July 10, 2023

हाला प्याला मधुशाला : एक पठनीय पुस्तक






शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

आज जानिए रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की हाल ही में लोकार्पित हुई कृति "मधुशाला हाला प्याला" के बारे में।

                  शुभकामना संदेश
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रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की कृति 'मधुशाला हाला प्याला' की पांडुलिपि मेरे हाथ में है।
इस काव्य कृति में हिंदी के ताटक, शोकहर आदि कई छंदों में लिखी गई अध्यात्म,दर्शन और भक्ति से ओतप्रोत सभी रचनाएँ ह्रदय को छूती हैं।
श्री आनंद जी काव्य सर्जना में छंदबद्ध रचनाओं के प्रबल पक्षधर हैं।उनकी  पूर्व प्रकाशित काव्य कृतियां 'जय बाला जी', 
'हनुमत उपासना' तथा 'राजयोग महागीता (पदम पुनीता)' आदि भी मैंने पढ़ी हैं और उन पर चिंतन-मनन भी किया है।आनंद जी के रचनाकर्म में अध्यात्म,धर्म,भक्ति और दार्शनिक चिंतन का जो रंग देखने को मिलता है वह उन्हें अन्य काव्यकारों से अलग एक विशिष्ट श्रेणी में लाकर खड़ा करता है।

चूंकि गुरु ही शिष्य को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है अत: श्री आनंद जी ने 'मधुशाला हाला प्याला' का शुभारंभ भी 
'गुरुप्रणाम' से ही किया है:
      अखंड मंडल में जो व्याप्त हैं साकार हुए,
      प्रेम की जो मूर्ति हैं दिव्य जिनके नाम हैं।
      अज्ञान के तिमिरांध में हैं ज्ञान की श्लाका-से,
      दिव्य नेत्र के प्रदाता छवि के जो धाम हैं।
      सद विप्ररूपदाता ब्रह्म के समान हैं जो,
      पालक विष्णु समान शिव से निष्काम हैं।
      सच्चिदानंद स्वरुप उन पदम-चरणों में,
      ऐसे मेरे अपने सद्गुरु को प्रणाम है।
सदगुरु से कमल जी र्का आशय साधारण शिक्षा देने वाले गुरु से नहीं है।श्री आनंद जी के सद्गुरु वह हैं जो गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार बनाए गए शिष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं जिससे उसे आत्म-ज्ञान के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति होती है।
कवि ने मधुशाला, हाला और प्याला प्रतीकों के माध्यम से अपनी 
छंदबद्ध रचनाओं द्वारा अध्यात्म,धर्म,श्रद्धा और भक्ति का जो अनुपम संदेश दिया है वह ह्रदय में उतरता चला जाता है।आनंद जी गुरुवर द्वारा प्रदान की गई ज्ञान रूपी हाला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं :

         ज्ञान-क्षुधा लगने पर पी लें,
         गुरुवर ने जो दी हाला।
         क्षुधा मिटेगी उसको पीकर,
         मंत्रों की जप ले माला।
         आत्म-तत्व को स्वीकार भी,
         तुमको करना ही होगा।
         श्रेष्ठ मनुजता जागृत होगी,
         पीकर यह मधुमय प्याला।
रचनाकर द्वारा सृजित उपर्युक्त पंक्तियों से पता चलता है कि 
आत्म-ज्ञान द्वारा स्वयं के कल्याण के लिए सद्गुरु की शरण में जाना कितना आवश्यक है।जब व्यक्ति को आत्म-ज्ञान प्राप्त हो जाता है तो वह भले-बुरे, हार-जीत के विचार से बहुत ऊपर उठ जाता है।यही 
स्वकल्याण  के लिए आदर्श स्थिति होती है।

भक्ति-सुधा से भरा प्याला व्यक्ति को पीने कैसे मिल सकता है यह समझने के लिए रचनाकर की इन पंक्तियों में छुपे मर्म तक पहुँचिए:

           कैसे प्रभु को पास बुलाऊँ,
           लोग सोचते रह जाते।
           कैसे रूठे ब्रह्म मनाऊँ,
           प्रभुवर के वे गुण गाते।
           करुणाकर कृपालु जब होते,
           मिल जाती मधुमय हाला।
           भक्ति-सुधा से भरा लबालब,
           मिल जाता मधुकर प्याला।
           
आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की धर्म,अध्यात्म और 
भक्ति-भाव से ओतप्रोत रचनाओं को पढ़कर मन एक अलग लोक में विचरण करने लगता है।सच्ची भक्ति क्या है और उसकी परख कैसे की जाती है इसे जानने के लिए रचनाकर की इन पंक्तियों का अवलोकन कीजिए :
         भक्ति दृगों से नहीं ह्रदय से,
         देखी समझी जाती है।
         भक्ति विकल के पोंछे आँसू,
         भक्ति वही कहलाती है।
         भक्ति गीत है,भक्ति मीत है,
         प्रेम-पंथ है उजियाला।
         नीराजन है, आराधन है,
         भक्ति 'कमल' दीपक बाला।

कवि ने कितनी गहरी बात कही है कि भक्त की भक्ति आँखों से नहीं अपितु ह्रदय से देखी और समझी जाती है।

मुझे आशा है कि आदरणीय श्री जितेंद्र कमल आनंद जी की इस कृति के अध्ययन और मनन से सुह्रदयी पाठक अत्यंत आनंदित तथा लाभांवित होंगे। मैं आदरणीय आनंद जी के निरंतर स्वस्थ्य रहने और दीर्घायु होने की कामना करता है ताकि वह भविष्य में और अधिक श्रेष्ठ काव्य कृतियों के सृजन से हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहें।

-- ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर
रामपुर-उत्तर प्रदेश 



 

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