ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की यात्रा के क्रम में आज आपका परिचय रामायण काल से भी अधिक प्राचीन नगर बिठूर (ज़िला कानपुर)से करवाते हैं।
एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने हेतु हाल ही में कानपुर जाना हुआ। कानपुर से कुछ किलोमीटर पहले एक नगर में प्रवेश करते समय यह बोर्ड देखा "पौराणिक नगरी बिठूर में आपका स्वागत है।" बोर्ड देखकर इस नगर के बारे में जानने की इच्छा तीव्र हुई।पता चला कि यह स्थान राजा ध्रुव और वाल्मीकि आश्रम जैसी महान और दुर्लभ पौराणिक विरासत का गवाह रहा है। मैंने निश्चय किया कि विवाह समारोह से लौटते समय इस पौराणिक नगर में रुककर इन महत्वपूर्ण स्थानों का दर्शन अवश्य करूंगा।
वहां जो कुछ देखा और महसूस किया वह आपके साथ साझा कर रहा हूं और आपसे यह अनुरोध भी कर रहा हूं कि यदि कभी इधर से होकर निकलें तो इन पौराणिक धरोहरों को अवश्य देखें।मेरी तरह आपको भी ये सब चीज़ें देखकर गर्व की अनुभूति होगी।
प्राचीन मान्यता के अनुसार बिठूर के गंगा घाट पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने अपनी खड़ाऊं की एक कील यहां गाड़ दी थी।पौराणिक मान्यता के अनुसार इस स्थान को प्रथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है। इस मंदिर में ब्रह्म जी के चरणों की पूजा की जाती है।
(गंगा घाट पर ब्रह्म्मवर्त तीर्थ)
बिठूर की भूमि वीरों का ठिकाना रही है इसलिए इसे बिठूर कहा जाता है। जहां कभी वीर योद्धा नाना राव पेशवा जी का प्रसिद्ध महल था वहां अब उनका स्मारक और संग्रहालय बना हुआ है। मराठा राजा पेशवा नाना राव जी ने बिठूर को अपनी राजधानी बनाया था। यहीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बचपन में घुड़सवारी और सैन्य कौशल में दक्षता हासिल की थी।
मान्यता है कि जिस स्थान पर खड़े होकर राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने तपस्या की थी, उसे ध्रुव टीला कहते हैं।इस स्थान पर अब कोई ख़ास प्राचीन अवशेष तो दिखाई नहीं देते परंतु यहां एक आश्रम अवश्य दिखाई दिया।टीले के नीचे की ओर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर भी है जिसमें हनुमान जी तथा माता अंजनी की प्रतिमाएं हैं।
इस टीले और उसके आस-पास के स्थान का बारीकी से निरीक्षण किया तो इस स्थान के पौराणिक महत्व का आभास हुआ।यहां पहुंचकर गर्व के साथ मानसिक शांति का भी अनुभव हुआ।
Bahut badhiya jankaari pauranik sthal ki
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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