February 12, 2024

पुस्तक परिचय : "तू ही प्राणाधार" (कुंडलिया-संग्रह)




         पुस्तक परिचय

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       कृति : तू ही प्राणाधार

  कृतिकार : शिव कुमार 'चंदन' 

  संस्करण :   2024 (प्रथम)

 प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह (जालंधर,पंजाब)

        पृष्ठ : 111  मूल्य : रुo295.00

समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक 

'तू ही प्राणाधार' रामपुर (उत्तर प्रदेश) के वरिष्ठ रचनाकार शिव कुमार 'चंदन' का प्रथम कुंडलिया-संग्रह है।धर्म,भक्ति और अध्यात्म के साथ-साथ हमारे आसपास के लगभग सभी विषयों को कवि ने अपने अनुभव और सामर्थ्य के आधार पर इसमें काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है।सभी रचनाओं को अलग-अलग खंडों (चरण-वंदना,भक्ति-खंड, प्रकृति-खंड तथा विविध-खंड)में बांटकर पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।

कुंडलिया हिंदी काव्य का एक अत्यंत लोकप्रिय मात्रिक छंद है। छः चरणों के इस विषम मात्रिक छंद का प्रारंभ जिस शब्द/शब्द समूह से होता है अंत भी उसी पर होता है अर्थात इसकी संरचना कुंडली के समान होती है इसलिए इसे कुंडलिया छंद का नाम दिया गया है।

चंदन जी लंबे समय से काव्य साधना में रत हैं।अब तक आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप बहुत सरल भाषा में अपनी भावना प्रधान काव्यात्मक अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। चंदन जी का अधिकांश सृजन भक्ति प्रधान है जिसमें जगह-जगह ब्रज भाषा का पुट भी दिखाई पड़ जाता है।कविता ह्रदय में विद्यमान कोमल भावनाओं से उपजती है।इस पुस्तक में कवि ने अपनी भावनाओं के ज्वार को बड़ी सहजता से काव्यरूप में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास किया है। भावनाओं के अतिरेक में कहीं-कहीं शिल्पगत सौंदर्य की अनदेखी भी हो गई है परंतु फिर भी कोमल भावों की दृष्टि से यह कुंडलिया-संग्रह ध्यान आकृष्ट करता है।

प्रस्तुत संग्रह के चरण-वंदना खंड में मां शारदे की स्तुति करते हुए कवि ने कई भावपूर्ण छंद रचे हैं।ये काव्यात्मक भाव मां शारदे और अपने इष्टदेव के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा और भक्ति को दर्शाते हैं।

पुस्तक के भक्ति खंड में एक ओर भगवान राम की मर्यादा का गान है और श्री कृष्ण की लीलाओं का भावपूर्ण चित्रण है तो दूसरी ओर सनातन संस्कृति तथा धर्म-अध्यात्म के सुंदर चित्र उकेरने का सफल प्रयास है। भारत देश की ऋषि परंपरा,भक्ति-धर्म तथा अध्यात्म पर यह भावपूर्ण कुंडलिया छंद देखें :

      भारत के शुभ कर्म का, प्रकृति करे गुणगान।

      ऋषि - संतों के देश की, अद्भुत है पहचान।।

      अद्भुत है पहचान, देवता भी हर्षाते।

      अवधपुरी के राम, सभी के मन को भाते।

      भक्ति-शक्ति सब ताप, सदा ही रही निवारत।

      कण-कण पावन धाम,सतत मन मोहे भारत।।

प्रकृति ने मानव को क्या-क्या नहीं दिया।सुंदर मौसम, पेड़- पौधे,जंगल, नदी, पहाड़ और मनमोहक झरने। मानव मन प्रकृति प्रदत्त यह संपदा देखकर कृतज्ञता से भर उठता है।मौसमों की बहार देखकर कवि चंदन का मन कह उठता है :

      डाली- डाली से झरे,मनभावन मधु गंध।

       रजनीगंधा की कली, तोड़ रही प्रतिबंध।।

       तोड़ रही प्रतिबंध,तभी झींगुर गुंजारे।

      दादुर और मयूर, झूमकर नाचे सारे।

      बहती मदिर बयार, बदरिया काली- काली।

      रिमझिम बरसे नीर, भीगती डाली- डाली।।

कवि के आसपास समाज में जो घटित होता है उस पर उसकी विशेष दृष्टि पड़ती है तो कविता का प्रस्फुटन होता है।सामाजिक विसंगतियाँ, क्षरित होते नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक पतन देखकर जब कवि हृदय उद्वेलित होता है तो उसके मन से उपजी हुई कविता संवेदनाओं को झकझोर कर रख देती है।बदले हुए परिवेश और आधुनिक जीवन शैली की विसंगतियों पर कवि चंदन की अभिव्यक्ति देखिए :

        कुत्ते पलते हर कहीं, कचरा खाती गाय।

        दधि-माखन दुर्लभ हुए, मिले हर जगह चाय।।

        मिले हर जगह चाय,आज बदला युग सारा।

        हुए आधुनिक लोग, ग़ज़ब का दिखा नज़ारा।

        दिखें राजसी ठाठ, कार में अफसर चलते।

        यश-वैभव भरपूर,घरों में कुत्ते पलते।।

चंदन जी ने जीवन,प्रकृति,भक्ति,धर्म तथा अध्यात्म के लगभग सभी पहलुओं को अपनी काव्य अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है।कवि बहुत सरल और सहज भाषा में अपने भावों को संप्रेषित करने में काफ़ी हद तक सफल भी हुआ है।

काव्य सृजन नि:संदेह एक कठिन कर्म है जो निरंतर अभ्यास और अध्ययन से परिपक्वता पाता है। किसी भी विधा में काव्य-सृजन का भावों से ओतप्रोत होना तो पहली शर्त है ही परंतु उसमें कथ्य की बुनावट, कसावट, वाक्य विन्यास और वाक्यों में पारस्परिक तालमेल के साथ शिल्प का उचित निर्वहन उसे और भी   हृदयग्राही बनाता है।

इस काव्य-संकलन में मुझे कहीं-कहीं भावनाओं की अतिप्रबलता शिल्प पर भारी पड़ती हुई प्रतीत हुई। शब्द चयन, वाक्य विन्यास और कथ्य की कसावट के साथ शिल्पगत सौंदर्य पर थोड़ा और ध्यान दिया जा सकता था। प्रूफ रीडिंग की त्रुटियों को भी न्यून किया जा सकता था।इन त्रुटियों के बावजूद यह पुस्तक पठनीय एवम संग्रहणीय है।

मैं चंदन जी की इस प्रकाशित कृति के लिए उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूं और आशा करता हूं कि उनकी लेखनी अनवरत साधनारत रहते हुए भविष्य में और भी स्तरीय सृजन करती रहेगी।

ओंकार सिंह 'विवेक'

साहित्यकार/समीक्षक

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल : 9897214710

दिनांक : 02.02.2024

जीवन के रंग 🌹🌹👈👈





         







2 comments:

  1. बहुत सुन्दर समीक्षा मान्यवर!👍👍💐💐

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    1. हार्दिक धन्यवाद भाई जी।

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