कवि गोष्ठी का शुभारंभ मां शारदे को पुष्प अर्पित करके अनमोल रागिनी गर्ग चुनमुन की सरस्वती वंदना से हुआ।
कवि राजवीर सिंह राज़ ने काव्य पाठ करते हुए अपनी अभिव्यक्ति दी :
जो ये खुशियों के मौसम हैं हसीं दिलकश नज़ारे हैं,
है सच ये हम ने आँखों में समंदर भी उतारे हैं।
कभी तो हम भी देखेंगे झलक झिलमिल सितारों की,
ये माना आज कल तेरी नज़र में चाँद - तारे हैं।
प्रदीप राजपूत माहिर ने कहा :
होने को अब है उनसे जो उलफ़त नयी-नयी
आने को मेरे दिल! है इक आफ़त नयी-नयी
वो जो सियह-निगाह ज़रा मुस्कुरा दिया
लिखने लगा है दिल ये इबारत नयी-नयी
ओंकार सिंह विवेक ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ यों दी :
ख़ुद में जब विश्वास ज़रा पैदा हो जाता है,
पर्वत जैसा ग़म भी राई-सा हो जाता है।
कम कैसे समझें हम उसको एक फ़रिश्ते से,
मुश्किल में जो आकर साथ खड़ा हो जाता है।
वरिष्ठ कवि शिवकुमार चंदन :
कच्चे घर थे गाँव में ,ठंडी पेड़ों की छाँव ,
हरियाली चहुँओर थी , मन को भाते गाँव ।
मन को भाते गाँव ,सभी आनंद मनाते ,
रामायण संगीत , कीर्तन मन हरषाते ।
भरा प्रेम सदभाव , मीत मन के थे सच्चे ,
खेत - बगीचा बाग , गाँव में घर थे कच्चे ।
सुरेंद्र अश्क रामपुरी ने कुछ यों अपनी बात कही :
वो जो अम्नो अमां की बात करें
चल उसी रहनुमां की बात करें
जाम लेकर सियासियों ने कहा
आओ अपनी दुकां की बात करें
उपरोक्त कवियों के अलावा डॉक्टर प्रीति अग्रवाल, महाराज किशोर सक्सैना,आशीष पांडे,जितेंद्र नंदा तथा रामसागर शर्मा आदि ने भी अपनी धारदार समसामयिक रचनाओं से अंत तक श्रोताओं को बांधे रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता मंच के अध्यक्ष शिवकुमार चंदन तथा संचालन महासचिव प्रदीप राजपूत माहिर द्वारा किया गया।
प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक
Sundar aayojan,vah
ReplyDeleteHardik aabhaar
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