May 21, 2021

अँधेरे से ही तो उजाला है

शुभ प्रभात मित्रों🙏🙏

शीर्षक पढ़कर आपको लगा होगा कि यह कैसी अटपटी-सी 
बात है।यदि हम गहराई से सोचें तो इस कथन के पीछे  छुपी 
सच्चाई समझ में आ जाएगी।जब व्यक्ति अँधेरों में घिरता है
तभी उसे प्रकाश का महत्व समझ आता है और वह दीप जलाने
की बात सोचकर उसके लिए प्रयास करता है।अगर अँधेरा न हो 
तो हम  दीप जलाने की बात क्योंकर सोचेंगे।अतः अँधेरा तो एक प्रकार से हमें दिये जलाने की प्रेरणा देता है,हमें इसका अहसानमंद
होना चाहिए।
यही बात जीवन में आने वाली तमाम विपदाओं और परेशानियों पर भी लागू होती है।हम परेशानियाँ उठाकर ही सुखों का महत्व
समझते हैं।दुःखों की कसौटी पर कसे जाने के उपरांत ही हमें सुखों में आनंद की अनुभूति होती है।
   ---ओंकार सिंह विवेक

May 17, 2021

दोहे : गंगा मैया

दोहे : गंगा माई
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     ----©️ ओंकार सिंह विवेक
💥
जटा   खोलकर  रुद्र   ने , छोड़ी  जिसकी  धार,
नमन   करें   उस   गंग   को ,  आओ   बारंबार।
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भूप   सगर   के   पुत्र   सब , दिए  अंततः   तार,
कैसे   भूलें   हम  भला ,  सुरसरि  का  उपकार।
💥
यों  तो  नदियों  का  यहाँ ,  बिछा  हुआ है जाल,
पर  गंगा  माँ - सी  हमें , मिलती  नहीं  मिसाल।
💥
मातु - सदृश   भी   पूजता , मैली   करता  धार,
गंगा - सॅंग   तेरा   मनुज , यह  कैसा  व्यवहार।
💥
दिन-प्रतिदिन  दूषित  करे , मानव उसकी धार,
पर  फिर   भी   आशा   रखे , गंगा   देगी  तार।
💥
आज   धरा   पर    देखकर , गंगा   का  संत्रास,
शिव जी  भी  कैलाश  पर , होंगे  बहुत  उदास।
💥
सच्चे  मन   से   प्रण  करें ,  हम   सब  बारंबार,
नहीं   करेंगे   अब  मलिन ,  देवनदी  की  धार।
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चला-चलाकर नित्यप्रति, अधुनातन अभियान,
स्वच्छ   करेंगे  गंग  को , मन  में  लें  हम  ठान।
💥
                        -----©️ ओंकार सिंह विवेक

April 24, 2021

गुलशन फिर मुस्काएगा

आज दुनिया को कोरोना वायरस ने बता दिया है की हथियारों या उपभोग के सामान के उत्पादन के बजाए जीवन रक्षक चीजों के उत्पादन और संरक्षण की ज़ियादा आवश्यकता है।अपनी इच्छा शक्ति,हिम्मत और सकारात्मकता को बढ़ाने की दिशा में भी इस विपदा ने हर व्यक्ति को सोचने को विवश किया है।जब जीवन बचाने में सब उपाय छोटे  पड़ते हैं तो आदमी के अंदर जीने की इच्छाशक्ति और विपदा से लड़ने की ताक़त को बनाए रखकर आशावादी बने रहना ही रामवाण सिद्ध होता है।
हर व्यक्ति,देश या सरकार एक सीमा तक ही किसी आपात स्थिति से निपटने की पूर्व तैयारियों से सज्जित होते हैं।यदि कोई आपदा यकायक ही विकराल रूप धारण कर ले तो संसाधनों या सुरक्षा उपायों की अपर्याप्तता का सामना तो करना ही पड़ता है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि हम मात्र सिस्टम को ही दोष न दें अपितु अवसर की गंभीरता को समझते हुए जितना भी बन पड़े पीड़ितों और प्रभावित लोगों की मदद  करें और अपना मनोबल ऊँचा रखते हुए सबका आत्मविश्वास और हौसला बढ़ाने का वातावरण बनाने में अपना योगदान दें, यही मानवता की सबसे बड़ी सेवा होगी।
आज दुनिया जिस संकट से गुज़र रही है वह संकट बहुत जल्दी ही दूर होगा और  गुलशन फिर से पहले जैसा ही हँसे और मुस्काएगा इसी आशा और विश्वास के साथ--
ओंकार सिंह विवेक🙏🙏🌹🌹🌷🌷🇬🇳🇬🇳👍👍
चित्र--गूगल से साभार
🙏🌷🌹🙏
ओंकार सिंह विवेक

April 22, 2021

Positivity-Positivity And Positivity

सकारात्मकता-सकारात्मकता और सकारात्मकता

आज विश्वव्यापी वबा के कारण हम सब  में  ही भय व्याप्त है।
ऐसे में अपने ऊर्जा और आत्मविश्वास को बनाए रखने का एक 
ही उपाय है कि हम सकारात्मक बने रहें।सकारात्मक सोच से हम
निश्चय ही  इस संकट से पार पाने में कामयाब होंगे ।तो आइए इसी
उम्मीद के साथ कि यह बुरा वक़्त भी जल्दी ही गुज़र जाएगा,आनंद
लेते हैं नई ग़ज़ल का---
ओंकार सिंह विवेक

April 13, 2021

सत्ता के गलियारों में

ग़ज़ल----ओंकार सिंह विवेक
   मोबाइल 9897214710

रोज़ ख़बर छप जाया करती अपनी भी अख़बारों में,
पैठ   बना   लेते  जो  शासन- सत्ता  के गलियारों  में।

दख़्ल हुआ है नभ में जब से इस दुनिया के लोगों का,
इक  बेचैनी  सी  रहती  है  सूरज - चाँद -सितारों  में।

फुटपाथों  पर  चलने  वालों  का  भी  थोड़ा ध्यान रहे,
बेशक  आप  चलें  सड़कों  पर  लंबी - लंबी कारों में।

क्या बतलाऊँ उसने भी रंज-ओ-ग़म के उपहार दिए,
गिनती करता रहता था जिसकी अपने ग़मख़्वारों में।

दर्द  बयाँ  करती  है  वो  अब  मज़लूमों-मज़दूरों  का,
क़ैद  नहीं  है  आज  ग़ज़ल  ऊँचे  महलों-दरबारों  में।

भोली  जनता  भूल  गई,थे जितने शिकवे और गिले,
ऐसा   उलझाया   नेता   ने   लोकलुभावन   नारों  में।
                                        ----ओंकार सिंह विवेक

           (सर्वाधिकार सुरक्षित)


April 6, 2021

आओ टीका लगवाएँ : कोरोना को निबटाएँ

अभी कुछ दिन पहले तक लग रहा था कि हम कोरोना जैसी घातक बीमारी से जंग जीतने के आख़िरी चरण में पहुँच चुके हैं।परंतु पिछले कुछ दिनों से तेज़ी से बढ़ते कोरोना के केस देखकर लग रहा है कि हम पहले से भी कहीं ज़्यादा प्रचंड कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ गए हैं।यह बहुत चिंता की बात है।इधर  देखने में आ रहा है कि लोग अब कोरोना को बहुत हल्के में लेने लग गए हैं।मास्क,दो गज दूरी और सेनेटाइजर और साफ-सफ़ाई के प्रति अचानक लोगों की उदासीनता ने कोरोना के ख़तरे को फिर से बढ़ा दिया है।इस दूसरी लहर में भारत में नौजवान पीढ़ी कोरोना से बहुत अधिक प्रभावित होती नजर आ रही है इसलिए बुज़ुर्गों के साथ ही नौजवानों को ख़ासतौर पर सावधानी बरतने की ज़रूरत है।हम सब को यह समझने की ज़रूरत है कि कोरोना का ख़तरा अभी टला नहीं है वरन एक नए स्ट्रेन के रूप में और बड़ी तैयारी के साथ हमारे सामने खड़ा है।हमें सावधानी रखते हुए इसे हराने के फिर से प्रण करना है।अतः सभी से अनुरोध है कि सरकार द्वारा जारी कोरोना गाइडलाइंस का पालन करें और अपनी सेहत का ख़्याल रखें।
भारत के वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने कोरोना वैक्सीन का निर्माण करके विश्व को अपनी अदम्य इच्छाशक्ति और असाधरण  प्रतिभा का परिचय दिया है।अतः हमारा दायित्व है कि हम देश के वैज्ञानिकों को उनकी इस उपलब्धि पर बधाई दें और कोरोना के विरुद्ध अपनी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के लिए कोरोना वैक्सीन को जल्दी से जल्दी लगवाएँ।इसमें किसी भी तरह के संशय और संदेह को मन में न पनपने दें।कोरोना वैक्सीन पूरी तरह से टेस्टेड और सुरक्षित है।मैंने भी कल ज़िला चिकित्सालय रामपुर-उ0प्र0 में जाकर अपनी पत्नी के साथ निःशुल्क कोरोना वैक्सीन लगवाई ।हमें किसी प्रकार की कोई परेशानी महसूस नहीं हुई।
आओ टीका लगवाएँ
कोरोना को निबटाएँ।
         ----ओंकार सिंह विवेक

March 30, 2021

ठोकर खाने से

ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

कौन   भला   रोकेगा   उसको  मंज़िल  पाने  से,
जिसका  साहस  जाग  उठा हो ठोकर खाने से।

बात  समझकर भी  जो  ढोंग करें नासमझी का,
होगा  भी   क्या   ऐसे  लोगों   को  समझाने  से।

मत पूछो कितनी तस्कीन मिली है इस दिल को,
इक  बेकस  की  ओर  मदद  का हाथ बढ़ाने से।

कैफ़े   से   मँगवाए  चाऊमिन - पिज़्ज़ा - बर्गर ,
कैसे  बेहतर  हो   सकते  हैं  घर   के   खाने  से।

गीता  के  उपदेशों    ने   वो   संशय   दूर  किया,
रोक  रहा  था   जो  अर्जुन  को वाण चलाने से।

जो   वो   सोचे   कितने   पंछी  बेघर  कर  डाले,
आँधी  को  फ़ुरसत  ही  कब  है  पेड़  गिराने से।

जब दिल से  दिल का ही सच्चा मेल नहीं होता,
क्या  हासिल है  फिर लोगों के हाथ मिलाने से।
                                 --ओंकार सिंह विवेक

सर्वाधिकार सुरक्षित

March 27, 2021

होली है भई होली है!

न ख़ुशियाँ ईद की कम हों न होली-रंग हो फीका,
रहे  भारत के  माथे पर इसी तहज़ीब का  टीका।
गले  मिलते  रहें  सब लोग शिकवे भूलकर सारे,
सदा  सद्भावना  से  युक्त  हो माहौल बस्ती  का।
         ----ओंकार सिंह विवेक
🇬🇼  दोहे : होली है 🇬🇳

            ---ओंकार सिंह विवेक
🇬🇳
दीवाली   के   दीप  हों  , या   होली   के   रंग,
इनका आकर्षण तभी ,जब हों प्रियतम संग।
🇬🇳
रस्म  निभाने  को  गले , मिलते  थे  जो  यार,
अपनेपन  से  वे  मिले ,  होली  अबकी  बार।
🇬🇳
होली  का  त्योहार  है , हो  कुछ  तो  हुड़दंग,
हमसे   यह   कहने   लगे ,  नीले - पीले  रंग।
🇬🇳
महँगाई  ने  जेब  को ,जब  से  किया उदास,
गुझिया की जाती रही,तब से सखे  मिठास।
🇬🇳
              ----ओंकार सिंह विवेक, रामपुर                                        
                                      
        

    🌷मुक्तक: होली है🌷
       ---ओंकार सिंह विवेक
🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇳🇬🇼
 रंग- अबीर- गुलाल  उड़ाएँ ,  होली  है,

 गुझिया  खाएँ और खिलाएँ , होली है।

 बस मृदुता का भाव  रखें  मन के अंदर,

 कटुता  का  हर भाव जलाएँ, होली है।
🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼🇬🇼
             ----ओंकार सिंह विवेक
सभी चित्र:गूूूगल से साभार

March 25, 2021

जनता तो बेचारी थी बेचारी है

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
   मोबाइल 9897214710
  
🗯️
इसको  लेकर   ही   उनको   दुश्वारी   है,
जनता  में  क्यों  अब  इतनी  बेदारी  है।
🗯️
तुम   क्या  जानो   दर्द  किराएदारों  का,
यार   तुम्हारा   बँगला  तो  सरकारी  है।
🗯️
कोई  सुधार  हुआ कब उसकी हालत में ,
जनता   तो    बेचारी    थी ,  बेचारी   है।
🗯️
शकुनि  बिछाता   है  वो ही चौसर देखो,
आज  महाभारत   की  फिर  तैयारी  है।
🗯️
  नाम   कमाएँगे   ये  ख़ूब   सियासत  में,
  नस-नस में इनकी जितनी मक्कारी है।
  🗯️
  औरों-सा  बनकर  पहचान  कहाँ  होती,
  अपने - से   हैं   तो   पहचान  हमारी है।
  🗯️
                 ----ओंकार सिंह विवेक
   

 

March 22, 2021

विराट कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह

विराट कवि सम्मेल व साहित्यकार सम्मान समारोह
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दिनाँक 20 व 21 मार्च,2021 को के0 बी0 हिंदी सेवा न्यास(पंजीकृत) बिसौली ज़िला बदायूँ(उ0प्र0)-भारत के षष्टम अंतरराष्ट्रीय साहित्यकार सम्मान समारोह में रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय शिवकुमार शर्मा चंदन जी के साथ सहभागिता करने का अवसर प्राप्त हुआ।
 कार्यक्रम बहुत ही अनुशासनबद्ध रूप से दो चरणों में सम्पन्न हुआ।
 प्रथम चरण में दिनाँक 20 मार्च,2021 को रात्रि में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के कई प्रांतों के कवियों सहित पड़ोसी देश नेपाल के दो वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ काव्य पाठ का अनुभव अविस्मरणीय रहा। कार्यक्रम के दूसरे चरण में दिनाँक 21 मार्च,2021 को 148 साहित्यकारों को साहित्य की विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन करने हेतु सम्मानित किया गया।इस अवसर पर मुझ अकिंचन को भी  ग़ज़ल विधा में सृजन के लिए "जिगर मुरादाबादी स्मृति सम्मान" से सम्मानित किया गया।
 कुछ प्रांतों में पुनः कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण कई आमंत्रित साहित्यकार समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाए।फिर भी पर्याप्त संख्या में आमंत्रित साहित्यकार इस सफल कार्यक्रम के साक्षी बने।
 विभिन्न प्रांतों के साहित्य मनीषियों सहित पड़ोसी देश नेपाल  से पधारे मूर्धन्य साहित्यकारों सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार/ग़ज़ल समालोचक डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी तथा नेपाली साहित्य की विधाओं चारु, राग व विराग के प्रणेता आदरणीय प्रोफेसर देवी पंथी जी (त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमांडू) से मिलना एक बहुत ही सुखद अनुभव रहा।
 मैं विदेशी मेहमानों द्वारा विशुद्ध हिंदी में दिए गए सारगर्भित वक्तव्यों से बहुत प्रभावित हुआ।उन दोनों महानुभावों का अपनी मातृभाषा नेपाली के साथ हिंदी भाषा में साहित्य सृजन के प्रति अनुराग देखकर ह्रदय गदगद हो गया।विदेशी मेहमानों की मेज़बानी करते बहजोई के युवा साहित्यकार भाई दीपक गोस्वामी चिराग़ की सक्रियता और विनम्रता ने भी बहुत प्रभावित किया।
 इस प्रकार के साहित्यिक अनुष्ठान रचनाधर्मियों के लिए निश्चित रूप से ऊर्जा और उत्साह प्रदान करने का कार्य करते हैं। अतः सब के सहयोग से इस प्रकार के आयोजनों को निरंतर गति मिलती रहनी चाहिए।
         ----ओंकार सिंह विवेक,ग़ज़लकार
                संपर्क 9897214710
         
       
 

March 17, 2021

भव्य कवि सम्मेलन शेरकोट, बिजनौर

भव्य कवि सम्मेलन शेरकोट ,ज़िला बिजनौर
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अनिरुद्ध काव्यधारा साहित्यिक संस्था द्वारा देश भर के चुनिंदा २४ कलमकारों को अनिरुद्ध शर्मा स्मृति सम्मान से सम्मानित किया।
आर्य समाज के प्रांगण में आयोजित आयोजित कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह में संस्थाध्यक्ष सुबोध शर्मा शेरकोटी और संयोजक डॉ अनिल शर्मा 'अनिल' ने समारोह अध्यक्ष श्री जितेंद्र कमल आनंद, रामपुर, मुख्य अतिथि डाँ गीता मिश्रा गीत  हल्द्वानी,डाँ अर्चना गुप्ता मुरादाबाद, विशिष्ट अतिथि श्री अनिल सारस्वत   काशीपुर, संजीव एकल बिजनौर,नरेन्द्र जीत सिंह'अनाम'धामपुर सहित ओंकार सिंह विवेक , रामपुर शिव कुमार .,चंदन रामपुर उप्र, रामरतन यादव ,रतन  खटीमा ,उत्तराखंड, सतपाल सिंह सजग लालकुआं  ,उत्तराखंड,कृष्ण कुमार पाठक   बिजनौर,नीरज कांत सोती बिजनौर,कपिल जैन  नजीबाबाद , डाँ भूपेन्द्र कुमार धामपुर,रामप्रसाद अनुरागी  काशीपुर, डाँ पुष्पा जोशी प्रकाम्य शक्ति फार्म, रचना शास्त्री  शाहपुर खेडी बिजनौर,नीमा शर्मा  नजीबाबाद, डाँ मंजु.जौहरी मधुर नजीबाबाद
शुचि शर्मा शेरकोट,डॉ पूनम चौहान,डॉक्टर प्रमोद शर्मा प्रेम नजीबाबाद,डाँ सुरेंद्र सिंह राजपूत धामपुर आदि को अंग वस्त्र,सम्मान पत्र सहित माल्यार्पण कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अनिल शर्मा अनिल और डॉ भूपेन्द्र कुमार ने संयुक्त रूप से किया।
वक्ताओं ने अनिरूद्ध शर्मा शेरकोटी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला।
आयोजन को सफल बनाने में मयंक शर्मा,सुखनंदन रुहेला आदि का सहयोग रहा।

मैंने(ओंकार सिंह विवेक )  स्मृतिशेष आ0 अनिरुद्ध शर्मा शेरकोटी जी को अपने निम्न दोहों के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित किए--

कविता में ज्यों आपने,दिल को रखा निकाल,
वैसी अब अनिरुद्ध जी,मिलती नहीं मिसाल।

लिखकर देश-समाज का ,सीधा-सच्चा हाल,
जीवन  भर  अनिरुद्ध  जी,करते रहे कमाल।

हम  कविजन इस मंच से,लेकर हरि का नाम,
आज आप की याद को,शत-शत करें प्रणाम।
               -----ओंकार सिंह विवेक

March 15, 2021

सदभाव रहेगा

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक

 💥
 जब   मन   में  औरों  को  नीचा  दिखलाने  का  भाव  रहेगा,
 तो  ख़ुद  के  अंदर  भी  तय है ,  पलता  एक  तनाव  रहेगा।
💥
 कब   तक  मत - पंथों  को  लेकर  होता  ये  टकराव  रहेगा,
 कब  तक  सहमा  और  डरा सा आपस का सदभाव रहेगा।
💥
 पहले तो  लड़वाएगा ज़ालिम  आपस   में   हम   दोनों   को,
 फिर  दुनिया  को  दिखलाने  को  करता बीच-बचाव रहेगा।
💥
 क्या पैग़ाम  जहाँ   को  देंगे  सोचो हम फिर  यकजहती का,
 जब   हम   लोगों  में  ही  होता  इस  दर्जा  बिखराव  रहेगा।
💥
 यार   नहीं   देखी  जाती   अब तो  इन    फूलों   की   बेनूरी,
 आख़िर कब तक और ख़िज़ाँ का गुलशन में ठहराव रहेगा।
💥
 इस  नस्ल-ए-नौ  के  तेवर  तो   हमको  ये   ही  बतलाते  हैं,
 अब  जल्दी  सिस्टम  में  शायद होकर कुछ बदलाव रहेगा।
💥
                                                   ----ओंकार सिंह विवेक
 

March 10, 2021

खटकता है वो कोठी की नज़र में

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक

🌷
 अरे  इंसान ! तू   क्यों  बे - ख़बर  है,
 तेरे  हर  काम  पर  रब  की  नज़र है।
🌷
 जुदा    पत्ते    हुए   जाते    हैं    सारे,
 ये  कैसा  वक़्त आया  शाख़  पर है।
🌷
 खटकता  है  वो  कोठी  की नज़र में,
 बग़ल  में  एक जो  छप्पर का घर है।
🌷
 सरे - बाज़ार    ईमाँ   बिक    रहे   हैं,
 यही  बस  आज  की ताज़ा ख़बर है।
🌷
 यकीं जल्दी  से  कर  लेते हो सब पर,
 कहीं धोखा  न खाओ, इसका डर है।
🌷
  इसे  बिल्कुल  भी  हल्के  में  न लेना,
  मियाँ  ये  ज़िंदगानी   का   सफ़र  है।
 🌷
  कहानी  में   है   जिसने  जान  डाली,
  वही   किरदार  बेहद   मुख़्तसर   है।
 🌷
             ---ओंकार सिंह विवेक

March 8, 2021

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला 
शक्ति के सम्मान में कुछ दोहे
*******************************
                                -----ओंकार सिंह विवेक
🌷
केवल  घर  के  काम  में,रत रहना दिन-रात,
अब  महिलाओं के लिए,  हुई  पुरानी  बात।
🌷
आज  विश्व  में नारियाँ, करके  दुर्लभ  काम,
धरती से आकाश तक, कमा  रही  हैं  नाम।
🌷
दफ़्तर  में  भी  धाक है , घर  में  भी  है राज,
नारी  नर  से कम नहीं,किसी बात में आज।
🌷
जिस  घर में  होता नहीं , नारी  का  सम्मान,
उस घर  की होती नहीं,ख़ुशियों से पहचान।
🌷
            ----ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार

March 4, 2021

दर्द मज़लूम का

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

💥
बदला    रातों - रात   उन्होंने  पाला   है ,
शायद  जल्द  इलक्शन  आने  वाला  हैI
💥
झूठे    मंसब     पाते    हैं    दरबारों    में,
और  सच्चों  को  होता देश-निकाला है।
💥
भूखे   पेट   जो   सोते  हैं  फुटपाथों  पर,
हमने   उनका  दर्द   ग़ज़ल  में  ढाला  है।
💥
सोचो   घर   में  बेटी  के  जज़्बात  भला,
माँ  से  बेहतर  कौन  समझने  वाला  है।
💥
यार   उसूल  परस्ती  और   सियासत  में,
तुमने ख़ुद को किस मुश्किल में डाला है।
💥
नीचे   तक   पूरी   इमदाद   नहीं   पहुँची,
ऊपर आख़िर  कुछ  तो गड़बड़झाला है।
💥
           -----ओंकार सिंह विवेक




March 2, 2021

ग़ज़ल प्रतियोगिता परिणाम

प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह "अनकहे शब्द" का मेरी ग़ज़ल को प्रथम पुरस्कार प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार
*******************************************
("अनकहे शब्द" की वॉल से साभार)

दोस्तो हम हाज़िर है ग़ज़ल प्रतियोगिता-68 के परिणाम लेकर। हम मंच के हमारे सभी सक्रिय साथियो का भी दिल की तमामतर गहराइयों से शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने हमारी ग़ज़ल प्रतियोगिता -68में भाग लेकर इस मंच को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की  दोस्तो इस बार भी बहुत ही बड़ी तादाद में और बहुत उम्दा ग़ज़लें  मंच पर हैं ये हमारे उस्ताद शायर आदरणीय Mukhtar Tilhari साहब का कहना है। चयन प्रक्रिया बड़ी मुश्किल हो जाती है जब इतनी अच्छी ग़ज़लें मंच पर हों ।भाई जी बड़ी मेहनत के साथ आपकी ग़ज़लें पढ़ते हैं और परिणाम देते हैं ।हम उनका भी तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं ये आप और हम सबकी बड़ी उपलब्धि है सभी विजेताओं के लिए  ढेर सारा शुक्रिया तो बनता ही है है साथ ही ढेरों बधाई...और शुभकामनाएं....💐💐💐💐
तो लीजिये अब पेश हैं विजेताओं के नाम....
ग़ज़ल प्रतियोगिता-68 के विजेता

~~प्रथम~~
माहिर रज़ा फिरोजाबादी
मुदस्सिर हुसैन
ओंकार सिंह विवेक 
सरफ़राज़ कुशलगढ़ी
अबरार अहमद

~~द्वितीय~~
अनीस अरमान
रुबी कमल
असीम आमगांवी
नफ़ीस वारसी
एल एन कोष्टी

~~तृतीय~~
वासिफ़ क़मर
कविता सिंह
सुशील तिवारी सरस
शशांक ठाकुर साहिल
अदीब दमोही
ज़िया अख़्तर
आप सभी विजेताओं को अनकहे शब्द परिवार के सभी एडमिनस और सभी सदस्यों की और से हार्दिक हार्दिक हार्दिक बधाइयाँ ......मंच आप सभी की उत्तरोत्तर उन्नति की मंगल कामना करता है बहुत बहुत बधाई आप सभी को 🌹🌷🌹🌷🌹🌷

आप सभी के सहयोग, स्नेह और सफलता के लिए एक बार पुनः आप सभी को हार्दिक हार्दिक बधाई और आभार ! 

-----अनकहे शब्द समूह ----

मेरी जिस ग़ज़ल को पहला इनआम हासिल हुआ वो यहाँ पेश है

February 28, 2021

गूगल-ज्ञानी

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक

🌹
कब  सुनते    हैं   कोई   कहानी   अपनी   दादी - नानी  से,
अब   तो  बस   चिपके  रहते   हैं  बच्चे   गूगल - ज्ञानी  से।
🌹
आख़िर   कोई   बताए   मीठे  पानी  की   ये   सब   नदियाँ,
क्यों    मिलने   जाती   हैं   इक  सागर  के  खारे   पानी  से?
🌹
उल्टे   और   लुभाता   है    उसको   बच्चों    का   भोलापन,
माँ   नाराज़    नहीं    होती    है   बच्चों   की    नादानी    से।
🌹
ख़ुद ही सोचो कौन भला फिर मुश्किल को मुश्किल कहता,
जो   मुश्किल  हल  हो  जाया  करती   इतनी   आसानी  से।
🌹
जो    ये   रहबर   सोचें    थोड़ा   देश - समाज    के  बारे  में,
 फ़ुर्सत  ही  कब    है  इनको  आपस  की   खींचातानी   से।
🌹
 फिर   तुझको   आबाद   करेंगी   मीठी - मीठी  कुछ  यादें,
 इतना   भी    मायूस   न   हो  दिल  तू  वक़्ती   वीरानी  से।
🌹                                             ----ओंकार सिंह विवेक

February 27, 2021

"अभिनंदन ऋतुराज" - संगीत के बहाने

जीवन में संगीत के महत्व को लेकर अक्सर शोध होते रहे हैं।अनेक बार पुस्तकों और अखबारों में पढ़ा है कि सृजनात्मक संगीत को सुनकर  अमुक व्यक्ति का असाध्य रोग जाता रहा।लोग जब काम के बोझ से मानसिक थकावट महसूस करते हैं तो कुछ देर अपनी पसंद के गीत और संगीत को सुनकर फिर से तरोताज़ा महसूस करने लगते हैं। कहा जाता है कि सृष्टि और प्रकृति की हर चीज़ में एक लय विद्यमान है, जो हम सब महसूस भी करते हैं।हमारा हंसना-रोना या नदी और झरनों का बहना सभी में एक लय और रवानी मौजूद है। मनपसंद संगीत या गायन सुनकर मानव के जीवन में एक नई ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार हो जाता है।

अभी हाल ही में मुझे आकाशवाणी रामपुर(उ0प्र0) की ओर से आयोजित  "अभिनंदन ऋतुराज वसंत" संगीत संध्या में आमन्त्रण पर जाने का अवसर मिला तो अनायास ही वहाँ संगीत का आनंद लेने के पश्चात व्यक्ति के जीवन में संगीत की महत्ता को लेकर कुछ  लिखने की सूझी सो इसी बहाने मैंने आप लोगों से बातचीत का अवसर  तलाश  लिया।उस बहुत ही सफल कार्यक्रम की कुछ यादें आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ।
दिनाँक  25-02-21 को आकाशवाणी रामपुर द्वारा आयोजित संगीत संध्या 'अभिनंदन ऋतुराज' में एक श्रोता के रूप में उपस्थित होना मेरे लिए एक सुखद अनुभूति से कम नहीं रहा।
दीप प्रज्जवलन के पश्चात कार्यक्रम का शुभारंभ संगीत कलाकार रुचि शुक्ला की सरस्वती वंदना के साथ हुआ।तत्पश्चात सुविख्यात शास्त्रीय गायक श्री अवधेश गोस्वामी ने राग वसंत पर आधारित उप-शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी।रामपुर-सहसवान घराने के सितारवादक जनाब मुज्तबा हुसैन ने सितार पर राग वसंत के तार छेड़े।नैना कपूर और साथियों ने रति और कामदेव की प्रणय गाथा को भाव नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।आकाशवाणी और दूरदर्शन की प्रख्यात कलाकार श्रीमती शुभा चटर्जी के गीत और भजन की प्रस्तुति को सभी ने सराहा।संगीत संध्या में मोरिस मैसी ने तबले पर,जोगिंदर कुमार ने सिंथेसाइज़र पर और विनीता जोशी ने तानपूरे पर संगत की।कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण खटीमा से आये आदिवासी जनजाति थारू के लोक कलाकारों की प्रस्तुति रही।शिक्षा राणा और साथियों द्वारा आदिवासी संस्कृति की बहुत ही जीवंत झलक मंच पर प्रस्तुत की गई जिसको सभी ने बहुत  सराहा।
देर रात तक इस शानदार संगीत कार्यक्रम का रसिक श्रोताओं ने आनंद लिया।आकाशवाणी रामपुर को इस सुंदर और सफल कार्यक्रम के आयोजन पर हार्दिक बधाई!!!!
     ----ओंकार सिंह विवेक

February 23, 2021

मेल-मिलाप कराने का माहौल बनाते हैं


ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक

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 मेल - मिलाप   कराने   का   माहौल   बनाते हैं,
 आओ चलकर  दोनों  पक्षों   को   समझाते  हैं।
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ज़ेहन  में  आने  लगती  हैं  फिर  से  वो  ही बातें,
कोशिश करके  अक्सर  जिनसे  ध्यान हटाते हैं।
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उन लोगों  के  दम  से   ही  जीवित  है  मानवता,
जो औरों  के  ग़म  को  अपना  ग़म  बतलाते हैं।
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मंदिर-सा  पावन   भी  कहते  हैं  वो  संसद  को,
और उसकी गरिमा  को  भी  हर  रोज़  घटाते हैं।
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यह   कैसी   तहज़ीब  हुई   है   दौरे   हाज़िर की,
माता  और  पिता  को   बच्चे   बोझ   बताते  हैं।
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फ़िक्र  नहीं  करते   कोई  जाइज़-नाजाइज़  की,
कुछ  व्यापारी  बस  मनमाना  लाभ  कमाते  हैं।
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                                -----ओंकार सिंह विवेक


      

February 22, 2021

अपनी हिंदी और ऋतुराज वसंत के बहाने

चौपाई छंद:वसंत ऋतु
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मुस्काई   फूलों   की     डाली।
झूमी   गेहूँ   की    हर  बाली।।
धरती  का  क्या  रूप सँवारा।
हे   वसंत ! आभार  तुम्हारा।। 
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सरसों  झूम- झूम  कर गाती।
खेतों  को  नव  राग सुनाती।।
भौंरे     फूलों    पर    मँडराते।
उनको  मादक  गान सुनाते।।
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मधुऋतु  हर्षित  होकर बोली।
आने   वाली   है  अब  होली।।
ढोल , मँजीरे  ,  झांझ  बजेंगे।
नाच-गान   के   सदन  सजेंगे।
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चिंतन     होता     रहे    घनेरा।
बढ़ता  रहे  ज्ञान   नित   मेरा।।
हंसवाहिनी    दया    दिखाओ।
आकर जिह्वा पर बस जाओ।।
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              --ओंकार सिंह विवेक        
  
चित्र:गूगल से साभार

गीत: अपनी हिंदी
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                   ---- ओंकार सिंह विवेक
🌷
दुनिया में  भारत  के  गौरव,मान और सम्मान की,
आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2
🌷
राष्ट्र संघ  से  बड़े  मंच  पर,अपना सीना तानकर,
हिंदी  में भाषण  देना  है ,यह ही मन में ठानकर।
रक्षा  अटल बिहारी  जी  ने, की हिंदी के मान की
आओ बात करें---------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2
🌷
परिचित  होने  को अलबेले, अनुपम हिंदुस्तान से,
आज  विदेशी  भी  हिंदी को,सीख रहे हैं शान से।
सचमुच है यह बात हमारे, लिए बड़े अभिमान की
आओ बात करें-----------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2
🌷
आज  नहीं  हिंदी का उनको , मूलभूत भी ज्ञान है,
अँगरेज़ी की शिक्षा पर ही ,बस बच्चों का ध्यान है।
क्या यह बात नहीं है अपनी,भाषा के अपमान की
आओ बात करें-------------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2
🌷
अपने  ही  घर  में  हिंदी यों, कभी  नहीं  लाचार हो,
इसको अँगरेज़ी पर शासन, करने का अधिकार हो।
बच  पाएगी  तभी  विरासत, सूर  और रसखान की
आओ बात करें---------------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी---- ------2
🌷
          ------ओंकार सिंह विवेक

      (चित्र गूूूगल से साभार)


February 20, 2021

दर्द का अहसास

मशहूर शायर डॉ0 कृष्णकुमार नाज़ द्वारा लिखी गई मेरे ग़ज़ल-संग्रह
"दर्द का अहसास" की भूमिका
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             दर्द का अहसास : संवेदनाओं का संकलन
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'औरतों से बातचीत'रही होगी कभी ग़ज़ल की परिभाषा।शायद उस वक़्त जब ग़ज़ल के पैरों में घुँघरू बँधे थे,जब उस पर ढोलक और मजीरों का क़ब्ज़ा था,जब ग़ज़ल नगरवधू की अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर रही थी,जब ग़ज़ल के ख़ूबसूरत जिस्म पर बादशाहों-नवाबों का क़ब्ज़ा था।लेकिन,आज स्थितियाँ बिल्कुल उलट गई हैं।आज की ग़ज़ल पहले वाली नगरवधू नहीं बल्कि कुलवधू है,जो साज-श्रृंगार भी करती है और अपने परिवार और समाज का ख़याल भी रखती है।आज की ग़ज़ल कहीं हाथों में खड़तालें लेकर मंदिरों में भजन -कीर्तन कर रही है तो कहीं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का रूप धारणकर समाज के बदनीयत ठेकेदारों पर अपनी तलवार से प्रहार भी कर रही है।यानी समाज को रास्ता दिखाने वाली आज की ग़ज़ल 'अबला'नहीं'सबला'है और हर दृष्टि से सक्षम है।

प्रिय भाई ओंकार सिंह विवेक जी की पांडुलिपि मेरे सामने है और मैं उनके ख़ूबसूरत अशआर का आनंद ले रहा हूँ।विवेक जी ने जहाँ जदीदियत का दामन थाम रखा है वहीं उन्होंने रिवायत का भी साथ नहीं छोड़ा है।उनके अशआर में क़दम-क़दम पर जदीदियत की पहरेदारी मिल जाती है।यह आवश्यक भी है।आख़िर कब तक ग़ज़ल को निजता की भेंट चढ़ाते रहेंगे।समय बदलता है तो समस्याएँ बदलती हैं।नये-नये अवरोध व्यक्ति के सामने आकर खड़े जो जाते हैं।शायर की ज़िम्मेदारी है कि उन अवरोधों को रास्ते से हटाए और समाज को नये रास्ते और नयी दिशा दे।यह काम विवेक जी ने बड़ी ख़ूबी के साथ किया है।उनके यहाँ वैयक्तिकता भी है,देश भी है,समाज भी है और आम आदमी की उलझनें भी हैं।

वर्तमान में व्यक्ति जिस हवा में साँस ले रहा है उसमें प्राणदायिनी ऑक्सीज़न के साथ-साथ बड़ी मात्रा में कार्बनडाइऑक्साइड भी है जो उसे बार-बार यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि-
         सोचता हूँ अब हवा को क्या हुआ
         गुलसिताँ में ज़र्द हर पत्ता हुआ
         तंगहाली देखकर माँ-बाप की
         बेटी को यौवन लगा ढलता हुआ
ये शेर यूँ ही नहीं हो गए हैं।कवि की संवेदनशील दृष्टि ने बड़ी बारीकी के साथ हालात का परीक्षण किया है।मनुष्य यूँ तो एक सामाजिक प्राणी है इसलिए वह समाज से कभी विमुख नहीं हो सकता लेकिन कई बार ऐसी स्थितियाँ आ जाती हैं कि उसे 'अपनों जैसे दीखने वाले'लोगों पर भरोसा करना पड़ता है और आख़िरकार वह धोखा खा जाता है।विवेक जी ने इस बात को बड़ी बेबाकी के साथ इन शेरों में प्रस्तुत किया है-
                   भरोसा जिन पे करता जा रहा हूँ
                   मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ
                   उलझकर याद में माज़ी की हर पल
                   दुखी क्यों मन को करता जा रहा हूँ
मैं विवेक जी का क़ायल हूँ कि वह बहुत सोच-समझकर शेर कहते हैं।वह अपनी बात थोपते नहीं बल्कि सामने वाले को सोचने के लिए स्वतंत्र छोड़ देते हैं ।'दर्द का अहसास' के प्रकाशन के शुभ अवसर पर उन्हें बहुत-बहुत बधाइयाँ।माँ शारदे से कामना है कि वह इनकी ऊँचाइयों को और निरंतरता प्रदान करे।मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

                            --डॉ0 कृष्णकुमार नाज़       (मुरादाबाद )                                    
विशेष: मैं डॉ0 कृष्णकुमार नाज़ साहब का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने अपना क़ीमती वक़्त देकर पुस्तक की पांडुलिपि को पढ़कर इसका संपादन किया और सुंदर भूमिका लिखी।
    ----ओंकार सिंह विवेक
            रामपुर
डॉ0 कृष्णकुमार नाज़ साहब

ओंकार सिंह विवेक

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ग़ज़ल/कविता/काव्य के बहाने

सभी साहित्य मनीषियों को सादर प्रणाम 🌷🌷🙏🙏******************************************* आज फिर विधा विशेष (ग़ज़ल) के बहाने आपसे से संवाद की ...