June 1, 2023

दास्तान कुछ सुखद क्षणों की


मित्रों के साथ सुखद क्षणों की स्मृतियां साझा करना अच्छा लगता है।कई बार इनसे दूसरे लोग भी प्रेरणा ले लेते हैं। ऐसी स्मृतियों को सहेजने से जीवन को हंसी खुशी से जीने की उमंग सी बनी रहती है।आज ऐसे ही खुशी के कुछ लम्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं।
कल दिनाँक ३१ मई,२०२३ को प्रसार भारती रामपुर-उoप्रo में पर्यावरण  विषय को लेकर एक काव्य गोष्ठी की रिकॉर्डिंग के लिए जाना हुआ।मेरे साथ गोष्ठी में मुरादाबाद की अनुभवी होम्योपैथिक चिकित्सक और वरिष्ठ गीतकार डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय , बदायूँ के युवा कवि अभिषेक अनंत तथा विवेक हरि मिश्र जी ने सहभागिता की।सभी कवि मित्रों से बहुत आत्मीयतापूर्ण भेंट रही।डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी से पहले भी बहुत साहित्यिक कार्यक्रमों में मिलना होता रहा है।आप उच्चकोटि की साहित्यकार हैं।जब आप अपने सुमधुर स्वर में रचना पाठ करती हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। बदायूं से पधारें दोनों युवा साहित्यकारों में भी मुझे असीम संभावनाएं नज़र आईं। समसामयिक विषयों को लेकर उन्होंने जितनी सुंदर प्रस्तुतियां दीं उससे उनकी काव्य प्रतिभा का पता चलता है। गोष्ठी के बाद हम लोगों ने कुछ साहित्यिक विमर्श भी किया।आमंत्रित साहित्यकारों को मैंने अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियाँ भी भेंट कीं।
गोष्ठी के उपरांत मेरे आग्रह पर डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय मेरे निवास पर आकर परिजनों से भी मिलीं।बच्चे उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने परिजनों को स्वास्थ्य संबंधी कुछ बहुमूल्य परामर्श भी दिया। लगभग 76 वर्ष की आयु में भी अनुशासित दिनचर्या और खानपान के कारण डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती है।ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें दीर्घ आयु प्रदान करें।पत्नी को थोड़ा गायन का शौक़ है सो डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी ने उनसे एक गीत भी सुना।

दूसरा खुशी का अवसर तब आया जब हमारी छोटी पुत्री आस्था सैनी को Chartered accountants of India द्वारा बैंगलुरू में एक Convocation में  C.A. की डिग्री प्रदान की गई।
हम पति-पत्नी भी इस अवसर पर भव्य समारोह में उन सुखद क्षणों के साक्षी बने। हम दोनों की आंखों से खुशी के आंसू झलक आए जब पुत्री का नाम स्टेज से पुकारा गया।बेटी आस्था को पिछले लगभग पांच साल से हम एक प्रकार की साधना करते देख रहे थे।आस्था को उसकी महनत और लगन का प्रतिफल प्राप्त करते देखकर बहुत अच्छा लगा।बच्चे जब अपने मां-बाप से भी कहीं अधिक उपलब्धियां जीवन में हासिल करते हैं तो यह देखकर मां-बाप को बहुत गर्व होता है।मुझे अपनी ही एक ग़ज़ल का मतला याद आ रहा है :
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र  से  ऊँचा तभी  माँ-बाप  का  सर हो गया।
                              --- ओंकार सिंह विवेक


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