August 4, 2023

मंडोली रेस्टोरेंट दुर्ग (छत्तीसगढ़)


         मंडोली रेस्टोरेंट दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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हाल ही में कुछ पारिवारिक कारणों से छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर और इसके नज़दीक के नगरों दुर्ग तथा भिलाई आदि जाना हुआ।
यह हमारी पहली छत्तीसगढ़ यात्रा थी।लगभग चार दिन के प्रवास के दौरान हम दुर्ग में होटल "द एवलॉन" में रुके।यह होटल रेलवे स्टेशन से लगभग ५०० मीटर की दूरी पर मालवीय नगर चौक के पास एक प्राइम लोकेशन पर स्थित है।होटल सुविधाओं और सजावट की दृष्टि काफ़ी अच्छा है।
पहले दिन देर रात को पहुंचने के कारण हम लोग काफ़ी थके हुए थे अत: खाना होटल में ही ऑर्डर किया।खाना ठीक था परंतु जैसा कि होटलों में होता है,यह अपेक्षाकृत मंहगा था।

 चूंकि हमें कई दिन वहां रुकना था अत: अगले दिन  आसपास थोड़े सस्ते और ठीक-ठाक घर जैसा खाना परोसने वाले होटल की तलाश शुरू की।इस काम में हम जल्दी ही कामयाब भी हो गए जब हमें मालवीय नगर चौक पर ही मंडोली के नाम से एक छोटा किंतु बहुत व्यवस्थित और 
साफ़-सुथरा होटल मिल गया।दो दिन हमने वहीं भोजन किया।यह होटल एक परिवार द्वारा चलाया जा रहा है।होटल स्वामी ,उनकी पत्नी तथा पुत्र बड़े प्रेम से इस रेस्टोरेंट को चला रहे हैं।
    (मंडोली रेस्टोरेंट के स्वामी की धर्म पत्नी जी और होटल कर्मचारियों के साथ हम पति-पत्नी)

मंडोली की किचिन में घर के लोगों के साथ अधिकांश व्यवहार कुशल महिला कर्मचारी ही काम करते हैं। हम जब भी इस होटल में खाना खाने गए अक्सर वहां काफ़ी लोगों को खाना खाते हुए देखा।किसी पूरे परिवार का स्वयं प्यार से खाना बनाकर ग्राहकों को आत्मीयता के साथ सर्व करना हमें  बहुत प्रभावित कर गया।नॉर्थ इंडियन सात्विक थाली के साथ-साथ ये लोग साउथ इंडियन और चाय,पोहा और नाश्ते में पराठा आदि सब कुछ सर्व करते हैं।इनकी घरेलू नॉर्मल थाली और स्पेशल थाली अन्य होटलों की थाली से अपेक्षाकृत कम रेट पर उपलब्ध है। संदर्भ हेतु होटल का मेन्यू नीचे दिया है :
मंडोली भोजनालय की नॉर्मल /साधारण थाली में एक दाल,दो सब्ज़ी,चटनी,सलाद,चुपड़ी हुई चार तवा रोटी तथा चावल सम्मिलित होते हैं।चावल न लेने पर ये लोग दो रोटी अतिरिक्त देते हैं जो हमारे लिए बहुत ज़रूरी भी था क्योंकि हम लोग चावल कम पसंद करते हैं।होटल में यहां के अधिकांश लोगों को हमने चावल ही खाते देखा।इसके पीछे एक कारण यह भी है कि छत्तीसगढ़ को भारत का Rice Bowl भी कहा जाता है क्योंकि यहां चावल/धान बहुत अधिक मात्रा में पैदा होता है।
खाना तो पैसे देकर किसी भी होटल में खाया जा सकता था परंतु खाने के साथ इस रेस्टोरेंट को चलाने वाले परिवार से जो आत्मीयता हमें प्राप्त हुई वह दिल को छू गई।प्रसंगवश मुझे किसी शायर का यह शेर याद आ गया :
     कितने हसीन लोग थे जो मिलके एक बार,
     आँखों में  जज़्ब हो गए दिल में समा गए।
खाना खाने के बाद रेस्टोरेंट स्वामी और उनकी पत्नी से काफ़ी बातें हुईं।देश-प्रदेश और राजनीति को लेकर भी वार्तालाप हुआ। यह परिवार हमें देश-प्रदेश और समाज की चिंता करने वाला काफ़ी जागरूक परिवार लगा।बातों ही बातों में हमने उनसे कहा कि कल हमें वापस जाना है।हम चाहते हैं कि रास्ते के लिए खाना आपके होटल से ही पैक कराकर ले जाएँ।उन्होंने कहा कि होटल में पूरा खाना तो ११ बजे के बाद ही ठीक से तैयार हो पाता है परंतु फिर भी यदि आप कहें तो हम लोग कोशिश करके आपके स्टेशन जाने से पहले ही पराठे तैयार करके दही ,चटनी आदि के साथ पैक कर देंगे। हमने सहर्ष स्वीकृति दे दी। हमारी ट्रेन अगले दिन ११ बजे की थी।
अगले दिन सुबह जब हम साढ़े नौ बजे पहुंचे तो होटल स्वामी जी की पत्नी जल्दी-जल्दी हमारे लिए देशी घी के परांठे,आलू की सब्ज़ी तथा दही और चटनी आदि तैयार कराकर पैक करने में लग गईं।ठीक सवा दस बजे उन्होंने हमें खाना पैक करके दे दिया और बड़े स्नेह के साथ हमें विदा भी किया साथ ही आग्रह किया कि अगली बार इधर आना हो तो हमारे रेस्टोरेंट में अवश्य आएँ।सहमति के साथ उनको प्रणाम करते हुए शीघ्र ही हम उनसे विदा ली क्योंकि ग्यारह बजे तक हमें रेलवे स्टेशन भी पहुंचना था। इस परिवार के साथ जो यादगार मुलाक़ात रही सोचा उसे इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आपके साथ साझा किया जाए।
मेरा आप सभी स्नेही जनों से अनुरोध है कि जब कभी आपका दुर्ग (छत्तीसगढ़) जाना हो तो मालवीय नगर चौक पर इस छोटे किंतु साफ़-सुथरे और स्तरीय होटल पर घर जैसे खाने का स्वाद अवश्य लें।
प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक
साहित्यकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर

6 comments:

  1. सुंदर यात्रा विवरण

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  2. सराहनीय यात्रा सृजन।

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  3. बहुत सुंदर यात्रा वृत्तांत।

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