February 23, 2021

मेल-मिलाप कराने का माहौल बनाते हैं


ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक

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 मेल - मिलाप   कराने   का   माहौल   बनाते हैं,
 आओ चलकर  दोनों  पक्षों   को   समझाते  हैं।
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ज़ेहन  में  आने  लगती  हैं  फिर  से  वो  ही बातें,
कोशिश करके  अक्सर  जिनसे  ध्यान हटाते हैं।
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उन लोगों  के  दम  से   ही  जीवित  है  मानवता,
जो औरों  के  ग़म  को  अपना  ग़म  बतलाते हैं।
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मंदिर-सा  पावन   भी  कहते  हैं  वो  संसद  को,
और उसकी गरिमा  को  भी  हर  रोज़  घटाते हैं।
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यह   कैसी   तहज़ीब  हुई   है   दौरे   हाज़िर की,
माता  और  पिता  को   बच्चे   बोझ   बताते  हैं।
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फ़िक्र  नहीं  करते   कोई  जाइज़-नाजाइज़  की,
कुछ  व्यापारी  बस  मनमाना  लाभ  कमाते  हैं।
🌹
                                -----ओंकार सिंह विवेक


      

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को     "नयन बहुत मतवाले हैं"  (चर्चा अंक-3987)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. वास्तविकता का सहज निरूपण!

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  3. सच्चाई से रूबरू कराती बेहतरीन ग़ज़ल

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  4. सच्चाई के करीब सुंदर रचना!

    मंदिर-सा पावन भी कहते हैं वो संसद को,
    और उसकी गरिमा को भी हर रोज़ घटाते हैं। --ब्रजेंद्रनाथ

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