April 17, 2023

कई दिन बाद

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

रचनाकर्म में मैंने यह अनुभव किया है कि कभी-कभी शारदे की कृपा होती है तो अचानक ही बहुत सार्थक सृजन हो जाता है और कभी-कभी तमाम प्रयासों के बाद भी कई-कई दिन तक अच्छा सृजन नहीं हो पाता।साहित्यकार इन्हीं सब अनुभवों से गुज़रते हुए अपनी लेखनी को धार देने का प्रयत्न करता रहता है।कई साल पहले मुझसे एक ग़ज़ल हुई थी जिसके कई शेर मुझे भी बहुत पसंद हैं क्योंकि वे मेरे दिल के बहुत नज़दीक हैं।इस ग़ज़ल को मंचों और सोशल मीडिया तथा मेरे यूट्यूब चैनल पर साहित्य प्रेमियों ने बहुत पसंद किया।

उस ग़ज़ल को आपकी अदालत में प्रस्तुत कर रहा हूं। प्रतिक्रिया से अवश्य ही अवगत कराएं :
ग़ज़ल : ओंकार सिंह विवेक
 (सर्वाधिकार सुरक्षित) 
हँसते - हँसते   तय    रस्ते   पथरीले    करने   हैं,
 हमको    बाधाओं   के    तेवर    ढीले  करने  हैं।

 कैसे   कह  दूँ  बोझ   नहीं  अब  ज़िम्मेदारी  का,
 बेटी  के  भी  हाथ   अभी   तो   पीले   करने  हैं।

 ये   जो   बैठ  गए   हो  यादों   का  बक्सा  लेकर,
 क्या  फिर  तुमको  अपने   नैना   गीले  करने  हैं।
 
 फ़िक्र नहीं  है  आज  किसी  को  रूह सजाने की,
 सबको  एक  ही  धुन  है ,जिस्म सजीले करने हैं।

 होते   हैं  तो  हो  जाएँ   लोगों   के   दिल  घायल,
 उनको   तो   शब्दों   के   तीर   नुकीले  करने  हैं।
 
 तुम तो ख़ुद ही  मुँह  की  खाकर लौटे  हो हज़रत,
 कहते   थे   दुश्मन   के   तेवर   ढीले   करने   हैं।

जैसे  भी  संभव   हो  पाए , प्यार   की  धरती  से,
ध्वस्त  हमें  मिलकर   नफ़रत  के  टीले  करने  हैं।
           --- ओंकार सिंह विवेक 
               (सर्वाधिकार सुरक्षित)
      (एक साहित्यिक समारोह में सम्मान प्राप्त करते हुए)
                                  

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