September 15, 2020

बीमारी वाह!वाह! की


सोशल मीडिया और कवि व अन्य साहित्यकार
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            -----@CRओंकार सिंह विवेक

वह ज़माना गया जब साहित्यकार किसी पत्र-पत्रिका  में छपने अपनी रचना भेजा करते थे और लंबे समय तक बड़ी बेसब्री से स्वीकृति की सूचना प्राप्त होने की प्रतीक्षा किया करते थे।यह अलग बात है कि अधिकाँश मामलों में संपादक के अभिवादन और खेद की टिप्पणी ही कवियों या लेखकों के हिस्से आती थी।जिनकी रचना प्रकाशित होने के लिए स्वीकृत हो जाती थी वे अपने को बहुत सौभाग्यशाली मानते थे।

किंतु आज परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल चुकी हैं।इस दौर में रचनाकार इस चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ता । जो कुछ भी वह लिखता है उसे फ़ौरन से भी पहले सोशल मीडिया ( फेसबुक या व्हाट्सएप्प आदि )पर परोस देता है और फिर तुरंत ही लाइक और प्रशंसा भरे कमेंट्स का इंतज़ार शुरू कर देता है।सोशल मीडिया की इस सुविधा से कवि को इतनी संतुष्टि तो ज़रूर हुई  है कि वह बिना कोई रिजेक्शन झेले छप जाता है परंतु इसका दूसरा पहलू जो बहुत महत्वपूर्ण है उसकी तरफ कवि का ध्यान नहीं जाता।पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन हेतु भेजी गई रचनाओं के बार बार अस्वीकृत होने पर रचनाकार अपनी रचना में जो निखार लाता था वह अवसर अब उसके हाथ से जाता रहा।
आज अधिकाँश कवि सोशल मीडिया पर अपनी रचनाओँ पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी देखना पसंद नहीं करते।चाहे उन्होंने कैसा भी परोसा हो उन्हें बस "वाह वाह!बहुत स्वादिष्ट है"कि टिप्पणी की ही दरकार होती है जो स्वयं उनका ही अहित करती है ।क्योंकि ऐसी अपेक्षा करके वे अपनी रचना में निखार के सारे रास्ते बंद कर देते हैं।मैं मानता हूँ कि आह !या वाह !जैसी टिप्पणियाँ प्रोत्साहन की दृष्टि से महत्व रखती हैं परंतु उससे कहीं ज़ियादा ज़रूरी वे आलोचनात्मक और समीक्षात्मक टिप्पणियाँ होती हैं जो कवि या रचनाकार की रचना/कविता में निखार का मार्ग प्रशस्त करती हैं।कई बड़े सीनियर कवियों और अन्य साहित्यकारों को मैंने इस मामले में धीरज खोते देखा है ।वे अक्सर यही शिकायत करते हैं कि उनकी रचना पर कोई आह !या वाह !क्यों नहीं कर रहा।
मेरे विचार से इस मामले में धैर्य धारण करने की आवश्यकता है।रचना पोस्ट करने के बाद हमें वाह! वाह !की टिप्पणियों की बहुत ज़ियादा अपेक्षा मन में पाल कर नहीं बैठना चाहिए।अगर रचना में दम होगा तो आह !या वाह! जैसी टिप्पणियाँ तो लोगों के क़लमऔर मुँह से स्वतः ही निकलेंगी।
हो सकता है बहुत से साथी मेरी बात से सहमत न हों पर मैंने तो इसी का पालन करते हुए अपनी रचनाओं में सुधार किया है और अच्छे परिणाम भी प्राप्त किए हैं।

मेरा एक शेर---
बेसबब  ही  आपकी  तारीफ़  जो  करने  लगें,
फ़ासला रक्खा करें कुछ आप उन हज़रात से।
                            ------ओंकार सिंह विवेक
(मिलते हैं कल फिर कुछ इसी तरह की चर्चा के साथ )

---ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार, समीक्षक व ब्लॉगर( सर्वाधिकार सुरक्षित )

जीवन-यात्रा

बहुुुत कम लोग ऐसे होते हैैं जिनको अपनी रुचि के अनुुुसार जॉब मिलता है।अक्सर देेखने में आता है कि लोगो को अपनी रुचि से मेल न खाते हुए कार्य ही करने पड़ते हैं।घर को चलाने  के लिए अक्सर ऐसा करना आवश्यक होता है।जिन लोगों को रुचि के अनुसार कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है वे बहुत ही भाग्यशाली होते हैं निश्चित तौर पर ऐसे लोगों की क्षमता प्रारम्भ से ही बहुत अधिक बढ़ी हुई रहती है क्योंकि रोज़ी रोटी के लिए भी वे अपनी रुचि का कार्य ही कर रहे होते है ।जिन लोगों को रुचि के विपरीत मिले कार्य को करना पड़ता है उनको उसी कार्य में मन लगाकर पूरी एकाग्रता के साथ अपना सौ प्रतिशत देने का प्रयास करना पड़ता है और करना भी चाहिए।जब हमारे पास कोई विकल्प नहीं तो फिर उसी कार्य को हमें अपनी रुचि  का बनाकर आनंद के साथ उस कार्य का निष्पादन करना चाहिए।जीवन में  यही सफलता का सबसे बड़ा मंत्र है।
कुछ लोग अपनी रुचि के प्रति हद दर्जे का जुनून और दृढ़ इच्छाशक्ति रखते हैं और जीवन मेंजोखिम उठाने का साहस रखते हैं।ऐसे लोग कई बार रुचि का न होने के कारण जमा जमाया काम भी छोड देते हैं और अपनी रुचि के कार्य में नए सिरे से ख़ुद को आज़माने का साहस दिखा पाते हैं।अपनी जोख़िम लेने की क्षमता के कारण वे अपने पैशन  को फॉलो करके जीवन में सफलता की नई ऊँचाइयाँ पाने में  सफल भी हो जाते हैं।
बस इसी का नाम जीवन है और यह जीवन ऐसे ही चलता रहता है।
ग़म  की  पैहम  बारिशों  में  मुस्कुराना  चाहिए,
मुश्किलों को अज़्म की क़ूवत दिखाना चाहिए।
-----///////ओंकार सिंह विवेक

September 10, 2020

भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर विशेष

भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर  "निर्झर साहित्यिक संस्था, कासगंज" द्वारा गूगल मीट पर एक  सफल काव्य-संध्या का आयोजन
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हिन्दी खड़ी बोली के जनक , यशस्वी साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी की जयंती (9 सितम्बर) के अवसर पर गूगल मीट पर एक  आनलाइन "काव्य- संध्या" आयोजित की गई। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ०अखिलेश चन्द्र गौड़( वरिष्ठ संरक्षक- निर्झर ,वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ, कासगंज) द्वारा की गई।मुख्य अतिथि डॉ० सुरेन्द्र गुप्ता (प्रबंध निदेशक -- निर्झर, वरिष्ठ चिकित्सक, कासगंज)  रहे तथा विशिष्ट आतिथ्य डॉ० सुभाष चन्द्र दीक्षित( पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष, जे०एल०एन, कालेज,एटा) ,डॉ० निरूपमा वर्मा(पूर्व व्याख्याता, जे०एल०एन० कालेज, एटा, पूर्व न्यायिक सदस्य- जिला उपभोक्ता फोरम एवं वरिष्ठ साहित्यकार, एटा) एवं सुकवि श्री बसंत कुमार शर्मा(वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार, उप मुख्य सतर्कता अधिकारी, पश्चिम मध्य रेल, जबलपुर) का रहा।कार्यक्रम का सफल संचालन संस्था के सचिव श्री अखिलेश सक्सैना जी द्वारा किया गया।
🌺🎉🌺 कार्यक्रम में निम्न रचनाकारों द्वारा काव्य पाठ किया गया--
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1. श्री तेजपाल शर्मा जी (मथुरा) 
2. श्रीमती गीता चतुर्वेदी जी (औरैया) 
3. श्री जसवीर सिंह " हलधर" जी ( देहरादून)
4. ओंकार सिंह "विवेक" जी ( रामपुर)
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5.  श्री प्रमोद प्यासा जी (हाथरस) 
6. श्रीमती भारती जैन "दिव्यांशी" जी ( मुरैना) 
7. श्री गयाप्रसाद मौर्य 'रजत' जी (आगरा) 
8. श्रीमती मिथलेश बडगैया जी ( जबलपुर ) 
9. श्रीमती प्रमेशलता पाण्डेय "लता" जी ( कासगंज) 
10. श्री निर्मल सक्सेना जी ( कासगंज)
11.श्री अखिलेश सक्सैना जी (कासगंज )
       🙏🏼🎉🌺🎉🙏🏼

----ओंकार सिंह विवेक
 साहित्यकार, रामपुर-उ0प्र0

September 9, 2020

मन का पंछी

🌺 दोहै 🌺
         ------ओंकार सिंह विवेक
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भरता  रहता  है सखे ,यह हर समय उड़ान,
मन के पंछी को कभी, होती  नहीं  थकान।

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सब  ही मैला कर  रहे,निशि दिन इसका नीर,
यह नदिया किससे कहे,जाकर  अपनी  पीर।

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दिन भर हमने सूर्य की , किरणों से की बात,
रात  घिरी  तो  देख  ली , तारों  की  बारात।

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पत्नी  से   संवाद  में , गए  सखे  जब  हार,
बैठ  गए चुपचाप फिर,पढ़ने  को अख़बार।

 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
                    ------ओंकार सिंह विवेक
                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)

September 4, 2020

मन मिल जाएगा


ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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मोबाइल 9897214710

अपनेपन  के  बदले  अपनापन  मिल जाएगा,
आस यही  है  उनसे अपना मन मिल जाएगा।

नंद लला  फिर  से  आ  जाओ मथुरा-वृंदावन,
घर-घर तुमको मटकी में माखन मिल जाएगा।

काले  धन  वालों  के हों जब ऊपर तक रिश्ते,
कैसे  आसानी  से  काला  धन  मिल जाएगा।

सोचो  दुनिया  कितनी अच्छी हो जाएगी,जब,
हर  भूखे  को  रोटी का  साधन मिल जाएगा।

कब  सोचा  था  हो  जाएँगे दिल के ज़ख़्म हरे,
कब सोचा था आँखों को सावन मिल जाएगा।
                             ------ओंकार सिंह विवेक
                                   सर्वाधिकार सुरक्षित

August 31, 2020

किरदार से

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
 🌺                                    
तीर  से  मतलब   न  कुछ  तलवार  से,
हमको  मतलब  है  क़लम  की धार से।
🌺
सुनते   सुनते   फिर   कहानी   रो  पड़ा,
जुड़  गया  वो  जब  किसी  किरदार से।
🌺
ज़ोम   यूँ   तोड़ा    गया     तन्हाई   का,
बात    हम    करते    रहे    दीवार    से।
🌺
कितनी महनत करके फ़न हासिल हुआ,
पूछ   कर   देखो  किसी   फ़नकार   से।
🌺
दाम  वाजिब  कब  मिला  है  फ़स्ल  का,
इन  किसानों  को   किसी   सरकार   से।
🌺
रख    ज़रा    नाकामियों    में    हौसला,
रौशनी    फूटेगी    इस    अँधियार    से।
 🌺          -----ओंकार सिंह विवेक
                    सर्वाधिकार सुरक्षित


August 27, 2020

ज़िंदगी से

ग़ज़ल--ओंकार  सिंह विवेक
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🌷
शिकायत  कुछ  नहीं  है  ज़िंदगी से,
मिला  जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।
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मुक़द्दर   से   गिला  वे  कर  रहे  हैं,
हुए  नाकाम  जो  अपनी  कमी  से।
🌷
ज़रुरत   और   मजबूरी  जगत   में,
कराती  हैं  न  क्या क्या आदमी से।
🌷
जिन्होंने  आस  का  दीपक जलाया,
हुए  वे  एक दिन परिचित ख़ुशी से।
🌷
असर कुछ कर न पाये जो दिलों पर,
नहीं   है  फ़ायदा   उस   शायरी   से।
🌷
                   ----ओंकार सिंह विवेक

August 25, 2020

पहले जैसे लोगों के व्यवहार नहीं रहने

चंद अशआर कोरोना काल में बदले चिंतन के परिणामस्वरूप कुछ यों भी हुए)
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सूनी  सड़कें , गलियाँ-ओ- बाज़ार  नहीं  रहने,
और  बहुत  दिन  धुँधले  मंज़र यार नहीं रहने।

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    -----ओंकार सिंह विवेक
       आगे पढ़िए------

August 24, 2020

जेबें हुईं उदास

🌷दोहे🌷
       ------ओंकार सिंह विवेक
🌷
मँहगाई   को   देख  कर ,जेबें  हुईं  उदास,
पर्वों का  जाता  रहा, अब  सारा  उल्लास।
 🌷 
उसकी  सुनता  ही  नहीं,कोई  यहाँ  पुकार,
चीख-चीख कर रात-दिन,मौन गया है हार।
 🌷
हैं  विपदा  में  आज हम,बिगड़ी है हर बात,
किंतु  हमारे   भी  कभी, बहुरेंगे  दिन-रात।
  🌷  
मिली  कँगूरों  को  सखे,तभी बड़ी पहचान,
दिया नीव  की ईंट ने,जब अपना बलिदान।
🌷       -----ओंकार सिंह विवेक

August 19, 2020

निशाना

ग़ज़ल-ओंकार सिंह 'विवेक'

आँधियों   में  दिये   जलाना  है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।

बात  क्या  कीजिये  उसूलों  की,
जोड़ औ तोड़  का ज़माना    है।

फिर से पसरा है इतना  सन्नाटा,
फिर  से  तूफ़ान  कोई आना है।

झूठ   कब   पायदार   है   इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।

ज़िन्दगी    दायमी   नहीं    प्यारे,
एक  दिन मौत सबको  आना है।

इस क़दर बेहिसी के  आलम  में,
हाल  दिल  का  किसे सुनाना है।

बज़्म  में  और  भी  तो  बैठे  हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह विवेेेक

August 18, 2020

अटल बिहारी बाजपेयी जी

भारत में जब जब राजनीति के मंच पर  नैतिकता और शुचिता की बात होगी तो सदैव श्री अटल जी का नाम ही सबकी ज़ुबान पर आएगा।श्री बीजपेेई जी ही एक मात्र ऐसे नेेता थे जिनकी राय को उनका विरोध करने वाले भी मानने को विवश हो जाया करते थे।यह उनकी वाकपटुता और व्यवहार कुुुशलता का ही कमाल था।
संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिंदी में अपना भाषण देकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी का लोहा मनवाया।श्री बाजपेई जी राजनेता होने के साथ ही मानवीय मूल्यों के पोषक,प्रखर वक्ता और संवेदनाओं से लबरेज़ कवि भी थे।
उनकी स्मृति को शत शत नमन🙏🙏!!!!!
        ------ओंकार सिंह विवेक

August 16, 2020

मीठा-खारा

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

कुछ  मीठा  कुछ  खारापन  है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।

कैसे   आँख   मिलाकर   बोले,
साफ़  नहीं जब उसका मन है।

शिकवे  भी   उनसे   ही   होंगे,
जिनसे   थोड़ा  अपनापन   है।

धन  ही  धन है इक तबक़े पर,
इक  तबक़ा  बेहद  निर्धन  है।

सूखा  है  तो  बाढ़  कहीं   पर,
बरसा  यह   कैसा  सावन  है।

कल  निश्चित  ही  काम  बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।

दिल  का है वह साफ़,भले ही,
लहजे  में  कुछ  कड़वापन है।
        ----ओंकार सिंह विवेक

August 15, 2020

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस:कुछ दोहे
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           -------ओंकार सिंह विवेक
 🌷
  आज़ादी  पाना  कहाँ, था  इतना आसान।
  वीरों ने  इसके  लिए, प्राण  किए क़ुर्बान।।
 🌷
  लुटा गए जो देश पर,हँसकर अपनी जान।
  हम उनके बलिदान का ,रखें हमेशा मान।।
 🌷
  राष्ट्र  सुरक्षा  में  दिया, अपना  जीवन वार।
  भारत  के   वीरों  नमन, तुमको  बारंबार।।
 🌷
   मन में यह ही कामना, यह ही है अरमान।
   दुनिया का सिरमौर हो,अपना हिंदुस्तान।।
  🌷
                   -----ओंकार सिंह विवेक
                         @CR

August 14, 2020

कवि सम्मेलन ऑनलाइन

पल्लव काव्य मंच रामपुर-उ0प्र0 का कारगिल विजय दिवस के अवसर पर आयोजित  ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन
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पल्लव काव्य मंच,रामपुर(उ0प्र0) के तत्वावधान में मंच के व्हाट्सएप्प पटल पर एक ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें कवियों नेअपनी देश प्रेम,समाज और मानवीय सरोकारों से जुड़ी श्रेष्ठ रचनाओँ का सस्वर पाठ किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता गीतकार डॉ0 शिवशंकर यजुर्वेदी,बरेली जी द्वारा की गई तथा मुख्य अतिथि व विशिष्ठ अतिथि क्रमशः विपिन शर्मा जी,ब्यूरो चीफ हिंदुस्तान दैनिक ,रामपुर तथा डा0 मोनिका शर्मा,पशुचिकित्सा अधिकारी ,रामपुर रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ पल्लव काव्य मंच के संस्थापक रामपुर के वरिष्ठ कवि श्री शिव कुमार शर्मा चंदन की सस्वर  सरस्वती वंदना के द्वारा हुआ--
ग्यान की जगावो ज्योति,अंतस विराजो आये,
भक्ति   सुरसरि  माहि , डूब  डूब  जाऊँ  माँ।
लगन  लगी  है  ऐसी,कान्हा संग खेलों जाए,
दीजे  मन  मीत  गीत, छंदन  को  गाऊँ  माँ।

गीतकार डॉ0 शिवशंकर यजुर्वेदी जी ,बरेली ने कारगिल के वीरों के सम्मान में अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए-
आपके   त्याग   और   बलिदान   का
युग-युगों  तक ऋणी यह रहेगा वतन।
कारगिल  युद्ध  के  वीर   बलिदानियों,
आपको शत नमन आपको शत नमन।

कवि देशराज शर्मा उदार, धामपुर ने राम मंदिर के प्रति  आस्था व्यक्त करते हुए कहा--
श्रीराम मंदिर हमारे राष्ट्रीय गौरव मान का प्रतीक है,
श्रीराम  मंदिर  हमारे  राष्ट्रीय  सम्मान का प्रतीक हैं।

ग़ज़लकार ओंकार सिंह विवेक,रामपुर ने जीवन में माँ की महत्ता बताते हुए माँ के सम्मान में अपना मुक्तक प्रस्तुत किया--
डगर  का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान  होता है अगर माँ साथ होती है।
कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
सदा यह  भान होता है अगर माँ साथ होती है।

कवियित्री नीलिमा पाँड़े, मुंबई ने अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए--
कोरे  काग़ज़  पर  पढूँ,  अंतहीन  संवाद,
मृग तृष्णा में नीलिमा,तन मन है आबाद।

ओज कवि श्री अरविंद वाजपेयी,कन्नौज ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा--
काव्य  वही  जो  राष्ट्र  चेतना  को नव स्वर दे,
काव्य वही जो राष्ट्र भक्ति ज्वर घर घर भर दे।

कवि आनंद मिश्र अधीर,बदायूँ ने सामयिक विषय राम मंदिर पर अपने उदगार कुछ यों व्यक्त किए--
हो रहा मंदिर का निर्माण,लो छप्पन इंची सीना तान,
विजय  सत्य  की  हुई, झूठ  पर  हार  गया  है वान।

कवियित्री डॉ0 मोनिका शर्मा,मुरादाबाद ने अपनी प्रस्तुति दी--
हे  माँ   शारदे   चरण  रज   मैं   पाऊँ,
भाव शब्द सुमन तेरे चरणों में चढ़ाऊँ।

श्री विपिन शर्मा,रामपुर द्वारा माता एवं पिता के सम्मान में अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति कुछ यों दी गई--
यकीं मानो तुम्हें मिल जाएँगी ख़ुशियाँ जहाँ भर की,
कभी  माँ  बाप  की  आँखों  को नम होने नहीं देना।

इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन में रचना पाठ करने वाले कवियों के अतिरिक्त अन्य कवियों और श्रोताओं ने भी सामयिक रचनाओं का रसास्वादन करते हुए कार्यक्रम के अंत तक रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम का सफल संचालन हरदोई के समर्थ कवि गोपाल ठहाका द्वारा किया गया। अंत में पल्लव काव्य मंच के संरक्षक वरिष्ठ कवि श्री शिवकुमार शर्मा चंदन जी द्वारा सभी का आभार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की गई।
         ------ओंकार सिंह विवेक
 ग़ज़लकार,समीक्षक,कंटेंट राइटर व ब्लॉगर
            रामपुर-उ0 प्र0

August 12, 2020

श्रीकृष्ण जी और कोरोना काल

दोहे--कोरोना और कृष्ण जी
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----////ओंकार सिंह विवेक
🌷
कहे  यशोदा  कृष्ण  से, है  यह  कोविड काल।
मास्क  पहन  कर  घूमने, निकलो मेरे   लाल।।
🌷
मंदिर   में   श्रीकृष्ण   जी, आएँ   कैसे   लोग।
डरा   रहा  है  आजकल, कोरोना  का   रोग।।
🌷
सबका  कोविड  दुष्ट  ने , जीना किया  मुहाल।
बनकर  इसका  कालअब,आ जाओ गोपाल।।
 🌷                        -----ओंकार सिंह विवेक

July 24, 2020

कुछ दोहे पावस पर

"
साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' मुरादाबाद की ऑनलाइन पावस(वर्षा ऋतु)-गोष्ठी
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२२ जुलाई,2020 को  'हस्ताक्षर' संस्था द्वारा यशभारती सम्मान प्राप्त  नवगीतकार डॉ. माहेश्वर तिवारी के ८१ वें जन्म दिवस पर पावस-गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। 
 इस गोष्ठी में  रचनाकारों द्वारा डॉ. माहेश्वर तिवारी को उनके ८१ वें जन्मदिन पर  बधाई देते हुए विषय विशेष (वर्षा ऋतु )पर अपनी प्रभावशाली रचनाएँ प्रस्तुत कीं। गोष्ठी में निम्न रचनाकारों द्वारा सहभागिता की गई--
1.डॉ. माहेश्वर तिवारी 
2.श्री शचींद्र भटनागर 
3. डॉ.अजय 'अनुपम' 
4. डॉ.मक्खन 'मुरादाबादी' 
5.डॉ. मीना नक़वी
6.श्रीमती विशाखा तिवारी 
7.डॉ0प्रेमवती उपाध्याय 
8.श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' 
9. डॉ.मीना कौल 
10..डॉ.मनोज रस्तोगी                                 
11.श्री राजीव 'प्रखर' 
12.डॉ.पूनम बंसल 
13.आदरणीया सरिता लाल 
14. शायर ज़िया ज़मीर 
15.श्रीयुत श्रीकृष्ण शुक्ल 
16.श्री मनोज 'मनु' 
17.डॉ.अर्चना गुप्ता 
18.ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवेक' (रामपुर)
19.श्रीमती हेमा तिवारी भट्ट 
20.श्रीमती मोनिका 'मासूम' 
21.डॉ.ममता सिंह 
22.आ0 निवेदिता सक्सैना 
23.डॉ.रीता सिंह 
कार्यक्रम में मेरे द्वारा पावस ऋतु पर प्रस्तुत कुछ दोहे निम्नवत हैं---

🌷दोहे--पावस ऋतु🌷
      ----ओंकार सिंह विवेक
🌷.      @CR
पुरवाई   के  साथ  में ,  आई   जब  बरसात।
फसलें  मुस्कानें  लगीं , हँसे  पेड़  के  पात।।
🌷
मेंढक   टर- टर  बोलते , भरे   तलैया- कूप।
सबके मन को भा रहा,पावस का यह रूप।।
🌷
खेतों  में  जल  देखकर , छोटे-बड़े  किसान।
चर्चा  यह  करने  लगे , चलो  लगाएँ  धान।।
🌷
फिर इतराएँ क्यों नहीं , पोखर-नदिया-ताल।
जब सावन ने कर दिया,इनको माला माल।।
🌷
अच्छे   लगते   हैं  तभी , गीत  और  संगीत।
जब सावन में साथ हों , अपने मन के मीत।।
🌷
जब  से  है  आकाश  में,घिरी घटा  घनघोर।
निर्धन  देखे  एकटक , टूटी छत  की  ओर।।
🌷
कभी कभी वर्षा धरे , रूप बहुत  विकराल।
कोप दिखाकर बाढ़ का ,जीना करे मुहाल।।
🌷
-------//ओंकार सिंह विवेक
              रामपुर-उ0प्र0
           @CR
विशेष--गोष्ठी में सहभागिता का अवसर प्रदान करने हेतु संस्था के पदाधिकारियों प्रिय राजीव प्रखर एवं आदरणीय योगेंद्र वर्मा व्योम जी का अतिशय आभार

June 14, 2020

अगर माँ साथ होती है

साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ऑनलाइन मुक्तक-गोष्ठी
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मुरादाबाद, १३ जून। साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से  आज संस्था के व्हाट्सएप समूह पर एक ऑनलाइन मुक्तक-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें  रचनाकारों ने मुक्तकों के माध्यम से अनेक सामाजिक,  राजनैतिक एवं मानवीय विषयों को अभिव्यक्त किया।  मुक्तक-गोष्ठी में माँ को समर्पित मेरा एक मुक्तक यहाँ प्रस्तुत है--
"डगर का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
 सफ़र  आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
 कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
 सदा  यह भान  होता है अगर माँ साथ होती है।
                              -----ओंकार सिंह विवेक
 मुक्तक-गोष्ठी में सुप्रसिद्ध व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी, सुप्रसिद्ध शायरा डॉ. मीना नक़वी, कवि शिशुपाल 'मधुकर', शायर ज़िया ज़मीर, कवि राहुल शर्मा आदि लोकप्रिय रचनाकार भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे।
-------ओंकार सिंह विवेक
         रामपुर-उ0प्र0

May 12, 2020

साहित्य का नया दौर

कोरोना काल के बाद सामाजिक व्यवहार के साथ साथ साहित्यिक व्यवहार भी अप्रत्याशित रूप से बदलेंगे।कुछ दिन तक भौतिक रूप से आयोजित किए जाने वाले काव्य सम्मेलनों और मुशायरों में कमी आएगी और ऑन लाइन काव्य सम्मेलनों और पुस्तकों के विमोचन आदि की परम्पराएं प्रभावी रहेंगी।लॉकडाउन के दिनों में हम लगातार कवियों और शायरों को लाइव आता देख रहे हैं।यह अलग बात है कि ऑनलाइन श्रोताओं या दर्शकों का जुड़ाव साहित्यकारों के साथ अभी दिखाई नहीं पड़ रहा है परंतु निकट भविष्य में यह भी अवश्य ही  देखने में आयेगा।
आज एक प्रमुख साहित्यिक संस्था "तूलिका बहुविधा मंच,एटा "( संस्थापक-डॉक्टर राकेश सक्सैना,पूर्व हिंदी विभाग अध्यक्ष,जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय एटा) की इलैक्ट्रोनिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका तूलिका के कोरोना विशेषांक का ई विमोचन सम्पन्न हुआ।हम साहित्यकार भी ऑनलाइन इस कार्यक्रम के साक्षी बने। कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के इस आपदा काल में साहित्यकारों ने भी अपने सामयिक सृजन के माध्यम से लोक को साहस और संबल देने का यथोचित प्रयास किया है।साहित्यकारों के इस प्रयास को ही पत्रिका के संपादक द्वय दिलीप पाठक सरस् और ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी द्वारा अपने सदप्रयासों के माध्यम से  सुंदर साहित्यिक पत्रिका का रूप दिया गया है।
इस पत्रिका में मुझ अकिंचन की रचना को भी स्थान दिया गया है जिसके लिए में संस्था के संस्थापक डॉक्टर राकेश सक्सैना एवं पत्रिका के संपादक मंडल का अतिशय आभार प्रकट करता हूँ।


May 9, 2020

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