April 12, 2023

जीत ही लेंगे बाज़ी वो हारी हुई

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏

हाल ही में रामपुर (उत्तर प्रदेश) की साहित्यिक संस्था काव्यधारा की उत्तराखंड इकाई की अध्यक्ष आदरणीया गीता मिश्रा गीत जी के आमंत्रण पर हल्द्वानी जाना हुआ। गीत जी और उनकी टीम के कुशल संयोजन में बहुत भव्य कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह संपन्न हुआ।कार्यक्रम में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के काव्यकारों को सम्मानित किया गया तथा कवियों द्वारा समसामयिक विषयों को लेकर अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियां दी गईं।इस कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें पड़ोसी मित्र देश नेपाल से आए दो कवियों हरीश जोशी जी और लक्ष्मी प्रसाद भट्ट जी ने भी काव्य पाठ किया।दोनों मेहमान कवियों को संस्था द्वारा सम्मानित भी किया गया।
                        (कार्यक्रम में मेरी प्रस्तुति)
इस कार्यक्रम पर विस्तार से मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा।अभी इन मेहमान कवियों के बारे में कुछ बात करना चाहता हूं।नेपाली कवि मित्रों के व्यवहार में बहुत ही आत्मीयता थी। काफ़ी देर तक इन लोगों से हिंदी और नेपाली साहित्य को लेकर चर्चा हुई।मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं हो रहा है  कि उन लोगों का नेपाली भाषा में काव्य पाठ तो उच्च स्तरीय था ही वे लोग हिंदी भी हमसे कहीं अधिक अच्छी बोल रहे थे।

                   (काव्य पाठ करते हुए नेपाली कवि  )
दोनों नेपाली कवियों ने हिंदी और नेपाली दोनों ही भाषाओं में काव्य पाठ किया।नेपाली भाषा में किए गए काव्य पाठ का उन्होंने हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत किया।सभी उनकी प्रस्तुति और हिंदी के प्रति इतना अनुराग देखकर बहुत प्रसन्न हुए।उनमें से एक कवि मित्र ने बांसुरी बजाकर नेपाली भाषा के गीत की मधुर धुन भी प्रस्तुत की तथा बाद में उस गीत का सुमधुर पाठ भी किया।
मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रतियां भी इन मेहमान साहित्यकारों को भेंट कीं।

इस साहित्यिक आयोजन वृतांत के साथ मेरी नई ग़ज़ल का भी आनंद लीजिए :
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
  दिनांक 12.04.2023
©️
सूचना  क्या  इलक्शन   की  जारी  हुई,
धुर  विरोधी  दलों   में   भी   यारी  हुई।

दीन-दुनिया से बिल्कुल ही अनजान थे,
घर  से  निकले तो कुछ जानकारी हुई।

आज  निर्धन  हुआ  और   निर्धन  यहाँ,
जेब   धनवान   की    और   भारी  हुई।
  
मुझ पे होगा भी  कैसे  बला  का  असर,
माँ   ने    मेरी   नज़र   है   उतारी   हुई।
©️
ये  अलग  बात,   गतिरोध   टूटा   नहीं,
बात    उनसे    निरंतर    हमारी     हुई।

रात की नींद और चैन दिन  का  छिना,
सर  पे  बनिए  की  इतनी  उधारी हुई।

हौसला  देखकर  लग  रहा  है 'विवेक',
जीत   ही   लेंगे  बाज़ी   वो  हारी  हुई।
©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)





4 comments:

  1. बहुत ही शानदार प्रस्तुति रही आपकी

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    1. आपका आशीर्वाद है🌹🌹

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  2. शानदार सृजन उम्दा प्रस्तुति

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    1. अतिशय आभार आपका 🌹🌹🙏🙏

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