December 2, 2023

नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!नई ग़ज़ल!!!

कल कुछ साहित्यिक मित्रों के साथ गपशप हो रही थी। कुछ हास्य-विनोद और मस्ती के बाद चर्चा का रुख़ गंभीर हो गया।किसी महफ़िल में कवि और शायर इकट्ठे हों तो घूम-फिरकर बात कविता पर तो आनी ही होती है।
यही हुआ भी - बात काव्य/शायरी में सपाट बयानी और कलात्मकता को लेकर होने लगी।कविता में प्रतीकों और अलंकारिक भाषा को लेकर भी अच्छी बहस हुई।सभी इस बात पर एक राय थे कि कविता में प्रतीकों और बिंबों के प्रयोग की बात ही कुछ और है। इससे कविता में जो धार पैदा होती है उसका श्रोता भी लोहा मानते हैं और ऐसी कविता को अधिक पसंद करते हैं।फूल,तितली,चमन, मयख़ाना, शैख़,ब्राह्मण, तीरगी,रौशनी आदि इन तमाम प्रतीकों के माध्यम से कवि/शायर ऐसी गहरी बातें कह देते हैं जो पाठक/श्रोता के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ देती हैं।
उस वार्तालाप के बाद ज़ेहन बना और एक मतला' हो गया।मतले के साथ ही आज ग़ज़ल भी मुकम्मल हो गई जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है:

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