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कविता के दो रंग
February 14, 2024
वसंत पंचमी/शारदे प्रादुर्भाव दिवस
February 12, 2024
पुस्तक परिचय : "तू ही प्राणाधार" (कुंडलिया-संग्रह)
पुस्तक परिचय
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कृति : तू ही प्राणाधार
कृतिकार : शिव कुमार 'चंदन'
संस्करण : 2024 (प्रथम)
प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह (जालंधर,पंजाब)
पृष्ठ : 111 मूल्य : रुo295.00
समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक
'तू ही प्राणाधार' रामपुर (उत्तर प्रदेश) के वरिष्ठ रचनाकार शिव कुमार 'चंदन' का प्रथम कुंडलिया-संग्रह है।धर्म,भक्ति और अध्यात्म के साथ-साथ हमारे आसपास के लगभग सभी विषयों को कवि ने अपने अनुभव और सामर्थ्य के आधार पर इसमें काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी है।सभी रचनाओं को अलग-अलग खंडों (चरण-वंदना,भक्ति-खंड, प्रकृति-खंड तथा विविध-खंड)में बांटकर पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।
कुंडलिया हिंदी काव्य का एक अत्यंत लोकप्रिय मात्रिक छंद है। छः चरणों के इस विषम मात्रिक छंद का प्रारंभ जिस शब्द/शब्द समूह से होता है अंत भी उसी पर होता है अर्थात इसकी संरचना कुंडली के समान होती है इसलिए इसे कुंडलिया छंद का नाम दिया गया है।
चंदन जी लंबे समय से काव्य साधना में रत हैं।अब तक आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप बहुत सरल भाषा में अपनी भावना प्रधान काव्यात्मक अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। चंदन जी का अधिकांश सृजन भक्ति प्रधान है जिसमें जगह-जगह ब्रज भाषा का पुट भी दिखाई पड़ जाता है।कविता ह्रदय में विद्यमान कोमल भावनाओं से उपजती है।इस पुस्तक में कवि ने अपनी भावनाओं के ज्वार को बड़ी सहजता से काव्यरूप में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास किया है। भावनाओं के अतिरेक में कहीं-कहीं शिल्पगत सौंदर्य की अनदेखी भी हो गई है परंतु फिर भी कोमल भावों की दृष्टि से यह कुंडलिया-संग्रह ध्यान आकृष्ट करता है।
प्रस्तुत संग्रह के चरण-वंदना खंड में मां शारदे की स्तुति करते हुए कवि ने कई भावपूर्ण छंद रचे हैं।ये काव्यात्मक भाव मां शारदे और अपने इष्टदेव के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा और भक्ति को दर्शाते हैं।
पुस्तक के भक्ति खंड में एक ओर भगवान राम की मर्यादा का गान है और श्री कृष्ण की लीलाओं का भावपूर्ण चित्रण है तो दूसरी ओर सनातन संस्कृति तथा धर्म-अध्यात्म के सुंदर चित्र उकेरने का सफल प्रयास है। भारत देश की ऋषि परंपरा,भक्ति-धर्म तथा अध्यात्म पर यह भावपूर्ण कुंडलिया छंद देखें :
भारत के शुभ कर्म का, प्रकृति करे गुणगान।
ऋषि - संतों के देश की, अद्भुत है पहचान।।
अद्भुत है पहचान, देवता भी हर्षाते।
अवधपुरी के राम, सभी के मन को भाते।
भक्ति-शक्ति सब ताप, सदा ही रही निवारत।
कण-कण पावन धाम,सतत मन मोहे भारत।।
प्रकृति ने मानव को क्या-क्या नहीं दिया।सुंदर मौसम, पेड़- पौधे,जंगल, नदी, पहाड़ और मनमोहक झरने। मानव मन प्रकृति प्रदत्त यह संपदा देखकर कृतज्ञता से भर उठता है।मौसमों की बहार देखकर कवि चंदन का मन कह उठता है :
डाली- डाली से झरे,मनभावन मधु गंध।
रजनीगंधा की कली, तोड़ रही प्रतिबंध।।
तोड़ रही प्रतिबंध,तभी झींगुर गुंजारे।
दादुर और मयूर, झूमकर नाचे सारे।
बहती मदिर बयार, बदरिया काली- काली।
रिमझिम बरसे नीर, भीगती डाली- डाली।।
कवि के आसपास समाज में जो घटित होता है उस पर उसकी विशेष दृष्टि पड़ती है तो कविता का प्रस्फुटन होता है।सामाजिक विसंगतियाँ, क्षरित होते नैतिक मूल्य और सांस्कृतिक पतन देखकर जब कवि हृदय उद्वेलित होता है तो उसके मन से उपजी हुई कविता संवेदनाओं को झकझोर कर रख देती है।बदले हुए परिवेश और आधुनिक जीवन शैली की विसंगतियों पर कवि चंदन की अभिव्यक्ति देखिए :
कुत्ते पलते हर कहीं, कचरा खाती गाय।
दधि-माखन दुर्लभ हुए, मिले हर जगह चाय।।
मिले हर जगह चाय,आज बदला युग सारा।
हुए आधुनिक लोग, ग़ज़ब का दिखा नज़ारा।
दिखें राजसी ठाठ, कार में अफसर चलते।
यश-वैभव भरपूर,घरों में कुत्ते पलते।।
चंदन जी ने जीवन,प्रकृति,भक्ति,धर्म तथा अध्यात्म के लगभग सभी पहलुओं को अपनी काव्य अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है।कवि बहुत सरल और सहज भाषा में अपने भावों को संप्रेषित करने में काफ़ी हद तक सफल भी हुआ है।
काव्य सृजन नि:संदेह एक कठिन कर्म है जो निरंतर अभ्यास और अध्ययन से परिपक्वता पाता है। किसी भी विधा में काव्य-सृजन का भावों से ओतप्रोत होना तो पहली शर्त है ही परंतु उसमें कथ्य की बुनावट, कसावट, वाक्य विन्यास और वाक्यों में पारस्परिक तालमेल के साथ शिल्प का उचित निर्वहन उसे और भी हृदयग्राही बनाता है।
इस काव्य-संकलन में मुझे कहीं-कहीं भावनाओं की अतिप्रबलता शिल्प पर भारी पड़ती हुई प्रतीत हुई। शब्द चयन, वाक्य विन्यास और कथ्य की कसावट के साथ शिल्पगत सौंदर्य पर थोड़ा और ध्यान दिया जा सकता था। प्रूफ रीडिंग की त्रुटियों को भी न्यून किया जा सकता था।इन त्रुटियों के बावजूद यह पुस्तक पठनीय एवम संग्रहणीय है।
मैं चंदन जी की इस प्रकाशित कृति के लिए उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूं और आशा करता हूं कि उनकी लेखनी अनवरत साधनारत रहते हुए भविष्य में और भी स्तरीय सृजन करती रहेगी।
ओंकार सिंह 'विवेक'
साहित्यकार/समीक्षक
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल : 9897214710
दिनांक : 02.02.2024
जीवन के रंग 🌹🌹👈👈
February 5, 2024
पुस्तक परिचय : "सलाम-ए -इश्क़"(ग़ज़ल-संकलन)
February 4, 2024
पुस्तक परिचय : "मुरारी की चौपाल" (छंदमुक्त कविता-संग्रह)
पुस्तक परिचय
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कृति : मुरारी की चौपाल
कृतिकार : अतुल कुमार शर्मा
संस्करण : 2023 (प्रथम)
प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह (जालंधर,पंजाब)
पृष्ठ : 111 मूल्य : रुo295.00
समीक्षक : ओंकार सिंह विवेक
'मुरारी की चौपाल' संभल (उत्तर प्रदेश) के रचनाकार अतुल कुमार शर्मा का संभावनाएँ जगाता हुआ छंद मुक्त रचनाओं का एक सुंदर काव्य-संग्रह है। छंद मुक्त रचनाएँ कहना इतना आसान भी नहीं होता जितना समझा जाता है। छंद मुक्त लिखने के लिए छंद को जानना ज़रूरी है क्योंकि जो छंद को जानता है वही छंद मुक्त रचनाएँ लय में लिख सकता है।अतुल जी की ये रचनाएँ उनकी रचनात्मक क्षमता को दर्शाती हैं।
कवि जो कुछ समाज में देखता और भोगता-परखता है वे विषय ही उसकी सशक्त अभिव्यक्ति के माध्यम बनते हैं।रचनाकार की दृष्टि परिवार,समाज और क्षरित होते नैतिक मूल्य आदि सभी पर पड़ी है,जिन पर उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार धारदार अभिव्यक्ति की है। कविताओं के शीर्षक यथा - मुरारी की चौपाल, चोंच भर पानी, मर रहे हैं मंद-मंद,भूखे कबूतर, सिसकते दीप,अघोषित क़ैदी, प्रश्नों के पहाड़ और ज़िंदगी का ज़हर आदि पाठक के मन में इन रचनाओं को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं।संग्रह की शीर्षक कविता 'मुरारी की चौपाल' की कुछ पंक्तियाँ देखें :
अक्सर ऐसी हुआ करती थीं चौपालें/जहाँ बैठते थे लोग हर उम्र के/ फ़ासले मिटाकर/रात्रि के प्रथम पहर में/बनाए जाते थे सामाजिक क़ाइदे-क़ानून/साझा होते थे सुख-दुख/ ढूँढा जाता था समाधान/हर मुश्किल का/मैंने भी देखी थी एक ऐसी ही चौपाल बचपन में।
इन पंक्तियों में हमारी संस्कृति और ग्रामीण परंपरा की वाहक चौपालों के लुप्त होने का दर्द देखा जा सकता है।मुरारी की चौपाल कविता बताती है कि आधुनिक विकास और प्रगति की अंधी दौड़ में हम क्या-क्या खो चुके हैं।
'सिसकते दीप' कविता में कवि समाज की निराशाजनक परिस्थिति का बड़ा मार्मिक चित्रण करता है परंतु अंत में आशा की ज्योति के साथ कविता का समापन करता है।इसे ही सच्ची और अच्छी कविता कहा जाता है :
मंदिर के घंटे बंधे पड़े हैं/और चर्च में थमा हुआ है/चर्चाओं का दौर/प्रार्थनाएँ गुमसुम पड़ी हैं/चौपालें चुप हैं/और चौपाए भी/करवटें बदलने को तैयार नहीं/आलस्य छाया पड़ा है -
यत्र-तत्र-सर्वत्र/स्थायी होकर/लेकिन आशाओं के दीप/ दूर कहीं/आंसुओं की तरह/अभी भी झिलमिला रहे हैं/प्रतीक्षा में हैं/ कि कोई तेल लाएगा/प्रेम का -- आस्था का -- विश्वास का ।
कवि ने अपनी इन रचनाओं के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर कटाक्ष किए हैं, ज्वलंत समस्याओं को उठाया है।कुछेक स्थानों पर समस्या को उठाकर उसका समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है। वास्तव में सच्ची रचना वही होती है जो समस्या से साक्षात्कार कराकर उसका समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास भी करे।सामाजिक तानेबाने से किस प्रकार कविता निकालकर पाठक से संवाद किया जा सकता है कवि अतुल कुमार शर्मा इसमें दक्ष प्रतीत होते हैं। उनकी रचनाओं की भाषा बहुत ही सरल और सहज है जो आम जन से सीधे जुड़ जाती है। जैसा कि अक्सर होता है कहीं-कहीं प्रूफ रीडिंग आदि की त्रुटियां पुस्तक में छूट गई हैं।कवि ने आम बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले अन्य भाषा के शब्दों को भी स्वाभाविक रूप से अपनी कविताओं में प्रयुक्त किया है जो उनके कौशल को दर्शाता है।कवि की भाषा में कोई बनावट दिखाई नहीं देती।कविताओं के शीर्षकों तथा कथानकों के अनुसार ही सहज शब्दों का प्रयोग किया गया है।कवि अतुल कुमार शर्मा की ये सजीव अतुकांत कविताएँ उनके साहित्यिक भविष्य को लेकर असीम संभावनाएं जगाती हैं। निश्चित तौर पर पुस्तक को पाठकों का स्नेह प्राप्त होगा। आशा है भविष्य में उनकी भाव और शिल्प की दृष्टि से और अधिक धारदार रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।
मैं कृतिकार के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।
ओंकार सिंह विवेक
साहित्यकार/समीक्षक/ब्लॉगर
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक : 02.02.2024
January 31, 2024
वाह रे!अवसरवाद
कुंडलिया छंद
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जिसकी बनती हो बने, सूबे में सरकार,
हर दल में हैं एक-दो, उनके रिश्तेदार।
उनके रिश्तेदार, रोब है सचमुच भारी,
सब साधन हैं पास,नहीं कोई लाचारी।
अब उनकी दिन-रात,सभी से गाढ़ी छनती,
बन जाए सरकार,यहाँ हो जिसकी बनती।
@ ओंकार सिंह विवेक
January 28, 2024
ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई की सुनहरी यादें
January 12, 2024
(ग़ज़ल कुंभ,2024 मुंबई) : प्रस्थान से पहले
January 5, 2024
झुर्री वाले गाल
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। साहचार्य से रहने में ही जीवन की सार्थकता है।मनुष्य समाज में रहकर बहुत कुछ सीखता है और उससे बहुत कुछ लेता भी है। अत: उसका दायित्व बनता है कि वह समाज को कुछ दे भी। स्वार्थ भाव से ऊपर उठकर समाज की सेवा भी करे।समाज सेवा के विभिन्न माध्यम हो सकते हैं। साहित्य सृजन के माध्यम से भी समाज की सेवा की जा सकती है। सृजनात्मक साहित्य वही कहलाता है जो लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करे और उनकी संवेदनाओं को छुए। हम सब साहित्यकारों का यह कर्तव्य बनता है कि अपने श्रेष्ठ साहित्य सर्जन से समाज की दशा और दिशा बदलते रहें।
आज अपने कुछ दोहे आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं :
आज कुछ दोहे यों भी
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@
दादा जी होते नहीं, कैसे भला निहाल।
नन्हे पोते ने छुए, झुर्री वाले गाल।।
क्या बतलाए गाँव का,मित्र! तुम्हें हम हाल।
आज न वह पनघट रहा ,और न वह चौपाल।।
क्या होगा इससे अधिक,मूल्यों का अवसान।
बेच रहे हैं आजकल, लोग दीन ईमान।।
मन में जाग्रत हो गई,लक्ष्य प्राप्ति की चाह।
कठिन राह की क्या भला,होगी अब परवाह।।
याची कब तक हों नहीं,बतलाओ हलकान।
झिड़क रहे हैं द्वार पर, उनको ड्योढ़ीवान।।
@ओंकार सिंह विवेक
अवसान -- समाप्ति,अंत
याची -- आवेदक, फ़रियादी
हलकान -- परेशान
(चित्र : ३ जनवरी,२०२४ को आकाशवाणी रामपुर में काव्य पाठ की रिकॉर्डिंग के अवसर पर)
December 31, 2023
🌹🌹नव वर्ष,2024 मंगलमय हो🌷🌷
आने वाले साल से उम्मीद बाँधे हुए एक ग़ज़ल
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-- ओंकार सिंह विवेक
©️
गए साल जैसा न फिर हाल होगा,
तवक़्क़ो है अच्छा नया साल होगा।
मुहब्बत के हर सू परिंदे उड़ेंगे,
बिछा नफ़रतों का न अब जाल होगा।
बढ़ेगी न केवल अमीरों की दौलत,
ग़रीबों का तबक़ा भी ख़ुशहाल होगा।
सुगम होंगी सबके ही जीवन की राहें,
न भारी किसी पर नया साल होगा।
सलामत रहेगी उजाले की हस्ती,
अँधेरा जहाँ भी है पामाल होगा।
उठाएँगे ज़िल्लत यहाँ झूठ वाले,
बुलंदी पे सच्चों का इक़बाल होगा।
न होगा फ़क़त फ़ाइलों-काग़ज़ों में,
हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।
---©️ ओंकार सिंह विवेक
रामपुर-उoप्रo
December 29, 2023
ग़ज़ल का बदलता स्वरूप
December 27, 2023
अम्न पर खौफ़-सा मुसल्लत है
December 24, 2023
December 19, 2023
अलसाई - सी धूप
आज एक नवगीत : सर्दी के नाम
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-- ©️ओंकार सिंह विवेक
छत पर आकर बैठ गई है,
अलसाई-सी धूप।
सर्द हवा खिड़की से आकर,
मचा रही है शोर।
काँप रहा थर-थर कुहरे के,
डर से प्रतिपल भोर।
दाँत बजाते घूम रहे हैं,
काका रामसरूप।
अम्मा देखो कितनी जल्दी,
आज गई हैं जाग।
चौके में बैठी सरसों का,
घोट रही हैं साग।
दादी छत पर ले आई हैं,
नाज फटकने सूप।
आए थे पानी पीने को,
चलकर मीलों-मील।
देखा तो जाड़े के मारे,
जमी हुई थी झील।
करते भी क्या,लौट पड़े फिर,
प्यासे वन के भूप।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
(चित्र : गूगल से साभार)
December 15, 2023
लुत्फ़-ए-ग़ज़ल
December 10, 2023
सर्दी वाले दोहे
विषयगत दोहे
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दिसंबर , रजाई , अलाव , चाय , धूप
@ओंकार सिंह विवेक
दिसंबर
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माह दिसंबर आ गया,ठंड हुई विकराल।
ऊपर से करने लगा,सूरज भी हड़ताल।।
रजाई
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हाड़ कँपाती ठंड से,करके दो-दो हाथ।
स्वार्थ बिना देती रही,नित्य रजाई साथ।।
अलाव
*****
चौराहे के मोड़ पर,जलता हुआ अलाव।
नित्य विफल करता रहा,सर्दी का हर दाव।।
चाय
***
खाँसी और ज़ुकाम का,करके काम तमाम।
अदरक वाली चाय ने, ख़ूब कमाया नाम।।
धूप
***
कल कुहरे का देखकर,दिन-भर घातक रूप।
कुछ पल ही छत पर रुकी,सहमी-सहमी धूप।।
@ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
December 5, 2023
December 2, 2023
नई ग़ज़ल!!! नई ग़ज़ल!!!नई ग़ज़ल!!!
December 1, 2023
अभी तीरगी के निशां और भी हैं
November 27, 2023
इज़हारे-ख़याल : एक तरही ग़ज़ल
November 23, 2023
पल्लव काव्य मंच रामपुर (उoप्रo)का शारदीय काव्य महोत्सव
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उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की सातवीं काव्य गोष्ठी संपन्न
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(प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री अनिल कुमार तोमर जी एवं महासचिव श्री इरफ़ान आलम जी) मित्रो संग...
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बहुुुत कम लोग ऐसे होते हैैं जिनको अपनी रुचि के अनुुुसार जॉब मिलता है।अक्सर देेखने में आता है कि लोगो को अपनी रुचि से मेल न खाते...
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शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...