मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏
आजकल अपने दूसरे ग़ज़ल संग्रह के प्रकाशन की तैयारी में लगा हुआ हूं।पांडुलिपि लगभग तैयार है।एक-दो शीर्षक भी सोच लिए हैं।कुछ मशवरे के बाद उनमें से एक फाइनल कर लिया जाएगा।१२० पृष्ठ की किताब छपवाने का विचार है जिसमें ८० से लेकर ९० ग़ज़लें हो सकती हैं। रचनाओं में सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।आजकल संकलन के लिए "अपनी बात" लिखने के साथ-साथ छपने वाली रचनाओं को फाइनल लुक भी दे रहा हूं।इस दौरान कई ग़ज़लें संशोधित भी की हैं।कुछ ग़ज़लों में केवल पाँच-पाँच शेर ही थे।एकरूपता के लिए सभी में सात-सात शेर किए हैं।
यदि परिस्थितियां अनुकूल रहीं तो आपके आशीर्वाद से इस साल ही मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह मूल्यांकन हेतु आपके सम्मुख आ जाएगा।
लीजिए इस संकलन में छपने वाली एक और ग़ज़ल का आनंद लीजिए :
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
©️
फ़ाइलातुन् मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
हर तरफ़ जंग की अलामत है,
अम्न पर ख़ौफ़-सा मुसल्लत है।
क्या करें उनसे कुछ गिला-शिकवा,
तंज़ करना तो उनकी आदत है।
मुजरिमों को नहीं है डर कोई,
ख़ौफ़ में अब फ़क़त अदालत है।
हमने ज़ुल्मत को रौशनी न कहा,
उनको हमसे यही शिकायत है।
पूछ लेते हैं ख़ैरियत जो कभी,
दोस्तों की बड़ी इनायत है।
बात करते हैं, फूल झरते हैं,
उनके लहजे में क्या नफ़ासत है।
जंग से मसअले का हल होगा,
ये भरम पालना हिमाक़त है।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
मुसल्लत --- हावी, ग़ालिब
Bahut sundar ghazal, vah vah!
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
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