June 10, 2022

शायरी/कविता के बहाने

मित्रो शुभ प्रभात🙏🙏

शायरी या कविता आत्मा और मन की आवाज़ को अभिव्यक्त करने का माध्यम है।शायर या कवि के सृजन में कुछ आपबीती होती है तो कुछ जगबीती।साहित्य समाज का दर्पण भी होता है और कई अर्थों में उससे कहीं बहुत आगे की चीज़ भी होता है क्योंकि साहित्य समाज को यह भी बताता है कि जो कुछ अप्रिय यह दर्पण दिखा रहा है वह ठीक नहीं है इससे इतर कुछ ऐसा या वैसा होना चाहिए,  आदि --आदि--

यह भी ज़रूरी नहीं है कि साहित्य में सब कुछ सकारात्मक ही होगा।जो नकारात्मक भोगा, परखा और देखा जा रहा है उसकी अभिव्यक्ति भी सर्जन में नज़र आएगी।अतः जैसे  ज़िंदगी से आशा-निराशा, सुख-दुख,भला-बुरा,हँसना-रोना आदि सब एक दूसरे के पूरक के रूप में जुड़े होते हैं वैसा ही कविता के साथ भी है।आख़िर जीवन और उससे जुड़ी तमाम चीज़ों की अभियक्ति ही तो है कविता या शायरी भी।

इस बहाने मेरी ताज़ा ग़ज़ल का आनंद लीजिए
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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पंछी  नभ  में  उड़ता था  यह  बात  पुरानी  है,
अब  तो  बस  पिंजरा है, उसमें दाना-पानी है।
🌷
वे   ही  आ  धमके हैं  जंगल  में  आरी  लेकर,
जो अक्सर  कहते थे  उनको  छाँव बचानी है।
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आज सफलता चूम रही है जो इन  क़दमों को,
इसके  पीछे   संघर्षों   की   सख़्त  कहानी  है।
🌷
मुस्काते  हैं  असली  भाव  छुपाकर  चेहरे   के,
कुछ  लोगों  का   हँसना-मुस्काना  बेमानी  है।
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बाँध लिया है अपना बिस्तर बरखा की ऋतु ने,
आने    वाली    हाड़  कँपाती   सर्दी   रानी  है।
🌷
क्यों  होता  है   जग में  सबका  यूँ आना-जाना,
आज तलक भी  बात भला ये किसने जानी है।
🌷
रोक  रहा   है  रस्ता  मेरा   पर   इतना  सुन  ले,
ग़म के पर्वत  तुझको आख़िर मुँह की खानी है।
🌷                       ------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
कृपया सर्जनात्मक साहित्य के रसास्वादन के लिए


8 comments:

  1. बहुत सुंदर ग़ज़ल

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. वाह ... कमाल का मतला है ... और बाकी शेर भी लाजवाब ...
    जिंदाबाद ...

    ReplyDelete

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