कई दिन बाद फिर एक नई ग़ज़ल आपकी अदालत में पेश है।दो मिसरों में पूरा कथ्य बयान कर देना यों तो बहुत मुश्किल होता है परंतु ग़ज़ल का व्याकरण जब मेहनत करने की प्रेरणा देता है तो ग़ज़ल आख़िर मुकम्मल हो ही जाती है।पिछले हफ़्ते कई साहित्यिक ग्रुप्स में कई तरही मिसरे दिए गए ग़ज़ल कहने के लिए।एक मिसरे पर ज़ेहन बना और मेहनत आपके सामने है।
एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी समा'अतों के हवाले
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🌸 अर्कान--
मफ़ऊलु - फ़ाइलातु - मफ़ाईलु - फ़ाइलुन
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महफ़िल में सबको अपना परस्तार कर दिया,
शीरीं ज़ुबां से उसने चमत्कार कर दिया।
हम जैसों में कहाँ थी भला ये सलाहियत,
सोहबत ने शायरों की सुख़न-कार कर दिया।
ख़बरों में सच की पहले-सी ख़ुशबू नहीं रही,
सो बंद हमने आज से अख़बार कर दिया।
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जो अब करें उमीद कोई हुक्मरान से,
पहले ही उसने कौनसा उपकार कर दिया।
रखते हैं अब हरेक क़दम देख-भालकर,
इतना तो ठोकरों ने समझदार कर दिया।
क़ायम रहे हमारी किताबों से दोस्ती,
इसने ग़रीब फ़िक्र को ज़रदार कर दिया।
आती है शर्म आज बताते हुए 'विवेक',
लोगों ने राजनीति को व्यापार कर दिया।
@ओंकार सिंह विवेक
परस्तार -- भक्त, प्रशंसक
शीरीं -- मीठी, मीठा
सलाहियत -- योग्यता
सुख़न-कार --- कवि/शायर
हुक्मरान --- शासक,राजा
फ़िक्र -- चिंतन
ज़रदार -- मालदार ,धनी
वाह!!!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका 🙏
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