March 4, 2021

दर्द मज़लूम का

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

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बदला    रातों - रात   उन्होंने  पाला   है ,
शायद  जल्द  इलक्शन  आने  वाला  हैI
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झूठे    मंसब     पाते    हैं    दरबारों    में,
और  सच्चों  को  होता देश-निकाला है।
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भूखे   पेट   जो   सोते  हैं  फुटपाथों  पर,
हमने   उनका  दर्द   ग़ज़ल  में  ढाला  है।
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सोचो   घर   में  बेटी  के  जज़्बात  भला,
माँ  से  बेहतर  कौन  समझने  वाला  है।
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यार   उसूल  परस्ती  और   सियासत  में,
तुमने ख़ुद को किस मुश्किल में डाला है।
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नीचे   तक   पूरी   इमदाद   नहीं   पहुँची,
ऊपर आख़िर  कुछ  तो गड़बड़झाला है।
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           -----ओंकार सिंह विवेक




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