November 27, 2023

इज़हारे-ख़याल : एक तरही ग़ज़ल

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कई दिनों बाद एक तरही ग़ज़ल सृजित हुई है।आपकी प्रतिक्रियाओं हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं:

मिसरा'-ए-तरह 👉 मैनें खुद से भी दोस्ती की है
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ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक 
@
सब  ख़ता  इसमें  आदमी की है,
साँस उखड़ी जो  ये  नदी  की है।

वो जो  सच  की  दुहाई  देता था,
झूठ   की   उसने  पैरवी  की  है।

धूप का  क्यों  न  ख़ैर मक़्दम हो,   
ठंड  भी  तो  ये  जनवरी  की  है। 
@
ताड़  तिल  का  बना  के  छोड़ेगा,
जैसी फ़ितरत उस आदमी की है।

हौसले  को  सलाम  है   गुल   के,
एक   पत्थर   से   दोस्ती  की  है।      

फूल-फल  ही  नहीं  दिए  केवल,
छाँव  भी   पेड़  ने   घनी  की है।

जो  ग़ज़ल  हम  सुना रहे हैं तुम्हें,
बस मुकम्मल अभी-अभी की है।
          @ओंकार सिंह विवेक

6 comments:

  1. Bahut sundar ghazal

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 29 नवंबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

    ReplyDelete

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