May 9, 2022

इतने तेवर दिखा न ऐ सूरज

ग़ज़ल----ओंकार सिंह विवेक
  मोबाइल 9897214710

ज़ोर   शब  का  न  कोई  चलना  है,
जल्द  सूरज  को  अब निकलना है।

ये   ही  ठहरी  गुलाब  की  क़िस्मत,
उसको  ख़ारों  के  बीच  पलना  है।

ख़ुद  को   बदला  नहीं  ज़रा  उसने,
और   कहता   है  जग  बदलना  है।

दूध    जितना    उसे    पिला  दीजे,
साँप   को   ज़ह्र    ही   उगलना  है।

लाख  काँटे  बिछे  हों  पग- पग  पर,
राह-ए-मंज़िल पे फिर भी चलना है।

तोड़ना    है    ग़ुरूर    ज़ुल्मत    का,
यूँ  ही   थोड़ी  दिये  को  जलना  है।

इतने   तेवर   दिखा   न    ऐ  सूरज,
आख़िरश  तो  तुझे   भी  ढलना है।

              ----ओंकार सिंह विवेक

 (ब्लॉगर पॉलिसी के तहत सर्वाधिकार सुरक्षित)

  चित्र : गूगल से साभार


4 comments:

  1. बेहतरीन पेशकश!💐💐

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    1. शुक्रिया माहिर साहब

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-05-2022) को चर्चा मंच     "जिंदगी कुछ सिखाती रही उम्र भर"  (चर्चा अंक 4427)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
    --

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    1. अतिशय आभार मान्यवर🙏🙏ज़रूर हाज़िर होऊँगा

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