ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
🌷
अरे इंसान ! तू क्यों बे - ख़बर है,
तेरे हर काम पर रब की नज़र है।
🌷
जुदा पत्ते हुए जाते हैं सारे,
ये कैसा वक़्त आया शाख़ पर है।
🌷
खटकता है वो कोठी की नज़र में,
बग़ल में एक जो छप्पर का घर है।
🌷
सरे - बाज़ार ईमाँ बिक रहे हैं,
यही बस आज की ताज़ा ख़बर है।
🌷
यकीं जल्दी से कर लेते हो सब पर,
कहीं धोखा न खाओ, इसका डर है।
🌷
इसे बिल्कुल भी हल्के में न लेना,
मियाँ ये ज़िंदगानी का सफ़र है।
🌷
कहानी में है जिसने जान डाली,
वही किरदार बेहद मुख़्तसर है।
🌷
---ओंकार सिंह विवेक
बहुत सुन्दर ग़ज़ल रचना।
ReplyDeleteशिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।