February 4, 2024

पुस्तक परिचय : "मुरारी की चौपाल" (छंदमुक्त कविता-संग्रह)

                   पुस्तक परिचय

                  *************

               कृति : मुरारी की चौपाल

          कृतिकार : अतुल कुमार शर्मा

          संस्करण :   2023 (प्रथम)

          प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह (जालंधर,पंजाब)

                  पृष्ठ : 111  मूल्य : रुo295.00

           समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 

'मुरारी की चौपाल' संभल (उत्तर प्रदेश) के रचनाकार अतुल कुमार शर्मा का संभावनाएँ जगाता हुआ छंद मुक्त रचनाओं का एक सुंदर काव्य-संग्रह है। छंद मुक्त रचनाएँ कहना इतना आसान भी नहीं होता जितना समझा जाता है। छंद मुक्त लिखने के लिए छंद को जानना ज़रूरी है क्योंकि जो छंद को जानता है वही छंद मुक्त रचनाएँ लय में लिख सकता है।अतुल जी की ये रचनाएँ उनकी रचनात्मक क्षमता को दर्शाती हैं।

कवि जो कुछ समाज में देखता और भोगता-परखता है वे विषय ही उसकी सशक्त अभिव्यक्ति के माध्यम बनते हैं।रचनाकार की दृष्टि परिवार,समाज और क्षरित होते नैतिक मूल्य आदि सभी पर पड़ी है,जिन पर उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार धारदार अभिव्यक्ति की है। कविताओं के शीर्षक यथा - मुरारी की चौपाल, चोंच भर पानी, मर रहे हैं मंद-मंद,भूखे कबूतर, सिसकते दीप,अघोषित क़ैदी, प्रश्नों के पहाड़ और ज़िंदगी का ज़हर आदि पाठक के मन में इन रचनाओं को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं।संग्रह की शीर्षक कविता 'मुरारी की चौपाल' की कुछ पंक्तियाँ देखें :

     अक्सर ऐसी हुआ करती थीं चौपालें/जहाँ बैठते थे लोग हर उम्र के/ फ़ासले मिटाकर/रात्रि के प्रथम पहर में/बनाए जाते थे सामाजिक क़ाइदे-क़ानून/साझा होते थे सुख-दुख/ ढूँढा जाता था समाधान/हर मुश्किल का/मैंने भी देखी थी एक ऐसी ही चौपाल बचपन में।

इन पंक्तियों में हमारी संस्कृति और ग्रामीण परंपरा की वाहक चौपालों के लुप्त होने का दर्द देखा जा सकता है।मुरारी की चौपाल कविता बताती है कि आधुनिक विकास और प्रगति की अंधी दौड़ में हम क्या-क्या खो चुके हैं।

'सिसकते दीप' कविता में कवि समाज की निराशाजनक परिस्थिति का बड़ा मार्मिक चित्रण करता है परंतु अंत में आशा की ज्योति के साथ कविता का समापन करता है।इसे ही सच्ची और अच्छी कविता कहा जाता है :

         मंदिर के घंटे बंधे  पड़े हैं/और चर्च में थमा हुआ है/चर्चाओं का दौर/प्रार्थनाएँ गुमसुम पड़ी हैं/चौपालें चुप हैं/और चौपाए भी/करवटें बदलने को तैयार नहीं/आलस्य छाया पड़ा है - 

यत्र-तत्र-सर्वत्र/स्थायी होकर/लेकिन आशाओं के दीप/ दूर कहीं/आंसुओं की तरह/अभी भी झिलमिला रहे हैं/प्रतीक्षा में हैं/ कि कोई तेल लाएगा/प्रेम का -- आस्था का -- विश्वास का ।

कवि ने अपनी इन रचनाओं के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर कटाक्ष किए हैं, ज्वलंत समस्याओं को उठाया है।कुछेक स्थानों पर समस्या को उठाकर उसका समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है। वास्तव में सच्ची रचना वही होती है जो समस्या से साक्षात्कार कराकर उसका समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास भी करे।सामाजिक तानेबाने से किस प्रकार कविता निकालकर पाठक से संवाद किया जा सकता है कवि अतुल कुमार शर्मा इसमें दक्ष प्रतीत होते हैं। उनकी रचनाओं की भाषा बहुत ही सरल और सहज है जो आम जन से सीधे जुड़ जाती है। जैसा कि अक्सर होता है कहीं-कहीं प्रूफ रीडिंग आदि की त्रुटियां पुस्तक में छूट गई हैं।कवि ने आम बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले अन्य भाषा के शब्दों को भी स्वाभाविक रूप से अपनी कविताओं में प्रयुक्त किया है जो उनके कौशल को दर्शाता है।कवि की भाषा में कोई बनावट दिखाई नहीं देती।कविताओं के शीर्षकों तथा कथानकों के अनुसार ही सहज शब्दों का प्रयोग किया गया है।कवि अतुल कुमार शर्मा की ये सजीव अतुकांत कविताएँ उनके साहित्यिक भविष्य को लेकर असीम संभावनाएं जगाती हैं। निश्चित तौर पर पुस्तक को पाठकों का स्नेह प्राप्त होगा। आशा है भविष्य में उनकी भाव और शिल्प की दृष्टि से और अधिक धारदार रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।

मैं कृतिकार के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।

ओंकार सिंह विवेक

साहित्यकार/समीक्षक/ब्लॉगर 

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

दिनांक : 02.02.2024


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12 comments:

  1. विभिन्न साहित्यिक सेवाओं के लिए आपको अनंत शुभकामनाएं आदरणीय कविराज जी

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 05 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हार्दिक धन्यवाद आपका।

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  3. Vah, sundar sameeksha, badhai.

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  4. शानदार समीक्षा सादर

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