December 29, 2023

ग़ज़ल का बदलता स्वरूप

दोस्तो नमस्कार🌹🙏

अरबी, फ़ारसी और उर्दू भाषाओं से होते हुए ग़ज़ल हिंदी और अन्य भाषाओं में आई और अत्यंत  लोकप्रिय हुई।आज ग़ज़ल का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है।हिंदी ग़ज़लकारों के साथ-साथ तमाम शायरों के दीवान भी आज हिंदी देवनागरी में प्रकाशित होकर सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।किसी ज़माने में औरतों से गुफ़्तगू और लब-ओ-रुख़सार की बात करना ही ग़ज़ल के कथ्य हुआ करते थे पर अब ग़ज़ल एक तवील रास्ता तय कर चुकी है।आज ग़ज़ल में जनसरोकार और ज़िंदगी से जुड़े तमाम दीगर पहलुओं को बड़ी ख़ूबसूरती के साथ पिरोकर लोगों की संवेदनाओं को जागृत करने का काम किया जा रहा है।दो पंक्तियों/शेर में एक बड़े महत्वपूर्ण विषय और कथ्य को ढालकर जब श्रोता के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है तो वह आह या वाह किए बिना नहीं रह पाता।यही शेर/ग़ज़ल की कामयाबी कही जाती है।
आज फिर एक ग़ज़ल आप सम्मानित साथियों की अदालत में प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ पेश है:

ग़ज़ल --- ओंकार सिंह 'विवेक'     
©️
ज़हीनों की  महफ़िल में गर यार पढ़ना,
ग़ज़ल  कोई  अपनी  असरदार  पढ़ना।

अगर जानना  हो  तग़ज़्ज़ुल का मा'नी,
कभी  मीर-ग़ालिब के अशआर पढ़ना।

हमें  झील-सी  नीली आँखों में  उनकी,
लगा अच्छा चाहत  का  संसार पढ़ना।
©️
कोई ओज  पढ़ता है और  हास्य कोई,
किसी  को  सुहाता  है   शृंगार  पढ़ना।

बहुत  याद  आता  है  घर में  सभी को,
पिता जी का वो सुब्ह अख़बार पढ़ना।

किया ख़ूब  करते  हो तनक़ीद सब पर,
कभी आप अपना भी  किरदार पढ़ना।

'विवेक' इतनी आसान तहरीर कब थी,
पड़ा  उनके  ख़त को  कई  बार पढ़ना।
              ©️ओंकार सिंह विवेक 

ज़हीन -- बुद्धिमान
तग़ज़्ज़ुल-- लाक्षणिक/अलंकारिक 
तनक़ीद -- आलोचना,परीक्षण/छानबीन

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