जब हम कोई अच्छा काम शुरू करते हैं तो अपने इष्टदेव की आराधना अथवा स्तुति के बाद ही प्रारम्भ करते हैं ताकि हमारा कारज विधिवत संपन्न हो सके।साहित्यिक कार्यक्रमों की जहाँ तक बात है उनका शुभारंभ हम विद्या की देवी माँ सरस्वती की वंदना/आराधना से करते हैं। इसी प्रकार किसी नशिस्त अथवा मुशायरे का आग़ाज़ भी नबी या पैग़म्बर की स्तुति जिसे 'नात' कहा जाता है,से किया जाता है। अपने इष्टदेव की आराधना के पश्चात काम शुरू करने पर निश्चित ही सफलता की प्राप्ति होती है।
तो आइए साथियो माँ सरस्वती की वंदना करते हैं :
सरस्वती वंदना--दोहे🌷
----ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
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हो मेरा चिंतन प्रखर , बढ़े निरंतर ज्ञान।
हे माँ वीणावादिनी , दो ऐसा वरदान।।
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मातु शारदे आपका , रहे कंठ में वास।
वाणी में मेरी सदा , घुलती रहे मिठास।।
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यदि मिल जाए आपकी,दया-दृष्टि का दान।
माता मेरी लेखनी , पाए जग में मान।।
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किया आपने शारदे , जब आशीष प्रदान।
रामचरित रचकर हुए , तुलसीदास महान।।
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हाथ जोड़कर बस यही, विनती करे 'विवेक'।
नैतिक बल दो माँ मुझे,काम करूँ नित नेक।।
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------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-06-2022) को चर्चा मंच "निम्बौरी अब आयीं है नीम पर" (चर्चा अंक- 4455) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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मेरी प्रविष्टि को चर्चा में शामिल करने हेतु आभार मान्यवर🙏🙏
Deleteवाह प्रभावशाली दोहे |
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteउत्कृष्ट वंदन दोहा छंद में , हार्दिक बधाई । ¤¤¤¤ चंदन ,
ReplyDeleteआभार आदरणीय।
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