January 12, 2021

"हस्ताक्षर" की काव्य गोष्ठी

आज मुरादाबाद की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "हस्ताक्षर" की ओर से विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर  एक ऑनलाइन मुक्तक गोष्ठी का सफल आयोजन किया किया जिसमें मुझे भी सहभागिता का अवसर प्राप्त हुआ।गोष्ठी में मेरे द्वारा पढ़ी गई रचनाएँ:
आज कुछ चौपाईयाँ मौसम को लेकर
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              -----ओंकार सिंह विवेक
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 कुहरे    ने    चादर    फैलाई,
 सूर्य  देव   की  शामत आई।
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 कड़क  ठंड  ने  आफ़त ढाई,
 छोड़ें    कैसे    सखे    रज़ाई,
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  नाक  बंद , जकड़ा है सीना,
  हुआ  कठिन सर्दी में जीना।
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         ---ओंकार सिंह विवेक

शीत ऋतु: दो मुक्तक
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     ----ओंकार सिंह विवेक
                  रामपुर-उ0प्र0

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    जमा  दिया  नदियों का पानी,
    किया  हवा  को  भी  तूफ़ानी,
    पता  नहीं  कब तक सहनी है,
    हमें शिशिर की यह मनमानी।
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  💥
    और  न  अपना  कोप  बढ़ाओ  हे सर्दी  रानी,
    तेवर   में   कुछ  नरमी  लाओ  हे  सर्दी  रानी।
    कुहरा भी फैलाओ लेकिन हफ़्तों-हफ़्तों तक,
    सूरज  को  यों  मत  धमकाओ  हे  सर्दी रानी।
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               ----ओंकार सिंह विवेक
गोष्ठी में जिन साहित्य मनीषियों द्वारा काव्य पाठ करके कार्यक्रम को सफल बनाया गया उनके नाम इस प्रकार हैं:
श्रीमती निवेदिता सक्सेना जी 
डॉ. रीता सिंह जी
डॉ. ममता सिंह जी
श्रीमती हेमा तिवारी भट्ट जी
श्री राजीव 'प्रखर' जी
डॉ. अर्चना गुप्ता जी
श्री मनोज 'मनु' जी
श्री ओंकार सिंह 'विवेक' जी
श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' जी
श्री शिशुपाल 'मधुकर' जी
डॉ. पूनम बंसल जी
श्री अशोक विश्नोई जी 
श्री ज़मीर जिया साहब
डॉ0मक्खन मुरादाबादी जी
डॉ0मनोज रस्तोगी जी एवं
 डॉ. अजय 'अनुपम' जी ।
संस्था के पदाधिकारियों आदरणीय योगेंद्र वर्मा व्योम जी एवं प्रिय राजीव प्रखर जी को हार्दिक बधाई तथा संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना🙏🙏
----ओंकार सिंह विवेक

January 6, 2021

नया साल होगा

ग़ज़ल (नया साल:एक कामना)
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             -----ओंकार सिंह विवेक
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गए    साल   जैसा    नहीं   हाल   होगा,
है   उम्मीद   अच्छा   नया  साल   होगा।
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बढ़ेगी   न   केवल  अमीरों   की  दौलत,
ग़रीबों  के   हिस्से  भी  कुछ माल होगा।
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रहेगा    सजा    आशियाँ    रौशनी   का,
घरौंदा    अँधेरे     का    पामाल    होगा।
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जगत   में  सभी   और   देशों  से  ऊँचा,
सखे ! हिंद  का   ही  सदा  भाल  होगा।
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न   होगा   फ़क़त   फाइलों-काग़ज़ों  में,
हक़ीक़त  में  भी  मुल्क ख़ुशहाल होगा।
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                    ------ओंकार सिंह विवेक

December 24, 2020

स्व0श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी,स्व0श्री मदन मोहन मालवीय जी एवं स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी को श्रद्धा सुमन

आज 25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी, स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक भारत रत्न स्व0 पंडित मदन मोहन मालवीय जी एवं भारत -भारती पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार व पत्रकार स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी के जन्म दिवस के अवसर पर उनकी स्मृतियों को शत-शत नमन करते हुए अपने काव्य-सुमन अर्पित करता हूँ🙏🙏

1..स्व0 श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी
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  नैतिक  मूल्यों  का किया , सदा  मान-सम्मान,
  दिया  अटल  जी  ने  नहीं,ओछा कभी बयान।
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  विश्व-मंच   पर   शान  से , अपना  सीना  तान,
  अटल  बिहारी  ने  किया , हिंदी  का  सम्मान।
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  राजनीति  के  मंच  पर  , छोड़  अनोखी  छाप,
  सबके  दिल  में  बस गए, अटल बिहारी आप।
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 सारा  जग  करता  रहे , शत-शत  सदा प्रणाम,
 अटल  बिहारी  जी  रहे , अमर  आपका  नाम।
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2.स्व0 पंडित मदन मोहन मालवीय जी
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 निज व्यक्तित्व-कृतित्व की,छोड़ अनोखी छाप,
 सबके  दिल  में  बस  गए , मालवीय  जी आप।
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 गाँधी  अरु  टैगोर  ने ,  देख   श्रेष्ट   सब   काम,
 मालवीय  जी  को  दिया , महामना   का  नाम।
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3.स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी
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 यों   ही   थोड़ी   कर  रहा , याद  सकल  संसार,
 धर्मवीर   जी   आपके ,   लेखन   में   थी   धार।
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 जब  तक   संपादन   रहा  ,  धर्मवीर   के  पास,
 रही   बनाती   'धर्मयुग' ,  नए - नए   इतिहास।
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                          --///--ओंकार सिंह विवेक
                                   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
  

December 18, 2020

हैरानी से

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

दूर  है  वो   रिश्वत   के  दाना - पानी  से,
देख   रहे   हैं   सब  उसको   हैरानी   से।

यार बड़ों  के दिल का दुखना लाज़िम है,
नस्ले - नौ   की    पैहम  नाफ़रमानी  से।

कुछ   करना  इतना  आसान  नहीं होता,
कह   देते  हैं  सब  जितनी  आसानी  से।

मुझको  घर  में  मात-पिता  तो  लगते हैं,
राजभवन    में    बैठे    राजा - रानी   से।

रखनी  पड़ती   है  लहजे  में   नरमी   भी,
काम  नहीं  होते  सब  सख़्त  ज़ुबानी से।

ज़ेहन को हरदम कसरत करनी पड़ती है,
शेर     नहीं    होते   इतनी   आसानी   से।

होना   है   सफ़   में  शामिल  तैराकों  की,
और   उन्हें  डर  भी  लगता  है  पानी  से।
                     ---–-ओंकार सिंह विवेक
https://vivekoks.blogspot.com/?m=1

December 14, 2020

सब्र का सरमाया

ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
  मोबाइल 9897214710

सब्र  करना  जाने  क्यों  इंसान  को  आया  नहीं,
जबकि इससे बढ़के जग में कोई सरमाया नहीं।

आदमी  ने  नभ  के  बेशक  चाँद-तारे  छू  लिए,
पर  ज़मीं  पर  आज  भी रहना उसे आया नहीं।

धीरे - धीरे  गाँव   भी  सब  शहर  जैसे  हो  गए,
अब  वहाँ  भी  आँगनों  में नीम  की छाया नहीं।

लोग  कहते   हों  भले  ही  चापलूसी  को  हुनर,
पर  कभी उसको हुनर हमने तो बतलाया नहीं।

ज़हर  नफ़रत  का  बहुत उगला गया तक़रीर में,
शुक्र  समझो  शहर  का  माहौल  गरमाया नहीं।

देखलीं  करके   उन्होंने  अपनी  सारी  कोशिशें,
झूठ  का  पर  उनके हम पर रंग चढ़ पाया नहीं।
                                  ----ओंकार सिंह विवेक

www.vivekoks.blogspot.com

November 29, 2020

सर्दियाँ कैसे होंगी पार


दोहे सर्दी के
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                   ----ओंकार सिंह विवेक
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  मचा  दिया   कैसा  यहाँ , कुहरे  ने  कुहराम,
  दिन  निकले ही लग रहा,घिर आई हो शाम।
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   हर पल बढ़ता देखकर ,शीत लहर का ताव,
   गली-सड़क के मोड़ पर,जलने लगे अलाव।
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   गर्म  सूट  में  सेठ  का , जीना  हुआ  मुहाल,
   पर  नौकर  ने  शर्ट  में, जाड़े  दिए  निकाल।
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   सोचें  जैकब -हाशमी , नानक -रामस्वरूप,
   सूरज निकले तो तनिक,सेकें  हम  भी धूप।
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   तिल  के  लड्डू -रेवड़ी ,  मूँगफली -बादाम,
   तन   को  देते   हैं  बहुत ,  सर्दी  में  आराम।
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   तन  पर  लिपटे  चीथड़े, और शीत की मार,
   निर्धन   सोचे   सर्दियाँ  ,  कैसे   होंगी  पार।
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   जब  कुहरे  ने  रात-दिन,खेला शातिर खेल,
   पड़ी  काटनी सूर्य  को , कई-कई दिन जेल।
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                          ------ओंकार सिंह विवेक
                                  (सर्वाधिकार सुरक्षित)
  

November 20, 2020

दर्द का अहसास


ग़ज़ल-संग्रह "दर्द का अहसास" का विमोचन -------------------------------------
मेरे प्रथम ग़ज़ल-संग्रह "दर्द का अहसास" का विमोचन मेरे पिताजी श्री पी0 एल0 सैनी द्वारा किया गया।कोरोना काल को दृष्टिगत रखते हुए मैंने कोई बड़ा आयोजन न करते हुए पुस्तक का विमोचन दीपावली के शुभ अवसर पर अपने पिताश्री के कर कमलों द्वारा घर पर ही परिजनों की उपस्थिति में सादगी पूर्ण ढंग से सम्पन्न कराया।
प्रमुख साहित्यकारों /ग़ज़लकारों द्वारा की गयी मेरी ग़ज़लों की समीक्षा के कुछ  अंश यहाँ उदधृत हैं---
      तेज़ इतनी न क़दमों की रफ़्तार हो,
      पाँव की  धूल का सर पे अंबार हो।

      न  बन  पाया कभी दुनिया के जैसा,
      तभी तो मुझको दिक़्क़त हो रही है।

      शिकायत  कुछ  नहीं  है जिंदगी से,
      मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।

ओंकार सिंह विवेक भाषा के स्तर पर साफ़-सुथरे रचनाकार हैं।अगर वह इसी प्रकार महनत करते रहे तो निश्चय ही एक दिन अग्रणी ग़ज़लकारों में शामिल होने के दावेदार होंगे।
                                        -----  अशोक रावत,ग़ज़लकार (आगरा)
सोचता हूँ अब हवा को क्या हुआ,
गुलसिताँ  में  ज़र्द  हर पत्ता हुआ।

तंगहाली  देखकर  माँ - बाप की,
बेटी को यौवन लगा ढलता हुआ।

भरोसा  जिन  पे करता जा रहा हूँ,
मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ।

ओंकार सिंह विवेक के यहाँ जदीदियत और रिवायत की क़दम क़दम पर पहरेदारी नज़र आती है।उनकी संवेदनशील दृष्टि ने बड़ी बारीकी के साथ हालात का परीक्षण किया है।
                          ----शायर(डॉ0 )कृष्णकुमार नाज़ (मुरादाबाद )
उसूलों  की   तिजारत  हो  रही  है,
मुसलसल यह हिमाक़त हो रही है।

बड़ों  का   मान  भूले  जा  रहे   हैं,
ये क्या तहज़ीब हम अपना रहे हैं।

 इधर  हैं झुग्गियों  में  लोग भूखे,
 उधर महलों में दावत हो रही है।

ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़लों में वर्तमान अपने पूरे यथार्थ   के साथ उपस्थित है। मूल्यहीनता, सामाजिक विसंगति, सिद्धांतहीनता, नैतिक पतन, सभ्यता और संस्कृति का क्षरण आदि ; आज का वह सब जो एक संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित करता है,उनकी शायरी में मौजूद है।                  
             ----- साहित्यकार अशोक कुमार वर्मा,आई0 पी0 एस0      (सेनानायक,30 वीं वाहिनी पी0ए0सी0,गोण्डा) 

विशेष---ग़ज़ल संग्रह लिस्टिंग के बाद शीघ्र ही फ्लिपकार्ट पर भी बिक्री के लिए उपलब्ध होगा। फ़िलहाल पुस्तक को गूगल पे अथवा पेटीएम द्वारा ₹200.00 (₹150.00 पुस्तक मूल्य तथा ₹50.00 पंजीकृत डाक व्यय) का मोबाइल संख्या 9897214710 पर भुगतान करके प्राप्त किया जा सकता है।
अधिक जानकारी के लिए मोबाइल संख्या 9897214710 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

October 26, 2020

रौशनी फूटेगी इस अँधियार से


रौशनी फूटेगी इस अँधियार से
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                                      ------ ओंकार सिंह विवेक
"यह काम बहुत मुश्किल है,मैं इसमें सफल नहीं हो सकता।"
"मैंने प्रयास करके देख लिया ।इस काम में मुझे आगे भी असफलता ही हाथ लगेगी।"
"भाई क्या किया जाए हमारे मुक़द्दर में तो कामयाबी लिखी ही नहीं है। आख़िर कब तक कोशिश जारी रखें।"
लोगों के इस तरह के नकारात्मक कथन हम अक्सर ही सुनते हैं।एक बार को तो ऐसी निराशावादी सोच अच्छे -अच्छों के विश्वास को हिला देती है।जो लोग उत्साह के साथ किसी काम को करने की तैयारी में होते हैं वे भी दूसरों के मुँह से ऐसी निराशावादी बातें सुनकर हौसला खोने लगते हैं।लेख के प्रारम्भ में मैंने जिन कथनों का उल्लेख किया है ,ऐसे विचार कदापि किसी के मन में नहीं आने चाहिए।यह काम बहुत मुश्किल है ,यह मैं नहीं कर सकता आदि आदि----ऐसी भावना मन में रखकर कभी काम शुरू नहीं करना चाहिए।चाहे काम कितना भी मुश्किल क्यों न हो पूरे उत्साह और अपनी शत-प्रतिशत सामर्थ्य के साथ आशावादी रहते हुए प्रारम्भ करना चाहिए।यदि सोच सही होगी तो निश्चित ही सफलता की संभावना अधिक रहेगी।यदि पूर्ण समर्पित प्रयास के बाद भी सफलता प्राप्त न हो तो भी घबराने या दिल छोटा करने जैसी बात मन में नहीं आनी चाहिए।संसार में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जब लोगों को लक्ष्य हासिल करने से पहले कई-कई बार असफलता का सामना करना पड़ा है तब कहीं जाकर सफलता हासिल हुई है।इस बीच ऐसे लोगों ने संघर्ष और प्रयास करने नहीं छोड़े वरन दूने उत्साह से फिर प्रयास करने के संकल्प लिए।घोर अँधेरों के बीच से ही रौशनी की किरण फूटती है अतः हमें विपत्ति या असफलता में कभी साहस नहीं छोड़ना चाहिए।सोना भी पहले लगातार आग पर तपता है तब कहीं जाकर उसमें चमक आती है ।संसार में जब हमने तमाम सफल लोगों की कहानियाँ पढ़ीं और सुनीं तो पाया कि उन्हें सफल होने से पहले सैकड़ों असफलताएँ और रिजेक्शन झेलने पड़े थे।लोगों ने उनसे यहाँ तक कह दिया था कि तुम्हारे अंदर ऐसी क्षमता है ही नहीं की इस काम को अंजाम दे सको।मगर उन सफल लोगों ने बताया कि ऐसी बातों ने उनके अंदर एक नया स्पार्क पैदा किया ।उन्होनें ऐसी बातों को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और वे दूने उत्साह से प्रयास करने में जुटे जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सफलता का स्वाद चखने को मिला।
अतः किसी भी दशा में हमें अपना लक्ष्य पाने के प्रयास को कमज़ोर नहीं पड़ने देना चाहिए।
मैंने साहस और संघर्ष को बनाए रखने की बातें अपनी शायरी में अक्सर ही कहीं हैं अतः अपनी  कुछ अलग-अलग ग़ज़लों के अशआर उदधृत करते हुए बात समाप्त करता हूँ--
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हो अगर साहस तो संकट हार जाते हैं सभी,
रुक नहीं  पाते  हैं कंकर तेज़ बहती धार में।
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चीर कर पत्थर का सीना बह रही जो शान से,
प्रेरणा  ले  उस  नदी  से  संकटों को पार कर।
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रख ज़रा नाकामियों में हौसला,
रौशनी फूटेगी इस अँधियार से।
💥

            ----दोस्तो आज इतना ही ,मिलते हैं कल फिर किसी विषय पर सार्थक चर्चा के लिए🙏🙏
----ओंकार सिंह विवेक

October 22, 2020

विडंबना

💥विडंबना💥
                     ----ओंकार सिंह विवेक
नमस्कार मित्रो🙏🙏

यह एक विडंबना ही है कि आज सब लोग विरोधाभासों के बीच जी रहे हैं।अक्सर लोग दूसरों को सच्चाई और साफ़गोई की नसीहत देते हैं परंतु उन्हें स्वयं चापलूसी पसंद आती है।ऐसा भी देखने में आता है कि लोग ख़ुद तो किसी से बातचीत का तरीक़ा नहीं जानते परंतु दूसरों को बातचीत करने के सलीक़े पर ज़ोरदार भाषण देते हैं।आज मनुष्य के लक्ष्यहीन होने की यह स्थिति है कि वह उन रास्तों पर दौड़ा चला जा रहा है जिन रास्तों की मंज़िल का ही कोई पता नहीं है।आज आदमी के धैर्य,साहस और संयम तो जैसे चुक ही गए हैं।जीवन में ज़रा सी भी असफलता या नाकामी मिलने पर हाथ-पाँव छोड़कर बैठ जाता है।जबकि नई ऊर्जा के साथ यह सोचकर पुनः प्रयास करना चाहिए कि असफलता का अँधेरा ही मनुष्य के जीवन में सफलता की रौशनी के द्वार खोलता है।
यदि हम व्यक्ति के जीवन में त्याग या क़ुर्बानी की भावना की बात करें तो खिलते फूलों से अच्छी त्याग या क़ुर्बानी की प्रेरणा हमें भला और कौन दे सकता है जो मसलने वाले के हाथों को ही महका देते हैं।
काश!ऐसे ही दृष्टांतों से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन को सुंदर बना सकें।
शेष कल------
//*******ओंकार सिंह विवेक

इन्हीं भावों को लेकर कही गई मेरी ताज़ा ग़ज़ल पढ़िए-👎👎
(ग़ज़ल के पहले शेर के दूसरे मिसरे में सदा के स्थान पर यहाँ पढ़ा जाए)

October 19, 2020

पुस्तक के बहाने


वक़्त से पहले कोई काम पूरा नहीं होता।लगभग एक वर्ष पूर्व मैंने अपने  प्रथम ग़ज़ल संग्रह को प्रकाशित कराने का निश्चय किया था।कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं और लंबे कोरोना काल के कारण यह काम टलता चला जा रहा था।अब कुछ परिस्थितियाँ सामान्य होने पर पुनः एकाग्रता के साथ प्रयास किए हैं।सब कुछ ठीक रहता है तो नए वर्ष के प्रथम सप्ताह में मेरा ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" प्रतिक्रिया हेतु सभी शुभचिंतकों के संमुख आ जाएगा।इस अवसर पर मुझे यह सूचना साझा करते हुए ऐसी ही ख़ुशी का अनुभव हो रहा है जैसे परिवार में संतान के पैदा होने पर होता है।एक कवि या लेखक को अपनी पुस्तकें अपनी संतान जितनी ही प्रिय होती हैं। यहाँ आप सब की प्रतिक्रिया हेतु किताब का मुखपृष्ठ  साझा कर रहा हूँ।

    इंसानियत के फ़र्ज़ का आभास लिख दिया,
    रिश्तों  के टूटने  का भी संत्रास  लिख दिया।
    जब  फ़िक्र  की उड़ान बढ़ी उसके फ़ज़्ल से,
    मैंने  जहाँ के दर्द  का अहसास लिख दिया।
                              -----ओंकार सिंह विवेक

October 15, 2020

सरोकार मानवीय संवेदनाओं से


सरोकार मानवीय संवेदनाओं से ----
                                            *****ओंकार सिंह विवेक
सोचा आज फिर कोई मानवीय संवेदना और सरोकार से जुड़ी बात की जाए----------
हमारे अनमोल जीवन की सार्थकता इस बात में है कि हम एक दूसरे  के दुःख-दर्द को बाँटकर जीने की कला विकसित करें।दूसरों के दुख-दर्द को महसूस करके उसमें सहभागी बनने से जो ख़ुशी का भाव स्वयं के भीतर उत्पन्न होता है उसको बयान करना बहुत मुश्किल है।इस कला को अपने भीतर विकसित करने के लिए हमें अपने मन में बैठे छल ,कपट और द्वेष के भावों को दूर करना होगा।अगर ये भाव मन में घर जमाकर बैठे रहेंगे तो दया और परोपकार के  भाव तो हमारे मन के दरवाज़े से ही वापस लौट जाएँगे। इस कड़ी में वाणी में मिठास के द्वारा अपने व्यक्तित्व का शृंगार करना भी अति आवश्यक है।हमारी वाणी से निकला प्रत्येक शब्द ऐसा  हो कि  सुनने वाले व्यक्ति का तन और मन प्रफुल्लित हो उठे। व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए इन गुणों का अपने अंदर  विकास करते समय हमारे सामने अनेक बाधाएँ एवं संकट आ सकते हैं परंतु उनका हमें इस प्रकार सामना करना होगा जैसे एक नदी कंकरों और पत्थरों का सीना चीरकर बिना विचलित  हुए पूरे वेग से बहती रहती है।
आज लोग अपने अंदर दया और प्रेम जैसे मानवीय गुणों का निरंतर ह्रास होने के  कारण  मानवता पर नफ़रतों के वार करके उसे घायल कर रहे हैं।ज़रूरत है कि हम सब मिलकर  प्रेम और सद्भाव रूपी औषधियों के द्वारा नफ़रत के प्रहार से घायल हुई मानवता का उपचार करके उसका जीवन बचाएँ।
प्रसंगवश अपनी ग़ज़ल के दो शेरों को उदधृत करते हुए बात समाप्त करता हूँ--

           हो सके  जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
           बाँट  कर  दुख-दर्द  बंदे  हर किसी से प्यार कर।

           नफ़रतों   की  चोट  से   इंसानियत  घायल   हुई,
           ज़िंदगी  इसकी   बचे   ऐसा  कोई  उपचार  कर।
                               🙏🙏💥💥ओंकार सिंह विवेक

आओ कुछ बातें करें

October 9, 2020

प्रथम पुरस्कार प्राप्त ग़ज़ल


"अनकहे शब्द" संस्था द्वारा प्रथम पुरस्कार हेतु चुनी गई मेरी ग़ज़ल का आप भी आनंद लीजिए---
ग़ज़ल प्रतियोगिता: 62
      ----ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
कुछ  मीठा  कुछ  खारापन  है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।

 कैसे   आँख   मिलाकर  बोले,
 साफ़ नहीं जब उसका मन है।

 उनसे    ही   तो   शिकवे  होंगे,
 जिनसे   थोड़ा  अपनापन  है।

 धन  ही  धन है इक तबक़े पर,
 इक  तबक़ा  बेहद  निर्धन  है।

 सूखा  है  तो  बाढ़  कहीं  पर,
 बरसा  यह  कैसा  सावन  है।

कल  निश्चित ही  काम  बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।

दिल  का  है वह साफ़,भले ही,
लहजे  में  कुछ  कड़वापन  है।
        ----ओंकार सिंह विवेक
          (सर्वाधिकार सुरक्षित)

October 8, 2020

क्या करें वक़्त ही नहीं मिलता

क्या करें वक़्त ही नहीं मिलता
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                     ----ओंकार सिंह विवेक
मैंने इंटरमीडिएट तो कर रखा है।इधर काफ़ी दिनों  से प्राइवेट बी0 ए0 करने की सोच रहा हूँ परंतु पढ़ाई का समय ही नहीं मिलता। मेरा वज़्न लगातार बढ़ रहा है जिससे कुछ शारीरिक परेशानियाँ भी बढ़ रही हैं।कब से जिम ज्वाइन करने की सोच रहा हूँ पर समय ही नहीं निकाल पा रहा हूँ।मुझे बचपन से ही गायन और वादन में रुचि रही है ।पढ़ाई के दबाव के कारण विद्यार्थी जीवन में तो अपने इस शौक़ को मैं परवान न चढ़ा सकी।सोचा था बाद में ज़रूर मैं गायन और वादन को मनोयोग से सीखकर अपने शौक़ को पूरा करूँगी लेकिन अब शादी के बाद तो घर-गृहस्थी और बच्चों की देखभाल में ही सारा समय निकल जाता है।अपनी रुचि को पूरा करने का बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता।
किसी काम को न करने या न सीखने के पीछे ऐसे  ही तमाम अव्यवहारिक कारण लोग अक्सर ही गिनाते मिल जाएँगे।
दुनिया में हर व्यक्ति को अपने क्रिया-कलापों को करने के लिए चौबीस घंटे का समय ही उपलब्ध है।ऐसा बिल्कुल नहीं है कि संसार में जिन व्यक्तियों ने साधारण से हटकर कुछ  किया है उनके पास रात और दिन को मिलाकर चौबीस घंटे से अधिक समय रहा है।उन्होंने चौबीस घंटों में से ही सारे दैनिक क्रिया-कलापों को करने के बाद कुछ असाधारण करने के लिए भी समय निकाला है।अतः यह बात तो यहीं ग़लत साबित हो जाती है कि क्या करें हमें तो कुछ अलग करने के लिए वक़्त ही नहीं मिलता।
हम असाधारण काम करने वाले लोगों के साक्षात्कार और जीवनियाँ पढ़कर उनके द्वारा कार्य निष्पादन हेतु किए गए समय प्रबंधन से बहुत कुछ सीख सकते हैं। दरअस्ल किसी विशेष उपलब्धि को हासिल करने या अपने शौक़ को पूरा करने के लिए कहीं से या किसी से समय मिलता नहीं है अपितु समय निकालना पड़ता है अर्थात समय का प्रबंधन (Management)करना पड़ता है।हम अपने  देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के बारे में अक्सर पढ़ते हैं कि वह सिर्फ़ चार घंटे ही सोते हैं।इस प्रकार हम देखते हैं कि वह अपने सोने के समय में से भी कई घंटे अन्य असाधारण कामों के लिए निकाल लेते हैं।यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति और अनुशासित जीवन शैली के कारण ही संभव हो पाता है।ऐसे ही अनेक महापुरुषों,खिलाड़ियों और वैज्ञानिकों आदि के उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं जिनसे प्रेरणा लेकर हम बेहतर टाइम मैनेजमेंट करके अपने जीवन को औरो से भिन्न बना सकते हैं।अगर हम समय का सही प्रबंधन करना सीख लें  तो कभी किसी से यह नहीं कहना पड़ेगा कि क्या करें हमें तो अमुक काम करने के लिए समय ही नहीं मिलता। 
प्रसंगवश मेरे कुछ शेर प्रस्तुत हैं----
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ज़िंदगी अपनी  बदलना सीखिए,
वक़्त के साँचे में ढलना सीखिए।

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क़द्र जितनी भी हो सके कीजे,
वक़्त गुज़रा तो फिर न आएगा।

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               ------ओंकार सिंह विवेक🙏🙏

October 6, 2020

महत्व संवाद का


महत्व संवाद का
            ------ओंकार सिंह विवेक
लोग अक्सर ही कोई विशेष कारण न होते हुए भी किसी के प्रति अपनी एक पक्षीय धारणा बनाकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो जाते हैं।इस ग़लत फ़हमी के कारण वे अनावश्यक रूप से  अपनी चिंता और परेशानी  को बढ़ाकर तनावग्रस्त रहने लगते हैं।
मसलन अगर कोई कह दे  कि अमुक व्यक्ति तुम्हारे बारे में कुछ नकारात्मक बातें कर रहा था तो यह सुनकर लोग आग बबूला हो जाते हैं और केवल सुनी- सुनाई बातों के आधार पर ही अमुक व्यक्ति के प्रति मन में एक काल्पनिक धारणा बना लेते हैं। उस समय लोग जाने क्यों यह ज़रूरी नहीं समझते कि उस व्यक्ति से भी सच्चाई को जानने के  लिए संवाद किया जाए जिसके  बारे में किसी दूसरे  व्यक्ति ने अपने ही ढंग से  कुछ बताया था।अक्सर देखा गया है कि दफ़्तर में किसी बात  को लेकर लोग उच्च अधिकारियों से सीधे बात करने से बचते रहते हैं और लगातार अपने मानसिक तनाव को बढ़ाते  रहते हैं।जबकि उच्च अधिकारियों से किसी समस्या को लेकर तुरन्त ही  संवाद किया जाए तो बहुत मुमकिन है कि आसानी से समस्या का समाधान हो जाए।
वास्तव में आपसी संवाद का बहुत बड़ा महत्व है।संवाद करने में संकोच करने या संवाद के रास्ते बंद कर देने से  समस्या और विकराल होती जाती है।  संवाद जारी रखने या उसकी पहल करने से निश्चित ही समस्या का  समाधान सम्भव है।
        रखनी  है  मज़बूत यदि,रिश्तों की बुनियाद,
        समय-समय पर कीजिए,आपस में संवाद।
                                  ---ओंकार सिंह विवेक

October 4, 2020

हर किसी से प्यार कर

हर किसी से प्यार कर
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       -------ओंकार सिंह विवेक

यह कहना कितना अच्छा लगता है कि हमें हर किसी से प्यार करना चाहिए। पर क्या व्यवहार में सब लोग ऐसा कर पाते हैं ?उत्तर है शायद नहीं।कोई आदर्श बात बोल देना या उस पर वक्तव्य दे देना एक अलग बात है  पर उसे स्वयं अमल में लाना दूसरी बात। यदि सभी लोग अपनी कथनी और करनी में एक समान हो जाएँ तो बहुत सी समस्याओं का हल हो जाए।
आज लोग अपने सीमित दायरों की सोच और स्वार्थ के चलते हर किसी से प्यार की बात कैसे कर सकते हैं। वे लोग विरले ही होते हैं जो अपना स्वार्थ त्याग कर दूसरों की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी और असली ख़ुशी का आनंद मानते हैं। यह सही है कि अपनी और अपने घर -परिवार की ख़ुशी महत्वपूर्ण है पर जो व्यक्ति इससे ऊपर उठकर अपनी सोच को विस्तार दे पाते हैं और प्रकृति में विद्यमान हर चीज़  से स्नेह का भाव रखते हैं वे महान होते हैं।सोच को इस हद तक ऊँचा कर लेने से हमारे और हमारे घर -परिवार की ख़ुशी तो स्वतः ही इसमे निहित हो जाती है।प्रकृति द्वारा उत्पन्न की गई किसी भी चीज़ के प्रति मानव में घृणा का भाव नहीं होना चाहिए।प्रकृति में विद्यमान सभी चीजों को मर्यादा में रहते हुए अपने अस्तित्व को बचाए रखने का अधिकार है।मानव को सदैव पर सेवा,उपकार और हर किसी से प्यार करने की भावना को अपने अंदर विकसित करना चाहिए।
हम छल,कपट , द्वेष और घृणा से दूर रहकर यदि अपने मन  में हर किसी से प्यार करने के भाव का विकास करें तो  स्वयं के साथ ही संसार को भी सुंदर बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं।

हो सके जितना भी तुझ से उम्र भर उपकार कर,
बाँट  कर  दुख-दर्द  बंदे  हर  किसी से प्यार कर।
                                         #ओंकार सिंह 'विवेक'

September 27, 2020

असर संगत का

असर संगत का
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           ---------ओंकार सिंह विवेक
अक्सर कहते सुना जाता है कि अमुक आदमी चाल-चलन और व्यवहार का ठीक नहीं है।ऐसे आदमी से लोग बचने की नसीहत करते हैं जो ठीक भी है। यही कहने और सुनने में आता है कि उसकी संगत ही ठीक नहीं रही वरना  उसका चाल-चलन और व्यवहार ऐसा न होता।निःसंदेह यह बात ठीक भी है।हम जिस परिवेश में रहेंगे उसका असर हमारे व्यक्तित्व पर निश्चित रूप से पड़ेगा।आदमी जिन लोगों के बीच रहता है उन लोगों के  संस्कार भी सीखता है।नशा करने वालों या जुआ खेलने वालों के साथ उठने-बैठने वाले लोग अगर नशा करें या जुआ खेलें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।आपराधिक या अनैतिक प्रवृत्तियों के लोगों के साथ उठने-बैठने से ऐसी ही आदतें हमारे अंदर विकसित होने का ख़तरा स्वाभाविक है।पर इससे इतर भी एक बात है जो महत्वपूर्ण है।कुछ लोग अपने अंदर कुछ ऐसे नैतिक और आध्यात्मिक बल का विकास कर लेते हैं कि अगर उनका बुरी संगत से वास्ता भी पड़े तो वे उससे प्रभावित हुए बिना अपने सदगुणों का ही विकास करते रहते हैं।वास्तव में यह एक आदर्श स्थिति है।इसके पीछे श्रेष्ठ व्यक्तियों का यही तर्क रहता  है कि अगर बुरे लोग अपनी बुराई नहीं छोड़ रहे तो हम अपनी अच्छाई कैसे छोड़ दें। उनके ऐसे विचार अनुकरणीय एवं वंदनीय हैं।ऐसे व्यक्तित्वत वास्तव में विरले और महान होते हैं जिनसे हमें सदैव प्रेरणा लेनी चाहिए।
अतः जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें सदैव बुरी संगत से बचना होगा और यदि बुरे लोगों के संपर्क में आना भी पड़े ,तो ऐसे लोगों को अपना आदर्श मानकर उनसे सीख लेनी होगी जो बुरी संगत में भी अपनी अच्छाईयों से विमुख नहीं हुए। बुरी संगत से दो चार होने पर हमें अपने उच्च आचरण और नीतिगत विचारों से बुरे लोगों को अच्छा बनाने का भरसक भरसक प्रयत्न करना चाहिए।
प्रसंगवश आज फिर अपने एक शेर से बात समाप्त करता हूँ--
यक़ीनी तौर पर सबको असर सोहबत का  मिलता है,
मगर यह बात भी सच है कमल कीचड़ में खिलता है।
                                    ------ओंकार सिंह विवेक

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
 मोबाइल 9897214710
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पंछी  नभ  में  उड़ता  था  यह  बात  पुरानी है,
अब  तो  बस  पिंजरा  है ,उसमें दाना-पानी है।
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वे   ही  आ   पहुँचे  हैं  जंगल  में  आरी  लेकर,
जो  अक्सर  कहते  थे  उनको छाँव बचानी है।
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आज  सफलता चूम रही है जो इन  क़दमों को,
इसके   पीछे   संघर्षों    की   एक  कहानी  है।
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मुस्काते  हैं   असली  भाव  छुपाकर  चहरे   के,
कुछ   लोगों  का   हँसना-मुस्काना  बेमानी  है।
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बाँध लिया जब अपना बिस्तर बरखा की रुत ने,
जान   गए   सब   आने   वाली   सर्दी  रानी  है।
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क्यों  होता  है  जग  में  लोगों  का आना-जाना,
आज  तलक  भी बात भला ये किसने जानी है।
🌸              -------ओंकार सिंह विवेक



September 23, 2020

प्रेरणा


प्रेरणा
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       ----ओंकार सिंह विवेक
शुभ प्रभात मित्रो,🙏💥🙏

प्रेरणा---यह छोटा सा शब्द अपने आप में एक बहुत बड़ी सकारात्मक ऊर्जा समेटे हुए है।आशावादी सोच के साथ घटनाओं से सृजनात्मक प्रेरणा ग्रहण करने की प्रवृत्ति ही व्यक्ति को सफलता के शिखर तक पहुँचाती है।जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा व्यक्ति प्रकृति में विद्यमान किसी भी जड़ अथवा चेतन से ग्रहण कर सकता है।कल -कल करके बहती  नदी से जीवन में निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा ली जा सकती है।उपवन में काँटों के बीच खिलते फूलों से कठिनाइयों में भी मुस्कराते रहने की सीख ली जा सकती है।पेड़ गर्मी,बरसात और जाड़े सहकर भी हमें निरंतर छाया और फल देते रहते हैं।उनके इस आचरण से हम परोपकार का गुण ग्रहण कर सकते हैं।प्रकृति में घटित होने वाली दिन और रात की घटनाएँ भी हमें एक बड़ा संदेश और प्रेरणा देती हैं।प्रकृति ने  जिस प्रकार रात के बाद दिन का उदय होना निश्चित किया है उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में दुखों के बाद सुख का आगमन भी निश्चित है।अतः यह दिन और रात का क्रम भी निश्चित  ही मानव के लिए एक नई प्रेरणा और संदेश है।जीवन में मिलने वाली तमाम असफलताएँ भी हमें एक प्रेरणा ,संदेश ओर नई सोच देकर जाती हैं।असफलता से हम यह सीख सकते हैं कि कहाँ हमारे प्रयासों  में कमी रही जिस कारण हम सफलता पाने से वंचित रहे। इस पर चिंतन करके हम फिर से नई ऊर्जा और उत्साह के साथ मंज़िल की ओर बढ़ सकते हैं।झरनों का पहाडों से नीचे गिरना,रेगिस्तान में दूर तक  रेत का होना ,जंगल में जानवरों का दौड़ते फिरना और पक्षियों का उड़ना कुछ न कुछ प्रेरणा और संदेश देता है बस ज़रूरत है स्वस्थ्य नज़रिए औए सोच से इन चीजों को देखने और समझने की और इनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सुंदर बनाने की।
तो आइए प्रकृति में होने वाले  हर घटनाक्रम और प्रसंग से हम कुछ प्रेरणा लेकर अपनी सोच को सकारात्मक बनाएँ और जीवन में आगे बढ़ने का  प्रण करें।
प्रसंगवश मुझे अपनी अलग -अलग ग़ज़लों के कुछ शेर याद आ रहे हैं--
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ग़म  की  पैहम  बारिशों   में   मुस्कुराना   चाहिए,
मुश्किलों  को अज़्म  की क़ूवत दिखाना चाहिए।
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रख ज़रा नाकामियों में हौसला,
रौशनी फूटेगी इस अँधियार से।
💥
जीवन  में ग़म  आने  पर  जो  घबरा   जाते  हैं,
उनको हासिल ख़ुशियों की सौग़ात नहीं होती।
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जिस दिन से तुम मंज़िल को पाने की ठानोगे,
उस  दिन  से  रस्ते  हरगिज़  दुश्वार नहीं रहने।
💥

आज फ़िलहाल इतना ही-----
कल फिर कुछ और ऐसी ही सार्थक चर्चा करते हैं।
****** ओंकार सिंह विवेक

September 19, 2020

क़ानून में सुधार भी अच्छे संस्कार भी

क़ानून में सुधार भी अच्छे संस्कार भी
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              -------ओंकार सिंह विवेक
निर्भया बलात्कार ,हैदराबाद में महिला पशुचिकित्सक की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या,उन्नाव काँड, कानपुर का विकास दूबे काँड  या देश में इसी तरह की तमाम हत्या,बलात्कार,हिंसा,चोरी,डकैती, लूट,ठगी या या अन्य अपराधों की दिल दहला देने वाली घटनाएँ कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।बार बार दिमाग़ में यही सवाल आता है कि आख़िर हम किधर जा रहे हैं।जब इस तरह की घटनाएँ होती हैं तो कुछ समय के लिए चर्चा होती है,डिबेट और बुद्धिजीवियों का चिंतन चलता है पर फिर से सब उसी ढर्रे पर लौट आते हैं।
अक्सर यह बात ज़ोर शोर से उठायी जाती है कि अब हमारे देश के क़ानूनों में सख़्त प्रावधानों की ज़रूरत है ताकि अपराधी को क़ानून की सख़्ती का कुछ भय हो।यह बात किसी हद तक सही भी है।आज अपराधी और उनके पैरोकार क़ानून के लचीलेपन के कारण क़ानून तोड़ने और क़ानून की गिरफ्त से बचने के लिए क़ानून का ही सहारा ले रहे हैं।यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।जघन्य अपराध करके अपराधी चंद दिन में ही जेल से ज़मानत पर छूटकर पीड़ित को धमकाने लगते हैं। क़ानून की यह  विवशता समझ नहीं आती।न्याय प्रक्रिया इतनी विलंबित है कि न्याय का उद्देश्य ही ख़त्म हो जाता है।जटिल क़ानूनी प्रक्रिया और  उसके लचीलेपन का फ़ायदा उठाकर वकील आसानी से अपराधियों को बचाकर लिए जा रहे हैं। इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि अप्रसांगिक हो चुके क़ानूनों को समाप्त करके नए और सख़्त क़ानून बनाये जाएँ तथा आवश्यक प्रचलित क़ानूनों के सभी छेद बन्द करके न्याय व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त किया जाए।
 इस तरह की चिन्ताजनक परिस्थितियों की बात करते समय हमें इसके एक दूसरे महत्वपूर्ण पहलू पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।वर्तमान आधुनिक परिवेश में निरंतर दूषित होते संस्कार भी इस तरह की घटनाओं का एक प्रमुख कारण हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में परिवारों में बच्चों को प्रारंभ से ही सत्य के प्रति अनुराग और नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति जागरूक करने की प्रथा प्रायः समाप्त सी होती जा रही है।मानवीय मूल्यों में आस्था और उच्च आचरण की महत्ता रेखांकित करने और उसे युवा पीढ़ी को बताने की आज किसी के पास फ़ुरसत ही नहीं है।आज लोग सोशल मीडिया या फिल्मों से अच्छी बातें तो कम सीख रहे हैं गलत आचरण और अपराध करके बच निकलने के तरीक़ों के बारे में अधिक सीख रहे हैं।यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है।
अतः इस तरह की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए जहाँ एक ओर क़ानून में सुधार की ज़रूरत है वहीं दूसरी और घर परिवार और समाज के स्तर पर नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार और नैतिक शिक्षा के प्रति जागरूक करने और अपने कार्यों के प्रति ईमानदार और पारदर्शी बने रहने तथा अच्छे चाल चलन की नसीहत करना भी बहुत ज़रूरी है।ऐसा करके ही समाज और देश को पतन से बचाया जा सकता है।
शेष फिर---🙏🙏
(ओंकार सिंह विवेक)

September 17, 2020

अच्छा आदमी

अच्छा आदमी
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--------ओंकार सिंह विवेक( सर्वाधिकार सुरक्षित)
अच्छे आदमी की जब हम बात करते हैं तो स्वाभाविक रूप से सोचने पर यही माना जाता है कि जो व्यक्ति वास्तव में अच्छा है उसे ही सब लोग अच्छा आदमी कहेंगे। परंतु सच में ऐसा नहीं होता।आज  हम कई दृष्टि से इसकी पड़ताल करेंगे। समाज में अच्छे आदमी की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नज़र नहीं आती।अच्छे आदमी को लेकर आज समाज में हर व्यक्ति ने अपने अलग मानदंड और मानक निर्धारित कर रखे हैं।
किसी व्यक्ति को दूसरा व्यक्ति तभी अच्छा कहता है जब वह उसकी हर अच्छी बुरी बात से सहमति जताए और उसका सम्मान करे ।अपनी प्रतिभा या ज्ञान का उसके सामने प्रदर्शन न करे।किसी बात पर आवश्यक होने पर भी तर्क वितर्क न करे अर्थात सदैव यस  मैन की भूमिका में रहे। आदमी इतना स्वार्थी और अहंकारी हो गया है कि वह किसी को भी अपने सामने प्रतिस्पर्धा में देखना नहीं चाहता,जो उससे तर्क करे या उसके ग़लत कामों पर ऊँगली उठाए वह अच्छा आदमी नहीं है।यदि कोई विरला ऐसे आदमी को अच्छा आदमी स्वीकारने की बात करता भी है तो बहुत किंतु ,परंतु के बाद ही।आदमी दूसरों के साथ जैसा नहीं करता वह दूसरों से अपने लिए वैसा करने की अपेक्षा रखता है।मसलन दूसरे को कभी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता और न ही सम्मान से सलाम, नमस्ते करता है परंतु चाहता है  कि दूसरे उसका सम्मान करें और उसके सामने सर भी झुकाएँ और सदैव विनम्र बने रहें।अपने इन्हीं पूर्वाग्रहों के जाल में रहकर वह अच्छे और बुरे आदमी की परिभाषा गढ़ता है।मैं समाज के सभी लोगों को इस श्रेणी में नहीं रखता पर अधिकाँश पर यही बात लागू होती है।
सोचकर देखिए क्या हमारे द्वारा गढ़ी गई अच्छे आदमी की यह एक पक्षीय परिभाषा उचित है? शायद नहीं।
पर अच्छे आदमी को इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता।वह अच्छा आदमी है तो है।वह तो हमेशा सही को सही और ग़लत को ग़लत कहता रहेगा और बिना कोई भेद किए हर व्यक्ति से अपेक्षित व्यवहार करता रहेगा चाहे समाज में रहकर उसे अपने निष्कपट और साफ़गोई से भरे व्यवहार के लिए कुछ भी क़ीमत चुकानी पड़े।
             ----------ओंकार सिंह विवेक
( कल फिर इसी तरह की किसी चर्चा के लिए आपका ब्लॉग पर इंतज़ार रहेगा,नमस्कार!!!!🙏🙏 )

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सभी साहित्य मनीषियों को सादर प्रणाम 🌷🌷🙏🙏******************************************* आज फिर विधा विशेष (ग़ज़ल) के बहाने आपसे से संवाद की ...