February 21, 2024

अपनी बात

मित्रो सुप्रभात🌹🌹🙏🙏
 
कुछ अपने बारे में
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लिखने का शौक़ मुझे विद्यार्थी जीवन से ही रहा है। हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट में मेरी कई रचनाएँ कॉलेज मैगजीन में प्रकाशित हुईं।प्रारंभ में कुछ कहानियां,लेख तथा क्षणिकाएं और अतुकांत रचनाएँ लिखीं। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरी प्रारंभिक रचनाएँ भी नवभारत टाइम्स और सरिता/मुक्ता जैसे राष्ट्रीय स्तर की पत्र तथा पत्रिकाओं में छपींं। 
स्थानीय अख़बारों में भी दर्जनों रचनाएँ छपती रहीं हैं। धीरे-धीरे वरिष्ठ साहित्यकारों के प्रोत्साहन और मार्गदर्शन के चलते मंचों पर भी काव्य पाठ करने लगा। जैसे-जैसे चिंतन में परिपक्वता आई, मुझे महसूस हुआ कि मैं ग़ज़ल विधा में अन्य विधाओं की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली ढंग से अपने भावों की अभिव्यक्ति कर सकता हूं। तब से इस विधा की ओर गंभीरता से ध्यान देना प्रारंभ किया।ग़ज़ल की बारीकियां समझने और उच्चारण की शुद्धता के लिए उर्दू भाषा का बेसिक ज्ञान भी प्राप्त किया।यह बात ठीक है कि ग़ज़ल विधा अरबी, फ़ारसी तथा उर्दू से होती हुई हिंदी में आई है परंतु आज इसकी लोकप्रियता किसी से छुपी हुई नहीं है। हिन्दी देवनागरी में निरंतर छप रहे ग़ज़ल-संग्रह इस बात का प्रमाण हैं कि ग़ज़ल शिद्दत से पाठकों/श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है।ग़ज़ल का शेर यदि ढंग से समझ में आ जाए तो आदमी चिंतन के समुंदर में उतर जाता है।प्रसंगवश ग़ज़ल की ताक़त को लेकर मुझे यह शेर याद आ गया :
            मैं तो ग़ज़ल सुनाके अकेला खड़ा रहा,
            सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गए।
                   स्वर्गीय कृष्ण बिहारी नूर
अपनी ग़ज़ल यात्रा के क्रम में कई खट्टे-मीठे अनुभव हुए।कई साहित्यिक मित्रों ने कहा कि तुम ग़ज़ल पर इतना ज़ोर क्यों दे रहे हो हिंदी काव्य की विधाओं में सृजन करो। मुझे साथियों की यह दलील कुछ ख़ास जमी नहीं।जिस विधा में व्यक्ति सहज महसूस करता हो उसमें ही श्रेष्ठ सृजन कर सकता है, ऐसा मेरा मानना है।
हिन्दी मेरी मातृ भाषा है और हिन्दी काव्य की अधिकांश विधाओं यथा गीत,नवगीत,मुक्तक, दोहा और कुंडलिया आदि में भी मैं अक्सर सृजन करता हूं परंतु मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि मेरी प्रिय विधा ग़ज़ल ही है। आपके आशीर्वाद से वर्ष 2021में "दर्द का अहसास" के नाम से मेरा पहला ग़ज़ल-संग्रह आ चुका है।उसके बारे में काफ़ी विस्तार से मैं अपनी पिछली कई ब्लॉग पोस्ट्स में लिख चुका हूं।
अपनी साहित्यिक अभिरुचि के चलते मुझे सेवाकाल में अपने बैंक की गृह पत्रिका बुलंदियों का संपादन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।
आप जैसे शुभचिंतकों के प्रोत्साहन और आशीर्वाद से पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के निर्वहन के साथ-साथ साहित्यिक/ग़ज़ल यात्रा बदस्तूर जारी है।यदि कोई विशेष अड़चन नहीं आई तो इस वर्ष के अंत तक मेरा दूसरा ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" आपके मुबारक हाथों में होगा।इस पर निरंतर काम चल रहा है।
अपनी साहित्यिक गतिविधियों /पुस्तक समीक्षाओं और यात्रा/भ्रमण आदि से संबंधित सामग्री मैं अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता रहता हूं जिसे आपका भरपूर स्नेह प्राप्त हो रहा है। इसके लिए ह्रदय की गहराई से आभार व्यक्त करता हूं।अब तक पांच सौ से अधिक पोस्ट्स ब्लॉग पर लिख चुका हूं।अपने बेटे के आग्रह साहित्यिक तथा अन्य गतिविधियों को लेकर Onkar Singh Vivek के नाम से एक यूट्यूब चैनल भी बना लिया है। जिस पर जाकर आप मेरी ग़ज़लों/कवि सम्मेलनों तथा अन्य रोचक सामग्री का आनंद ले सकते हैं।यदि यूट्यूब चैनल को subscribe बटन दबाकर नि:शुल्क सब्सक्राइब करके मेरा उत्साहवर्धन करेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी 
🌹🌹🙏🙏
चलते-चलते अपनी एक ग़ज़ल का मतला हाज़िर करता हूं :
      मसर्रत  के गुलों  से घर मेरा  गुलज़ार  होता है,
      इकट्ठा जब किसी त्योहार पर परिवार होता है।
                 @ओंकार सिंह विवेक 
विनीत
ओंकार सिंह विवेक


विशेष
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1.मेरी ग़ज़लें आप ओंकार सिंह विवेक नाम सर्च करके rekhta.org पर भी पढ़ सकते हैं।
2.इसी प्रकार kavitakosh.org पर भी मेरा नाम सर्च करके ग़ज़लों का आनंद ले सकते हैं।

February 19, 2024

कविता के दो रंग


दोस्तो नमस्कार 🙏🙏
आज समय की मांग के अनुरूप ग़ज़ल का फ़लक भी विराट हो चुका है। ग़ज़लकार अब परंपरागत कथ्यों से हटकर अपने समय, समाज और संस्कृति को पूरी संवेदना के साथ ग़ज़लों के कथ्य में पिरो रहे हैं।आज हिंदी में भी ग़ज़लकारों की एक पूरी श्रृंखला है जो अपनी ग़ज़लों के जदीद कथ्यों से ग़ज़ल विधा को नई ऊंचाईयां दे रही है। हरेराम समीप, द्विजेंद्र द्विज, राजमूर्ति सौरभ, अशोक रावत और के पी अनमोल जैसे तमाम नाम आज हिन्दी देवनागरी में ग़ज़ल विधा को नए आयाम दे रहे हैं। हां,यह बात ठीक है कि अभी भाषाई स्तर पर कुछ शब्दों के उच्चारण और भार तथा प्रयोग आदि को लेकर हिन्दी तथा उर्दू दोनों ही भाषाओं के विद्वानों के अपने-अपने आग्रह हैं।परंतु इन पर सामंजस्य हेतु निरंतर सार्थक चर्चाओं का दौर जारी है जो अच्छी बात है। आखि़र किसी भी लोकप्रिय काव्य विधा की राह के अवरोध दूर होने ही चाहिए।
आज मेरे ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" से दो ग़ज़लें आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत हैं :
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       (१)
सच को मन  में बसा  लिया हमने,
अपना जीवन सजा लिया  हमने।

साफ़गोई   से   ये   हुआ  हासिल,
सबको दुश्मन बना  लिया  हमने।

दी  नहीं उनको कोई  भी ज़हमत,
ख़ुद ही ख़ुद को मना लिया हमने।

मुश्किलें   क्या    बिगाड़   पाएंगी,
हौसला  जब  जगा  लिया  हमने।

झूठ और छल-कपट की दुनिया में,
अपना   ईमां   बचा   लिया  हमने।

             (२)
हाथों   में   चाक़ू-ओ-पत्थर  अच्छे  लगते   हैं,
कुछ  लोगों   को  ऐसे  मंज़र  अच्छे  लगते हैं।

झूठ यहां  जब लोगों  के  सिर  चढ़कर  बोले है,
हमको  सच्चे  बोल  लबों  पर  अच्छे  लगते हैं।

यूं  तो  हर  मीठे  का  है  मख्सूस  मज़ा लेकिन,
सावन   में    फैनी-ओ-घेवर  अच्छे   लगते  हैं।

चांद-सितारे  कौन  कभी  ला  पाया  है  नभ से,
फिर  भी  उनके  वादे अक्सर  अच्छे  लगते  हैं।

हर मुश्किल से आंख मिलाना,ग़म से लड़ जाना,
जिसमें   भी   हों  ऐसे   तेवर  अच्छे   लगते  हैं।
           @ओंकार सिंह विवेक








        (२ )

February 14, 2024

वसंत पंचमी/शारदे प्रादुर्भाव दिवस

मित्रो प्रणाम 🌷🌷🙏🙏
कुहरेे से लड़ने के बाद सूरज फिर से अपनी वही चमक पाने लगा है।अब तापमान भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है।खेतों में सरसों और उद्यानों में खिलते फूल मस्ती में आकर झूम रहे हैं यानी वसंत का आगमन हो चुका है।
आज वसंत पंचमी है और विद्या की देवी सरस्वती का प्रादुर्भाव दिवस भी।इसके साथ ही छायावाद के चार स्तंभों (महादेवी वर्मा , सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद तथा पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला) में से एक निराला जी का जन्म दिवस भी है। कुल मिलाकर बहुत ही शुभ है आज का दिन।
 वसंत पंचमी तथा सरस्वती जी के प्रादुर्भाव दिवस के पावन अवसर पर एक मुक्तक आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है :
     @
     सप्त सुर लय ताल का  उपहार दो,
     ज्ञान का अनुपम अतुल भंडार दो।
     अनवरत  नूतन  सृजन  करती रहे,
     लेखनी  को  शारदे  वह  धार  दो।
             @ओंकार सिंह विवेक

February 12, 2024

पुस्तक परिचय : "तू ही प्राणाधार" (कुंडलिया-संग्रह)




         पुस्तक परिचय

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       कृति : तू ही प्राणाधार

  कृतिकार : शिव कुमार 'चंदन' 

  संस्करण :   2024 (प्रथम)

 प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह (जालंधर,पंजाब)

        पृष्ठ : 111  मूल्य : रुo295.00

समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 

'तू ही प्राणाधार' रामपुर (उत्तर प्रदेश) के वरिष्ठ रचनाकार शिव कुमार 'चंदन' का प्रथम कुंडलिया-संग्रह है।धर्म,भक्ति और अध्यात्म के साथ-साथ हमारे आसपास के लगभग सभी विषयों को कवि ने अपने अनुभव और सामर्थ्य के आधार पर इसमें काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है।सभी रचनाओं को अलग-अलग खंडों (चरण-वंदना,भक्ति-खंड, प्रकृति-खंड तथा विविध-खंड)में बांटकर पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।

कुंडलिया हिंदी काव्य का एक अत्यंत लोकप्रिय मात्रिक छंद है। छः चरणों के इस विषम मात्रिक छंद का प्रारंभ जिस शब्द/शब्द समूह से होता है अंत भी उसी पर होता है अर्थात इसकी संरचना कुंडली के समान होती है इसलिए इसे कुंडलिया छंद का नाम दिया गया है।

चंदन जी लंबे समय से काव्य साधना में रत हैं।अब तक आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप बहुत सरल भाषा में अपनी भावना प्रधान काव्यात्मक अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। चंदन जी का अधिकांश सृजन भक्ति प्रधान है जिसमें जगह-जगह ब्रज भाषा का पुट भी दिखाई पड़ जाता है।कविता ह्रदय में विद्यमान कोमल भावनाओं से उपजती है।इस पुस्तक में कवि ने अपनी भावनाओं के ज्वार को बड़ी सहजता से काव्यरूप में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास किया है। भावनाओं के अतिरेक में कहीं-कहीं शिल्पगत सौंदर्य की अनदेखी भी हो गई है परंतु फिर भी कोमल भावों की दृष्टि से यह कुंडलिया-संग्रह ध्यान आकृष्ट करता है।

प्रस्तुत संग्रह के चरण-वंदना खंड में मां शारदे की स्तुति करते हुए कवि ने कई भावपूर्ण छंद रचे हैं।ये काव्यात्मक भाव मां शारदे और अपने इष्टदेव के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा और भक्ति को दर्शाते हैं।

पुस्तक के भक्ति खंड में एक ओर भगवान राम की मर्यादा का गान है और श्री कृष्ण की लीलाओं का भावपूर्ण चित्रण है तो दूसरी ओर सनातन संस्कृति तथा धर्म-अध्यात्म के सुंदर चित्र उकेरने का सफल प्रयास है। भारत देश की ऋषि परंपरा,भक्ति-धर्म तथा अध्यात्म पर यह भावपूर्ण कुंडलिया छंद देखें :

      भारत के शुभ कर्म का, प्रकृति करे गुणगान।

      ऋषि - संतों के देश की, अद्भुत है पहचान।।

      अद्भुत है पहचान, देवता भी हर्षाते।

      अवधपुरी के राम, सभी के मन को भाते।

      भक्ति-शक्ति सब ताप, सदा ही रही निवारत।

      कण-कण पावन धाम,सतत मन मोहे भारत।।

प्रकृति ने मानव को क्या-क्या नहीं दिया।सुंदर मौसम, पेड़- पौधे,जंगल, नदी, पहाड़ और मनमोहक झरने। मानव मन प्रकृति प्रदत्त यह संपदा देखकर कृतज्ञता से भर उठता है।मौसमों की बहार देखकर कवि चंदन का मन कह उठता है :

      डाली- डाली से झरे,मनभावन मधु गंध।

       रजनीगंधा की कली, तोड़ रही प्रतिबंध।।

       तोड़ रही प्रतिबंध,तभी झींगुर गुंजारे।

      दादुर और मयूर, झूमकर नाचे सारे।

      बहती मदिर बयार, बदरिया काली- काली।

      रिमझिम बरसे नीर, भीगती डाली- डाली।।

कवि के आसपास समाज में जो घटित होता है उस पर उसकी विशेष दृष्टि पड़ती है तो कविता का प्रस्फुटन होता है।सामाजिक विसंगतियाँ, क्षरित होते नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक पतन देखकर जब कवि हृदय उद्वेलित होता है तो उसके मन से उपजी हुई कविता संवेदनाओं को झकझोर कर रख देती है।बदले हुए परिवेश और आधुनिक जीवन शैली की विसंगतियों पर कवि चंदन की अभिव्यक्ति देखिए :

        कुत्ते पलते हर कहीं, कचरा खाती गाय।

        दधि-माखन दुर्लभ हुए, मिले हर जगह चाय।।

        मिले हर जगह चाय,आज बदला युग सारा।

        हुए आधुनिक लोग, ग़ज़ब का दिखा नज़ारा।

        दिखें राजसी ठाठ, कार में अफसर चलते।

        यश-वैभव भरपूर,घरों में कुत्ते पलते।।

चंदन जी ने जीवन,प्रकृति,भक्ति,धर्म तथा अध्यात्म के लगभग सभी पहलुओं को अपनी काव्य अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है।कवि बहुत सरल और सहज भाषा में अपने भावों को संप्रेषित करने में काफ़ी हद तक सफल भी हुआ है।

काव्य सृजन नि:संदेह एक कठिन कर्म है जो निरंतर अभ्यास और अध्ययन से परिपक्वता पाता है। किसी भी विधा में काव्य-सृजन का भावों से ओतप्रोत होना तो पहली शर्त है ही परंतु उसमें कथ्य की बुनावट, कसावट, वाक्य विन्यास और वाक्यों में पारस्परिक तालमेल के साथ शिल्प का उचित निर्वहन उसे और भी   हृदयग्राही बनाता है।

इस काव्य-संकलन में मुझे कहीं-कहीं भावनाओं की अतिप्रबलता शिल्प पर भारी पड़ती हुई प्रतीत हुई। शब्द चयन, वाक्य विन्यास और कथ्य की कसावट के साथ शिल्पगत सौंदर्य पर थोड़ा और ध्यान दिया जा सकता था। प्रूफ रीडिंग की त्रुटियों को भी न्यून किया जा सकता था।इन त्रुटियों के बावजूद यह पुस्तक पठनीय एवम संग्रहणीय है।

मैं चंदन जी की इस प्रकाशित कृति के लिए उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूं और आशा करता हूं कि उनकी लेखनी अनवरत साधनारत रहते हुए भविष्य में और भी स्तरीय सृजन करती रहेगी।

ओंकार सिंह 'विवेक'

साहित्यकार/समीक्षक

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल : 9897214710

दिनांक : 02.02.2024

जीवन के रंग 🌹🌹👈👈





         







February 5, 2024

पुस्तक परिचय : "सलाम-ए -इश्क़"(ग़ज़ल-संकलन)





                  पुस्तक-परिचय
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कृति      : सलाम-ए-इश्क़
कृतिकार:रणधीर प्रसाद गौड़ धीर
संस्करण : 2023(प्रथम)
प्रकाशक : ओम प्रकाशन,साहूकारा बरेली (उत्तर प्रदेश)
       पृष्ठ  :   90  मूल्य : रुo250.00 
 समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 

"सलाम-ए-इश्क़" बरेली (उत्तर प्रदेश) के वरिष्ठ कवि/शायर रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब का 83 ख़ूबसूरत ग़ज़लों से सजा हुआ गुलदस्ता है।संग्रह की अधिकांश ग़ज़लें रिवायती हैं परंतु इसमें हमें जगह-जगह जदीदियत और अध्यात्म के रंग भी दिखाई पड़ जाते हैं।धीर साहब की अब तक कई किताबें मंज़र-ए-आम पर आ चुकी हैं।आपको शायरी का शौक़ अपने पिता मुहतरम पंडित देवी प्रसाद 'मस्त' से विरासत में मिला जो अपने ज़माने के नामचीन शायरों में शुमार किए जाते थे।धीर साहब हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं पर समान अधिकार रखते हैं ।यही कारण है कि आपने दोनों ही भाषाओं में स्तरीय साहित्य सृजन किया है।आपकी रिवायती शायरी के दिलकश रंग पाठकों के दिल पर गहरी छाप छोड़ते हैं। इश्क़,वफ़ा,हिज्र-विसाल,बेवफ़ाई उदासी और तन्हाई जैसी तमाम भावनाओं को धीर साहब ने बड़ी ही नफ़ासत के साथ अपने अशआर में ढाला है।इसी तसलसुल में उनके कुछ अशआर मुलाहिज़ा हों :
          मरीज़-ए-इश्क़ कब अच्छा हुआ है,
          ये  बीमारी  जहाँ  में  ला- दवा  है।
हसीनों से वफ़ा की आरज़ू, ऐ धीर तौबा कर,
सितमगर हैं वही जो देखने में भोले- भाले हैं।
          कटेगी किस तरह ये हिज्र की शब,
          इज़ाफ़ा  दर्द  में  है  शाम  ही  से।
चमन को दिल के अभी तक है इंतज़ारे-बहार,
 ख़ुशी के फूल खिला दो बहुत उदास हूं मैं।
शायर रणधीर प्रसाद गौड़ धीर को अपने एहसासात को बहुत ही शाइस्तगी के साथ अशआर में ढालने का हुनर आता है।उन्होंने मुख्तलिफ बहरों में बड़ी ख़ूबसूरती के साथ अपनी फ़िक्र को परवाज़ दी है। धीर साहब की शायरी का एक रंग यह भी देखें(इन अशआर को मैंने मंचों पर धीर साहब को पूरी मस्ती में तरन्नुम के साथ पेश करते हुए देखा है) : 
            थक गए हैं क़दम दूर मंज़िल,
            दिल पे क़ाबू हमारा नहीं है।
           कैसे देखेंगे बज़्म-ए-नज़ारा,
           नातबां हैं सहारा नहीं है।
जैसा कि मैंने पहले अर्ज़ किया कि शायर के इस ग़ज़ल- संग्रह में अधिकतर अशआर रिवायती हैं परंतु कहीं- कहीं जदीदियत का पुख़्ता रंग भी उभर कर आता है।शायर शिन्फ़-ए-ग़ज़ल के मिज़ाज को बख़ूबी समझता है सो लफ़्ज़ों को पूरी एहतियात के साथ बरता गया है जो एक पुख़्ता शायर की पहचान होती है। धीर साहब की जदीद गजलों के रंग से भी आप हजरात का रूबरू होना ज़रूरी है
     क्या करें हम ज़ुबान खुल ही गई,
      काश  अहले ज़ुबां नहीं होते।
                तड़प जाएं जो दर्द में दूसरों के,
                मिलेंगे बशर ऐसे कम ज़िंदगी में।
ग़लत रास्ते पर कभी धीर हमने,
उठाए न अपने क़दम ज़िंदगी में।
इंसान जिस मुल्क में रहता है उससे वफ़ादारी और प्यार न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं।अपने वतन से प्यार की इंतेहा धीर साहब के इस शेर में देखी जा सकती है 
                   जन्नत ख़ुदा की देन है इसकी ख़बर नहीं,
                   जन्नत है जिसका नाम वो मेरे वतन में है।
पूरे ग़ज़ल- संग्रह को पढ़ने के बाद मैं यह बात दावे के साथ कह सकता हूं कि शायर की अधिकांश ग़ज़लें फ फ़साहत, बलाग़त और सलासत जैसी  ख़ूबियों को अपने अंदर समेटे हुए हैं।धीर साहब की ग़ज़लों को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हम खुली हवा में सांस ले रहे हों। दीवान की तमाम ग़ज़लों के कथ्य ग़ज़ल की सीमाओं को विस्तार देते हुए प्रतीत होते हैं। निश्चित तौर पर यह ग़ज़ल-संग्रह ग़ज़ल प्रेमियों को आकर्षित करेगा।
जैसा कि अक्सर होता है,इस ग़ज़ल-संग्रह में भी प्रूफ रीडिंग आदि  की थोड़ी बहुत कमियां हैं। ग़ज़ल विधा के माहिरीन कहीं-कहीं ऐब-ए-तनाफुर या कुछ और पहलुओं को लेकर मुख्तलिफ़ राय रख सकते हैं।परंतु कुल मिलाकर वरिष्ठ कवि/शायर रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब का यह ग़ज़ल-संग्रह पठनीय एवम संग्रहणीय है।
मैं धीर साहब के दीर्घायु होने की कामना करता हूं ताकि भविष्य में भी वह यूं ही अपने श्रेष्ठ सृजन से समाज को दिशा देने का काम करते रहें।

ओंकार सिंह विवेक
साहित्यकार/समीक्षक/ब्लॉगर
रामपुर (उत्तर प्रदेश) 

February 4, 2024

पुस्तक परिचय : "मुरारी की चौपाल" (छंदमुक्त कविता-संग्रह)

                   पुस्तक परिचय

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               कृति : मुरारी की चौपाल

          कृतिकार : अतुल कुमार शर्मा

          संस्करण :   2023 (प्रथम)

          प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह (जालंधर,पंजाब)

                  पृष्ठ : 111  मूल्य : रुo295.00

           समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 

'मुरारी की चौपाल' संभल (उत्तर प्रदेश) के रचनाकार अतुल कुमार शर्मा का संभावनाएँ जगाता हुआ छंद मुक्त रचनाओं का एक सुंदर काव्य-संग्रह है। छंद मुक्त रचनाएँ कहना इतना आसान भी नहीं होता जितना समझा जाता है। छंद मुक्त लिखने के लिए छंद को जानना ज़रूरी है क्योंकि जो छंद को जानता है वही छंद मुक्त रचनाएँ लय में लिख सकता है।अतुल जी की ये रचनाएँ उनकी रचनात्मक क्षमता को दर्शाती हैं।

कवि जो कुछ समाज में देखता और भोगता-परखता है वे विषय ही उसकी सशक्त अभिव्यक्ति के माध्यम बनते हैं।रचनाकार की दृष्टि परिवार,समाज और क्षरित होते नैतिक मूल्य आदि सभी पर पड़ी है,जिन पर उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार धारदार अभिव्यक्ति की है। कविताओं के शीर्षक यथा - मुरारी की चौपाल, चोंच भर पानी, मर रहे हैं मंद-मंद,भूखे कबूतर, सिसकते दीप,अघोषित क़ैदी, प्रश्नों के पहाड़ और ज़िंदगी का ज़हर आदि पाठक के मन में इन रचनाओं को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं।संग्रह की शीर्षक कविता 'मुरारी की चौपाल' की कुछ पंक्तियाँ देखें :

     अक्सर ऐसी हुआ करती थीं चौपालें/जहाँ बैठते थे लोग हर उम्र के/ फ़ासले मिटाकर/रात्रि के प्रथम पहर में/बनाए जाते थे सामाजिक क़ाइदे-क़ानून/साझा होते थे सुख-दुख/ ढूँढा जाता था समाधान/हर मुश्किल का/मैंने भी देखी थी एक ऐसी ही चौपाल बचपन में।

इन पंक्तियों में हमारी संस्कृति और ग्रामीण परंपरा की वाहक चौपालों के लुप्त होने का दर्द देखा जा सकता है।मुरारी की चौपाल कविता बताती है कि आधुनिक विकास और प्रगति की अंधी दौड़ में हम क्या-क्या खो चुके हैं।

'सिसकते दीप' कविता में कवि समाज की निराशाजनक परिस्थिति का बड़ा मार्मिक चित्रण करता है परंतु अंत में आशा की ज्योति के साथ कविता का समापन करता है।इसे ही सच्ची और अच्छी कविता कहा जाता है :

         मंदिर के घंटे बंधे  पड़े हैं/और चर्च में थमा हुआ है/चर्चाओं का दौर/प्रार्थनाएँ गुमसुम पड़ी हैं/चौपालें चुप हैं/और चौपाए भी/करवटें बदलने को तैयार नहीं/आलस्य छाया पड़ा है - 

यत्र-तत्र-सर्वत्र/स्थायी होकर/लेकिन आशाओं के दीप/ दूर कहीं/आंसुओं की तरह/अभी भी झिलमिला रहे हैं/प्रतीक्षा में हैं/ कि कोई तेल लाएगा/प्रेम का -- आस्था का -- विश्वास का ।

कवि ने अपनी इन रचनाओं के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर कटाक्ष किए हैं, ज्वलंत समस्याओं को उठाया है।कुछेक स्थानों पर समस्या को उठाकर उसका समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है। वास्तव में सच्ची रचना वही होती है जो समस्या से साक्षात्कार कराकर उसका समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास भी करे।सामाजिक तानेबाने से किस प्रकार कविता निकालकर पाठक से संवाद किया जा सकता है कवि अतुल कुमार शर्मा इसमें दक्ष प्रतीत होते हैं। उनकी रचनाओं की भाषा बहुत ही सरल और सहज है जो आम जन से सीधे जुड़ जाती है। जैसा कि अक्सर होता है कहीं-कहीं प्रूफ रीडिंग आदि की त्रुटियां पुस्तक में छूट गई हैं।कवि ने आम बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले अन्य भाषा के शब्दों को भी स्वाभाविक रूप से अपनी कविताओं में प्रयुक्त किया है जो उनके कौशल को दर्शाता है।कवि की भाषा में कोई बनावट दिखाई नहीं देती।कविताओं के शीर्षकों तथा कथानकों के अनुसार ही सहज शब्दों का प्रयोग किया गया है।कवि अतुल कुमार शर्मा की ये सजीव अतुकांत कविताएँ उनके साहित्यिक भविष्य को लेकर असीम संभावनाएं जगाती हैं। निश्चित तौर पर पुस्तक को पाठकों का स्नेह प्राप्त होगा। आशा है भविष्य में उनकी भाव और शिल्प की दृष्टि से और अधिक धारदार रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।

मैं कृतिकार के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।

ओंकार सिंह विवेक

साहित्यकार/समीक्षक/ब्लॉगर 

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

दिनांक : 02.02.2024


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January 31, 2024

वाह रे!अवसरवाद

कोई ज़माना था जब लोग अपने घर के किसी सदस्य को जनसेवा करने के उद्देश्य से राजनीति में भेजा करते थे। राजनीति में सत्ता और शासन के नज़दीक रहकर राजनेता जन कल्याण के कामों को नि:स्वार्थ भाव से अंजाम देकर गर्व का अनुभव करते थे।
आज हालात बिल्कुल उल्टे हैं।आज राजनीति एक व्यापार हो गई है।लोग आज माल- ओ- ज़र कमाने के उद्देश्य से सियासत में क़दम रखते हैं।अब लोगों का राजनीति में उसूलों और नीतियों से कोई मतलब नहीं होता।धर्म,ईमान और ज़मीर बेचकर धन अर्जन करना और सिर्फ़ अपने घर-परिवार के लोगों को राजनीति में स्थापित करना ही अब लोगों का जैसे लक्ष्य हो गया है। भ्रष्ट,चापलूस और अवसरवादी लोग जिस तेज़ी से राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं यह गंभीर चिंता की बात है।राजनीति में नैतिक मूल्यों और शुचिता के संवर्धन हेतु अच्छे लोगों का इस क्षेत्र में आना बहुत ज़रूरी है तभी राजनीति का क्षेत्र नए आदर्श स्थापित कर सकता है।
आज के राजनैतिक परिदृश्य पर मेरे एक कुंडलिया छंद का आनंद लीजिए :

कुंडलिया छंद

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जिसकी  बनती  हो  बने, सूबे  में  सरकार,

हर  दल   में  हैं  एक-दो, उनके  रिश्तेदार।

उनके   रिश्तेदार, रोब   है   सचमुच  भारी,

सब   साधन  हैं  पास,नहीं  कोई  लाचारी।

अब उनकी  दिन-रात,सभी से गाढ़ी छनती,

बन जाए सरकार,यहाँ  हो  जिसकी बनती।

       @ ओंकार सिंह विवेक 



सूर्यास्त का रोमांचक दृश्य ☀️☀️👈👈

January 28, 2024

ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई की सुनहरी यादें

नमस्कार दोस्तो🙏🌷
        (ग़ज़ल कुंभ मुंबई,2024की सुनहरी यादें)
इस वर्ष का ग़ज़ल कुंभ हमेशा की तरह पूरी आन-बान और शान के साथ विले पार्ले मुंबई में 13 और 14 जनवरी,2024 को प्रख्यात ग़ज़लकार श्री दीक्षित दनकौरी जी के कुशल संयोजन में सम्पन्न हुआ।
यों तो इससे पहले भी दो बार मैं प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले इस साहित्यिक अनुष्ठान का हिस्सा बन चुका हूं परंतु इस बार की हिस्सेदारी कई कारणों से  अविस्मरणीय हो गई सो इस यात्रा के रोचक संस्मरण आपके साथ साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं।
      (कार्यक्रम में ग़ज़ल पाठ करते हुए ख़ाकसार)

श्री दीक्षित दनकौरी और उनकी टीम का प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला यह कार्यक्रम चार सत्रों में दो दिन चलता है।समर्पित टीम की प्रबंधन कुशलता के कारण सब कुछ बहुत ही अनुशासित ढंग से सम्पन्न होता है। दनकौरी जी सारी व्यवस्था पर इस प्रकार पैनी नज़र रखते हैं जैसे यह उनके घर में बेटी की शादी का कार्यक्रम हो।उनका ग़ज़ल के प्रति अनुराग ही है जो उनसे यह सब कुछ करवा लेता है।
इस बार रामपुर से हम चार साथियों का ग़ज़ल कुंभ मुंबई में जाना तय हुआ था। सुरेंद्र अश्क रामपुरी,प्रदीप राजपूत माहिर,राजवीर सिंह राज़ और मैं।अश्क रामपुरी जी अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के चलते साथ नहीं जा पाए उनकी कमी हमें लगातार महसूस होती रही। दनकौरी जी के प्रतिवर्ष के इस शानदार आयोजन की तर्जुमानी उनका यह शानदार शेर करता है :
 ख़ुलूस-ओ-मुहब्बत की ख़ुश्बू से तर है,
 चले  आईए  ये  अदीबों  का   घर   है।
          ---  दीक्षित दनकौरी 
(कार्यक्रम संयोजक दीक्षित दनकौरी जी का संबोधन)
 

उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है फिर भी एक मेहमान नवाज़ अदीब के बुलावे पर बड़ी तादाद में उत्तर भारत से ग़ज़लकार मुंबई पहुंचे जो इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का प्रमाण है।
      (साथी ग़ज़लकारों प्रदीप राजपूत माहिर तथा राजवीर सिंह राज़ के साथ हवाई सफ़र के दौरान)

कार्यक्रम के दूसरे दिन के पहले सत्र में रामपुर (उत्तर प्रदेश)से हम तीनों लोगों ने भी अपना कलाम पेश किया।काफ़ी दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ा गया हम लोगों को।
हम लोगों ने उस महफ़िल में अपनी-अपनी जो ग़ज़लें पेश कीं उनका एक-एक शेर भी सुनते/पढ़ते चलें :

चिंता ऐसे है मन के तहख़ाने में,
जैसे कोई घुन गेहूं के दाने में।
        ओंकार सिंह विवेक
नफ़रतो झूठ का बाज़ार बदलकर देखें,
आओ इस दुनिया की रफ़्तार बदलकर देखें।
              प्रदीप माहिर
क्यों सुकूं की वो आरज़ू करते,
जिनके ख़ंजर लहू-लहू करते।
         राजवीर सिंह राज़ 
ऐसे आयोजनों में सिर्फ़ अपना ही कलाम सुनाना मक़सद नहीं होता है बल्कि तमाम पुराने और नए लोगों को सुनकर उनकी फ़िक्र और मे'यार का भी पता चलता है।इससे अपना आकलन और रचनाधर्मिता में गुणात्मक सुधार करने का अवसर प्राप्त होता है। सो इस अवसर का हम सबने भरपूर लाभ उठाया। कविता/शायरी इतनी भी आसान चीज़ नहीं है। इसके लिए जिगर का ख़ून जलाना पड़ता है।
प्रसंगवश मुझे यह शेर याद आ गया :
     सोच की भट्टी  में  सौ- सौ बार दहता है,
     तब कहीं जाकर कोई इक शेर कहता है।
                                 -- सत्य प्रकाश शर्मा
        (कार्यक्रम में आमंत्रित ग़ज़लकार एवम श्रोतागण)

ग़ज़ल कुंभ में ग़ज़ल पाठ के बाद हम लोगों का मुंबई और गोवा का एक छोटा सा भ्रमण कार्यक्रम भी रहा। आईए अब आपको उससे रूबरू करवाते हैं।
मुंबई मैं हम लोग अपने साथी राजवीर सिंह राज़ के आत्मीय संबंधी प्रिय अंकित कुमार जी के मेहमान रहे। अगर मैं अंकित जी की मेहमान नवाज़ी और आत्मीयता का ज़िक्र न करूं तो यह ब्लॉग पोस्ट अधूरी रहेगी।
        ( प्रिय अंकित कुमार को मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह दर्द का एहसास की प्रति भी भेंट की)

अंकित जी को हमने एक बहुत ही हंसमुख और मस्तमौला इंसान पाया।जिस ज़िंदादिली और मुहब्बत से दो दिन उन्होंने हमारी मेज़बानी की उससे लगा ही नहीं कि हम उनसे पहली बार मिल रहे हैं।अंकित जी मुंबई में शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में मैकेनिकल इंजीनियर हैं।अपने व्यस्ततम समय में से समय निकालकर अंकित जी ने हमें मुंबई के महत्वपूर्ण स्थलों का भ्रमण कराया।उनकी आवभगत और आत्मीयता के लिए आभार जैसा शब्द बहुत छोटा पड़ेगा अत: मैं उसे प्रयोग नहीं करना चाहता। हां,किसी मशहूर शायर द्वारा कहा गया यह शेर मैं ज़रूर प्रिय अंकित जी की शान में पढ़ना चाहूंगा:
       कितने हसीन लोग थे जो मिल के एक बार,
       आंखों में  जज़्ब हो गए दिल में समा गए।
               --- अज्ञात
अंकित जी के यहां रहने के दौरान एक दिलचस्प अनुभव उनकी किचिन में मिलकर खाना बनाने का भी रहा उसका ज़िक्र भी यहां ज़रूरी  लगता है।
स्थानीय भ्रमण के दौरान जब थकान हो गई तो एक दिन हमने आराम करने का निश्चय किया क्योंकि उसी दिन शाम को हमारी गोवा के लिए फ्लाइट थी।अंकित भाई के ऑफिस चले जाने के बाद हम तीनों साथियों ने निश्चय किया कि आज खाना घर पर ही बनाया जाए क्योंकि बाहर का खाते-खाते उकता भी चुके थे सो किसी बड़े शैफ़ की तरह तीनों जुट गए अपने-अपने जौहर दिखाने बावर्चीख़ाने में। किसी ने सब्ज़ी काटी,किसी ने आटा गूंथा और किसी ने बर्तन साफ़ किए। सहकारिता का अद्भुत दृश्य उत्पन्न हुआ किचिन में।एक घंटे में आलू टमाटर, मिक्स वेज,रायता ,सलाद और रोटी आदि सब तैयार थीं।
 

सबने भरपेट भोजन किया और अंकित जी के लिए शाम का खाना उनके फ्रिज में रख दिया।अपने द्वारा बनाया गया छप्पन भोग (भले ही सब्ज़ी में नमक अधिक हो, रोटियां कुछ जली हुई हों पर आदमी को अपने द्धारा तैयार किया हुआ खाना छापन भोग से कम नहीं लगता 😀😀) सबने व्हाट्सएप पर अपने -अपने घर साझा किया तो फटाफट रिप्लाई भी आने लगे -- "हमने तो कभी किचिन में आते देखा नहीं, तुम तो छुपे रुस्तम निकले।घर आकर कम से कम एक दिन अपने हाथ का बना खाना तो खिलाकर दिखाओ। हम भी तो देखें कि कौन शैफ संजीव कपूर है और कौन विकास खन्ना, वगैरहा वगैरहा ---"
हम सब बड़े पछताए व्हाट्सएप पर तस्वीर साझा करके।पर क्या कर सकते थे। भरोसा दिलाया कि  कि चलो भाई कोशिश करेंगे घर आकर । आख़िर मरता क्या न करता।
खाना ख़ज़ाना 👇


इस अद्भुत साहित्यिक यात्रा के अंतिम चरण में एक दिन साउथ गोवा भ्रमण का भी रहा। गोवा ट्रिप भी प्रिय भाई अंकित जी के सौजन्य से ही प्रायोजित रही।गोवा यात्रा में हमारे टूरिस्ट गाइड रहे भाई दामोदर मणि उर्फ़ दीपक जी(उन्होंने हमें अपना नाम दीपक ही बताया था)। दामोदर जी ने हमारी इस शॉर्ट विजिट को अपनी गाइडिंग से यादगार बना दिया। दीपक भाई के बारे में कहूं तो बहुत विनम्र व्यक्ति,हिंदी और अंग्रेज़ी पर अच्छी पकड़,बीच- बीच में उर्दू मिश्रित हिंदी ज़ुबान में बात करना। उनकी इन सब बातों ने बहुत प्रभावित किया।उन्होंने बताया कि वह कई साल दुबई में काम कर चुके हैं और अब गोवा में फुल टाइम टुअर ऑपरेटिंग का काम देखते हैं।बहुत दिलचस्प इंसान लगे हमें दीपक जी उर्फ़ दामोदर जी।देश और गोवा के हालात की बहुत अच्छी जानकारी रखते हैं।उनकी पर्सनालिटी और पहनावे में हमें फिल्म स्टार कमल हासन की झलक दिखाई पड़ी।इसके लिए उन्हें कॉम्प्लीमेंट दिया तो उनकी मुस्कुराहट देखने लायक़ थी। टूरिस्ट गाइड/ऑपरेटर में जो ख़ूबियां होनी चाहिए हमें दीपक जी में उससे कहीं अधिक दिखाई दीं।
एक फिल्मी गीत की ये पंक्तियां भाई दीपक जी के नाम :
आते-जाते ख़ूबसूरत आवारा सड़कों पे,
कभी-कभी इत्तेफ़ाक़ से,
कितने अंजान लोग मिल जाते हैं।
उनमें से कुछ लोग भूल जाते हैं,
कुछ याद रह जाते हैं।
(यात्रा के अंतिम पड़ाव पर जब दीपक जी ने हमें गोवा एयरपोर्ट पर ड्रॉप किया यह उससे कुछ समय पहले उनके साथ ली गई तस्वीर है)
इस यादगार यात्रा के संस्मरण और प्रसंग तो बहुत हैं आपसे साझा करने के लिए पर पोस्ट लंबी होने के कारण बोझिल न हो जाए इसलिए इस शेर के साथ बात समाप्त करता हूं :
  सैर कर दुनिया की ग़ाफिल ज़िंदगानी फिर कहां,
   ज़िंदगानी गर रही तो ---------
          --- ख़्वाज़ा मीर दर्द 
प्रतुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 












January 12, 2024

(ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई) : प्रस्थान से पहले




दिल्ली निवासी ग़ज़लकार दीक्षित दनकौरी जी अपनी टीम के साथ मिलकर पिछले 18 वर्षों से देश-विदेश के ग़ज़ल प्रेमियों के लिए ग़ज़ल कुंभ के नाम से एक शानदार कार्यक्रम आयोजित करते आ रहे हैं।
इस आयोजन की आयोजक संस्था अंजुमन फरोग़-ए-उर्दू है जिसके अध्यक्ष मोईन अख़्तर अंसारी साहब हैं। ये दोनों साहित्यकार अपनी समर्पित टीम के साथ मिलकर प्रतिवर्ष बहुत ही व्यवस्थित/अनुशासित ढंग से भव्य ग़ज़ल कुंभ का आयोजन कराते हैं।इस कार्यक्रम में बहुत प्रतिष्ठित ग़ज़लकारों के साथ-साथ ऐसे उभरते हुए रचनाकार भी सहभागिता करते हैं जिन्हें अपने सृजन को निखारने और अच्छा मंच पाने की ललक है।निश्चित तौर पर दीक्षित दनकौरी जी और मोईन अख़्तर अंसारी साहब अदब की बेमिसाल ख़िदमत और अदीबों को प्रोत्साहित करने का काम बड़ी शिद्दत से करते आ रहे हैं।
इस कड़ी में इस बार वर्ष,2024 का ग़ज़ल कुंभ मुंबई में बसंत चौधरी फाउंडेशन, नेपाल के सौजन्य से आयोजित किया जा रहा है।इस बार के कार्यक्रम का उदघाटन माननीय वीरेंद्र याज्ञिक द्वारा किया जाएगा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि क्रमश: श्री बसंत चौधरी जी तथा श्री अमरजीत मिश्र जी होंगे। इस बार के ग़ज़ल कुंभ में देशभर से पधारे लगभग 146 ग़ज़लकारों द्वारा ग़ज़ल पाठ किया जाएगा।
मैंने वर्ष 2017 के ग़ज़ल कुंभ दिल्ली में पहली बार शिरकत की थी। इसके बाद पिछले वर्ष ग़ज़ल कुंभ हरिद्वार में भी सहभागिता की।इस बार रामपुर के अपने दो बहुत अच्छे ग़ज़लकार साथियों प्रदीप माहिर और राजवीर सिंह राज़ के साथ ग़ज़ल कुंभ मुंबई में सहभागिता का अवसर प्राप्त हो रहा है। रामपुर के ही एक और अच्छे ग़ज़लकार भाई सुरेंद्र अश्क जी को भी हमारे साथ कार्यक्रम में सहभागिता करनी थी परंतु कुछ पारिवारिक कारणों के चलते वह ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।हमें इस दौरान उनकी कमी बहुत खलेगी।
श्री दनकौरी जी के पास ऐसे बडे़ साहित्यिक अनुष्ठान संपन्न कराने का लंबा अनुभव है। उनके पास समर्पित साहित्यकारों और व्यवस्था देखने वालों की एक पूरी टीम होती है जो बहुत मुस्तैदी के साथ अपने काम को अंजाम देती हैं। धन्य हैं वे लोग जो इस साहित्यिक अनुष्ठान में सम्मिलित होते हैं और अनुशासित ढंग से इस दो दिवसीय कार्यक्रम को गरिमा के साथ पूर्ण कराने में अपना सहयोग प्रदान करते हैं।ऐसे कार्यक्रमों में सिर्फ़ रचना पाठ करना ही साहित्यकारों का मक़सद नहीं होता बल्कि ऐसे अवसरों पर दूसरे लोगों से मिलकर उनका 
हालचाल जानना तथा विभिन्न विषयों पर अनौपचारिक परिवेश में वार्तालाप/संवाद करके अपने चिंतन को निखारना भी एक उद्देश्य होता है। 
मैं दीक्षित दनकौरी जी,मोईन अख़्तर अंसारी जी और उनकी टीम को मुझे ग़ज़ल कुंभ में आमंत्रित करने हेतु  धन्यवाद ज्ञापित करता हूं और कामना करता हूं कि वे स्वस्थ्य और मस्त रहते हुए प्रति वर्ष यों ही साहित्यक यज्ञों का आयोजन कराते रहें।
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक 



January 5, 2024

झुर्री वाले गाल


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। साहचार्य से रहने में ही जीवन की सार्थकता है।मनुष्य समाज में रहकर बहुत कुछ सीखता है और उससे बहुत कुछ लेता भी है। अत: उसका दायित्व बनता है कि वह समाज को कुछ दे भी। स्वार्थ भाव से ऊपर उठकर समाज की सेवा भी करे।समाज सेवा के विभिन्न माध्यम हो सकते हैं। साहित्य सृजन के माध्यम से भी समाज की सेवा की जा सकती है। सृजनात्मक साहित्य वही कहलाता है जो लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करे और उनकी संवेदनाओं को छुए। हम सब साहित्यकारों का यह कर्तव्य बनता है कि अपने श्रेष्ठ साहित्य सर्जन से समाज की दशा और दिशा बदलते रहें।

आज अपने कुछ दोहे आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं  :

आज कुछ दोहे यों भी 

******************

@

दादा  जी   होते   नहीं, कैसे   भला   निहाल।

नन्हे    पोते   ने    छुए, झुर्री    वाले    गाल।।


क्या  बतलाए गाँव  का,मित्र! तुम्हें  हम  हाल।            

आज न वह पनघट रहा ,और न वह चौपाल।।


क्या  होगा इससे  अधिक,मूल्यों का अवसान।

बेच   रहे   हैं  आजकल, लोग   दीन   ईमान।।


मन  में  जाग्रत हो  गई,लक्ष्य प्राप्ति  की  चाह।

कठिन राह की क्या भला,होगी  अब परवाह।।


याची  कब  तक  हों नहीं,बतलाओ  हलकान।

झिड़क  रहे  हैं  द्वार पर, उनको  ड्योढ़ीवान।।

           @ओंकार सिंह विवेक 

अवसान -- समाप्ति,अंत

याची -- आवेदक, फ़रियादी

हलकान -- परेशान

(चित्र : ३ जनवरी,२०२४ को आकाशवाणी रामपुर में काव्य पाठ की रिकॉर्डिंग के अवसर पर)






December 31, 2023

🌹🌹नव वर्ष,2024 मंगलमय हो🌷🌷

साथियो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


यह वर्ष भी अपनी पूरी रफ़्तार से पंख लगाकर गुज़र गया।पारिवारिक,सामाजिक,राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितनी ही गतिविधियों/घटनाओं के हम साक्षी बने। इस वर्ष दुनिया में कुछ सुखद परिवर्तन भी हमने देखे तो ऐसे घटनाक्रम भी नज़र से गुज़रे जो अंदर तक झकझोर गए।

दुनिया के देशों ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिग को लेकर जो चिंता प्रकट की वह एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है। उम्मीद है इस पर जल्द ही सामूहिक प्रयासों के परिणाम दिखाई देंगे। राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे घटनाक्रमों की बात की जाए तो भारत के मिशन चंद्रयान 3 की अभूतपूर्व सफलता का दुनिया ने लोहा माना।यह हमारे लिए गौरव की बात है।
इस वर्ष दुनिया ने जो तबाही का मंज़र देखा उसने सबके रौंगटे खड़े कर दिए।बात चाहे रूस यूक्रेन युद्ध की हो या फिर इसराइल और हमास की जंग की। दुनिया में  चल रहे इन युद्धों में जान और माल की जितनी हानि हुई है उसका ठीक ठीक अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है।इंसानी वहशीपन की इस चरम सीमा की जितनी भी भर्त्सना की जाए वह कम है।काश! लोगों की संवेदनाएं जागें और इंसानियत का जज़्बा ज़ोर मारे ताकि फिर कभी ऐसी तबाही की पुनरावृत्ति न हो।
इतिहास गवाह है कि युद्ध के माध्यम से न कभी किसी समस्या का हल निकला है और न ही कभी निकलेगा।ज़रूरत बातचीत और स्वस्थ्य विचारधारा को पल्लवित और पोषित करने की है। डंडे और ताक़त के ज़ोर पर किसी समस्या को दबाया तो जा सकता है परंतु उसका स्थाई हल विचारधाराओं में बदलाव और सामंजस्य से ही खोजा जा सकता है।
आशा करते हैं कि आने वाले साल में दुनिया से नफ़रत और द्वेष के बादल  छंटेंगे और मुहब्बत की नई रौशनी फैलेगी।
इन्हीं कामनाओं के साथ नए साल के स्वागत में एक नई ग़ज़ल आप सब की मुहब्बतों के हवाले करता हूं, प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएं :

आने वाले साल से उम्मीद बाँधे हुए एक ग़ज़ल

************************************

     -- ओंकार सिंह विवेक

©️

गए साल  जैसा  न  फिर  हाल  होगा,

तवक़्क़ो है अच्छा  नया  साल  होगा।


मुहब्बत   के    हर   सू   परिंदे  उड़ेंगे,

बिछा नफ़रतों का न अब जाल होगा।


बढ़ेगी  न  केवल  अमीरों की  दौलत,

ग़रीबों का तबक़ा भी ख़ुशहाल होगा।


सुगम होंगी सबके ही जीवन की राहें,

न भारी  किसी  पर  नया साल होगा।


सलामत   रहेगी  उजाले   की  हस्ती,

अँधेरा   जहाँ  भी  है  पामाल  होगा।


उठाएँगे   ज़िल्लत   यहाँ   झूठ  वाले,

बुलंदी  पे  सच्चों  का  इक़बाल होगा।


न  होगा  फ़क़त  फ़ाइलों-काग़ज़ों  में,

हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।

          ---©️ ओंकार सिंह विवेक

                    रामपुर-उoप्रo 

 (सर्वाधिकार सुरक्षित) 

December 29, 2023

ग़ज़ल का बदलता स्वरूप

दोस्तो नमस्कार🌹🙏

अरबी, फ़ारसी और उर्दू भाषाओं से होते हुए ग़ज़ल हिंदी और अन्य भाषाओं में आई और अत्यंत  लोकप्रिय हुई।आज ग़ज़ल का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है।हिंदी ग़ज़लकारों के साथ-साथ तमाम शायरों के दीवान भी आज हिंदी देवनागरी में प्रकाशित होकर सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।किसी ज़माने में औरतों से गुफ़्तगू और लब-ओ-रुख़सार की बात करना ही ग़ज़ल के कथ्य हुआ करते थे पर अब ग़ज़ल एक तवील रास्ता तय कर चुकी है।आज ग़ज़ल में जनसरोकार और ज़िंदगी से जुड़े तमाम दीगर पहलुओं को बड़ी ख़ूबसूरती के साथ पिरोकर लोगों की संवेदनाओं को जागृत करने का काम किया जा रहा है।दो पंक्तियों/शेर में एक बड़े महत्वपूर्ण विषय और कथ्य को ढालकर जब श्रोता के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है तो वह आह या वाह किए बिना नहीं रह पाता।यही शेर/ग़ज़ल की कामयाबी कही जाती है।
आज फिर एक ग़ज़ल आप सम्मानित साथियों की अदालत में प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ पेश है:

ग़ज़ल --- ओंकार सिंह 'विवेक'     
©️
ज़हीनों की  महफ़िल में गर यार पढ़ना,
ग़ज़ल  कोई  अपनी  असरदार  पढ़ना।

अगर जानना  हो  तग़ज़्ज़ुल का मा'नी,
कभी  मीर-ग़ालिब के अशआर पढ़ना।

हमें  झील-सी  नीली आँखों में  उनकी,
लगा अच्छा चाहत  का  संसार पढ़ना।
©️
कोई ओज  पढ़ता है और  हास्य कोई,
किसी  को  सुहाता  है   शृंगार  पढ़ना।

बहुत  याद  आता  है  घर में  सभी को,
पिता जी का वो सुब्ह अख़बार पढ़ना।

किया ख़ूब  करते  हो तनक़ीद सब पर,
कभी आप अपना भी  किरदार पढ़ना।

'विवेक' इतनी आसान तहरीर कब थी,
पड़ा  उनके  ख़त को  कई  बार पढ़ना।
              ©️ओंकार सिंह विवेक 

ज़हीन -- बुद्धिमान
तग़ज़्ज़ुल-- लाक्षणिक/अलंकारिक 
तनक़ीद -- आलोचना,परीक्षण/छानबीन

December 27, 2023

अम्न पर खौफ़-सा मुसल्लत है

प्रख्यात शायर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब की मेहरबानी के चलते कोलकता से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार "सदीनामा" में अक्सर मेरी ग़ज़लें प्रकाशित होती रहती हैं। हाल ही में अख़बार में प्रकाशित हुई एक ग़ज़ल आप सम्मानित साथियों की अदालत में पेश है।
यदि प्रतिक्रिया से अवगत कराएंगे तो मुझे ख़ुशी होगी।

December 19, 2023

अलसाई - सी धूप


आज एक नवगीत : सर्दी के नाम

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      --  ©️ओंकार सिंह विवेक

छत पर आकर बैठ गई है,

अलसाई-सी धूप।

सर्द हवा खिड़की से आकर,

मचा रही है शोर।

काँप रहा थर-थर कुहरे के,

डर से प्रतिपल भोर।

दाँत बजाते घूम रहे हैं,

काका रामसरूप।

अम्मा देखो कितनी जल्दी,

आज गई हैं जाग।

चौके में बैठी सरसों का,

घोट रही हैं साग।

दादी छत पर  ले आई हैं,

नाज फटकने सूप।

आए थे पानी पीने को,

चलकर मीलों-मील।

देखा तो जाड़े के मारे,

जमी हुई थी झील।

करते भी क्या,लौट पड़े फिर,

प्यासे वन के भूप।

    ---  ©️ओंकार सिंह विवेक

(चित्र : गूगल से साभार) 

नदी को हम यही समझा रहे हैं 👈👈

December 15, 2023

लुत्फ़-ए-ग़ज़ल

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏

कई दिन बाद फिर एक नई ग़ज़ल आपकी अदालत में पेश है।दो मिसरों में पूरा कथ्य बयान कर देना यों तो बहुत मुश्किल होता है परंतु ग़ज़ल का व्याकरण जब मेहनत करने की प्रेरणा देता है तो ग़ज़ल आख़िर मुकम्मल हो ही जाती है।पिछले हफ़्ते कई साहित्यिक ग्रुप्स में कई तरही मिसरे दिए गए ग़ज़ल कहने के लिए।एक मिसरे पर ज़ेहन बना और मेहनत आपके सामने है।

एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी समा'अतों के हवाले
 ************************************
🌸 अर्कान-- 
मफ़ऊलु - फ़ाइलातु - मफ़ाईलु - फ़ाइलुन
@
महफ़िल में सबको अपना परस्तार कर दिया,
शीरीं  ज़ुबां  से   उसने  चमत्कार  कर  दिया।

हम  जैसों  में  कहाँ  थी भला  ये  सलाहियत,
सोहबत ने शायरों की सुख़न-कार कर दिया।

ख़बरों में  सच की पहले-सी ख़ुशबू नहीं रही,  
सो बंद  हमने  आज  से  अख़बार कर दिया।
@
जो   अब   करें   उमीद   कोई   हुक्मरान  से,
पहले ही उसने  कौनसा उपकार  कर  दिया।

रखते  हैं  अब   हरेक  क़दम   देख-भालकर, 
इतना  तो  ठोकरों  ने  समझदार  कर  दिया।

क़ायम  रहे   हमारी   किताबों    से    दोस्ती,
इसने  ग़रीब  फ़िक्र  को  ज़रदार  कर  दिया।

आती   है  शर्म  आज   बताते  हुए  'विवेक', 
लोगों  ने  राजनीति  को  व्यापार  कर दिया।
            @ओंकार सिंह विवेक
परस्तार -- भक्त, प्रशंसक
शीरीं -- मीठी, मीठा 
सलाहियत -- योग्यता
सुख़न-कार --- कवि/शायर
हुक्मरान --- शासक,राजा
फ़िक्र -- चिंतन
ज़रदार -- मालदार ,धनी

December 10, 2023

सर्दी वाले दोहे

विषयगत दोहे

***********

 दिसंबर , रजाई , अलाव , चाय , धूप 

@ओंकार सिंह विवेक 

दिसंबर

*****

माह दिसंबर  आ  गया,ठंड  हुई   विकराल।

ऊपर  से  करने  लगा,सूरज  भी  हड़ताल।।

रजाई

****

हाड़   कँपाती  ठंड  से,करके   दो-दो  हाथ।

स्वार्थ  बिना  देती रही,नित्य  रजाई  साथ।।

अलाव

*****

चौराहे  के  मोड़  पर,जलता  हुआ  अलाव।

नित्य विफल करता रहा,सर्दी का हर दाव।।

चाय

***

खाँसी और ज़ुकाम  का,करके  काम तमाम।

अदरक वाली  चाय  ने, ख़ूब कमाया  नाम।।

धूप

***

कल  कुहरे  का देखकर,दिन-भर घातक  रूप।

कुछ पल ही छत पर रुकी,सहमी-सहमी धूप।।

                    @ओंकार सिंह विवेक 

(सर्वाधिकार सुरक्षित)


अपनी बात 🌹🌹👈👈



December 2, 2023

नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!नई ग़ज़ल!!!

कल कुछ साहित्यिक मित्रों के साथ गपशप हो रही थी। कुछ हास्य-विनोद और मस्ती के बाद चर्चा का रुख़ गंभीर हो गया।किसी महफ़िल में कवि और शायर इकट्ठे हों तो घूम-फिरकर बात कविता पर तो आनी ही होती है।
यही हुआ भी - बात काव्य/शायरी में सपाट बयानी और कलात्मकता को लेकर होने लगी।कविता में प्रतीकों और अलंकारिक भाषा को लेकर भी अच्छी बहस हुई।सभी इस बात पर एक राय थे कि कविता में प्रतीकों और बिंबों के प्रयोग की बात ही कुछ और है। इससे कविता में जो धार पैदा होती है उसका श्रोता भी लोहा मानते हैं और ऐसी कविता को अधिक पसंद करते हैं।फूल,तितली,चमन, मयख़ाना, शैख़,ब्राह्मण, तीरगी,रौशनी आदि इन तमाम प्रतीकों के माध्यम से कवि/शायर ऐसी गहरी बातें कह देते हैं जो पाठक/श्रोता के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ देती हैं।
उस वार्तालाप के बाद ज़ेहन बना और एक मतला' हो गया।मतले के साथ ही आज ग़ज़ल भी मुकम्मल हो गई जो आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत है:

December 1, 2023

अभी तीरगी के निशां और भी हैं

नमस्कार मित्रो 🌹🙏
एक मतला' और एक शेर समाअत कीजिए :

@
अभी  तीरगी  के निशाँ और भी  हैं,
उजाले  तेरे  इम्तिहाँ  और   भी  हैं।

अभी रंजो-ग़म कुछ उठाने हैं बाक़ी,
अभी तो  मेरे  मेहरबाँ  और  भी  हैं।
     @ओंकार सिंह विवेक 
 



November 27, 2023

इज़हारे-ख़याल : एक तरही ग़ज़ल

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कई दिनों बाद एक तरही ग़ज़ल सृजित हुई है।आपकी प्रतिक्रियाओं हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं:

मिसरा'-ए-तरह 👉 मैनें खुद से भी दोस्ती की है
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ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
@
सब  ख़ता  इसमें  आदमी की है,
साँस उखड़ी जो  ये  नदी  की है।

वो जो  सच  की  दुहाई  देता था,
झूठ   की   उसने  पैरवी  की  है।

धूप का  क्यों  न  ख़ैर मक़्दम हो,   
ठंड  भी  तो  ये  जनवरी  की  है। 
@
ताड़  तिल  का  बना  के  छोड़ेगा,
जैसी फ़ितरत उस आदमी की है।

हौसले  को  सलाम  है   गुल   के,
एक   पत्थर   से   दोस्ती  की  है।      

फूल-फल  ही  नहीं  दिए  केवल,
छाँव  भी   पेड़  ने   घनी  की है।

जो  ग़ज़ल  हम  सुना रहे हैं तुम्हें,
बस मुकम्मल अभी-अभी की है।
          @ओंकार सिंह विवेक

November 23, 2023

पल्लव काव्य मंच रामपुर (उoप्रo)का शारदीय काव्य महोत्सव

नमस्कार मित्रो 🌹🙏

साहित्यकार अपने सृजन से समाज,देश और दुनिया को जोड़ने की बात करता है। साहित्यकार का ज़ात-बिरादरी और देशों की सीमाबंदियों से कोई सरोकार नहीं होता। वह अपने विराट चिंतन और जन कल्याणकारी सृजन से देश और दुनिया को दिशा देने का पुनीत कार्य करता है।कुछ ऐसा ही विश्वव्यापी सद्भावना का संदेश लेकर विराटनगर नेपाल से दो वरिष्ठ साहित्यकार अपनी धर्म पत्नियों के साथ रामपुर पधारे।
नेपाली तथा हिंदी भाषाओं के इन वरिष्ठ साहित्यकारों डॉक्टर घनश्याम परिश्रमी जी तथा डॉक्टर देवी पंथी जी के सम्मान में पल्लव काव्य मंच रामपुर द्वारा शानदार शारदीय काव्य महोत्सव का आयोजन किया गया।२२ नवंबर,२०२३ को माया देवी धर्मशाला रामपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में विदेशी तथा स्थानीय साहित्यकारों के साथ पड़ोस के नगरों संभल और बहजोई के साहित्यकारों ने भी सहभागिता की।
कार्यक्रम के पहले चरण का शुभारंभ पूर्व में त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमाण्डू, नेपाल में सेवारत रह चुके इन दो साहित्यकारों के सम्मान में शानदार कवि सम्मेलन
से हुआ।
कविता पाठ करते हुए सम्भल से पधारे व्यंग्य कवि अतुल शर्मा ने कहा- भ्रष्टाचारी दम भरते हैं सत्ता के प्रभावों में/लोकतंत्र फिर बिक जाता है औने-पौने भावों में।
राजीव शर्मा ने कहा- रामपुर की खास निशानी चाकू मेरा नाम/इसी शहर में बनता हूँ मैं यही मेरी पहचान। 
कविता पाठ करते हुए पँवासा के ज्ञानप्रकाश उपाध्याय ने कहा- खून की हर बूँद से लिख देंगे हिंदुस्तान/तुझपे समर्पित मेरा दिल मेरी जान। 
पल्लव काव्य मंच के उपाध्यक्ष ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक ने तंज कसते हुए कहा- लुत्फ़ क्या आएगा शराफ़त में/आप अब आ गये सियासत में। 
अध्यक्ष शिव कुमार चन्दन ने कहा-चल पड़ी अनवरत फिर चली हर नदी/पहले गन्तव्य से कब रुकी हर नदी। 
बहजोई से कवि दीपक गोस्वामी चिराग ने बेटियों को नसीहत करते हुए कहा- मात-पिता के प्रेम का रख गौरैया मोल/धरती के भगवान हैं मात-पिता अनमोल। 
रश्मि चौधरी ने कहा- कुछ बोझ दिल से उतारा जाए/उसे एक बार फिर पुकारा जाए। 
शायर प्रदीप राजपूत माहिर ने कहा- आपका साथ ही जब मयस्सर नहीं/ये मुक़द्दर तो कोई मुक़द्दर नहीं। 
कवि सचिन सार्थक ने कहा-प्यार खामोशियाँ प्यार है बोलना/प्यार काँधों पे सिर रख के है डोलना। 
शायर अश्क रामपुरी ने फरमाया- आँधियों का का दम निकाला जाएगा/ अब दिए में ख़ून डाला जाएगा। 
विनोद शर्मा ने मानवता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा-जहाँ इंसानियत की रौशनी हो/वहीं काबा है अपना सर झुका लो।  
अनमोल रागिनी ने कहा- मत देना कर्तव्य है मतदाता अधिकार/मत देने से ही बने लोकतंत्र सरकार। 
डॉo प्रीति अग्रवाल ने कहा- पैसा है बहुमूल्य रखना इसका मान/बिन पैसे पाता नहीं कोई भी सम्मान।
विराटनगर नेपाल से आये डॉ देवी पंथी ने कहा- झूम के सावन आया देखो तो/बादल ने पानी बरसाया देखो तो।
 लुम्बिनी प्रदेश नेपाल से डॉ घनश्याम परिश्रमी ने कहा- कविता अरुणोदय की लाली/कविता बनती पूजन थाली।
 डॉ देवी पंथी ने नेपाल में ग़ज़ल के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालते हुए वहां इस विधा के तेज़ी से लोकप्रिय होने का भी ज़िक्र किया।
 डॉ घनश्याम परिश्रमी ने नेपाल में हिन्दी और नेपाली भाषा के सह-अस्तित्व और विकास से अवगत कराया।
नेपाल से ही आयीं राधिका पंथी और राधा न्यौपाने ने भी अपना काव्यपाठ प्रस्तुत किया। 
कार्यक्रम के अंत में नेपाल एवं बाहर से आये साहित्यकारों को शॉल, प्रशस्ति पत्र तथा स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर सीताराम शर्मा, हरीश सक्सेना, गोविंद शर्मा, सुनील वैश्य, रामसागर शर्मा, जावेद रहीम, नवीन पाण्डे, राजवीर सिंह राज़, अशोक सक्सेना, हरीश सक्सेना आदि उपस्थित रहे। संचालन महासचिव प्रदीप राजपूत माहिर ने किया।
कार्यक्रम की स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा सुंदर कवरेज के लिए पल्लव काव्य मंच रामपुर उनका हार्दिक आभार प्रकट करता है।

प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार/समीक्षक/कंटेंट राइटर/ब्लॉगर

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