ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
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कब सुनते हैं कोई कहानी अपनी दादी - नानी से,
अब तो बस चिपके रहते हैं बच्चे गूगल - ज्ञानी से।
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आख़िर कोई बताए मीठे पानी की ये सब नदियाँ,
क्यों मिलने जाती हैं इक सागर के खारे पानी से?
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उल्टे और लुभाता है उसको बच्चों का भोलापन,
माँ नाराज़ नहीं होती है बच्चों की नादानी से।
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ख़ुद ही सोचो कौन भला फिर मुश्किल को मुश्किल कहता,
जो मुश्किल हल हो जाया करती इतनी आसानी से।
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जो ये रहबर सोचें थोड़ा देश - समाज के बारे में,
फ़ुर्सत ही कब है इनको आपस की खींचातानी से।
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फिर तुझको आबाद करेंगी मीठी - मीठी कुछ यादें,
इतना भी मायूस न हो दिल तू वक़्ती वीरानी से।
🌹 ----ओंकार सिंह विवेक
बहुत सुन्दर और सार्थक गीतिक।
ReplyDeleteAabhar aapka
DeleteThanks
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