June 20, 2023

नारियल पानी

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏

पिछले दिनों कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू जाना हुआ।उस यात्रा के रोमांचक अनुभव मैंने अपनी पिछली पोस्ट में आपके साथ साझा भी किए थे।यात्रा के कई वीडियोज मैंने अपने यूट्यूब चैनल पर भी अपलोड किए हैं जिनका लिंक इस पोस्ट के अंत में दिया गया है।आप उन्हें भी देख सकते हैं। उस यात्रा के दौरान हुआ एक और अनुभव आपके साथ साझा कर रहा हूं।

आजकल उत्तर भारत में गर्मी अपने चरम पर है।इस गर्मी में नारियल पानी का सेवन जो ठंडक और तरावट देता है उसे कौन नहीं महसूस करता होगा।आप भी आजकल अपने नगर में सड़कों के किनारे हरे नारियल बेचने वालों को ज़रूर देखते होंगे।पसीना पोंछते हुए रुककर नारियल पानी पीते भी होंगे।
हम बैंगलुरु में लालबाग बोटेनिकल गार्डन देखने गए तो  दोपहर का समय होने के कारण काफ़ी गर्मी थी।गार्डन में घूमते हुए जब हम थक गए तो  विशाल गार्डन के गेट पर आकर  नारियल  पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने लगे।
बैंगलुरु में आप कहीं भी ये हरे नारियल ले लीजिए आपको चालीस रुपए के फिक्स रेट पर ही मिलेगा जो अच्छी बात है वरना हमारे यहां तो अलग-अलग जगहों पर खड़े नारियल वाले अलग-अलग रेट बताते हैं। नारियल खरीदते समय बहुत मोल-भाव करना पड़ता है।वहां चालीस रुपए में वे लोग बिलकुल ताज़ा/हरा और बड़ा नारियल आपको देते हैं जिसमें भरपूर पानी होता है।हमें नारियल पानी पीकर बहुत तरावट का अनुभव हुआ।
मैंने अपने यहां रामपुर-उत्तर प्रदेश में ऐसे नारियल बेचने वालों से पूछा तो उन्होंने यही बताया कि वे लोग भी बैंगलुरू से ही नारियल मंगवाते हैं।आने में तीन से चार दिन का समय लगता है।वे लोग यहां आजकल गर्मी का सीजन पीक पर होने के कारण मांग बढ़ने पर नारियल साठ रुपए का बेच रहे हैं बाकी दिनों में पचास रुपए का बेचते हैं।चूंकि यहां तक गाड़ी में नारियल आने में कई दिन लगते हैं इसलिए उनकी ताज़गी और क्वालिटी तो थोड़ी-बहुत प्रभावित हो ही जाती है परंतु फिर भी नारियल पानी का स्वाद अच्छा बना रहता है।
हमें नारियल पानी का सेवन अवश्य करना चाहिए।
रोज़ाना नारियल पानी का सेवन करने से शरीर में रक्त संचार बढ़ता है। इसे पीने से UTI और प्रोस्टेट की समस्याओं का खतरा भी कम होता है।नारियल पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम सहित कई पोषक तत्व होते है जो मसल्स क्षय को रोकने में मदद करते हैं।
          ---- ओंकार सिंह विवेक 


June 16, 2023

ज़रूरत सब कुछ करा लेती है

नमस्कार मित्रो 🙏🙏🌹🌹

     (बोटेनिकल गार्डन के द्वार पर मूंगफली बेचती हुई वृद्धा)

पिछले दिनों व्यक्तिगत कारणों से सपत्नीक बैंगलुरू जाना हुआ।व्यस्तता के कारण बहुत अधिक तो रुकना नहीं हुआ वहां पर वर्ना मैसूर और आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थलों का भ्रमण अवश्य करते।पारिवारिक कामों को पूरा करने के बाद हमारे पास सिर्फ़ एक दिन बैंगलुरू में घूमने के लिए बचा था तो लोकल मार्केट आदि में घूम लिए और वहां के विश्व प्रसिद्ध बोटेनिकल गार्डन को देखने गए।
                      (बोटेनिकल गार्डन का प्रवेश द्वार)
बोटेनिकल गार्डन की ख़ूबसूरती तो मैं अपनी अगली पोस्ट में बयान करूंगा।आज जिस वजह से यह पोस्ट लिख रहा हूं वह इस पोस्ट में सबसे ऊपर दिखाया गया चित्र है जिसमें एक अत्यधिक वृद्ध अम्मां जी मूंगफली बेचती हुई नज़र आ रही हैं। 
जब हम गार्डन में घूमते- घूमते थक गए तो कुछ सुस्ताने और कोल्डड्रिंक,स्नैक्स आदि की तलाश में इधर- उधर देखने लगे।हमें कोल्डड्रिंक्स और चिप्स आदि बेचने वालों की लंबी पंक्ति दिखाई दी तो हम लोग उधर जाने लगे।वहीं एक अत्यधिक वृद्ध माता जी को फुटपाथ पर मूंगफली बेचते हुए देखा। माता जी ने मूंगफली के छोटे- छोटे पैकेट बनाकर अपनी टोकरी में रखे हुए थे। वृद्धा की उम्र ऐसी नहीं थी कि वह यह सब काम करें यह देखकर उनके प्रति हमारा दिल करुणा से भर गया।हमने उनकी इस विवशता के बारे में जानने के लिए कुछ पूछना चाहा परंतु भाषा की समस्या उत्पन्न हुई।वो स्थानीय वृद्धा कन्नड़ ही जानती थीं और हम हिंदी या फिर अंग्रेजी समझते थे लेकिन फिर भी उनकी सांकेतिक भाषा और
 भाव- भंगिमाओं से हम उनकी मजबूरी का बहुत कुछ अनुमान लगा पाए।
           (बोटेनिकल गार्डन में फुर्सत और सुकून के पल)      
जिस उम्र में वृद्धा को अपने घर -परिवार, बहू - बेटों के मध्य रहकर आराम करना था और उनसे सेवा पानी थी उस उम्र में वह चिलचिलाती धूप में पेट की ख़ातिर मूंगफली बेचने को मजबूर थीं इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी।
हमारी मूंगफली खाने या खरीदने की कोई इच्छा नहीं थी परंतु फिर भी हमने उनसे दो पैकिट मूंगफली खरीदी तो माता जी हाथ जोड़कर हमें ढेरों दुआएं देने लगीं। रेहड़ी,फुटपाथ आदि पर  मजबूरी में यदि छोटे बच्चे और वृद्ध कुछ बेचते दिखाई देते हैं तो मैं उनसे अक्सर बिना ज़रूरत के भी कोई सामान ख़रीद लेता हूं। बस यही सोचकर कि पता नहीं किसकी क्या मजबूरी है जो उसे असहाय अवस्था में यह सब करना पड़ रहा है। दोपहर का समय था धूप बहुत अधिक थी।लोग सामने खड़े ठेलों और स्टॉल्स आदि से आइस्क्रीम और कोल्डड्रिंक्स आदि ख़रीद रहे थे। मूंगफली बेचने वाली माता जी उस तरफ़ ललचाई दृष्टि से देख रही थीं।हमारी बेटी ने उनसे इशारों में पूछा कि अम्मां आइस्क्रीम खाओगी।उन्होंने सहमति में सिर हिलाया तो बेटी ने पास के ठेले से ख़रीदकर आइस्क्रीम लाकर दी। आइस्क्रीम पाकर वृद्धा मां का चेहरा खिल उठा। उन्होंने बेटी के हाथ चूमे और  अपनी भाषा में ढेरों आशीष और दुआएं दीं।उस समय मुझे अपनी एक पुरानी ग़ज़ल का एक शेर याद आ गया :
         
         ज़रूरत और मजबूरी जहां में,
          करा लेती है सब कुछ आदमी से।
                   @--- ओंकार सिंह विवेक 



June 12, 2023

कैसी -कैसी नेमत हमको जंगल देते हैं

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


हाज़िर है मेरी एक और ग़ज़ल जिसमें कुछ शेर पर्यावरण को लेकर भी हो गए हैं:

नई ग़ज़ल -- --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 
©️ 
शीशम  साखू   महुआ   चंदन  पीपल   देते हैं,
कैसी-कैसी  ने'मत   हमको   जंगल   देते   हैं।

वर्ना सब  होते  हैं  सुख  के   ही  संगी -साथी,
दुनिया में  बस  कुछ  विपदा  में संबल देते हैं।

रस्ता  ही भटकाते  आए  हैं  वो  तो अब तक,
लोग  न  जाने  क्यों  उनके  पीछे  चल देते हैं।
©️ 
आज बना  है मानव  उनकी ही जाँ का दुश्मन,
जीवन  भर  जो  पेड़  उसे  मीठे  फल  देते हैं।

मिलती है  कितनी  तस्कीन तुम्हें क्या बतलाएँ,
आँगन  के  प्यासे पौधों  को  जब  जल देते हैं।

कब तक सब्र का बाँध न टूटे प्यासी फसलों के,
धोखा   रह-रहकर   ये   निष्ठुर  बादल  देते  हैं।

किस  दर्जा  मे'यार  गिरा  बैठे  कुछ  व्यापारी,
ब्रांड  बड़ा  बतलाकर  चीज़ें   लोकल  देते  हैं।
                       ---©️ ओंकार सिंह विवेक

    यह बोटनिकल गार्डन बैंगलुरू का दृश्य है जहां पिछले दिनों हमारा जाना हुआ था।


June 5, 2023

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष



आज विश्व पर्यावरण दिवस है।जब हम पर्यावरण की बात करते हैं तो प्रथ्वी,जल,अग्नि,वायु तथा आकाश सभी का विचार मस्तिष्क में कौंध जाता है।पर्यावरण इन्हीं पाँच तत्वों से मिलकर बना है।इससे सहज ही अनुमान हो जाता है कि पर्यावरण का क्षेत्र कितना विस्तृत है और इसकी कितनी महत्ता है। आइए विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरण यानी अपने जीवन को बचाने का संकल्प लें।

         चित्र : गूगल से साभार 
इस अवसर पर पर्यावरण को समर्पित मेरी कुछ काव्य रचनाओं का आनंद लीजिए 👎👎
विश्व पर्यावरण दिवस विशेष
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                -- ओंकार सिंह विवेक

पर्यावरण :पाँच दोहे
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    ओंकार सिंह विवेक      
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करता  है दोहन  मनुज,ले  विकास  की आड़,
कैसे  चिंतित   हों   नहीं , जंगल नदी  पहाड़।
🌷
भू का  बढ़ता ताप  यह ,ये  पिघले  हिमखंड, 
मनुज प्रकृति  से  छेड़ का,मान इन्हें  तू  दंड।
 🌷
करते  हैं  मैला  सभी,निशिदिन  इसका  नीर,
गंगा माँ   किससे  कहे,जाकर  अपनी   पीर।
🌷
देते   हैं   हम  पेड़  तो,प्राण  वायु   का   दान,
फिर  क्यों लेता  है मनुज, बता  हमारी जान।
🌷
सबसे    है    मेरी    यही,  विनती    बारंबार,
वृक्ष   लगाकर   कीजिए, धरती  का  शृंगार।
🌷
  --ओंकार सिंह विवेक
पर्यावरण विषयक कुछ कुंडलिया छंद
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देते   हैं   सबको  यहाँ,प्राणवायु   का    दान,
फिर भी वृक्षों  की मनुज,लेता है नित  जान।
लेता  है नित जान, गई  मति  उसकी   मारी,
जो वृक्षों  पर  आज,चलाता पल-पल आरी।
कहते  सत्य 'विवेक', वृक्ष हैं  कब कुछ  लेते,
वे  तो  छाया-वायु,,फूल-फल  सबको   देते।    
©️
  पानी   जीवन   के   लिए, है  अनुपम  वरदान,
  व्यर्थ न  इसकी बूँद  हो, रखना  है  यह ध्यान।
  रखना  है  यह ध्यान,करें  सब संचय  जल का,
  संकट हो विकराल,पता क्या है कुछ कल का।
  करता  विनय  'विवेक',छोड़ दें अब  मनमानी,
  मिलकर करें  उपाय , बचा  लें   घटता  पानी।  
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करता  है  यह  प्रार्थना,मिलकर  सारा  गाँव,    
बनी   रहे  यों   ही   सदा,बरगद  तेरी  छाँव।
बरगद   तेरी   छाँव,न   कोई    तुझे  सताए,
छाया    तेरी     ख़ूब,घनेरी    होती     जाए।
ग्रीष्म काल  में नित्य,ज़ोर जब  सूरज भरता,
सबके सिर  पर छाँव,मित्र तू  ही  तो करता।
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©️ ओंकार सिंह विवेक 


          

June 2, 2023

सदीनामा अख़बार में फिर छपी एक ग़ज़ल

शुभ संध्या मित्रो 🌹🌹🙏🙏

कोलकता से निकलने वाले प्रतिष्ठित अख़बार/पत्रिका सदीनामा के बारे में पहले भी मैं कई बार अपने ब्लॉग पर लिख चुका हूं।यह बहुत ही प्रतिष्ठित पत्र है जिसमें राजनैतिक,सामाजिक ख़बरों के साथ-साथ उच्च स्तर की साहित्यिक सामग्री भी प्रकाशित की जाती है। मशहूर शायर मुहतरम ओमप्रकाश नूर साहब की मुहब्बतों के चलते पहले भी इस पत्र में मेरी कई ग़ज़लें छप चुकी हैं।इस अख़बार की प्रतिनिधि मीनाक्षी जी और आदरणीय नूर साहब के सहयोग से इस इदारे के अदबी पटल पर ऑनलाइन काव्य पाठ का भी अवसर प्राप्त हो चुका है।इसके लिए मैं इदारे का शुक्रिया अदा करता हूं।आज फिर मुझे अपनी एक नई ग़ज़ल सदीनामा में पढ़ने को मिली। इसके लिए मैं अख़बार के संपादक मंडल का पुन: आभार व्यक्त करता हूं।
मेरा सभी से अनुरोध है कि अधिक से अधिक संख्या में इस अख़बार से जुड़कर लाभ उठाएँ।

June 1, 2023

दास्तान कुछ सुखद क्षणों की


मित्रों के साथ सुखद क्षणों की स्मृतियां साझा करना अच्छा लगता है।कई बार इनसे दूसरे लोग भी प्रेरणा ले लेते हैं। ऐसी स्मृतियों को सहेजने से जीवन को हंसी खुशी से जीने की उमंग सी बनी रहती है।आज ऐसे ही खुशी के कुछ लम्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं।
कल दिनाँक ३१ मई,२०२३ को प्रसार भारती रामपुर-उoप्रo में पर्यावरण  विषय को लेकर एक काव्य गोष्ठी की रिकॉर्डिंग के लिए जाना हुआ।मेरे साथ गोष्ठी में मुरादाबाद की अनुभवी होम्योपैथिक चिकित्सक और वरिष्ठ गीतकार डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय , बदायूँ के युवा कवि अभिषेक अनंत तथा विवेक हरि मिश्र जी ने सहभागिता की।सभी कवि मित्रों से बहुत आत्मीयतापूर्ण भेंट रही।डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी से पहले भी बहुत साहित्यिक कार्यक्रमों में मिलना होता रहा है।आप उच्चकोटि की साहित्यकार हैं।जब आप अपने सुमधुर स्वर में रचना पाठ करती हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। बदायूं से पधारें दोनों युवा साहित्यकारों में भी मुझे असीम संभावनाएं नज़र आईं। समसामयिक विषयों को लेकर उन्होंने जितनी सुंदर प्रस्तुतियां दीं उससे उनकी काव्य प्रतिभा का पता चलता है। गोष्ठी के बाद हम लोगों ने कुछ साहित्यिक विमर्श भी किया।आमंत्रित साहित्यकारों को मैंने अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियाँ भी भेंट कीं।
गोष्ठी के उपरांत मेरे आग्रह पर डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय मेरे निवास पर आकर परिजनों से भी मिलीं।बच्चे उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने परिजनों को स्वास्थ्य संबंधी कुछ बहुमूल्य परामर्श भी दिया। लगभग 76 वर्ष की आयु में भी अनुशासित दिनचर्या और खानपान के कारण डॉक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी की चुस्ती-फुर्ती देखते ही बनती है।ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें दीर्घ आयु प्रदान करें।पत्नी को थोड़ा गायन का शौक़ है सो डाक्टर प्रेमवती उपाध्याय जी ने उनसे एक गीत भी सुना।

दूसरा खुशी का अवसर तब आया जब हमारी छोटी पुत्री आस्था सैनी को Chartered accountants of India द्वारा बैंगलुरू में एक Convocation में  C.A. की डिग्री प्रदान की गई।
हम पति-पत्नी भी इस अवसर पर भव्य समारोह में उन सुखद क्षणों के साक्षी बने। हम दोनों की आंखों से खुशी के आंसू झलक आए जब पुत्री का नाम स्टेज से पुकारा गया।बेटी आस्था को पिछले लगभग पांच साल से हम एक प्रकार की साधना करते देख रहे थे।आस्था को उसकी महनत और लगन का प्रतिफल प्राप्त करते देखकर बहुत अच्छा लगा।बच्चे जब अपने मां-बाप से भी कहीं अधिक उपलब्धियां जीवन में हासिल करते हैं तो यह देखकर मां-बाप को बहुत गर्व होता है।मुझे अपनी ही एक ग़ज़ल का मतला याद आ रहा है :
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र  से  ऊँचा तभी  माँ-बाप  का  सर हो गया।
                              --- ओंकार सिंह विवेक


May 30, 2023

कला की पराकाष्ठा

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

व्यक्तिगत कारणों से पिछले दिनों कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू जाना हुआ। बेंगलुरू को भारत की सिलिकॉन वैली भी कहा जाता है।अंतरराष्ट्रीय स्तर की सभी बड़ी टेक्नोलॉजी और सॉफ्टवेयर कंपनियां यहां बड़ा कारोबार करती हैं।देश और विदेश के तमाम लोगों को इस शहर ने रोज़गार प्रदान किया है।
अपनी बैंगलुरू यात्रा में यों तो हमने कई स्थानीय दर्शनीय स्थल देखे परंतु यहां के बोटनिकल गार्डन ने मन को सबसे अधिक लुभाया।इस पूरे गार्डन पर तो मैं विस्तार से अलग एक पोस्ट लिखूंगा ,फिलहाल एक पुराने आम के पेड़ पर की गई कलाकारी और कारीगरी से आपको रूबरू कराना चाहता हूं।
      (बोटेनिकल गार्डन बैंगलुरू में आम के पेड़ पर उकेरी गई          कलाकृतियां )
Mother Nature Wood 250 साल पुराने आम के पेड़ पर जो आकर्षक आकृतियां कलाकार द्वारा उकेरी गई हैं आप उन्हें देखकर दंग रह जाएंगे। सभी कलाकृतियां जीवंत भाव भंगिमाओं का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती हैं।इससे यह पता चलता है कि हमारे यहां कला का क्षेत्र कितना विस्तृत और विकसित रहा है।
पार्क में इस तरह की कोई एक आकृति पेड़ पर नहीं उकेरी गई है अपितु भिन्न-भिन्न मुद्राओं में कलाकारी के ऐसे दर्जनों नमूने देखने मिल जाएंगे।
अपने देश के ऐसे श्रेष्ठ कलाकारों और ऐसी कला का संरक्षण तथा संवर्धन करने वालों को शत-शत नमन और वंदन।
             --- ओंकार सिंह विवेक 

May 27, 2023

मुलाक़ात हसीन लोगों से

इन दिनों हम पति-पत्नी अपनी छोटी पुत्री सीoएo आस्था सैनी के पास कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू, जिसे सिलिकॉन वैली के नाम से जाना जाता है,आए हुए हैं।बेटी आस्था ने हाल ही में सीoएo की फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण करके भारतीय मूल की मल्टी नेशनल कंपनी विप्रो में सीनियर एक्जीक्यूटिव फाइनेंस के रूप में ज्वाइन किया है। आज convocation में Institute of chartered accountants of India द्वारा यहां एक भव्य समारोह में अन्य बच्चों के साथ आस्था को भी सीoएo की डिग्री प्रदान की जाएगी। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि हमें भी इस अवसर का साक्षी होने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
इस प्रवास के दौरान एक वरिष्ठ साहित्यकार(मंझे हुए ग़ज़लकार)श्री एमo श्रीराम जी से मिलने उनके घर भी जाना हुआ।पत्नी,बेटी और मैं आदरणीय एमoश्रीराम जी और उनके परिजनों की आत्मीयता देखकर गदगद हो गए।उन लोगों से मिलकर लगा ही नहीं कि  हम उनसे पहली बार मिले हों।इस विशुद्ध दक्षिण भारतीय परिवार के धारा प्रवाह हिंदी वार्तालाप से हम लोग बहुत प्रभावित हुए।आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी मूल रूप से आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं तथा डिफेंस विभाग से सेवानिवृत्ति के उपरांत कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरू में स्थाई रूप से रहने लगे हैं।आप एक अच्छे योगा ट्रेनर भी हैं और कॉल्स पर विभिन्न विभागों और कंपनियों में योग की क्लासेज़ लेते हैं।पारिवारिक और साहित्यिक विमर्श के साथ ही मैंने उन्हें अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रति भी भेंट की।मेरे इसरार/आग्रह पर उन्होंने अपनी एक ताज़ा ग़ज़ल भी सुनाई। मैंने आदरणीय श्री एमo श्रीराम जी से उनकी साहित्यिक गतिविधियों पर कुछ वार्तालाप करके उनके ग़ज़ल पाठ का वीडियो भी रिकॉर्ड किया जिसे अपने यूट्यूब चैनल पर शीघ्र ही अपलोड करके आपके साथ साझा करूंगा।
प्रस्तुतकर्ता : ओंकार सिंह विवेक



May 23, 2023

कैसी - कैसी ने'मत हमको जंगल देते हैं

दोस्तो शुभ प्रभात 🌹🌹🙏🙏

आज फिर मेरे नवीन ग़ज़ल संग्रह में प्रकाशित होने जा रही जदीद ग़ज़ल का आनंद लीजिए :

नई ग़ज़ल -- -- ©️ ओंकार सिंह विवेक 
©️ 
शीशम  साखू   महुआ   चंदन  पीपल   देते हैं,
कैसी-कैसी  ने'मत   हमको   जंगल   देते   हैं।

वर्ना सब  होते  हैं  सुख  के   ही  संगी -साथी,
दुनिया में  बस  कुछ  विपदा  में संबल देते हैं।

रस्ता  ही भटकाते  आए  हैं  वो  तो अब तक,
लोग  न  जाने  क्यों  उनके  पीछे  चल देते हैं।
©️ 
आज बना  है मानव  उनकी ही जाँ का दुश्मन,
जीवन  भर  जो  पेड़  उसे  मीठे  फल  देते हैं।

मिलती है  कितनी  तस्कीन तुम्हें क्या बतलाएँ,
आँगन  के  प्यासे पौधों  को  जब  जल देते हैं।

कब तक सब्र का बाँध न टूटे प्यासी फसलों के,
धोखा   रह-रहकर   ये   निष्ठुर  बादल  देते  हैं।

किस  दर्जा  मे'यार  गिरा  बैठे  कुछ  व्यापारी,
ब्रांड  बड़ा  बतलाकर  चीज़ें   लोकल  देते  हैं।
                       ---©️ ओंकार सिंह विवेक

May 19, 2023

उनको हमसे यही शिकायत है

मित्रो प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

आजकल अपने दूसरे ग़ज़ल संग्रह के प्रकाशन की तैयारी में लगा हुआ हूं।पांडुलिपि लगभग तैयार है।एक-दो शीर्षक भी सोच लिए हैं।कुछ मशवरे के बाद उनमें से एक फाइनल कर लिया जाएगा।१२० पृष्ठ की किताब छपवाने का विचार है जिसमें ८० से लेकर ९० ग़ज़लें हो सकती हैं। रचनाओं में सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।आजकल संकलन के लिए "अपनी बात" लिखने के साथ-साथ छपने वाली रचनाओं को फाइनल लुक भी दे रहा हूं।इस दौरान कई ग़ज़लें संशोधित भी की हैं।कुछ ग़ज़लों में केवल पाँच-पाँच शेर ही थे।एकरूपता के लिए सभी में सात-सात शेर किए हैं।
यदि परिस्थितियां अनुकूल रहीं तो आपके आशीर्वाद से इस साल ही मेरा दूसरा ग़ज़ल संग्रह मूल्यांकन हेतु आपके सम्मुख आ जाएगा।
लीजिए इस संकलन में छपने वाली एक और ग़ज़ल का आनंद लीजिए :

ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
©️
फ़ाइलातुन् मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन 

हर   तरफ़  जंग  की  अलामत  है,
अम्न  पर  ख़ौफ़-सा  मुसल्लत है।

क्या करें उनसे कुछ गिला-शिकवा,
तंज़  करना  तो  उनकी  आदत है।

मुजरिमों  को   नहीं  है   डर   कोई,
ख़ौफ़  में  अब  फ़क़त अदालत है।

हमने ज़ुल्मत  को  रौशनी  न कहा,
उनको  हमसे  यही   शिकायत  है।

पूछ   लेते    हैं  ख़ैरियत जो  कभी,
दोस्तों    की    बड़ी    इनायत   है।

बात   करते    हैं,  फूल   झरते   हैं,
उनके लहजे में  क्या  नफ़ासत  है।

जंग  से   मसअले  का  हल  होगा,
ये   भरम   पालना    हिमाक़त  है।
    --- ©️ओंकार सिंह विवेक 

मुसल्लत ---  हावी, ग़ालिब

May 16, 2023

मातृ दिवस पर काव्यधारा का साहित्यिक आयोजन

आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था रामपुर- उत्तर प्रदेश के बारे में पहले भी मैं कई ब्लॉग पोस्ट्स लिख चुका हूं।यह संस्था पिछले कई वर्ष से अपनी साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से हिंदी भाषा और कविता के संरक्षण,संवर्धन और विकास का कार्य कर रही है।
       संस्था ने अनवरत जारी अपने साहित्यिक क्रियाकलापों की कड़ी में  दिनांक १४-०५-२०२३ को अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस के अवसर पर कवि सम्मेलन /साहित्यकार सम्मान/काव्य संकलन के लोकार्पण समारोह का रामपुर में भव्य आयोजन किया।

 कार्यक्रम में हिंदी की सेवा के लिए चौबीस काव्यकारों को उत्तरीय, सम्मान पत्र एवं माल्यार्पण द्वारा सम्मानित किया गया तथा "गीत गीतिका ग़ज़ल" काव्य संकलन का लोकार्पण भी किया गया।

 इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए  डॉ ० गीता मिश्रा 'गीत' ने देशभक्ति से ओतप्रोत रचना का पाठ किया -
"ओ! देशभक्त दे दे रक्त,
सींच राष्ट्र भूमि को ओ! आर्य पुत्र !"

ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'विवेक' (रामपुर) ने वर्तमान राजनीति पर व्यंग्य करते हुए कहा ----
"लुत्फ़ क्या आयेगा शराफत में,
आप अब आ गये सियासत में ।"
सुबोध कुमार शर्मा 'शेरकोटी'  जी की प्रस्तुति -
"यह मेरी माँ का आँचल है,
जहाँ पर प्यार मिलता है ।"

   पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य' ने मातृ शक्ति को समर्पित रचना प्रस्तुत की --  
"प्रबल सूर्य के तेज किरण सी है चमकीली माँ, 
माँ एक मूरत है प्यार और ममता की ।"

  कवि राम किशोर वर्मा ने माँ के प्रति अपने उद्गार कुछ यों व्यक्त किए --
"अपनी तो चिंता नहीं, बच्चों की हर बार ।
प्रभु से ही बस लगन थी, कर इनका उद्धार ।।"

  संस्था अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ने  माँ को समर्पित गीत प्रस्तुत किया-
"माँ तो माँ ही होती है,
बच्चों का कल्मष धोती है ।
पूर्व सुलाए वह बच्चों को,
किंतु बाद में वह सोती है।"'
 
 प्रीति चौधरी (गजरौला) ने माँ को समर्पित रचना प्रस्तुत की --
"माँ की ममता प्यार सब,
दुनिया में अनमोल ।
कोई पाया है भला, उसे कभी क्या तोल ।।"
 
  राजीव 'प्रखर' (मुरादाबाद) ने कहा-
"जारी रखने के लिए, प्रेम भरे वह सत्र ।
चल दोनों मिलकर पढ़ें, आज पुराने पत्र ।"

  कमलेश्वर सिंह कमलेश वरिष्ठ कवि (फरीदपुर-बरेली) ने रचना प्रस्तुत की-
"भोर के उगते हुए सूरज,
तुम्हें मेरा नमन ।
न जाने कब कहाँ, 
जिंदगी की शाम हो जाए।'
  इनके अतिरिक्त सत्य पाल सिंह 'सजग', राम रतन यादव, कृष्ण कुमार पाठक, रश्मि चौधरी, राज बाला 'धैर्य', डॉ ० संजीव सारस्वत 'तपन' , फैसल मुमता, सुरेन्द्र अश्क रामपुरी, बलवीर सिंह, धीरेन्द्र सक्सेना, सोहन लाल भारती, महाराज किशोर 'महाराज', नयना कक्कड़ गुप्ता, उदय प्रकाश सक्सेना, शोभित गुप्ता, रमेश चन्द्र जैन 'सेठी', पंकज शर्मा, विवेक बादल बाजपुरी, शिव प्रकाश सक्सेना ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किये रखा ।
   अंत में संस्थापक-अध्यक्ष जितेन्द्र कमल आनंद ने सभी रचनाकारों की प्रशंसा करते हुए आभार ज्ञापित किया ।
   कार्यक्रम संचालन महासचिव राम किशोर वर्मा ने किया।
कार्यक्रम की समाचार पत्रों द्वारा सुंदर कवरेज की गई।
             ---- ओंकार सिंह विवेक 

 

May 12, 2023

प्रोत्साहन प्रतिसाद

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏



रचनाकर दिल्ली १ साहित्यिक पटल से साभार👎👎
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*रचनाकार दिल्ली 1*

*पंजीयन क्रमांक 2434/2018*

*एक कदम साहित्यिक उत्कृष्टता की ओर*

*संवेदना सृजन सम्मान के साथ*

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*पटल परिणाम*

दिनांक -- 9/5/2023

दिन -- मंगलवार
 
मिसरा -- कभी फूल पढ़ना कभी खार पढ़ना

विधा -- गजल

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*दैनिक सम्मान*
1- दैनिक सर्वश्रेष्ठ रचनाकार
आ० ओंकार सिंह विवेक जी

2 - दैनिक सर्वश्रेष्ठ समीक्षक
आ० धर्मराज देशराज जी

3 -- दैनिक सर्वश्रेष्ठ समीक्षक
आ० सरफराज हुसैन फराज जी

4 -- दैनिक सर्वश्रेष्ठ संचालक
आ० प्रभात पटेल जी


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सभी चयनित साहित्यसाधको को हार्दिक बधाई 
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*एक किरण विश्वास की*
*सबके साथ विकास की* 

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प्रशासक मंडल
रचनाकार

इस अनुशासित और स्तरीय साहित्यिक राष्ट्रीय पटल के बारे में पहले भी मैं ब्लॉग पोस्ट साझा कर चुका हूं। काव्य सृजन सीखने और सिखाने के लिए यह बहुत ही अच्छा पटल है।साहित्यकारों से मैं अनुरोध करूंगा कि इस पटल से जुड़कर अवश्य ही लाभान्वित हों। मै आभारी हूं मंच का कि यहां से मुझे अक्सर ही कभी समीक्षक के रूप में और कभी रचनाकार के रूप में प्रोत्साहन प्रतिसाद प्राप्त होता रहता है।
यदि सृजनकार को उसके रचना कर्म के लिए प्रोत्साहन/प्रशस्ति प्राप्त होती है तो उसमें नई ऊर्जा का संचार होने लगता है।उसे कुछ और अच्छा सृजन करने के दायित्व का बोध होने लगता है। सृजन में सुधार के लिए यह सिलसिला बना रहना चाहिए।सीखने और सिखाने की प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलती है।हमें जूनियर और सीनियर के आधार पर कोई भेद या ईगो न रखते हुए जिससे जो भी ज्ञानवर्धक जानकारी मिले उसे आभार प्रकट करते हुए ग्रहण करते रहना चाहिए।किसी भी प्रकार की मानसिक संकीर्णता या ईगो हमारी प्रगति के मार्ग के बहुत बड़े बाधक होते हैं।कविता की जहां तक बात है यह व्यक्ति के ह्रदय से स्वत: प्रस्फुटित होने वाला भाव है।कविता को किसी पाठशाला में नहीं सिखाया था सकता।हां उसके शिल्प और कथ्य आदि को लेकर अवश्य कुछ राय/मशवरा दिया जा सकता है ताकि उसमें ओर निखार आ सके।कविता में शिल्प के साथ- साथ लक्षणा/व्यंजना/उपमा और प्रतीकों आदि का प्रयोग धीरे-धीरे अभ्यास और बड़ों के मार्गदर्शन से निखरता रहता है।परंतु कविता के मूल भाव स्वत: ही व्यक्ति के मन में आते हैं।
तो आईए इन्हीं कुछ बातों को ध्यान में रखकर हम अपने सृजन को निखारते हुए साहित्य की सेवा करते रहें।
         --- ओंकार सिंह विवेक 

May 6, 2023

रामायण कालीन पौराणिक स्थल बिठूर

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की यात्रा के क्रम में आज  आपका परिचय रामायण काल से भी अधिक प्राचीन नगर बिठूर (ज़िला कानपुर)से करवाते हैं।
एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने हेतु हाल ही में कानपुर जाना हुआ। कानपुर से कुछ किलोमीटर पहले एक नगर में प्रवेश करते समय यह बोर्ड देखा "पौराणिक नगरी बिठूर में आपका स्वागत है।" बोर्ड देखकर इस नगर के बारे में जानने की इच्छा तीव्र हुई।पता चला कि यह स्थान राजा ध्रुव और वाल्मीकि आश्रम जैसी महान और दुर्लभ पौराणिक विरासत का गवाह रहा है। मैंने निश्चय किया कि विवाह समारोह से लौटते समय इस पौराणिक नगर में रुककर इन महत्वपूर्ण स्थानों का दर्शन अवश्य करूंगा। 
वहां जो कुछ देखा और महसूस किया वह आपके साथ साझा कर रहा हूं और आपसे यह अनुरोध भी कर रहा हूं कि यदि कभी इधर से होकर निकलें तो इन पौराणिक धरोहरों को अवश्य देखें।मेरी तरह आपको भी ये सब चीज़ें देखकर गर्व की अनुभूति होगी।

प्राचीन मान्यता के अनुसार बिठूर के गंगा घाट पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपनी खड़ाऊं की एक कील यहां गाड़ दी थी।पौराणिक मान्यता के अनुसार इस स्थान को प्रथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है। इस मंदिर में ब्रह्म जी के चरणों की पूजा की जाती है।

        (गंगा घाट पर ब्रह्म्मवर्त तीर्थ)

बिठूर की भूमि वीरों का ठिकाना रही है इसलिए इसे बिठूर कहा जाता है। जहां कभी वीर योद्धा नाना राव पेशवा जी का प्रसिद्ध महल था वहां अब उनका स्मारक और संग्रहालय बना हुआ है। मराठा राजा पेशवा नाना राव जी ने बिठूर को अपनी राजधानी बनाया था। यहीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बचपन में घुड़सवारी और सैन्य कौशल में दक्षता हासिल की थी।

बिठूर में ही रामायण कालीन वाल्मीकि आश्रम तथा लव-कुश आश्रम स्थित हैं।यहीं वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की थी। श्रीराम जी द्वारा सीता माता को त्यागने पर लक्ष्मण जी ने उनको यहीं छोड़ा था। इसी स्थान पर सीता माता ने लव-कुश को जन्म दिया था यहीं उनका लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा आदि हुई थी। यहां सीता जी की रसोई के नाम से भी एक स्थान संरक्षित किया गया है। माना जाता है कि सीता मैया इसी स्थान पर रसोई में लव-कुश तथा वाल्मीकि जी के लिए भोजन बनाती थीं।
श्री राम जी के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को भी लव और कुश द्वारा इसी क्षेत्र में रोका गया था।
बिठूर का वाल्मीकि आश्रम
 (वाल्मीकि आश्रम का भीतरी भाग)

 (वाल्मीकि आश्रम में हमें बाबा जी ने इस स्थान के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी) 

एक स्थान पर सीता कुंड का शिला पट लगा हुआ था।बाबा जी ने बताया कि इसी स्थान पर सीता जी ने पाताल लोक में प्रवेश किया था। इस स्थान पर मूल रामायण का कुछ अंश भी पत्थरों पर उकेरा गया है।
                       (सीता कुंड)

 मान्यता है कि  जिस स्थान पर खड़े होकर राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने तपस्या की थी, उसे ध्रुव टीला कहते हैं।इस स्थान पर अब कोई ख़ास प्राचीन अवशेष तो दिखाई नहीं देते परंतु यहां एक आश्रम अवश्य दिखाई दिया।टीले के नीचे की ओर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर भी है जिसमें हनुमान जी तथा माता अंजनी की प्रतिमाएं हैं।

इस टीले और उसके आस-पास के स्थान का  बारीकी से निरीक्षण किया तो इस स्थान के पौराणिक महत्व का आभास हुआ।यहां पहुंचकर गर्व के साथ मानसिक शांति का भी अनुभव हुआ।
--- प्रस्तुत कर्ता : ओंकार सिंह विवेक 


May 1, 2023

आईए जानें अंबेडकर पार्क रामपुर के बारे में

प्रणाम मित्रो🌹🌹🙏🙏

पिछली कई ब्लॉग पोस्ट में मैंने आपको अपने नगर रामपुर 
(उo प्रo)के कई दर्शनीय स्थलों जैसे गांधी समाधि और चाकू चौराहा आदि से परिचित कराया है। इसी क्रम में आज बात करते हैं रामपुर के अंबेडकर पार्क की।

अंबेडकर पार्क दिल्ली लखनऊ राज मार्ग पर रामपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र की प्राइम लोकेशन पर स्थित है।यहां से नगर के रेलवे स्टेशन और रोडवेज बस स्टैंड बहुत नज़दीक हैं।पार्क के सामने ही निरीक्षण भवन,बराबर में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर संग्रहालय और पुस्तकालय स्थिति है।
पार्क में प्रवेश करते ही बाबा साहब की विशाल प्रतिमा के दर्शन होते हैं।बाबा साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व से हम सब भली भांति परिचित हैं।आप एक महान चिंतक,समाज सुधारक और संविधान सभा के अध्यक्ष थे।भारत के संविधान के निर्माण में आपकी महती भूमिका रही।

 पार्क में भांति भांति के सुंदर पेड़ पौधे लगे हुए हैं जिनकी समय समय पर कटिंग करके सुंदर आकार दिया जाता है।पार्क में हर ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है।पार्क की पूरी लंबाई में किनारे किनारे घुमावदार नहर बनाई गई है जिसमें बत्तखें तैरती रहती हैं तथा बच्चों को बोटिंग आदि भी कराई जाती है।
आजकल नहर में पानी इतना नहीं है अत बोटिंग आदि नहीं होती है।पार्क के अंदर छोटी छोटी कुछ झोपड़ियां जैसी भी बनी हुई हैं जिनमें बेंचों पर लोग बैठकर सुकून का अनुभव करते हैं। पार्क के अंदर घुमावदार रास्ता बना हुआ है जिस पर लोग मॉर्निंग तथा इवनिंग वॉक करते हैं। पार्क के एक कोने में पत्थरों। को जोड़कर एक पहाड़ की टॉप जैसी आकृति बनाई गई हैं जिस पर चढ़कर लोग सेल्फी आदि लेते हैं।
पार्क में झूले आदि भी लगे हुए है जिनका बच्चे ख़ूब आनंद उठाते हैं। पार्क में भरपूर स्थान हैं सो अक्सर ही यहां सामाजिक और अन्य संगठन अपनी बैठकों आदि का आयोजन आदि भी करते रहते हैं।
स्थानीय लोगों के सैर सपाटे के लिए यह एक अच्छा स्थान है।
यदि आपका भी सड़क के रास्ते कभी इधर से गुज़रना हो तो कुछ देर रुककर यहां थकान उतार सकते हैं।
 ----- ओंकार सिंह विवेक 


April 25, 2023

मियाँ ! शायरी ख़ुद असरदार होगी

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

 अस्वस्थ्य होने के कारण काफ़ी दिन से कोई पोस्ट साझा नहीं कर सका।आज एक पुरानी ग़ज़ल में कई संशोधन करके उसे नया रूप दिया है।आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं

ग़ज़ल--- ओंकार सिंह विवेक
©️
ज़रा  भी   अगर  फ़िक्र  में  धार  होगी,
मियाँ!शायरी   ख़ुद   असरदार   होगी।

सफ़र  का  सभी   लुत्फ़  जाता  रहेगा,
रह-ए-ज़िंदगी   ग़र   न   दुश्वार   होगी।

भले   ही   परेशान  हो  जाए  वो  कुछ,
मगर  हार  सच  को  न  स्वीकार होगी।
©️
मिलेंगे  नहीं   फ़स्ल  के   दाम  वाजिब,
किसानों पे  मौसम  की  भी मार होगी।

ख़ुशी से  भी है  रूबरू  होना  लाज़िम,
अगर  ज़िंदगी  ग़म  से  दो-चार  होगी।

जो   होगा   फ़रेबी, दग़ाबाज़   जितना,
सियासत में  उतनी  ही  जयकार होगी।

'विवेक' अपना ग़म ख़ुद उठाना पड़ेगा,
ये  दुनिया  न  हरगिज़  मददगार होगी।
            --  ©️ ओंकार सिंह विवेक 

April 20, 2023

साहित्यिक सरगर्मियां

दोस्तो नमस्कार 🌹🌹🙏🙏


आज केवल कुछ साहित्यिक सरगर्मियां ही आपके साथ साझा करने का मन है





April 17, 2023

कई दिन बाद

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

रचनाकर्म में मैंने यह अनुभव किया है कि कभी-कभी शारदे की कृपा होती है तो अचानक ही बहुत सार्थक सृजन हो जाता है और कभी-कभी तमाम प्रयासों के बाद भी कई-कई दिन तक अच्छा सृजन नहीं हो पाता।साहित्यकार इन्हीं सब अनुभवों से गुज़रते हुए अपनी लेखनी को धार देने का प्रयत्न करता रहता है।कई साल पहले मुझसे एक ग़ज़ल हुई थी जिसके कई शेर मुझे भी बहुत पसंद हैं क्योंकि वे मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं।इस ग़ज़ल को मंचों और सोशल मीडिया तथा मेरे यूट्यूब चैनल पर साहित्य प्रेमियों ने बहुत पसंद किया।

उस ग़ज़ल को आपकी अदालत में प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं :
ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित) 
हँसते - हँसते   तय    रस्ते   पथरीले    करने   हैं,
 हमको    बाधाओं   के    तेवर    ढीले  करने  हैं।

 कैसे   कह  दूँ  बोझ   नहीं  अब  ज़िम्मेदारी  का,
 बेटी  के  भी  हाथ   अभी   तो   पीले   करने  हैं।

 ये   जो   बैठ  गए   हो  यादों   का  बक्सा  लेकर,
 क्या  फिर  तुमको  अपने   नैना   गीले  करने  हैं।
 
 फ़िक्र नहीं  है  आज  किसी  को  रूह सजाने की,
 सबको  एक  ही  धुन  है ,जिस्म सजीले करने हैं।

 होते   हैं  तो  हो  जाएँ   लोगों   के   दिल  घायल,
 उनको   तो   शब्दों   के   तीर   नुकीले  करने  हैं।
 
 तुम तो ख़ुद ही  मुँह  की  खाकर लौटे  हो हज़रत,
 कहते   थे   दुश्मन   के   तेवर   ढीले   करने   हैं।

जैसे  भी  संभव   हो  पाए , प्यार   की  धरती  से,
ध्वस्त  हमें  मिलकर   नफ़रत  के  टीले  करने  हैं।
           --- ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित)
      (एक साहित्यिक समारोह में सम्मान प्राप्त करते हुए)
                                  

April 12, 2023

जीत ही लेंगे बाज़ी वो हारी हुई

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

हाल ही में रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा की उत्तराखंड इकाई की अध्यक्ष आदरणीया गीता मिश्रा गीत जी के आमंत्रण पर हल्द्वानी जाना हुआ। गीत जी और उनकी टीम के कुशल संयोजन में बहुत भव्य कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह संपन्न हुआ।कार्यक्रम में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के काव्यकारों को सम्मानित किया गया तथा कवियों द्वारा समसामयिक विषयों को लेकर अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियां दी गईं।इस कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें पड़ोसी मित्र देश नेपाल से आए दो कवियों हरीश जोशी जी और लक्ष्मी प्रसाद भट्ट जी ने भी काव्य पाठ किया।दोनों मेहमान कवियों को संस्था द्वारा सम्मानित भी किया गया।
                        (कार्यक्रम में मेरी प्रस्तुति)
इस कार्यक्रम पर विस्तार से मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा।अभी इन मेहमान कवियों के बारे में कुछ बात करना चाहता हूं।नेपाली कवि मित्रों के व्यवहार में बहुत ही आत्मीयता थी। काफ़ी देर तक इन लोगों से हिंदी और नेपाली साहित्य को लेकर चर्चा हुई।मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है  कि उन लोगों का नेपाली भाषा में काव्य पाठ तो उच्च स्तरीय था ही वे लोग हिंदी भी हमसे कहीं अधिक अच्छी बोल रहे थे।

                   (काव्य पाठ करते हुए नेपाली कवि  )
दोनों नेपाली कवियों ने हिंदी और नेपाली दोनों ही भाषाओं में काव्य पाठ किया।नेपाली भाषा में किए गए काव्य पाठ का उन्होंने हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत किया।सभी उनकी प्रस्तुति और हिंदी के प्रति इतना अनुराग देखकर बहुत प्रसन्न हुए।उनमें से एक कवि मित्र ने बांसुरी बजाकर नेपाली भाषा के गीत की मधुर धुन भी प्रस्तुत की तथा बाद में उस गीत का सुमधुर पाठ भी किया।
मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियां भी इन मेहमान साहित्यकारों को भेंट कीं।

इस साहित्यिक आयोजन वृतांत के साथ मेरी नई ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए :
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
  दिनांक 12.04.2023
©️
सूचना  क्या  इलक्शन   की  जारी  हुई,
धुर  विरोधी  दलों   में   भी   यारी  हुई।

दीन-दुनिया से बिल्कुल ही अनजान थे,
घर  से  निकले तो कुछ जानकारी हुई।

आज  निर्धन  हुआ  और   निर्धन  यहाँ,
जेब   धनवान   की    और   भारी  हुई।
  
मुझ पे होगा भी  कैसे  बला  का  असर,
माँ   ने    मेरी   नज़र   है   उतारी   हुई।
©️
ये  अलग  बात,   गतिरोध   टूटा   नहीं,
बात    उनसे    निरंतर    हमारी     हुई।

रात की नींद और चैन दिन  का  छिना,
सर  पे  बनिए  की  इतनी  उधारी हुई।

हौसला  देखकर  लग  रहा  है 'विवेक',
जीत   ही   लेंगे  बाज़ी   वो  हारी  हुई।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)





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आज फिर एक नई ग़ज़ल

 एक बार फिर कोलकता के सम्मानित अख़बार/पत्रिका "सदीनामा", ख़ास तौर से शाइर आदरणीय ओमप्रकाश नूर साहब, का बेहद शुक्रिया। सदीनामा निरं...