दोस्तो जैसा कि हम सब जानते हैं , माँ के बिना एक बालक के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।यदि पिता अपनी संतान को कांधे पर बैठाकर दुनिया में घुमाते हुए उसकी बुलंदी की कामना करता है तो माँ संतान को अपने आँचल की छाया प्रदान करके ग़मों की धूप से बचाती है।माँ ख़ुद गीले में सोती है परंतु संतान को सूखे में सुलाती है,ख़ुद भूखी रहती है पर औलाद को भरपेट खिलाती है, बच्चे के बीमार होने पर माँ के दिन का चैन और रातों की नींद उड़ जाती है---ऐसी होती है माँ।
आज विश्व मात्र-दिवस है तो आइए मैं आपको माँ के प्रति अपने जज़्बात से रूबरू करवाता हूँ --
विश्व मातृ-दिवस पर
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---ओंकार सिंह विवेक
मुक्तक : माँ
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डगर का ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
सदा यह भान होता है अगर माँ साथ होती है।
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ग़ज़ल : माँ
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दूर सारे अलम और सदमात हैं,
माँ है तो ख़ुशनुमा घर के हालात हैं।
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दिल को सब ठेस उसके लगाते रहे,
ये न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
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दुख ही दुख वो उठाती है सबके लिए,
माँ के हिस्से में कब सुख के लमहात हैं।
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छोड़ भी आ तू अब लाल परदेस को,
मुंतज़िर माँ की आँखें ये दिन-रात हैं।
मैं जो महफ़ूज़ हूँ हर बला से 'विवेक',
ये तो माँ की दुआओं के असरात हैं।
💐 ---ओंकार सिंह विवेक
रामपुर-उ0प्र0
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