June 24, 2022
जो ग़ज़लों को रवानी दे रही है
June 23, 2022
द्रौपदी मुर्मू
June 21, 2022
योग दिवस/ Yoga Day
June 19, 2022
Father's Day
June 17, 2022
शुभ प्रभात🙏🙏💐💐शुभ प्रभात🙏🙏🌹🌹
June 14, 2022
समस्या--पूर्ति
June 12, 2022
बनारस तेरी शान निराली
June 10, 2022
शायरी/कविता के बहाने
June 8, 2022
रामपुर की बात
June 7, 2022
सरस्वती-वंदना
सरस्वती वंदना--दोहे🌷
----ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
🌷
हो मेरा चिंतन प्रखर , बढ़े निरंतर ज्ञान।
हे माँ वीणावादिनी , दो ऐसा वरदान।।
🌷
मातु शारदे आपका , रहे कंठ में वास।
वाणी में मेरी सदा , घुलती रहे मिठास।।
🌷
यदि मिल जाए आपकी,दया-दृष्टि का दान।
माता मेरी लेखनी , पाए जग में मान।।
🌷
किया आपने शारदे , जब आशीष प्रदान।
रामचरित रचकर हुए , तुलसीदास महान।।
🌷
हाथ जोड़कर बस यही, विनती करे 'विवेक'।
नैतिक बल दो माँ मुझे,काम करूँ नित नेक।।
🌷
------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
June 6, 2022
सच की फौजों पर अब झूठों------
June 4, 2022
साहित्य की सेवा
June 2, 2022
अपनी बात : दोहों के साथ
May 30, 2022
समीक्षा के बहाने
May 27, 2022
कुछ अपनी कुछ कविता की
May 25, 2022
दोस्ती किताबों से
May 23, 2022
अभी कल की ही तो बात है
May 20, 2022
बस यूँ ही ख़याल आ गया
May 16, 2022
जीवन की राहों को कुछ आसान करूँ
May 14, 2022
थोथा ज्ञान
May 9, 2022
इतने तेवर दिखा न ऐ सूरज
ग़ज़ल----ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
ज़ोर शब का न कोई चलना है,
जल्द सूरज को अब निकलना है।
ये ही ठहरी गुलाब की क़िस्मत,
उसको ख़ारों के बीच पलना है।
ख़ुद को बदला नहीं ज़रा उसने,
और कहता है जग बदलना है।
दूध जितना उसे पिला दीजे,
साँप को ज़ह्र ही उगलना है।
लाख काँटे बिछे हों पग- पग पर,
राह-ए-मंज़िल पे फिर भी चलना है।
तोड़ना है ग़ुरूर ज़ुल्मत का,
यूँ ही थोड़ी दिये को जलना है।
इतने तेवर दिखा न ऐ सूरज,
आख़िरश तो तुझे भी ढलना है।
----ओंकार सिंह विवेक
(ब्लॉगर पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र : गूगल से साभार
May 8, 2022
विश्व मातृ-दिवस पर
May 6, 2022
आख़िर बात दिल की है
May 4, 2022
गुलसितां में ज़र्द हर पत्ता हुआ
©️
सोचता हूँ अब हवा को क्या हुआ,
गुलसिताँ में ज़र्द हर पत्ता हुआ।
हाथ पर कैसे चढ़े रंग- ए- हिना,
जब ख़ुशी पर रंज का पहरा हुआ।
दूर नज़रों से रहे अपनों की जब,
खूं का रिश्ता और भी गहरा हुआ।
ईद और होली का हो कैसे मिलन,
जब दिलों में ख़ौफ़ हो बैठा हुआ।
तंगहाली देखकर माँ - बाप की,
बेटी को यौवन लगा ढलता हुआ।
--- ©️ ओंकार सिंह विवेक
जहाँ तक ग़ज़ल विधा की बारीकियों की बात है ,इस कोमल विधा में लय की दृष्टि से अक्षरों की तकरार को भी एक दोष माना जाता है।जैसे कोई शब्द यदि र अक्षर पर समाप्त होता है तो कोशिश यह करनी चाहिए कि उससे आगे का शब्द र अक्षर से प्रारम्भ न हो।यद्यपि यह शिल्पगत दोष की श्रेणी में नहीं आता परंतु गेयता को प्रभावित करता है।यदि कोई सब्स्टीट्यूट उपलब्ध न हो तो ऐसा किया भी जा सकता है।उस्ताद शायर भी ऐसा करते रहे हैं।ऊपर पोस्ट की गई ग़ज़ल के दूसरे शेर में भी एक स्थान पर र और र की तकरार है।
ग़ज़ल-संग्रह "दर्द का अहसास" का विमोचन कोरोना-काल में एक सादे समारोह में घर पर ही मेंरे पिता जी द्वारा किया गया था।
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इस पुस्तक की कुछ प्रमुख साहित्यकारों /ग़ज़लकारों द्वारा की गयी समीक्षा के अंश यहाँ उदधृत हैं---
तेज़ इतनी न क़दमों की रफ़्तार हो,
पाँव की धूल का सर पे अंबार हो।
न बन पाया कभी दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझको दिक़्क़त हो रही है।
शिकायत कुछ नहीं है जिंदगी से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।
ओंकार सिंह विवेक भाषा के स्तर पर साफ़-सुथरे रचनाकार हैं।अगर वह इसी प्रकार महनत करते रहे तो निश्चय ही एक दिन अग्रणी ग़ज़लकारों में शामिल होने के दावेदार होंगे।
----- अशोक रावत,ग़ज़लकार (आगरा)
सोचता हूँ अब हवा को क्या हुआ,
गुलसिताां में ज़र्द हर पत्ता हुआ।
तंगहाली देखकर माँ - बाप की,
बेटी को यौवन लगा ढलता हुआ।
भरोसा जिन पे करता जा रहा हूँ,
मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ।
ओंकार सिंह विवेक के यहाँ जदीदियत और रिवायत की क़दम- क़दम पर पहरेदारी नज़र आती है।उनकी संवेदनशील दृष्टि ने बड़ी बारीकी के साथ हालात का परीक्षण किया है।
----शायर(डॉ0 )कृष्णकुमार नाज़ (मुरादाबाद )
उसूलों की तिजारत हो रही है,
मुसलसल यह हिमाक़त हो रही है।
बड़ों का मान भूले जा रहे हैं,
ये क्या तहज़ीब हम अपना रहे हैं।
इधर हैं झुग्गियों में लोग भूखे,
उधर महलों में दावत हो रही है।
ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़लों में वर्तमान अपने पूरे यथार्थ के साथ उपस्थित है।मूल्यहीनता, सामाजिक विसंगति,सिद्धांतहीनता,नैतिक पतन,सभ्यता और संस्कृति का क्षरण आदि ;आज का वह सब जो एक प्रबुद्ध व्यक्ति को उद्वेलित करता है,उनकी शायरी में मौजूद है।
---- साहित्यकार अशोक कुमार वर्मा,
रिटायर्ड आई0 पी0 एस0
विशेष---पुस्तक को गूगल पे अथवा पेटीएम द्वारा Rs200.00(Rs150.00 पुस्तक मूल्य तथा Rs50.00पंजीकृत डाक व्यय) का मोबाइल संख्या 9897214710 पर भुगतान करके प्राप्त किया जा सकता है।
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