तो लोकल मार्केट आदि में घूम लिए और वहां के विश्व प्रसिद्ध बोटेनिकल गार्डन को देखने गए।
                      (बोटेनिकल गार्डन का प्रवेश द्वार)
बोटेनिकल गार्डन की ख़ूबसूरती तो मैं अपनी अगली पोस्ट में बयान करूंगा।आज जिस वजह से यह पोस्ट लिख रहा हूं वह इस पोस्ट में सबसे ऊपर दिखाया गया चित्र है जिसमें एक अत्यधिक वृद्ध अम्मां जी मूंगफली बेचती हुई नज़र आ रही हैं। 
जब हम गार्डन में घूमते- घूमते थक गए तो कुछ सुस्ताने और कोल्डड्रिंक,स्नैक्स आदि की तलाश में इधर- उधर देखने लगे।हमें कोल्डड्रिंक्स और चिप्स आदि बेचने वालों की लंबी पंक्ति दिखाई दी तो हम लोग उधर जाने लगे।वहीं एक अत्यधिक वृद्ध माता जी को फुटपाथ पर मूंगफली बेचते हुए देखा। माता जी ने मूंगफली के छोटे- छोटे पैकेट बनाकर अपनी टोकरी में रखे हुए थे। वृद्धा की उम्र ऐसी नहीं थी कि वह यह सब काम करें यह देखकर उनके प्रति हमारा दिल करुणा से भर गया।हमने उनकी इस विवशता के बारे में जानने के लिए कुछ पूछना चाहा परंतु भाषा की समस्या उत्पन्न हुई।वो स्थानीय वृद्धा कन्नड़ ही जानती थीं और हम हिंदी या फिर अंग्रेजी समझते थे लेकिन फिर भी उनकी सांकेतिक भाषा और
 भाव- भंगिमाओं से हम उनकी मजबूरी का बहुत कुछ अनुमान लगा पाए।
           (बोटेनिकल गार्डन में फुर्सत और सुकून के पल)      
जिस उम्र में वृद्धा को अपने घर -परिवार, बहू - बेटों के मध्य रहकर आराम करना था और उनसे सेवा पानी थी उस उम्र में वह चिलचिलाती धूप में पेट की ख़ातिर मूंगफली बेचने को मजबूर थीं इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी।
हमारी मूंगफली खाने या खरीदने की कोई इच्छा नहीं थी परंतु फिर भी हमने उनसे दो पैकिट मूंगफली खरीदी तो माता जी हाथ जोड़कर हमें ढेरों दुआएं देने लगीं। रेहड़ी,फुटपाथ आदि पर  मजबूरी में यदि छोटे बच्चे और वृद्ध कुछ बेचते दिखाई देते हैं तो मैं उनसे अक्सर बिना ज़रूरत के भी कोई सामान ख़रीद लेता हूं। बस यही सोचकर कि पता नहीं किसकी क्या मजबूरी है जो उसे असहाय अवस्था में यह सब करना पड़ रहा है। दोपहर का समय था धूप बहुत अधिक थी।लोग सामने खड़े ठेलों और स्टॉल्स आदि से आइस्क्रीम और कोल्डड्रिंक्स आदि ख़रीद रहे थे। मूंगफली बेचने वाली माता जी उस तरफ़ ललचाई दृष्टि से देख रही थीं।हमारी बेटी ने उनसे इशारों में पूछा कि अम्मां आइस्क्रीम खाओगी।उन्होंने सहमति में सिर हिलाया तो बेटी ने पास के ठेले से ख़रीदकर आइस्क्रीम लाकर दी। आइस्क्रीम पाकर वृद्धा मां का चेहरा खिल उठा। उन्होंने बेटी के हाथ चूमे और  अपनी भाषा में ढेरों आशीष और दुआएं दीं।उस समय मुझे अपनी एक पुरानी ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया :
         
         ज़रूरत और मजबूरी जहां में,
          करा लेती है सब कुछ आदमी से।
                   @--- ओंकार सिंह विवेक 



June 12, 2023

कैसी -कैसी नेमत हमको जंगल देते हैं

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


हाज़िर है मेरी एक और ग़ज़ल जिसमें कुछ शेर पर्यावरण को लेकर भी हो गए हैं:

नई ग़ज़ल -- --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 
©️ 
शीशम  साखू   महुआ   चंदन  पीपल   देते हैं,
कैसी-कैसी  ने'मत   हमको   जंगल   देते   हैं।

वर्ना सब  होते  हैं  सुख  के   ही  संगी -साथी,
दुनिया में  बस  कुछ  विपदा  में संबल देते हैं।

रस्ता  ही भटकाते  आए  हैं  वो  तो अब तक,
लोग  न  जाने  क्यों  उनके  पीछे  चल देते हैं।
©️ 
आज बना  है मानव  उनकी ही जाँ का दुश्मन,
जीवन  भर  जो  पेड़  उसे  मीठे  फल  देते हैं।

मिलती है  कितनी  तस्कीन तुम्हें क्या बतलाएँ,
आँगन  के  प्यासे पौधों  को  जब  जल देते हैं।

कब तक सब्र का बाँध न टूटे प्यासी फसलों के,
धोखा   रह-रहकर   ये   निष्ठुर  बादल  देते  हैं।

किस  दर्जा  मे'यार  गिरा  बैठे  कुछ  व्यापारी,
ब्रांड  बड़ा  बतलाकर  चीज़ें   लोकल  देते  हैं।
                       ---©️ ओंकार सिंह विवेक

    यह बोटनिकल गार्डन बैंगलुरू का दृश्य है जहां पिछले दिनों हमारा जाना हुआ था।


June 5, 2023

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष



आज विश्व पर्यावरण दिवस है।जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो प्रथ्वी,जल,अग्नि,वायु तथा आकाश सभी का विचार मस्तिष्क में कौंध जाता है।पर्यावरण इन्हीं पाँच तत्वों से मिलकर बना है।इससे सहज ही अनुमान हो जाता है कि पर्यावरण का क्षेत्र कितना विस्तृत है और इसकी कितनी महत्ता है। आइए विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण यानी अपने जीवन को बचाने का संकल्प लें।

         चित्र : गूगल से साभार 
इस अवसर पर पर्यावरण को समर्पित मेरी कुछ काव्य रचनाओं का आनंद लीजिए 👎👎
विश्व पर्यावरण दिवस विशेष
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                -- ओंकार सिंह विवेक

पर्यावरण :पाँच दोहे
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    ओंकार सिंह विवेक      
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करता  है दोहन  मनुज,ले  विकास  की आड़,
कैसे  चिंतित   हों   नहीं , जंगल नदी  पहाड़।
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भू का  बढ़ता ताप  यह ,ये  पिघले  हिमखंड, 
मनुज प्रकृति  से  छेड़ का,मान इन्हें  तू  दंड।
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करते  हैं  मैला  सभी,निशिदिन  इसका  नीर,
गंगा माँ   किससे  कहे,जाकर  अपनी   पीर।
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देते   हैं   हम  पेड़  तो,प्राण  वायु   का   दान,
फिर  क्यों लेता  है मनुज, बता  हमारी जान।
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सबसे    है    मेरी    यही,  विनती    बारंबार,
वृक्ष   लगाकर   कीजिए, धरती  का  शृंगार।
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  --ओंकार सिंह विवेक
पर्यावरण विषयक कुछ कुंडलिया छंद
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देते   हैं   सबको  यहाँ,प्राणवायु   का    दान,
फिर भी वृक्षों  की मनुज,लेता है नित  जान।
लेता  है नित जान, गई  मति  उसकी   मारी,
जो वृक्षों  पर  आज,चलाता पल-पल आरी।
कहते  सत्य 'विवेक', वृक्ष हैं  कब कुछ  लेते,
वे  तो  छाया-वायु,,फूल-फल  सबको   देते।    
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  पानी   जीवन   के   लिए, है  अनुपम  वरदान,
  व्यर्थ न  इसकी बूँद  हो, रखना  है  यह ध्यान।
  रखना  है  यह ध्यान,करें  सब संचय  जल का,
  संकट हो विकराल,पता क्या है कुछ कल का।
  करता  विनय  'विवेक',छोड़ दें अब  मनमानी,
  मिलकर करें  उपाय , बचा  लें   घटता  पानी।  
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करता  है  यह  प्रार्थना,मिलकर  सारा  गाँव,    
बनी   रहे  यों   ही   सदा,बरगद  तेरी  छाँव।
बरगद   तेरी   छाँव,न   कोई    तुझे  सताए,
छाया    तेरी     ख़ूब,घनेरी    होती     जाए।
ग्रीष्म काल  में नित्य,ज़ोर जब  सूरज भरता,
सबके सिर  पर छाँव,मित्र तू  ही  तो करता।
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©️ ओंकार सिंह विवेक 


          

June 2, 2023

सदीनामा अख़बार में फिर छपी एक ग़ज़ल

शुभ संध्या मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कोलकता से निकलने वाले प्रतिष्ठित अख़बार/पत्रिका सदीनामा के बारे में पहले भी मैं कई बार अपने ब्लॉग पर लिख चुका हूं।यह बहुत ही प्रतिष्ठित पत्र है जिसमें राजनैतिक,सामाजिक ख़बरों के साथ-साथ उच्च स्तर की साहित्यिक सामग्री भी प्रकाशित की जाती है। मशहूर शायर मुहतरम ओमप्रकाश नूर साहब की मुहब्बतों के चलते पहले भी इस पत्र में मेरी कई ग़ज़लें छप चुकी हैं।इस अख़बार की प्रतिनिधि मीनाक्षी जी और आदरणीय नूर साहब के सहयोग से इस इदारे के अदबी पटल पर ऑनलाइन काव्य पाठ का भी अवसर प्राप्त हो चुका है।इसके लिए मैं इदारे का शुक्रिया अदा करता हूं।आज फिर मुझे अपनी एक नई ग़ज़ल सदीनामा में पढ़ने को मिली। इसके लिए मैं अख़बार के संपादक मंडल का पुन: आभार व्यक्त करता हूं।
मेरा सभी से अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में इस अख़बार से जुड़कर लाभ उठाएँ।

June 1, 2023

दास्तान कुछ सुखद क्षणों की


मित्रों के साथ सुखद क्षणों की स्मृतियां साझा करना अच्छा लगता है।कई बार इनसे दूसरे लोग भी प्रेरणा ले लेते हैं। ऐसी स्मृतियों को सहेजने से जीवन को हंसी खुशी से जीने की उमंग सी बनी रहती है।आज ऐसे ही खुशी के कुछ लम्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं।
कल दिनाँक ३१ मई,२०२३ को प्रसार भारती रामपुर-उoप्रo में पर्यावरण  विषय को लेकर एक काव्य गोष्ठी की रिकॉर्डिंग के लिए जाना हुआ।मेरे साथ गोष्ठी में मुरादाबाद की अनुभवी होम्योपैथिक चिकित्सक और वरिष्ठ गीतकार डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय , बदायूँ के युवा कवि अभिषेक अनंत तथा विवेक हरि मिश्र जी ने सहभागिता की।सभी कवि मित्रों से बहुत आत्मीयतापूर्ण भेंट रही।डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी से पहले भी बहुत साहित्यिक कार्यक्रमों में मिलना होता रहा है।आप उच्चकोटि की साहित्यकार हैं।जब आप अपने सुमधुर स्वर में रचना पाठ करती हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। बदायूं से पधारें दोनों युवा साहित्यकारों में भी मुझे असीम संभावनाएं नज़र आईं। समसामयिक विषयों को लेकर उन्होंने जितनी सुंदर प्रस्तुतियां दीं उससे उनकी काव्य प्रतिभा का पता चलता है। गोष्ठी के बाद हम लोगों ने कुछ साहित्यिक विमर्श भी किया।आमंत्रित साहित्यकारों को मैंने अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियाँ भी भेंट कीं।
गोष्ठी के उपरांत मेरे आग्रह पर डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय मेरे निवास पर आकर परिजनों से भी मिलीं।बच्चे उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने परिजनों को स्वास्थ्य संबंधी कुछ बहुमूल्य परामर्श भी दिया। लगभग 76 वर्ष की आयु में भी अनुशासित दिनचर्या और खानपान के कारण डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती है।ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें दीर्घ आयु प्रदान करें।पत्नी को थोड़ा गायन का शौक़ है सो डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी ने उनसे एक गीत भी सुना।

दूसरा खुशी का अवसर तब आया जब हमारी छोटी पुत्री आस्था सैनी को Chartered accountants of India द्वारा बैंगलुरू में एक Convocation में  C.A. की डिग्री प्रदान की गई।
हम पति-पत्नी भी इस अवसर पर भव्य समारोह में उन सुखद क्षणों के साक्षी बने। हम दोनों की आंखों से खुशी के आंसू झलक आए जब पुत्री का नाम स्टेज से पुकारा गया।बेटी आस्था को पिछले लगभग पांच साल से हम एक प्रकार की साधना करते देख रहे थे।आस्था को उसकी महनत और लगन का प्रतिफल प्राप्त करते देखकर बहुत अच्छा लगा।बच्चे जब अपने मां-बाप से भी कहीं अधिक उपलब्धियां जीवन में हासिल करते हैं तो यह देखकर मां-बाप को बहुत गर्व होता है।मुझे अपनी ही एक ग़ज़ल का मतला याद आ रहा है :
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र  से  ऊँचा तभी  माँ-बाप  का  सर हो गया।
                              --- ओंकार सिंह विवेक


May 30, 2023

कला की पराकाष्ठा

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

व्यक्तिगत कारणों से पिछले दिनों कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू जाना हुआ। बेंगलुरू को भारत की सिलिकॉन वैली भी कहा जाता है।अंतरराष्ट्रीय स्तर की सभी बड़ी टेक्नोलॉजी और सॉफ्टवेयर कंपनियां यहां बड़ा कारोबार करती हैं।देश और विदेश के तमाम लोगों को इस शहर ने रोज़गार प्रदान किया है।
अपनी बैंगलुरू यात्रा में यों तो हमने कई स्थानीय दर्शनीय स्थल देखे परंतु यहां के बोटनिकल गार्डन ने मन को सबसे अधिक लुभाया।इस पूरे गार्डन पर तो मैं विस्तार से अलग एक पोस्ट लिखूंगा ,फिलहाल एक पुराने आम के पेड़ पर की गई कलाकारी और कारीगरी से आपको रूबरू कराना चाहता हूं।
      (बोटेनिकल गार्डन बैंगलुरू में आम के पेड़ पर उकेरी गई          कलाकृतियां )
Mother Nature Wood 250 साल पुराने आम के पेड़ पर जो आकर्षक आकृतियां कलाकार द्वारा उकेरी गई हैं आप उन्हें देखकर दंग रह जाएंगे। सभी कलाकृतियां जीवंत भाव भंगिमाओं का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती हैं।इससे यह पता चलता है कि हमारे यहां कला का क्षेत्र कितना विस्तृत और विकसित रहा है।
पार्क में इस तरह की कोई एक आकृति पेड़ पर नहीं उकेरी गई है अपितु भिन्न-भिन्न मुद्राओं में कलाकारी के ऐसे दर्जनों नमूने देखने मिल जाएंगे।
अपने देश के ऐसे श्रेष्ठ कलाकारों और ऐसी कला का संरक्षण तथा संवर्धन करने वालों को शत-शत नमन और वंदन।
             --- ओंकार सिंह विवेक 

May 27, 2023

मुलाक़ात हसीन लोगों से

इन दिनों हम पति-पत्नी अपनी छोटी पुत्री सीoएo आस्था सैनी के पास कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू, जिसे सिलिकॉन वैली के नाम से जाना जाता है,आए हुए हैं।बेटी आस्था ने हाल ही में सीoएo की फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण करके भारतीय मूल की मल्टी नेशनल कंपनी विप्रो में सीनियर एक्जीक्यूटिव फाइनेंस के रूप में ज्वाइन किया है। आज convocation में Institute of chartered accountants of India द्वारा यहां एक भव्य समारोह में अन्य बच्चों के साथ आस्था को भी सीoएo की डिग्री प्रदान की जाएगी। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि हमें भी इस अवसर का साक्षी होने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
इस प्रवास के दौरान एक वरिष्ठ साहित्यकार(मंझे हुए ग़ज़लकार)श्री एमo श्रीराम जी से मिलने उनके घर भी जाना हुआ।पत्नी,बेटी और मैं आदरणीय एमoश्रीराम जी और उनके परिजनों की आत्मीयता देखकर गदगद हो गए।उन लोगों से मिलकर लगा ही नहीं कि  हम उनसे पहली बार मिले हों।इस विशुद्ध दक्षिण भारतीय परिवार के धारा प्रवाह हिंदी वार्तालाप से हम लोग बहुत प्रभावित हुए।आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी मूल रूप से आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं तथा डिफेंस विभाग से सेवानिवृत्ति के उपरांत कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू में स्थाई रूप से रहने लगे हैं।आप एक अच्छे योगा ट्रेनर भी हैं और कॉल्स पर विभिन्न विभागों और कंपनियों में योग की क्लासेज़ लेते हैं।पारिवारिक और साहित्यिक विमर्श के साथ ही मैंने उन्हें अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रति भी भेंट की।मेरे इसरार/आग्रह पर उन्होंने अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल भी सुनाई। मैंने आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी से उनकी साहित्यिक गतिविधियों पर कुछ वार्तालाप करके उनके ग़ज़ल पाठ का वीडियो भी रिकॉर्ड किया जिसे अपने यूट्यूब चैनल पर शीघ्र ही अपलोड करके आपके साथ साझा करूंगा।
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक



May 23, 2023

कैसी - कैसी ने'मत हमको जंगल देते हैं

दोस्तो शुभ प्रभात 🌹🌹🙏🙏

आज फिर मेरे नवीन ग़ज़ल संग्रह में प्रकाशित होने जा रही जदीद ग़ज़ल का आनंद लीजिए :

नई ग़ज़ल -- -- ©️ ओंकार सिंह विवेक 
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शीशम  साखू   महुआ   चंदन  पीपल   देते हैं,
कैसी-कैसी  ने'मत   हमको   जंगल   देते   हैं।

वर्ना सब  होते  हैं  सुख  के   ही  संगी -साथी,
दुनिया में  बस  कुछ  विपदा  में संबल देते हैं।

रस्ता  ही भटकाते  आए  हैं  वो  तो अब तक,
लोग  न  जाने  क्यों  उनके  पीछे  चल देते हैं।
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आज बना  है मानव  उनकी ही जाँ का दुश्मन,
जीवन  भर  जो  पेड़  उसे  मीठे  फल  देते हैं।

मिलती है  कितनी  तस्कीन तुम्हें क्या बतलाएँ,
आँगन  के  प्यासे पौधों  को  जब  जल देते हैं।

कब तक सब्र का बाँध न टूटे प्यासी फसलों के,
धोखा   रह-रहकर   ये   निष्ठुर  बादल  देते  हैं।

किस  दर्जा  मे'यार  गिरा  बैठे  कुछ  व्यापारी,
ब्रांड  बड़ा  बतलाकर  चीज़ें   लोकल  देते  हैं।
                       ---©️ ओंकार सिंह विवेक

May 19, 2023

उनको हमसे यही शिकायत है

मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

आजकल अपने दूसरे ग़ज़ल संग्रह के प्रकाशन की तैयारी में लगा हुआ हूं।पांडुलिपि लगभग तैयार है।एक-दो शीर्षक भी सोच लिए हैं।कुछ मशवरे के बाद उनमें से एक फाइनल कर लिया जाएगा।१२० पृष्ठ की किताब छपवाने का विचार है जिसमें ८० से लेकर ९० ग़ज़लें हो सकती हैं। रचनाओं में सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।आजकल संकलन के लिए "अपनी बात" लिखने के साथ-साथ छपने वाली रचनाओं को फाइनल लुक भी दे रहा हूं।इस दौरान कई ग़ज़लें संशोधित भी की हैं।कुछ ग़ज़लों में केवल पाँच-पाँच शेर ही थे।एकरूपता के लिए सभी में सात-सात शेर किए हैं।
यदि परिस्थितियां अनुकूल रहीं तो आपके आशीर्वाद से इस साल ही मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह मूल्यांकन हेतु आपके सम्मुख आ जाएगा।
लीजिए इस संकलन में छपने वाली एक और ग़ज़ल का आनंद लीजिए :

ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
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फ़ाइलातुन् मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन 

हर   तरफ़  जंग  की  अलामत  है,
अम्न  पर  ख़ौफ़-सा  मुसल्लत है।

क्या करें उनसे कुछ गिला-शिकवा,
तंज़  करना  तो  उनकी  आदत है।

मुजरिमों  को   नहीं  है   डर   कोई,
ख़ौफ़  में  अब  फ़क़त अदालत है।

हमने ज़ुल्मत  को  रौशनी  न कहा,
उनको  हमसे  यही   शिकायत  है।

पूछ   लेते    हैं  ख़ैरियत जो  कभी,
दोस्तों    की    बड़ी    इनायत   है।

बात   करते    हैं,  फूल   झरते   हैं,
उनके लहजे में  क्या  नफ़ासत  है।

जंग  से   मसअले  का  हल  होगा,
ये   भरम   पालना    हिमाक़त  है।
    --- ©️ओंकार सिंह विवेक 

मुसल्लत ---  हावी, ग़ालिब

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आज फिर एक नई ग़ज़ल

 एक बार फिर कोलकता के सम्मानित अख़बार/पत्रिका "सदीनामा", ख़ास तौर से शाइर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब, का बेहद शुक्रिया। सदीनामा निरं...