July 5, 2023

किसी मज़दूर की क़िस्मत में कब इतवार होता है

नई ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
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अगर अच्छा बशर  का  आचरण-व्यवहार होता है,
उसे हासिल  जहाँ में  हर किसी का  प्यार होता है।

मसर्रत  के  गुलों  से  घर  मेरा   गुलज़ार  होता  है,
इकट्ठा जब  किसी  त्योहार  पर  परिवार  होता  है।

पड़ेगा  हाथ   बाँधे   ही  खड़े   होना   वहाँ   तुमको,
मेरे   भाई   सुनो!  दरबार   तो   दरबार   होता   है।

मेरी मानो  किसी को आप अपना हमसफ़र कर लो,
अकेले   ज़िंदगानी   का    सफ़र   दुश्वार   होता  है। 
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कसौटी पर खरा ख़बरों की जिनको कह नहीं सकते,
भरा  ऐसी   ही  ख़बरों  से  सदा  अख़बार  होता  है।
                                 
मुकर्रर  की   सदायें   गूँजने  लगती  हैं  महफ़िल  में,                   
सुख़नवर  का कोई भी  शेर  जब  दमदार  होता  है।

उसे  करना ही पड़ता है हर इक दिन  काम  हफ़्ते में,
किसी मज़दूर की क़िस्मत  में कब  इतवार  होता है।

अता सौग़ात कर देता है नाज़ुक दिल को ज़ख़्मों की,
मियाँ!लहजा  किसी  का  एकदम  तलवार  होता है।

हिमायत  वो  ही  करता  है  त'अस्सुब के अँधेरों की,
मुसलसल  ज़ेहन  से  जो  आदमी  बीमार  होता  है।
             @ओंकार सिंह विवेक 


(चित्र : गूगल से साभार) 

8 comments:

  1. मसर्रत के गुलों से घर मेरा गुलज़ार होता है,
    इकट्ठा जब किसी त्योहार पर परिवार होता है।

    वाह! उम्दा शायरी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-07-2023) को   "आया है चौमास" (चर्चा अंक 4671)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. कमाल के शेर हैं ग़ज़ल के … बहुत सुंदर

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