July 30, 2023

नई ग़ज़ल (ब्लॉग पर 500 वीं पोस्ट)

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🌹🌹🙏🙏
नई ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
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ख़ुद  में  जब  विश्वास  ज़रा  पैदा हो जाता है,
पर्वत  जैसा  ग़म  भी  राई-सा  हो  जाता  है।

कम कैसे समझें  हम उसको  एक  फ़रिश्ते से,
मुश्किल में जो आकर साथ खड़ा हो जाता है।

कहता है  काग़ज़   की कश्ती जल  में  तैराऊँ,
मन  मेरा  अक्सर  जैसे  बच्चा  हो  जाता  है।
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लोग भी कहते हैं और हमने भी महसूस किया,
चुप  रहने  पर  ग़ुस्सा  कुछ  ठंडा हो जाता है।

रहते हैं जब दूर नज़र से  कुछ दिन अपनों की,
ख़ूँ का  रिश्ता और अधिक  गहरा हो जाता है।

बात  नहीं  है  अपनेपन  की  कोई  पहले-सी,
अब तो बस रस्मन उनसे मिलना हो जाता है।

जब कोई अपना आ जाता है  ख़ैर-ख़बर लेने,
बोझ  ग़मों  का  सच मानो आधा हो जाता है।
       ----©️  ओंकार सिंह विवेक 


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