विषयगत दोहे
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दिसंबर , रजाई , अलाव , चाय , धूप
@ओंकार सिंह विवेक
दिसंबर
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माह दिसंबर आ गया,ठंड हुई विकराल।
ऊपर से करने लगा,सूरज भी हड़ताल।।
रजाई
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हाड़ कँपाती ठंड से,करके दो-दो हाथ।
स्वार्थ बिना देती रही,नित्य रजाई साथ।।
अलाव
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चौराहे के मोड़ पर,जलता हुआ अलाव।
नित्य विफल करता रहा,सर्दी का हर दाव।।
चाय
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खाँसी और ज़ुकाम का,करके काम तमाम।
अदरक वाली चाय ने, ख़ूब कमाया नाम।।
धूप
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कल कुहरे का देखकर,दिन-भर घातक रूप।
कुछ पल ही छत पर रुकी,सहमी-सहमी धूप।।
@ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 11 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका 🙏🙏
Deleteवाह! शानदार सृजन!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
Deleteसुन्दर दोहे
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका।
Deleteकल कुहरे का देखकर,दिन-भर घातक रूप।
ReplyDeleteकुछ पल ही छत पर रुकी,सहमी-सहमी धूप।।
वाह, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत - बहुत आभार आपका।
Deleteसमसामयिक सुंदर सार्थक दोहे!
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteसुंदर दोहे।
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका।
Deleteबहुत सुंदर सार्थक सामायिक दोहे।
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका।
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