February 21, 2024

अपनी बात

मित्रो सुप्रभात🌹🌹🙏🙏
 
कुछ अपने बारे में
**************
लिखने का शौक़ मुझे विद्यार्थी जीवन से ही रहा है। हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट में मेरी कई रचनाएँ कॉलेज मैगजीन में प्रकाशित हुईं।प्रारंभ में कुछ कहानियां,लेख तथा क्षणिकाएं और अतुकांत रचनाएँ लिखीं। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरी प्रारंभिक रचनाएँ भी नवभारत टाइम्स और सरिता/मुक्ता जैसे राष्ट्रीय स्तर की पत्र तथा पत्रिकाओं में छपींं। 
स्थानीय अख़बारों में भी दर्जनों रचनाएँ छपती रहीं हैं। धीरे-धीरे वरिष्ठ साहित्यकारों के प्रोत्साहन और मार्गदर्शन के चलते मंचों पर भी काव्य पाठ करने लगा। जैसे-जैसे चिंतन में परिपक्वता आई, मुझे महसूस हुआ कि मैं ग़ज़ल विधा में अन्य विधाओं की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली ढंग से अपने भावों की अभिव्यक्ति कर सकता हूं। तब से इस विधा की ओर गंभीरता से ध्यान देना प्रारंभ किया।ग़ज़ल की बारीकियां समझने और उच्चारण की शुद्धता के लिए उर्दू भाषा का बेसिक ज्ञान भी प्राप्त किया।यह बात ठीक है कि ग़ज़ल विधा अरबी, फ़ारसी तथा उर्दू से होती हुई हिंदी में आई है परंतु आज इसकी लोकप्रियता किसी से छुपी हुई नहीं है। हिन्दी देवनागरी में निरंतर छप रहे ग़ज़ल-संग्रह इस बात का प्रमाण हैं कि ग़ज़ल शिद्दत से पाठकों/श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है।ग़ज़ल का शेर यदि ढंग से समझ में आ जाए तो आदमी चिंतन के समुंदर में उतर जाता है।प्रसंगवश ग़ज़ल की ताक़त को लेकर मुझे यह शेर याद आ गया :
            मैं तो ग़ज़ल सुनाके अकेला खड़ा रहा,
            सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गए।
                   स्वर्गीय कृष्ण बिहारी नूर
अपनी ग़ज़ल यात्रा के क्रम में कई खट्टे-मीठे अनुभव हुए।कई साहित्यिक मित्रों ने कहा कि तुम ग़ज़ल पर इतना ज़ोर क्यों दे रहे हो हिंदी काव्य की विधाओं में सृजन करो। मुझे साथियों की यह दलील कुछ ख़ास जमी नहीं।जिस विधा में व्यक्ति सहज महसूस करता हो उसमें ही श्रेष्ठ सृजन कर सकता है, ऐसा मेरा मानना है।
हिन्दी मेरी मातृ भाषा है और हिन्दी काव्य की अधिकांश विधाओं यथा गीत,नवगीत,मुक्तक, दोहा और कुंडलिया आदि में भी मैं अक्सर सृजन करता हूं परंतु मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि मेरी प्रिय विधा ग़ज़ल ही है। आपके आशीर्वाद से वर्ष 2021में "दर्द का अहसास" के नाम से मेरा पहला ग़ज़ल-संग्रह आ चुका है।उसके बारे में काफ़ी विस्तार से मैं अपनी पिछली कई ब्लॉग पोस्ट्स में लिख चुका हूं।
अपनी साहित्यिक अभिरुचि के चलते मुझे सेवाकाल में अपने बैंक की गृह पत्रिका बुलंदियों का संपादन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।
आप जैसे शुभचिंतकों के प्रोत्साहन और आशीर्वाद से पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के निर्वहन के साथ-साथ साहित्यिक/ग़ज़ल यात्रा बदस्तूर जारी है।यदि कोई विशेष अड़चन नहीं आई तो इस वर्ष के अंत तक मेरा दूसरा ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" आपके मुबारक हाथों में होगा।इस पर निरंतर काम चल रहा है।
अपनी साहित्यिक गतिविधियों /पुस्तक समीक्षाओं और यात्रा/भ्रमण आदि से संबंधित सामग्री मैं अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता रहता हूं जिसे आपका भरपूर स्नेह प्राप्त हो रहा है। इसके लिए ह्रदय की गहराई से आभार व्यक्त करता हूं।अब तक पांच सौ से अधिक पोस्ट्स ब्लॉग पर लिख चुका हूं।अपने बेटे के आग्रह साहित्यिक तथा अन्य गतिविधियों को लेकर Onkar Singh Vivek के नाम से एक यूट्यूब चैनल भी बना लिया है। जिस पर जाकर आप मेरी ग़ज़लों/कवि सम्मेलनों तथा अन्य रोचक सामग्री का आनंद ले सकते हैं।यदि यूट्यूब चैनल को subscribe बटन दबाकर नि:शुल्क सब्सक्राइब करके मेरा उत्साहवर्धन करेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी 
🌹🌹🙏🙏
चलते-चलते अपनी एक ग़ज़ल का मतला हाज़िर करता हूं :
      मसर्रत  के गुलों  से घर मेरा  गुलज़ार  होता है,
      इकट्ठा जब किसी त्योहार पर परिवार होता है।
                 @ओंकार सिंह विवेक 
विनीत
ओंकार सिंह विवेक


विशेष
******
1.मेरी ग़ज़लें आप ओंकार सिंह विवेक नाम सर्च करके rekhta.org पर भी पढ़ सकते हैं।
2.इसी प्रकार kavitakosh.org पर भी मेरा नाम सर्च करके ग़ज़लों का आनंद ले सकते हैं।

No comments:

Post a Comment

Featured Post

आज फिर एक नई ग़ज़ल

 एक बार फिर कोलकता के सम्मानित अख़बार/पत्रिका "सदीनामा", ख़ास तौर से शाइर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब, का बेहद शुक्रिया। सदीनामा निरं...