चौपाई छंद:वसंत ऋतु
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मुस्काई फूलों की डाली।
झूमी गेहूँ की हर बाली।।
धरती का क्या रूप सँवारा।
हे वसंत ! आभार तुम्हारा।।
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सरसों झूम- झूम कर गाती।
खेतों को नव राग सुनाती।।
भौंरे फूलों पर मँडराते।
उनको मादक गान सुनाते।।
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मधुऋतु हर्षित होकर बोली।
आने वाली है अब होली।।
ढोल , मँजीरे , झांझ बजेंगे।
नाच-गान के सदन सजेंगे।
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चिंतन होता रहे घनेरा।
बढ़ता रहे ज्ञान नित मेरा।।
हंसवाहिनी दया दिखाओ।
आकर जिह्वा पर बस जाओ।।
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--ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार
गीत: अपनी हिंदी
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---- ओंकार सिंह विवेक
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दुनिया में भारत के गौरव,मान और सम्मान की,
आओ बात करें हम अपनी, हिंदी के यशगान की।
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2
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राष्ट्र संघ से बड़े मंच पर,अपना सीना तानकर,
हिंदी में भाषण देना है ,यह ही मन में ठानकर।
रक्षा अटल बिहारी जी ने, की हिंदी के मान की
आओ बात करें---------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2
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परिचित होने को अलबेले, अनुपम हिंदुस्तान से,
आज विदेशी भी हिंदी को,सीख रहे हैं शान से।
सचमुच है यह बात हमारे, लिए बड़े अभिमान की
आओ बात करें-----------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी-----------2
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आज नहीं हिंदी का उनको , मूलभूत भी ज्ञान है,
अँगरेज़ी की शिक्षा पर ही ,बस बच्चों का ध्यान है।
क्या यह बात नहीं है अपनी,भाषा के अपमान की
आओ बात करें-------------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी------------2
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अपने ही घर में हिंदी यों, कभी नहीं लाचार हो,
इसको अँगरेज़ी पर शासन, करने का अधिकार हो।
बच पाएगी तभी विरासत, सूर और रसखान की
आओ बात करें---------------------
जय अपनी हिंदी,जय प्यारी हिंदी---- ------2
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------ओंकार सिंह विवेक
दोनो ही रचनाएँ अद्भुत । बसन्त ऋतु को चौपाई छंद में खूबसूरती से लिखा है । और मातृ भाषा हिंदी के सम्मान में सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबढ़िया गीत, उत्तम चौपाइयाँ।
ReplyDeleteअति सुन्दर सृजन ।
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