April 7, 2025

सामाजिक सरोकारों की शायरी


कवि/शायर अपने आसपास जो देखता और महसूस करता है उसे ही अपने चिंतन की उड़ान और शिल्प कौशल के माध्यम से कविता या शायरी में ढालकर प्रस्तुत करता है।सामाजिक बुराइयां और बदलता सामाजिक ताना बाना जब कवि को विचलित करता है तो उसकी छटपटाहट कैसे शायरी में ढलती है, उसे महसूस करने के लिए मेरे ये दो शेर मुलाहिज़ा फ़रमाएं :

कुछ  कसर कब   छोड़ते हैं  अन्न  के अपमान में,
फेंकते   हैं   रोटियों   को    लोग    कूड़ेदान    में।

कितना अच्छा था वो अपना घर पुराना गाँव का,
धूप  मुस्काती  थी  आकर  सुब्ह  ही  दालान  में।
       ©️ ओंकार सिंह विवेक 



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