February 28, 2021

गूगल-ज्ञानी

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक

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कब  सुनते    हैं   कोई   कहानी   अपनी   दादी - नानी  से,
अब   तो  बस   चिपके  रहते   हैं  बच्चे   गूगल - ज्ञानी  से।
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आख़िर   कोई   बताए   मीठे  पानी  की   ये   सब   नदियाँ,
क्यों    मिलने   जाती   हैं   इक  सागर  के  खारे   पानी  से?
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उल्टे   और   लुभाता   है    उसको   बच्चों    का   भोलापन,
माँ   नाराज़    नहीं    होती    है   बच्चों   की    नादानी    से।
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ख़ुद ही सोचो कौन भला फिर मुश्किल को मुश्किल कहता,
जो   मुश्किल  हल  हो  जाया  करती   इतनी   आसानी  से।
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जो    ये   रहबर   सोचें    थोड़ा   देश - समाज    के  बारे  में,
 फ़ुर्सत  ही  कब    है  इनको  आपस  की   खींचातानी   से।
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 फिर   तुझको   आबाद   करेंगी   मीठी - मीठी  कुछ  यादें,
 इतना   भी    मायूस   न   हो  दिल  तू  वक़्ती   वीरानी  से।
🌹                                             ----ओंकार सिंह विवेक

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