कोरोना काल के बाद सामाजिक व्यवहार के साथ साथ साहित्यिक व्यवहार भी अप्रत्याशित रूप से बदलेंगे।कुछ दिन तक भौतिक रूप से आयोजित किए जाने वाले काव्य सम्मेलनों और मुशायरों में कमी आएगी और ऑन लाइन काव्य सम्मेलनों और पुस्तकों के विमोचन आदि की परम्पराएं प्रभावी रहेंगी।लॉकडाउन के दिनों में हम लगातार कवियों और शायरों को लाइव आता देख रहे हैं।यह अलग बात है कि ऑनलाइन श्रोताओं या दर्शकों का जुड़ाव साहित्यकारों के साथ अभी दिखाई नहीं पड़ रहा है परंतु निकट भविष्य में यह भी अवश्य ही देखने में आयेगा।
आज एक प्रमुख साहित्यिक संस्था "तूलिका बहुविधा मंच,एटा "( संस्थापक-डॉक्टर राकेश सक्सैना,पूर्व हिंदी विभाग अध्यक्ष,जवाहर लाल नेहरू महाविद्यालय एटा) की इलैक्ट्रोनिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका तूलिका के कोरोना विशेषांक का ई विमोचन सम्पन्न हुआ।हम साहित्यकार भी ऑनलाइन इस कार्यक्रम के साक्षी बने। कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के इस आपदा काल में साहित्यकारों ने भी अपने सामयिक सृजन के माध्यम से लोक को साहस और संबल देने का यथोचित प्रयास किया है।साहित्यकारों के इस प्रयास को ही पत्रिका के संपादक द्वय दिलीप पाठक सरस् और ओमप्रकाश फुलारा प्रफुल्ल जी द्वारा अपने सदप्रयासों के माध्यम से सुंदर साहित्यिक पत्रिका का रूप दिया गया है।
इस पत्रिका में मुझ अकिंचन की रचना को भी स्थान दिया गया है जिसके लिए में संस्था के संस्थापक डॉक्टर राकेश सक्सैना एवं पत्रिका के संपादक मंडल का अतिशय आभार प्रकट करता हूँ।
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