आज विश्व पर्यावरण दिवस है।जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो प्रथ्वी,जल,अग्नि,वायु तथा आकाश सभी का विचार मस्तिष्क में कौंध जाता है।पर्यावरण इन्हीं पाँच तत्वों से मिलकर बना है।इससे सहज ही अनुमान हो जाता है कि पर्यावरण का क्षेत्र कितना विस्तृत है और इसकी कितनी महत्ता है। आइए विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण यानी अपने जीवन को बचाने का संकल्प लें।
इस अवसर पर पर्यावरण को समर्पित मेरी कुछ काव्य रचनाओं का आनंद लीजिए 👎👎
विश्व पर्यावरण दिवस विशेष
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-- ओंकार सिंह विवेक
पर्यावरण :पाँच दोहे
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ओंकार सिंह विवेक
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करता है दोहन मनुज,ले विकास की आड़,
कैसे चिंतित हों नहीं , जंगल नदी पहाड़।
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भू का बढ़ता ताप यह ,ये पिघले हिमखंड,
मनुज प्रकृति से छेड़ का,मान इन्हें तू दंड।
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करते हैं मैला सभी,निशिदिन इसका नीर,
गंगा माँ किससे कहे,जाकर अपनी पीर।
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देते हैं हम पेड़ तो,प्राण वायु का दान,
फिर क्यों लेता है मनुज, बता हमारी जान।
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सबसे है मेरी यही, विनती बारंबार,
वृक्ष लगाकर कीजिए, धरती का शृंगार।
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--ओंकार सिंह विवेक
पर्यावरण विषयक कुछ कुंडलिया छंद
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देते हैं सबको यहाँ,प्राणवायु का दान,
फिर भी वृक्षों की मनुज,लेता है नित जान।
लेता है नित जान, गई मति उसकी मारी,
जो वृक्षों पर आज,चलाता पल-पल आरी।
कहते सत्य 'विवेक', वृक्ष हैं कब कुछ लेते,
वे तो छाया-वायु,,फूल-फल सबको देते।
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पानी जीवन के लिए, है अनुपम वरदान,
व्यर्थ न इसकी बूँद हो, रखना है यह ध्यान।
रखना है यह ध्यान,करें सब संचय जल का,
संकट हो विकराल,पता क्या है कुछ कल का।
करता विनय 'विवेक',छोड़ दें अब मनमानी,
मिलकर करें उपाय , बचा लें घटता पानी।
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करता है यह प्रार्थना,मिलकर सारा गाँव,
बनी रहे यों ही सदा,बरगद तेरी छाँव।
बरगद तेरी छाँव,न कोई तुझे सताए,
छाया तेरी ख़ूब,घनेरी होती जाए।
ग्रीष्म काल में नित्य,ज़ोर जब सूरज भरता,
सबके सिर पर छाँव,मित्र तू ही तो करता।
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©️ ओंकार सिंह विवेक
Samyik rachnayein,vah vah!
ReplyDeleteThanks
Deleteपर्यावरण दिवस पर सुंदर सृजन
ReplyDeleteआभार आदरणीया।
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