अस्वस्थ्य होने के कारण काफ़ी दिन से कोई पोस्ट साझा नहीं कर सका।आज एक पुरानी ग़ज़ल में कई संशोधन करके उसे नया रूप दिया है।आपकी प्रतिक्रिया हेतु यहां प्रस्तुत कर रहा हूं
ग़ज़ल--- ओंकार सिंह विवेक
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ज़रा भी अगर फ़िक्र में धार होगी,
मियाँ!शायरी ख़ुद असरदार होगी।
सफ़र का सभी लुत्फ़ जाता रहेगा,
रह-ए-ज़िंदगी ग़र न दुश्वार होगी।
भले ही परेशान हो जाए वो कुछ,
मगर हार सच को न स्वीकार होगी।
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मिलेंगे नहीं फ़स्ल के दाम वाजिब,
किसानों पे मौसम की भी मार होगी।
ख़ुशी से भी है रूबरू होना लाज़िम,
अगर ज़िंदगी ग़म से दो-चार होगी।
जो होगा फ़रेबी, दग़ाबाज़ जितना,
सियासत में उतनी ही जयकार होगी।
'विवेक' अपना ग़म ख़ुद उठाना पड़ेगा,
ये दुनिया न हरगिज़ मददगार होगी।
-- ©️ ओंकार सिंह विवेक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय।
Deleteउम्दा शायरी
ReplyDeleteआभार आदरणीया।
Deleteख़ुशी से भी है रूबरू होना लाज़िम,
ReplyDeleteअगर ज़िंदगी ग़म से दो-चार होगी।
वाह!!!
शुक्रिया।
Deleteलाजवाब शायरी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
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