बनारस में
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ओंकार सिंह विवेक
बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी/बनारस जिसका प्राचीन नाम काशी है,हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है।
इस प्राचीन नगरी का हमारे वेदों और पुराणों में विस्तार से वर्णन मिलता है। यहाँ के कण-कण में भोले शंकर का वास है।बाबा विश्वनाथ, जो सबके काम पूर्ण करते हैं ,पूरी सज-धज के साथ यहाँ विराजमान हैं।काशी के घाट मान को मोहते हैं ।यहाँ की गंगा आरती विश्व प्रसिद्ध है।हिंदूधर्म में ऐसी मान्यता है की काशी में प्राण त्यागने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।वाराणसी नगर सदैव ही भारत की साझा संस्कृति का प्रतीक रहा है।यदि रैदास और तुलसीदास जैसे महापुरुषों का संबंध इस नगरी से रहा है तो कबीरदास और उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान भी इस पावन नगरी से संबद्ध रहे हैं।उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान साहब की शहनाई ने तो सारी दुनिया में धूम मचाई।
पुराने बनारस की तंग गलियाँ,चाट और कचौरियां तथा पान भला किसको अपनी और नहीं खींचते।बनारसी साड़ियां तो भारतीय नारी के गौरव-मान-मर्यादा और सौंदर्य से सीधा संबंध रखती हैं।
इस नगरी की भव्यता और संस्कृति के बारे में विस्तार से फिर कभी पूरे मन से लिखूंगा,अभी इतना ही सही----
बहती है गंगा की निर्मल धार बनारस में,
होती है शंकर की जय जयकार बनारस में।
करने श्रद्धा से गौरी जी का पूजन अर्चन,
भक्त खड़े हैं कर जोड़े तैयार बनारस में।
----ओंकार सिंह विवेक
बनारस की वैभवगाथा कहती शानदार पोस्ट !!
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteसुन्दर चित्रण बनारस का .....
ReplyDeleteआभार आदरणीया
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