May 25, 2022

दोस्ती किताबों से

   दोस्ती किताबों से
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          ---ओंकार सिंह विवेक
मेरे एक मित्र हाल ही मैं सरकारी सेवा से रिटायर हुए हैं।वे उच्च शिक्षित और भरे-पूरे परिवार के स्वामी हैं।रिटायरमेंट के बाद उनके शुरू के कुछ दिन तो पेंशन आदि के काग़ज़ात की खानापूरी करने और इसी तरह के अन्य कामों में निकल गए।इस दौरान वह पहले की तरह ही व्यस्त रहे तो उन्हें समय का पता ही नहीं चला।बाद में कुछ दिन रिश्तेदारों के यहाँ मेहमानदारी आदि में अच्छे बीत गए।तदोपरांत धीरे-धीरे उन्हें ख़ाली समय कचोटने लगा।एक दिन मॉर्निंग वॉक करते समय मैंने उनसे पूछ ही लिया कि आजकल आप कुछ सुस्त और उखड़े-उखड़े से दिखाई देते हैं,क्या बात है? कहने लगे "यार क्या बताऊँ अब तो टाइम काटना मुश्किल दिखाई देने लगा है।आख़िर कोई कितनी देर अख़बार पढ़े या इधर-उधर टहले और पान की दुकान पर जाकर बैठे।" मैं उनकी परेशानी समझ चुका था।यदि एडवांस में भविष्य के टाइम की प्लानिंग न कि जाए तो रिटायरमेंट के बाद अक्सर ऐसा लोगों के साथ होता है।चूंकि दफ़्तर जाना तो होता नहीं जहाँ व्यक्ति के 7-8 घंटे व्यस्तता में व्यतीत हो जाते हैं। इसलिए रिटायरमेंट के फ़ौरन बाद या उससे पहले ही हमें अपने समय-प्रबंधन की प्लानिंग कर लेनी चाहिए।कुछ लोग इस मामले में बहुत जागरूक होते हैं।वे समय रहते ही अपनी रुचि का कोई काम जैसे दुकान,पार्ट टाइम जॉब या फिर किसी सामाजिक संस्था आदि से जुड़कर ख़ुद को जीवन की इस अगली पारी में सक्रिय रखने के लिए व्यस्त कर लेते हैं।जिन्हें पढ़ने-लिखने में रुचि होती है वे स्वयं को इस क्षेत्र में व्यस्त रखकर अपना मानसिक और बौद्धिक विकास करके सक्रिय बने रहते हैं। मैंने अपने दोस्त को व्यस्त रहने के इसी तरह के कई विकल्प सुझाए।उन्होंने कहा कि भाई कोई दुकान या पार्ट टाइम जॉब करना तो अब मेरे बस की बात नहीं है।आख़िर 35 वर्ष तक पाबंदियों में रहकर नौकरी कर ली यह क्या कम बड़ी बात है? फिर मैंने उनसे कहा कि आपने तो हिंदी साहित्य में M A किया है ,साहित्य में तो रुचि होगी ही आपकी।कहने लगे, "हाँ भाई पढ़ने में मेरी सदा से ही रुचि रही है।बीच में दफ़्तर में काम के दबाव के चलते यह सब छूट गया था।" जब उनकी नब्ज़ हाथ आई तो मैंने  कहा कि अच्छी किताबों से बढ़िया कोई दोस्त नहीं हो सकता।जो रुचि का काम आप पहले दफ़्तर की ज़िम्मेदारियों के चलते नहीं कर सके उसे अब कीजिए।इससे आपका चिंतन विकसित होगा, ज्ञान में वृद्धि होगी और समय भी भली प्रकार व्यतीत होगा।यह बात उनकी समझ में आ गई ,कहने लगे कि यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं।
अगले दिन वह मेरे घर हाज़िर थे,कोई किताब चाहते थे पढ़ने के लिए।मुझ जैसे इंसान के पास किताबों के सिवा और क्या ख़ज़ाना हो सकता है।मेरी लाइब्रेरी में हिंदी और अंग्रेज़ी के अच्छे साहित्यकारों की तमाम किताबें मौजूद हैं।हिंदी साहित्य के ज़मीन से जुड़े साहित्यकार स्मृतिशेष मुंशी प्रेमचंद जी का तो मैं हमेशा से बहुत बड़ा फैन रहा हूँ।उनके लगभग सभी उपन्यास और कहानी संग्रह मेरी लाइब्रेरी में मौजूद हैं। मैंने अपने दोस्त को मुंशजी का उपन्यास "गोदान" पढ़ने के लिए दिया।यह मेरा पसंदीदा उपन्यास है जिसे अब तक मैं कई बार पढ़ चुका हूँ।ग्रामीण समाज की तत्कलीन व्यवस्था का जीवंत और मार्मिक चित्रण इस उपन्यास में किया गया है। यह उपन्यास पढ़ने वाले कि आँखों में करुणा का समुंदर लाने के लिए काफ़ी है।आज भी इस उपन्यास को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि यह हमारे आसपास वर्तमान समाज में घटित हो रही घटनाओं का ही यथार्थ चित्रण करता है क्योंकि आज भी कमोबेश वैसी ही परिस्थितियाँ हैं समाज की।निःसंदेह मैं यह गर्व से कह सकता हूँ कि मुंशजी वर्तमान-द्रष्टा ही नहीं अपितु भविष्य-द्रष्टा भी थे।
चित्र : गूगल से साभार
भाई साहब एक हफ़्ते बाद उपन्यास वापस करने आए तो चेहरे पर मुस्कुराहट और आत्मसंतुष्टि के भाव थे।कहने लगे "भाई आपने तो मुझे उपन्यास के रूप में एक अनमोल निधि सौंप दी।मैं तो उसमें ऐसा डूबा की चार सिटिंग में उसे पूरा पढ़कर ही दम लिया।पत्नी बार- बार कहती थीं कि कहाँ तो तुम वक़्त न कटने की शिकायत करते रहते थे और अब खाना खाने के लिए भी तुम्हें बार-बार पुकारना पड़ता है।" कहने लगे कि ऐसी ही कोई और रोचक किताब दीजिए पढ़ने के लिए।
मैं उनकी प्रतिक्रिया से बहुत प्रसन्न हुआ और आज मैंने उन्हें मुंशी प्रेमचंद जी का ही दूसरा उपन्यास "कर्मभूमि"और अपना ग़ज़ल-संकलन "दर्द का एहसास" पढ़ने के लिए दिए।
वह मुस्कुराते हुए मुझे धन्यवाद देकर चले गए।

दोस्तो यह अनुभव के आधार पर परखा हुआ अकाट्य सत्य है कि किताबें आदमी का बेहतरीन दोस्त होती हैं अतः हम अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए कुछ न कुछ वक़्त अवश्य निकालें।ऐसा करने से हमारा मौलिक चिंतन विकसित होगा और एक सर्जनात्मक सोच के सहारे  हम अपनी और दूसरों की ज़िंदगी को एक नई दिशा देने में कामयाब हो सकते हैं।

जय हिंद,जय भारत🙏🙏🌷🌷🌺🌺💐💐
ओंकार सिंह विवेक

10 comments:

  1. सही बात है । अच्छा सुझाव दिया आपने ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. जी यादव जी ज़रूर हाज़िर रहूँगा, शुक्रिया।

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  3. जिनकी किताबों से दोस्ती हो गयी तन्हाई की शिकायतें मिट गयी.. लत कायम रहे...
    अच्छा सुझाव...

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  4. किताबें सबसे अच्छी मित्र होती हैं
    मैं रिटारमेंट के बाद लिख पढ़ ही रहां हूं

    आपका मार्गदर्शन दोस्त को ऊर्जा देता रहेगा
    सार्थक लिखा

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  5. सुन्दर प्रेरक प्रसंग!
    वास्तव में किताबों का महत्व दो तरह के लोग ही समझ सकते हैं, एक वे जो किताबों से जुड़े रहे हों और दूसरे वे जो आधुनिक युग के गैजेट्स के चक्कर में पड़कर किताबों से विमुख हो गये हों और अब उन गैजेट्स से बने लगे हों। दुर्भाग्य से मैं दूसरे प्रकार के लोगों में हूँ और अब फिर से किताबों की और लौट रहा हूँ। इतने सुन्दर आलेख हेतु धन्यवाद आदरणीय!💐💐

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    1. शुक्रिया भाई जी।इस वापसी की हार्दिक बधाई

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