नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏
(रामपुर की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े साहित्यकार अंबेडकर पार्क रामपुर में साहित्यिक गतिविधियों के प्रचार-प्रसार के संबंध में विचार-विमर्श करते हुए)
रामपुर जनपद के हिंदी तथा उर्दू दोनों ही भाषाओं के अनेक साहित्यकारों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रही है।हिंदी साहित्यकारों में कल्याण कुमार जैन शशि, प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंघल और डॉक्टर छोटे लाल नागेंद्र और पुराने उर्दू साहित्यकारों में जलील नोमानी, होश नोमानी और अज़हर इनायती आदि को कौन नहीं जानता।वर्तमान में भी जनपद के अनेक वरिष्ठ एवं उदीयमान रचनाकार तथा साहित्यिक संस्थाएँ अपने-अपने गद्य एवं पद्य सृजन से भाषाओं को समृद्ध करने में निमग्न हैं। वर्तमान में वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र कमल आनंद और शिव कुमार चंदन जी जैसे लोग अपने साहित्यिक समूहों के माध्यम से निरंतर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में लगे हुए हैं।
रामपुर की प्रमुख साहित्यिक संस्थाएँ यथा उ0 प्र0 साहित्य सभा रामपुर इकाई, आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा, पल्लव काव्य मंच आदि आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं।
रामपुर में साहित्यिक गतिविधियों को और अधिक विस्तार देने तथा सभी संस्थाओं के समन्वय से ज़िले में बड़े साहित्यिक आयोजनों को मूर्त रूप देने को लेकर रामपुर के साहित्यकारों द्वारा अंबेडकर पार्क रामपुर में एक परिचर्चा और विचार गोष्ठी आयोजित की गई।
सभी साहित्यकार कहीं-कहीं कविता के गिरते स्तर को लेकर भी चिंतित दिखाई दिए। सभी ने यह महसूस किया की अच्छी कविता गंभीर चिंतन और मनन चाहती है।यदि हम अच्छा सोचेंगे/पढ़ेंगे तभी अच्छा लिख पाएंगे जो पाठकों/श्रोताओं द्वारा पसंद किया जाएगा।नई पीढ़ी के साहित्यकारों को विभिन्न प्रचार माध्यमों और सोशल मीडिया पर छाने की जितनी जल्दी है उतनी गंभीरता उनके साहित्य सृजन में दिखाई नहीं देती। यदपि इसके अपवाद भी दिखाई देते हैं।
सभी साहित्यकार इस बात पर एकमत दिखाई दिए कि अपने-अपने बैनरों के तले साहित्यिक आयोजनों में एक दूसरे को आमंत्रित करने के साथ-साथ यदा कदा सामूहिक रूप से बड़े साहित्यिक आयोजनों के बारे में भी सोचना चाहिए।आख़िर कविता के माध्यम से सभी का एक उद्देश्य है और वह है- साहित्य और समाज की सेवा। तो क्यों न फिर किसी तरह के पूर्वाग्रह को छोड़कर इस दिशा में सामूहिक प्रयास भी किए जाएँ।विचार गोष्ठी में इस पर कुछ सहमति बनती दिखाई दी जो एक शुभ संकेत है। विचार-विमर्श में यह भी तय हुआ कि शासन/प्रशासन को इस आशय का एक सामूहिक ज्ञापन दिया जाए कि ज़िला स्तर पर आयोजित कराए जाने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में स्थानीय साहित्यकारों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाना चाहिए।इससे स्थानीय साहित्यकारों को प्रोत्साहन मिलेगा और उनकी प्रतिभा भी निखरेगी। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रोत्साहन पाकर कुछ नया करने की ऊर्जा मिलती है। स्थानीय साहित्यकारों की यह पहल प्रशंसनीय है।इस पहल में प्रतिभाशाली युवा रचनाकार भाई राजवीर सिंह राज़ का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
मजरूह सुल्तानपुरी साहब के इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूं:
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।
--- मजरूह सुल्तानपुरी
प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक