May 23, 2022

अभी कल की ही तो बात है

शुभ प्रभात मित्रो🙏🙏
वाह री क़ुदरत ! तेरा करिश्मा-- कल तक पारा उत्तर भारत में 40 से 45 डिग्री सेल्शियस के आस पास घूम रहा था।गर्मी बदन को झुलसाने को आतुर थी।मानव,पशु-पक्षी और पेड़-पौधे सभी गर्मी से अकुलाए हुए उम्मीद से आसमान की और ताक रहे थे।
चित्र -- गूगल से साभार
आज सुब्ह जब मॉर्निंग वॉक शुरू की तो मौसम एकदम उलट था।मस्त हवा चल रही थी,आसमान में काले बादल चहलक़दमी कर रहे थे और उनमें हल्की गड़गड़ाहट भी थी।आजकल जो सुब्ह से ही उमस और चिपचिपाहट का आभास होने लगता था वह जैसे कहीं हवा हो गया था।क़ुदरत/प्रकृति का यह बदला रूप देखकर मन इसके प्रति श्रद्धा से झुक गया।आज के इस मस्त मौसम ने  मॉर्निंग वॉक का मज़ा कई गुना बढ़ा दिया।थोड़ी ही देर में बूँदाबाँदी हवा के साथ तेज़ बारिश मे बदल गई।
चित्र : गूगल से साभार
लोग कई दिन से तेज़ गर्मी के चलते जिस परेशानी और लाचारी से गुज़र रहे थे उसे प्रकृति ने अपनी कृपा-दृष्टि से दूर कर दिया।यदि प्रकृति मानव द्वारा उससे की जाने वाली अनावश्यक छेड़छाड़ का दंड देती है तो उसे अपने प्यार और आशीर्वाद से पोषित भी करती है।हमें प्रकृति या क़ुदरत के प्रति सदैव कृतज्ञता ज्ञापित करते रहना चाहिए और पर्यावरण को दूषित करने से बचना चाहिए इसी से मानवकल्याण सम्भव है।
लीजिए इस अच्छे मूड और मस्त मौसम के साथ मेरी नई ग़ज़ल का आनंद लीजिए--
ग़ज़ल-- ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
ये  जो  शाखों  से  पत्ते  झर  गए  हैं,
ख़िज़ाँ  का ख़ैर  मक़दम  कर गए हैं।

कलेजा  मुँह को  आता है ये सुनकर,
वबा  से   लोग   इतने  मर   गए  हैं।

चमक आए न  फिर क्यों  ज़िंदगी में,
नए  जब   रंग  इसमें   भर   गए  हैं।

वो जब-जब आए हैं,लहजे से अपने-
चुभोकर   तंज़   के   नश्तर  गए  हैं।

डटे  हैं   भूखे-प्यासे  काम   पर  ही,
कहाँ  मज़दूर  अब  तक  घर गए हैं।

है इतना  दख्ल  नभ  में आदमी का,
उड़ानों   से    परिंदे    डर    गए  हैं।

अभी  कुछ  देर  पहले  ही तो हमसे,
अदू  के  हारकर   लश्कर   गए   हैं।
               ---ओंकार सिंह विवेक
                (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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14 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-5-22) को "ज्ञान व्यापी शिव" (चर्चा अंक 4440) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. शुक्रिया ,जी आदरणीया ज़रूर हाज़िर रहूँगा🙏🙏

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  2. खुशनुमा समाँ में खूबसूरत ग़ज़ल । वाह !!!!!

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  3. यदि प्रकृति मानव द्वारा उससे की जाने वाली अनावश्यक छेड़छाड़ का दंड देती है तो उसे अपने प्यार और आशीर्वाद से पोषित भी करती है।हमें प्रकृति या क़ुदरत के प्रति सदैव कृतज्ञता ज्ञापित करते रहना चाहिए
    बहुत सही कहा आपने ...ऐसी ही है प्रकृति।
    बहुत ही सुन्दर गजल।
    वाह!!!

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    1. हार्दिक आभार आपका🙏🙏

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  4. वाह हर शेर बेहतरीन !!

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    1. आदरणीया हार्दिक आभार आपका

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  5. उम्दा अभिव्यक्ति आदरणीय ।

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    Replies
    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  6. बहुत सुंदर रचना

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