March 10, 2021

खटकता है वो कोठी की नज़र में

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक

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 अरे  इंसान ! तू   क्यों  बे - ख़बर  है,
 तेरे  हर  काम  पर  रब  की  नज़र है।
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 जुदा    पत्ते    हुए   जाते    हैं    सारे,
 ये  कैसा  वक़्त आया  शाख़  पर है।
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 खटकता  है  वो  कोठी  की नज़र में,
 बग़ल  में  एक जो  छप्पर का घर है।
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 सरे - बाज़ार    ईमाँ   बिक    रहे   हैं,
 यही  बस  आज  की ताज़ा ख़बर है।
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 यकीं जल्दी  से  कर  लेते हो सब पर,
 कहीं धोखा  न खाओ, इसका डर है।
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  इसे  बिल्कुल  भी  हल्के  में  न लेना,
  मियाँ  ये  ज़िंदगानी   का   सफ़र  है।
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  कहानी  में   है   जिसने  जान  डाली,
  वही   किरदार  बेहद   मुख़्तसर   है।
 🌷
             ---ओंकार सिंह विवेक

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल रचना।
    शिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।

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