पिछले दिनों व्यक्तिगत कारणों से सपत्नीक बैंगलुरू जाना हुआ।व्यस्तता के कारण बहुत अधिक तो रुकना नहीं हुआ वहां पर वर्ना मैसूर और आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थलों का भ्रमण अवश्य करते।पारिवारिक कामों को पूरा करने के बाद हमारे पास सिर्फ़ एक दिन बैंगलुरू में घूमने के लिए बचा था तो लोकल मार्केट आदि में घूम लिए और वहां के विश्व प्रसिद्ध बोटेनिकल गार्डन को देखने गए।
बोटेनिकल गार्डन की ख़ूबसूरती तो मैं अपनी अगली पोस्ट में बयान करूंगा।आज जिस वजह से यह पोस्ट लिख रहा हूं वह इस पोस्ट में सबसे ऊपर दिखाया गया चित्र है जिसमें एक अत्यधिक वृद्ध अम्मां जी मूंगफली बेचती हुई नज़र आ रही हैं।
जब हम गार्डन में घूमते- घूमते थक गए तो कुछ सुस्ताने और कोल्डड्रिंक,स्नैक्स आदि की तलाश में इधर- उधर देखने लगे।हमें कोल्डड्रिंक्स और चिप्स आदि बेचने वालों की लंबी पंक्ति दिखाई दी तो हम लोग उधर जाने लगे।वहीं एक अत्यधिक वृद्ध माता जी को फुटपाथ पर मूंगफली बेचते हुए देखा। माता जी ने मूंगफली के छोटे- छोटे पैकेट बनाकर अपनी टोकरी में रखे हुए थे। वृद्धा की उम्र ऐसी नहीं थी कि वह यह सब काम करें यह देखकर उनके प्रति हमारा दिल करुणा से भर गया।हमने उनकी इस विवशता के बारे में जानने के लिए कुछ पूछना चाहा परंतु भाषा की समस्या उत्पन्न हुई।वो स्थानीय वृद्धा कन्नड़ ही जानती थीं और हम हिंदी या फिर अंग्रेजी समझते थे लेकिन फिर भी उनकी सांकेतिक भाषा और
भाव- भंगिमाओं से हम उनकी मजबूरी का बहुत कुछ अनुमान लगा पाए।
जिस उम्र में वृद्धा को अपने घर -परिवार, बहू - बेटों के मध्य रहकर आराम करना था और उनसे सेवा पानी थी उस उम्र में वह चिलचिलाती धूप में पेट की ख़ातिर मूंगफली बेचने को मजबूर थीं इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी।
हमारी मूंगफली खाने या खरीदने की कोई इच्छा नहीं थी परंतु फिर भी हमने उनसे दो पैकिट मूंगफली खरीदी तो माता जी हाथ जोड़कर हमें ढेरों दुआएं देने लगीं। रेहड़ी,फुटपाथ आदि पर मजबूरी में यदि छोटे बच्चे और वृद्ध कुछ बेचते दिखाई देते हैं तो मैं उनसे अक्सर बिना ज़रूरत के भी कोई सामान ख़रीद लेता हूं। बस यही सोचकर कि पता नहीं किसकी क्या मजबूरी है जो उसे असहाय अवस्था में यह सब करना पड़ रहा है। दोपहर का समय था धूप बहुत अधिक थी।लोग सामने खड़े ठेलों और स्टॉल्स आदि से आइस्क्रीम और कोल्डड्रिंक्स आदि ख़रीद रहे थे। मूंगफली बेचने वाली माता जी उस तरफ़ ललचाई दृष्टि से देख रही थीं।हमारी बेटी ने उनसे इशारों में पूछा कि अम्मां आइस्क्रीम खाओगी।उन्होंने सहमति में सिर हिलाया तो बेटी ने पास के ठेले से ख़रीदकर आइस्क्रीम लाकर दी। आइस्क्रीम पाकर वृद्धा मां का चेहरा खिल उठा। उन्होंने बेटी के हाथ चूमे और अपनी भाषा में ढेरों आशीष और दुआएं दीं।उस समय मुझे अपनी एक पुरानी ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया :
ज़रूरत और मजबूरी जहां में,
करा लेती है सब कुछ आदमी से।
@--- ओंकार सिंह विवेक
ज़रूरत और मजबूरी जहां में,
ReplyDeleteकरा लेती है सब कुछ आदमी से।
सही है, सुंदर चित्र और प्रेरणादायक संस्मरण
आभार आदरणीया।
Deleteभावपूर्ण लेखन अद्भुत संस्मरण
ReplyDeleteहार्दिक आभार मान्यवर।
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