June 30, 2019

ज़िन्दगी से

ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
शिकायत कुछ नहीं है ज़िन्दगी  से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी  से।

ज़रूरत  और   मजबूरी  जहाँ    मैं,
करा  लेती हैं सब  कुछ आदमी से।

रखें  उजला  सदा किरदार  अपना,
सबक़  लेंगे  ये  बच्चे आप  ही से।

न छोड़ेगा जो उम्मीदों का दामन,
वो होगा आशना इक दिन ख़ुशी से।

उसे  अफ़सोस  है अपने  किये  पर,
पता  चलता है आँखों की नमी  से।
-ओंकार सिंह 'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)

June 29, 2019

दोहे: अब तो हो बरसात

मिलकर सब करते विनय,जमकर बरसो आज,
अपनी ज़िद को छोड़  दो, हे  बादल   महाराज।

आज बहुत प्यासी धरा, मेघ बरस  दिल   खोल,
यदि बरसेगा  बाद  में,   तो  क्या   होगा    मोल।

सबके  होठों  पर  यहाँ,  सिर्फ़  यही  है    बात,
गरमी की हद  हो  गयी,  भगवन कर  बरसात।

उमड़  पड़े आकाश  में, जब  बादल  दो- चार,
सबकी आशा को लगे, जग  में  पंख   हज़ार।

पशु-पक्षी, मानव जगत, पौधों  सजी  क़तार,
सब को ही राहत मिले, जब कुछ पड़े  फ़ुहार।
----(सर्वाधिकार सुरक्षित) ओंकार सिंह'विवेक'

June 25, 2019

सिंहासन

आज का चित्राधारित लेखन--          
  तितली  पकड़ी  हैं बाग़ों में,छत  मे  झूले डाले हैं,
  मस्ती ही की है जीवन में,जब से होश सँभाले हैं।
  पर अब थोड़ी बात अलग है,अब सत्ता है हाथों में,
  अब हमको शासन करना है,अब हम गद्दी वाले हैं।
-                           ----------ओंकार सिंह विवेक

June 21, 2019

Yoga Day

आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर कुछ विषयगत दोहे प्रस्तुत हैं-

तन मन दोनों स्वस्थ हों,दूर रहें सब रोग,
आओ इसके वासते, करें साथियो योग।

जब से शामिल कर लिया ,दिन चर्या में योग,
मुझसे घबराने लगे,सभी तरह के रोग।
 
औषधियों से तो हुआ,सिर्फ क्षणिक उपचार,
मिटा दिये पर योग ने,जड़ से रोग विकार।

घोर निराशा,क्रोध,भय,उलझन और तनाव,
योग शक्ति से हो गये, ग़ायब सभी दबाव।

योग साधना से मिटे, मन के सब अवसाद,
जीवन मेरा हो गया,ख़ुशियों से आबाद।

रामकिशन,गुरमीत सिंह, या जोज़फ़, रहमान,
सजी योग से सभी के,चेहरों पर मुसकान।

एक दिवस नहिं योग का,प्रतिदिन हो अभ्यास,
सबके जीवन में तभी,आयेगा उल्लास।

------ओंकार सिंह विवेक (सर्वाधिकार सुरक्षित)

June 2, 2019

हक़ीक़त

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
क़द यहाँ औलाद का जब उनसे बढ़कर हो गया,
फ़ख़्र  से  ऊँचा  तभी  माँ-बाप  का सर हो गया।

जब  भरोसा  मुझको अपने बाज़ुओं पर हो गया,
साथ   मेरे   फिर  खड़ा  मेरा  मुक़द्दर  हो   गया।

मुब्तिला इस ग़म में अब रहने लगा वो रात-दिन,
क्यों  किसी का क़द यहाँ उसके बराबर हो गया।

बाँध  रक्खी  थीं  उमीदें  सबने  जिससे जीत की,
दौड़  से  वो  शख़्स  जाने  कैसे  बाहर  हो  गया।

ख़ून  है  सड़कों  पे  हर  सू और फ़ज़ा में ज़ह्र है,
देखते  ही  देखते  यह   कैसा   मंज़र   हो   गया।
----------ओंकार सिंह'विवेक'(सर्वाधिकार सुरक्षित)

May 28, 2019

मन की स्थिरता

चित्राधारित दोहे
भाग-दौड़ से जब हुई ,दिन प्रतिदिन हलकान,
गोरी तब करने  लगी,     गहन साधना-ध्यान।

करना  पड़ता  है  बहुत,पावनता  से  ध्यान,
चंचल  मन को बाँधना, कब  इतना आसान।
@सर्वाधिकार सुरक्षित
----ओंकार सिंह विवेक

May 27, 2019

हमदर्द

 

मुक्तक
कभी   सदमात  देकर  ख़ून  के आँसू रुलाता है,
कभी  ज़ख़्मों पे मेरे  आप  ही मरहम लगाता  है।
उसे  दुश्मन  कहूँ  या  फिर कहूँ  हमदर्द  है मेरा,
बड़ी उलझन में हूँ मेरी समझ में कुछ न आता है।
-----------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित

May 24, 2019

दोहे

      ओंकार सिंह'विवेक'
      मोबाइल9897214710
     @सर्वाधिकार सुरक्षित
शब्दों   ने  हमको   दिये,   ऐसे   ऐसे  घाव,
जीवन में संभव नहीं ,जिनका कभी भराव।

औरों  के  दिल  को  सदा, देते हैं जो घाव।
वे  ढोते  हैं  उम्र  भर  ,अपराधों   के भाव।

अपनी कमियों की करें,पहले ख़ुद पहचान,
करें  नसीहत  बाद  में , औरों को  श्रीमान।

पहले मुझको झिड़कियां, फिर थोड़ी मनुहार,
यार  समझ  पाया  नहीं , मैं  तेरा    व्यवहार।

जिससे  मिलकर बाँटते ,अपने मन की पीर,
मिला  नहीं  ऐसा  हमें,  कोई  भी   गंभीर।

बिगड़ेगी  कैसे  भला , जग  में  मेरी  बात,
जब  माँ  मेरे वासते, दुआ  करे दिन  रात।

गर्म  सूट  में  सेठ  का  जीना हुआ  मुहाल,
पर  नौकर  ने  शर्ट  में जाड़े  दिये निकाल।

इक दिन होगी आपकी,मुश्किल भी आसान,
वक़्त  किसी का भी सदा, रहता नहीं समान।

धन-दौलत  की  ढेरियां ,  कोठी-बंगला-कार,
अगर  नहीं  मन शांत तो, यह सब है बेकार।
-            -----------ओंकार सिंह'विवेक'

May 22, 2019

ख़ुशगवार

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल9897214710
हर हाल में ख़िज़ाँ पर ग़ालिब बहार   होगी,
फिर से फ़ज़ा गुलिस्तां की ख़ुशगवार होगी।

केवल  यहाँ  बुराई  ही  लोग   सब   गिनेंगे,
अच्छाई  मेरी  कोई  भी कब  शुमार   होगी।

इंसानियत-मुहब्बत-तहज़ीब  की  हिमायत,
शिद्दत से  मेरी ग़ज़लों में  बार   बार   होगी।

केवल  ख़िज़ाँ मकीं  है मुद्दत से इसमें यारो,
कब  मेरे दिल के हिस्से में भी  बहार   होगी।

दिल  को  लुभाने  वाले सब रंग उसमें होंगे,
जब उनकी बज़्म है तो फिर शानदार  होगी।
(सर्वाधिकार सुरक्षित)-ओंकार सिंह विवेक
चित्र:गूगल से साभार

May 19, 2019

व्यक्तित्व विकास


                         मानव स्वास्थ्य
जब हम व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो मन में प्राय: शारीरिक स्वास्थ्य का भाव ही उत्पन्न होता है |स्वास्थ्य शब्द का प्रसंग आने या चर्चा होने पर हम किसी व्यक्ति के शरीर की संरचना या उसके मोटे  अथवा पतले होने की दशा  तक ही सीमित हो जाते हैं |वास्तव में जब हम किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की बात करते हैं तो इसका अर्थ बहुत व्यापकता लिए हुए होता है |व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के दो पहलू होते हैं ,पहला शारीरिक स्वास्थ्य  और दूसरा मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य| किसी व्यक्ति को स्वस्थ  तभी कहा जा सकता है जब वह व्यक्ति भौतिक शरीर से स्वस्थ  होने के साथ ही मानसिक और आत्मिक रूप से भी पूरी तरह स्वस्थ हो| यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बहुत बलिष्ठ है परन्तु मानसिक रूप से बीमार है तो हम उसे स्वस्थ व्यक्ति की श्रेणी में नहीं रख सकते |इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति का तो  विकास कर  चुका हो परन्तु  शारीरिक द्रष्टि से कमज़ोर हो  तो भी हम उसे पूरी तरह  स्वस्थ नहीं कह सकते |
व्यक्ति को अपने स्थूल शरीर को स्वस्थ  रखने के लिए अच्छे  खान-पान ,व्यायाम अथवा शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है |यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसका  शरीर दुर्बल हो जायेगा और उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी शिथिल पड़ जाएगी|परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक रूप से असक्त  हो जायेगा |इस अवस्था से बचने के लिए उसे अपने शरीर को चलाने के लिए अपने शरीर की खुराक पर ध्यान देना होगा |शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सभी मौसमी फल,सब्जियां, दूध,घी या जो भी प्रकृति ने  हमें सुपाच्य  खाद्य  उपलब्ध  कराया है उसका सेवन करना चाहिए एवं किसी भी रोग से ग्रस्त होने की दशा में चिकित्सीय  परामर्श लेना चाहिए|
व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ होने के लिए स्थूल  शरीर के साथ साथ अपने आत्मिक स्वास्थ्य की चिंता करना भी परम आवश्यक है |यदि व्यक्ति शारीरिक रूप से बलशाली है परन्तु उसकी आत्मा और मन बीमार  और कमजोर हैं तो भी व्यक्ति का समग्र विकास संभव नहीं है | अत :व्यक्ति को  अपने  तन के स्वास्थ्य  के साथ मन और आत्मा के स्वास्थ्य  की चिंता करना भी उतना ही आवश्यक है| जिस प्रकार स्थूल  शरीर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा व्यायाम और भोजन आवश्यक है उसी प्रकार मन और आत्मा के अच्छे  स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति का अच्छे लोगों की संगत में बैठना और  अच्छा साहित्य पढ़ना भी अति आवश्यक है | जिस प्रकार अच्छा भोजन स्थूल शरीर की खुराक है उसी प्रकार अच्छे लोगों की संगत एवं अच्छे साहित्य का पठन-पाठन व्यक्ति के मन और आत्मा की खुराक है |
मन और आत्मा को स्वस्थ रखने के लिए सदैव सकारात्मक सोच ,सत्संग् और अच्छे साहित्य को पढ़ते रहना अति आवश्यक है |अत : यदि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से स्वस्थ होगा तभी उसका चारित्रिक विकास संभव है :
                 तन तेरा मज़बूत हो मन भी हो बलवान,
               अपने इस व्यक्तित्व को सफल तभी तू मान।
@सर्वाधिकार सुरक्षित------ओंकार सिंह विवेक


May 18, 2019

इज़हार-ए-ख़्याल

चित्र:साभार गूगल से
ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
मोबाइल9897214710
चाहे कैसी भी महफ़िल हो रास न हरगिज़ आती है,
इस दिल का क्या कीजे इसको तनहाई ही भाती है।

दिल  से  दिल के  रिश्ते कितने पाकीज़ा हैं सच्चे  हैं,
उनको मेरी हर मुश्किल की आप  ख़बर हो जाती है।

मेल  हुआ  तो है  उनमें कुछ लोगों के समझाने पर ,
देखें  अब  यह आपसदारी कितने दिन रह पाती है।

शौक  उड़ानों का  रखना कोई  इतना आसान नहीं,
पंछी  के  घायल  पंखों  की  पीड़ा यह बतलाती है।

पूछ  रहे  हो  आप  सियासत के बारे में,तो सुन लो,
यह वो शय है जो हर रोज़ मसाइल को उलझाती है।
                     ---------------ओंकार सिंह'विवेक'

May 17, 2019

फ़िक्र की परवाज़

ग़ज़ल-ओंकार सिंह'विवेक'
कभी  तो  चाहता  है  यह  बुलंदी  आसमानों   की,
कभी दिल माँग करता है मुसलसल ही ढलानों की।

अभी  भी  सैकड़ों  मज़दूर  हैं  फुटपाथ  पर  सोते,
अगरचे  बात  की  थी  आपने  सबको मकानों  की।

उसूलों  की  पज़ीरायी, वफ़ा-अख़लाक़  के  जज़्बे,
इन्हें   बतला   रहें   हैं   लोग   बातें  दास्तानों   की।

चला  आयेगा  कोई  फिर  नया इक  ज़ख्म देने को,
कमी   कब   है  ज़माने   में   हमारे  मेहरबानों  की।

नदी  को  क्या  रवानी, सोचिये  हासिल  हुयी होती,
ग़ुलामी  वो  अगर  तसलीम  कर  लेती  चटानों की।
-------------ओंकार सिंह'विवेक'
@सर्वाधिकार सुरक्षित
चित्र गूगल से साभार

May 15, 2019

माँ का साथ

डगर  का ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान होता  है अगर माँ साथ होती है।
मेरा कोई जगत में बाल बाँका कर नहीं सकता,
सदा  ह भान होता है अगर  माँ साथ होती है।
------------ओंकार सिंह विवेक

May 14, 2019

हिना

फूलों से खिलता यह घर है रची हथेली  कहती है,
सबका मन ख़ुशबू से तर है रची हथेली कहती है।
हम भी अपने मन में दीपक जला रखें उम्मीदों के,
ख़ुशियों का पावन अवसर है रची हथेली कहती है।
                      -------------ओंकार सिंह विवेक

April 29, 2019

सियासत

           ग़ज़ल
उसूलों  की  तिजारत  हो  रही है,
मुसलसल यह हिमाकत हो रही है।

इधर  हैं  झुग्गियों  में  लोग  भूखे,
उधर  महलों  में दावत हो रही  है।

जवानों की शहादत पर भी देखो,
यहाँ  हर पल सियासत हो रही है।

धरम, ईमान, तहज़ीब-ओ-तमद्दुन,
कहाँ  इनकी हिफ़ाज़त  हो रही है।

न बन पाया मैं इस दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझ को दिक़्क़त हो रही है।
----------ओंकार सिंह 'विवेक'

April 27, 2019

बच्चों का कोना


       ग़ज़ल
मन से करिए  रोज़ पढ़ाई,
पापा  ने यह बात  बताई।

पढ़ कर  बेटा नाम करेगा,
माँ   बापू ने आस  लगाई।

टीचर  जी ने  ख़ूब  सराहा,
जब भी देखी साफ़ लिखाई।

अव्वल  दर्ज़ा  पास हुये तो,
देंगे   सारे    लोग    बधाई।

पढ़-लिखकर औरों को पढ़ायें,
होगी   जग  में   ख़ूब   बढ़ाई।

फिर अच्छा  है  सैर  सपाटा,
पहले  कर  लें  आप  पढ़ाई।

        हमारा बेटा
सबसे न्यारा सबसे प्यारा,
हम दोनों का राजदुलारा।
हम को इससे हैं आशायें,
कर देगा यह नाम हमारा।

          दोहे

बच्चों  हमको  है  सदा , ये आशा विश्वास,
बदलोगे तुम लोग ही ,दुनिया का इतिहास।

रखते हो बच्चों अगर ,तुम मंज़िल की चाह,
चुन  लो  अपने  वासते,  सच्चाई  की  राह।
            --------------ओंकार सिंह'विवेक'

April 26, 2019

नरेंद्र भाई मोदी : जन्म तिथि विशेष


मित्रो नमस्कार 🙏🙏🌹🌹

अगर मैं कहूं कि वर्षों या दशकों बाद देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो व्यक्तिगत स्वार्थ और वोटों की राजनीति न करके सिर्फ़ राष्ट्रहित की बात को आगे रखकर देश की बागडौर संभाले हुए है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
यदि वोटों और सत्ता का लालच होता तो मोदी जी द्वारा नोटबंदी या जी एस टी जैसे कठोर निर्णय न लिए गए होते।
धारा-३७० को  ख़त्म करने की बात हो या फिर एन आर सी अथवा नए कृषि क़ानून सभी निर्णय देश के हित और विकास को ध्यान में रखकर लिए गए।
आईए देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्य रखने के लिए निरंतर प्रयासरत देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के जन्म दिवस के अवसर पर उनके दीर्घायु होने की कामना करें।

देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी
के जन्म दिवस पर विशेष 
 *********************************

©️
जग  में  धाक   जमाने    वाले   मोदी  भाई हैं,
देश  का  मान   बढ़ाने   वाले   मोदी   भाई हैं।

भारत  माँ  की और  जो  कोई आँख उठाएगा,
उसकी  नींद   उड़ाने    वाले   मोदी  भाई   हैं।

बनती है पहचान अलग, कुछ हट कर करने से,
सब   को   यह  बतलाने  वाले  मोदी  भाई  हैं।
©️
दुनिया  में  चर्चित-ताक़तवर  सब  नेताओं को,
अपना    यार   बनाने    वाले   मोदी  भाई  हैं।

सारी  दुनिया  में  भारत  की अपने  कौशल  से,
जय  जयकार   कराने    वाले   मोदी  भाई   हैं।

कहते हैं सब भारत वासी आज ये बात 'विवेक',
हर  उलझन  सुलझाने    वाले,  मोदी  भाई   हैं।
               --- ©️ओंकार सिंह'विवेक'
                       सर्वाधिकार सुरक्षित

April 24, 2019

माँ

ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
दूर रंज-ओ-अलम और सदमात हैं,
माँ है तो खुशनुमां घर के हालात हैं।

सब मुसलसल उसी को सताते रहे,
यह न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।

दुख ही दुख वो उठाती है सब के लिये,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।

लौट  भी  आ मेरे  लाल  परदेस  से,
मुंतज़िर माँ की आँखें ये दिन रात हैं।

चूमती  है  जो मंज़िल ये  मेरे  क़दम,
यह तो माँ की दुआओं के असरात हैं।

बाल बाँका मेरा कौन कर पायेगा,
माँ के जब तक दुआ में उठे हाथ हैं।
---------ओंकार सिंह'विवेक'

April 23, 2019

हमने भी मतदान किया

जिस तरह हर  देश में  शासन को चलाने की एक निर्धारित  व्यवस्था होती है उसी प्रकार शासकों के चुनाव की भी विश्व के अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रणालियाँ होती हैं |अधिकांश प्रजातांत्रिक देशों में जनता द्वारा सीधे वोटिंग के द्वारा शासकों और जन प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है|

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहाँ जनता द्वारा सीधे वोटिंग के माध्यम से जन प्रतिनिधियों और शासकों का चुनाव किया जाता है।यह एक पारदर्शी चुनाव पद्धति है तथा इस प्रणाली से सांसदों/विधायकों के चुनाव में एक-एक वोट अथवा मत का बहुत महत्त्व होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अच्छी तरह सोच समझकर अपने वोट के संवैधानिक अधिकार का आवश्यक रूप से इस्तेमाल करना चाहिए।इस दौर में नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है। लोग मूल्यों और सिद्धांतों को ताक पर रखकर छल,कपट और अवसरवादी राजनीति करने में लगे हुए हैं।राजनीति की यह दशा देखकर इस बार मन में यह विचार आया कि ऐसे स्वार्थी और अवसरवादी लोगों को वोट देने से तो अच्छा है कि वोट दिया ही न जाये।परन्तु अगले ही पल एक जागरूक नागरिक होने के नाते अपने दायित्व का एहसास भी हुआ और मन ने यह कहा कि ऐसा करके भी तू किसका भला करेगा। देश और समाज की चिंता करने वाले अन्य लोग भी यदि तेरी तरह ही सोचकर वोट करने नहीं निकलेंगे तो इससे कोई अच्छा सन्देश नहीं जायेगा और एक बड़ा वर्ग जो देश और समाज की बेहतरी चाहता है अच्छे लोगों को अपने वोट से चुनकर संसद में भेजने से स्वयं को वंचित कर लेगा जो किसी भी दशा में अच्छा नहीं है।जब हमारे देश में जन प्रतिनिधियों  को चुनने की एक मात्र यही प्रक्रिया है तो फिर और कोई विकल्प भी नहीं रह जाता है।अत: अपने मत/वोट का उपयोग न करना कोई बुद्धिमत्ता पूर्ण कार्य नहीं होगा।
आम तौर पर लोगों का यह मानना है कि अब ऐसे अच्छे लोग हैं ही नहीं जिन्हें चुनकर संसद में भेजा जाये।अगर इस बात को मान भी लिया जाये तो भी हमारा यह दायित्व बनता है कि हम बुरे या ख़राब लोगों में से ही कुछ ऐसे लोगों को चुनना तय करें जो उन बुरे लोगों में से कुछ कम बुरे हैं क्योंकि इसके अलावा कोई और  चारा भी तो नहीं है।इन्हीं सब तथ्यों को सोचकर अनेक अंतर्द्वंदों से दो-चार होता हुआ मन इस नतीजे पर पहुँचा कि मतदान करना चाहिए और यदि सभी उम्मीदवार बुरे हैं तो उनमे से सबसे कम बुरे लोगों को चुनने के लिए हर आदमी को वोट करना चाहिए।यही सोचकर मैंने अपनी धर्म पत्नी के साथ प्रात: 7.30 बजे ही पोलिंग बूथ पर पहुँच कर अपने मत/वोट का प्रयोग करके लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी पूरी की।धर्म पत्नी भी वोट देकर बहुत ख़ुश नज़र आयीं | शायद उन्हें भी संविधान द्वारा दिए गए अपने वोट देने के अधिकार का प्रयोग करके गर्व महसूस हो रहा था।होता भी क्यों नहीं , आख़िर हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर अपने मताधिकार का प्रयोग करके जो आ रहे थे।

पोलिंग बूथ से बाहर निकलकर घर आते हुए रास्ते में  कवि मन में कुछ दोहों का सृजन हुआ --  
               
               रखने को  निज देश के,लोकतंत्र  का  मान।
               जाकर पहले  बूथ पर, करना  है  मतदान।।

               रखने को  निज  देश के, लोकतंत्र का मान।
               छोड़-छाड़कर काम सब,करना है मतदान।।

               रखने को  निज देश  के,लोकतंत्र का  मान।
               आओ  प्यारे  साथियो,कर  आएँ  मतदान।।

               रखने को निज देश के, लोकतंत्र का मान।
                घर-घर जाकर बोल दें,करना है मतदान।।

                रखने को निज देश के, लोकतंत्र का मान।
                हर वोटर का लक्ष्य हो,करना  है मतदान।।
                             ---- ©️ ओंकार सिंह विवेक

Featured Post

उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की सातवीं काव्य गोष्ठी संपन्न

             फेंकते हैं रोटियों को लोग कूड़ेदान में               ***************************** यह सर्वविदित है कि सृजनात्मक साहित्य पुरातन ...